सिविल सेवकों की व्यक्तिगत और पेशेवर नैतिकता की अवधारणा का वर्णन

प्रश्न: उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सिविल सेवकों के व्यक्तिगत एवं पेशेवर नैतिकताओं के बीच संबंधों का परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सिविल सेवकों की व्यक्तिगत और पेशेवर नैतिकता की अवधारणाओं का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
  • इनके संबंधों का परीक्षण कीजिए कि कैसे ये तार्किक रूप में पृथक-पृथक हैं परंतु व्यावहारिक रूप में अविभेद्य या एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

व्यक्तिगत नैतिकता आचार संहिता को संदर्भित करती है जिसे एक व्यक्ति दैनिक जीवन में नैतिक और नीति सम्मत (morally and ethically) उचित मानता है। इन्हें कोई व्यक्ति जीवन पर्यंत दृढ़ता से सीखता रहता है तथा इसमें व्यक्तिगत नैतिकता और मूल्य, सार्वभौमिक मानवीय मूल्य, धर्म और सामाजिक मानदंड शामिल होते हैं।

सिविल सेवकों के लिए पेशेवर नैतिकता सिद्धांतों, मानदंडों एवं आचरण के नियमों और नैतिक आवश्यकताओं का एक समुच्चय होती है जिसे उन्हें अपने कर्तव्यों के आधिकारिक निर्वहन में अनुपालन करना होता है। इनमें बड़े पैमाने पर कार्यस्थल पालन की जाने वाली आचार संहिता और देश का कानून एवं कुछ संवैधानिक मूल्य जैसे निष्पक्षता, न्याय, ईमानदार, आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में जवाबदेहिता सम्मिलित होती है।

यद्यपि, तार्किक रूप से उनमें विभेद किया जा सकता है परंतु पेशेवर और व्यक्तिगत नैतिकता के मध्य भेद अधिक स्पष्ट नहीं है क्योंकि सार्वजनिक और निजी दोनों जीवन में किसी को सामान्य रूप से समान नैतिक मूल्यों का पालन करना पड़ता है। एक व्यक्ति जो अपने निजी जीवन में अनैतिक है, कदाचित् ही उससे कभी अपने सार्वजनिक जीवन में नैतिक होने की अपेक्षा की जा सकती है तथा इसी प्रकार जो सार्वजनिक जीवन में अनैतिक है, कदाचित् ही उससे कभी अपने निजी जीवन में नैतिक होने की अपेक्षा की जा सकती है।

चूँकि सिविल सेवा में उनके अधिदेश और उनके कोष से नागरिकों के कल्याण के लिए कार्य करने की अपेक्षा की जाती है, इसलिए सिविल सेवकों की व्यक्तिगत और पेशेवर नैतिकता के बीच अंतर करना आवश्यक हो जाता है। पेशेवर नैतिकता किसी सिविल सेवक से ऐसे मुद्दों को उठाने की अपेक्षा कर सकती है जिसे स्वयं सिविल सेवक द्वारा सर्वोत्तम तरीके से न उठाया गया हो, यह नैतिक संघर्ष का कारण बनती है। उदाहरण के लिए एक पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत रूप से मान सकता है कि उसके द्वारा जिस कानून को लागू किए जाने की आवश्यकता है, वह गलत है जैसे IPC की धारा 377 के तहत किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए गिरफ्तार करना। हालांकि, आचार संहिता के अंतर्गत, उसे इस कानून को लागू करना आवश्यक है। अतः, सार्वजनिक रूप से अपनी भूमिका निष्पादित करने के दौरान उसे अपने व्यक्तिगत मत को अलग करने और प्रभावी रूप से पेशेवर आचार संहिता का अनुपालन करने की आवश्यकता होती है।

यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सिविल सेवक की व्यक्तिगत और पेशेवर नैतिकता के बीच संबंध आवश्यक नहीं हैं की संघर्षपूर्ण हों। यदि दोनों पूर्ण रूप से पृथक-पृथक है तो यह कुंठा, आत्म गिलानी और भ्रांति का कारण बन सकता है, जबकि यदि दोनों के मध्य कुछ विभेद होता है तो यह मानसिक विसंगति (dissonance) उत्पन्न कर सकता है।

विसंगति किसी की मानसिक उलझन का कारण बन सकती है, इस प्रकार एक प्रकार की नैतिकता अन्य प्रकार की नैतिकता को आकार और सुदृढ़ बना सकती है। व्यक्तिगत विकास के लिए उन्हें एक दूसरे के समरूप होना चाहिए। हालांकि, अत्यधिक समरूपता से विचारों और परिवर्तनों में स्थिरता आ सकती है उदाहरण के लिए, यदि कोई सिविल सेवा सुधारोन्मुख नहीं है और वर्तमान सामुदायिक मूल्यों के समरूप है, तो सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में कठिनाई होगी।

साथ ही, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्यक्तिगत और पेशेवर नैतिकता का व्यवहार परस्पर निर्भर है। एक अधिकारी जो घर में वृद्धों या महिलाओं का सम्मान नहीं करता है, वह अपने पेशेवर कर्तव्यों के निष्पादन में इस कमजोर वर्ग के प्रति सहानुभूति नहीं रख पाएगा। इसलिए, न केवल संज्ञानात्मक विसंगति (cognitive dissonance) और कुंठा से बचने के लिए बल्कि कर्तव्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु व्यक्तिगत और पेशेवर नैतिकता के मध्य समरूपता आवश्यक है।

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