केस स्टडीज : उपयोगितावादी दर्शन के संदर्भ में इस बात की चर्चा कि किस प्रकार लालच स्व-हित का अनुसरण माना जाता है।

प्रश्न: हम ऐसे युग में रह रहे हैं, जहाँ लगभग हर चीज को खरीदा और बेचा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, बाजार और बाजार मूल्य हमारे जीवन को ऐसे नियंत्रित करने लगे हैं , जैसा पहले कभी नहीं था। आज खरीद और बिक्री का तर्क अब केवल भौतिक वस्तुओं पर ही लागू नहीं होता है, बल्कि उत्तरोत्तर सम्पूर्ण जीवन को नियंत्रित कर रहा है। हालांकि, अब व्यापक तौर पर यह अनुभव होने लगा है कि बाजार, नैतिकता विहीन हो गए हैं और हमें किसी प्रकार से उन्हें फिर से जोड़ने की आवश्यकता है। सामाजिक वस्तुओं को आवंटित करने के लिए बाजारों का उपयोग भी चिंता का एक कारण बन गया है। इस संदर्भ में, निम्नलिखित का उत्तर दीजिए :

(a) क्या लालच पूर्णतया एक बुराई है या वह चारित्रिक विशेषता है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्ष हैं ? क्या आप इसे उपयोगितावादी दर्शन से जोड़ सकते हैं जो आर्थिक सुख के आधार के रूप में व्यक्तियों द्वारा स्वहित के अनुसरण पर बल देता है?

(b) क्या ऐसी कुछ चीजें हैं जो पैसे से नहीं खरीदी जानी चाहिए ? उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समझाइए।

दृष्टिकोण

  • बाजार एवं बाजार मूल्यों के बारे में एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • चर्चा कीजिये कि कैसे लालच को एक बुराई माना जाता है।
  • इसके नकारात्मक पक्षों का विस्तार से वर्णन कीजिए। 
  • चर्चा कीजिये कि चरित्र की एक विशेषता के रूप में लालच में कुछ सकारात्मक पक्ष कैसे हो सकते हैं।
  • उपयोगितावादी दर्शन के संदर्भ में इस बात की चर्चा कीजिये कि किस प्रकार लालच स्व-हित का अनुसरण माना जाता है। 
  • प्रश्न के भाग (b) का उत्तर देने के लिए समझाएं कि कैसे धन को सब कुछ खरीदने में सक्षम नहीं होना चाहिए और उस तर्क को प्रस्तुत कीजिये जिसे बाज़ार मूल्यों को लागू करने से पहले क्रियान्वित करना चाहिए।
  • निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।

उत्तर

विगत कुछ दशकों में बाजार और बाजार केन्द्रित सोच ने एक निर्विरोध स्थिति का लाभ उठाया है, क्योंकि वस्तुओं के उत्पादन और वितरण के लिए कोई अन्य तंत्र प्रभाव स्थापित करने और समृद्धि उत्पन्न करने में इतना सफल नहीं हुआ है। हालांकि, जीवन के प्रत्येक पहलू में बाजार मूल्यों की व्यापक प्रकृति ने आर्थिक और नैतिक चिंताएं भी उत्पन्न की हैं।

(a). लालच को कुछ पाने (जैसे-शक्ति और धन) की तीव्र और स्वार्थपूर्ण इच्छा के रूप में परिभाषित किया गया है। सामान्यतः जो वास्तविक रूप से जो आवश्यक है,उससे ज्यादा प्राप्त करने की इच्छा ही लालच है। लालच एक बुराई है क्योंकि यह कई समस्याओं, यहां तक कि युद्ध और मानवता के विरुद्ध अपराधों का कारण सिद्ध हुई है। इसके बावजूद, मुक्त बाजार का समर्थन करने वाले कई अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि भले ही लालच में नकारात्मक भाव निहित है किन्तु इसमें कई सकारात्मक पहलू भी मौजूद हैं जैसे:

  • यह संभव है कि लालच के अभाव में कोई व्यक्ति, समुदाय या समाज, निर्माण करने या कुछ हासिल करने, आगे बढ़ने या  परिवर्तन करने के लिए प्रेरित न हो पाए। यह भी संभव है कि लालच के अभाव में वह अन्य व्यक्ति, समुदाय या समाज की लालच के प्रति सुभेद्य बन जाए।
  • यह व्यक्तियों के साथ-साथ फर्मों के मध्य सर्वश्रेष्ठ बनने की प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न करता है।

हालांकि ऐसे कई पर्याप्त कारण हैं, जिनके आधार पर लालच को सामान्यतः सात बुराईयों में से एक माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह असंतोष को उत्पन्न करता है, सीमित संसाधनों को और सीमित करता है, जो कहीं न कहीं शक्तिशाली और प्रभुत्वशाली लोगों का समर्थन करता है और अन्य लोगों को इनसे वंचित करता है। यह गैर-ज़िम्मेदार रूप से जोखिम लेने की प्रवृत्ति को उत्पन्न कर सकता है और निम्नलिखित परिणामों के साथ समाज में व्याप्त विश्वास को कमजोर कर सकता है:

  • असमानता: एक ऐसे समाज में, जहां सब कुछ बिक्री के लिए उपलब्ध हो, एक सामान्य जीवन जीने वाले लोगों के लिए कठिनाई उत्पन्न हो सकती हैं। जैसे ही अधिक धन आता है उसकी पहुँच राजनीतिक प्रभाव, बेहतर चिकित्सा देखभाल, सुरक्षित पड़ोस, बेहतर शिक्षा तक और अधिक बढ़ जाती है तथा इसके फलस्वरूप आय का वितरण और विषम हो जाता है।
  • भ्रष्टाचार: दैनिक जीवन में आवश्यक वस्तुओं पर मूल्य आरोपित करने से ,बाजारों की संक्षारक प्रवृत्तियां उन्हें विकृत कर सकती है। बाजार न केवल वस्तुओं का वितरण करते हैं बल्कि वस्तुओं के आदान-प्रदान की दिशा में एक विशेष अभिवृत्ति की अभिव्यक्ति के माध्यम से उसे बढ़ावा भी देते हैं। उदाहरण के लिए कॉलेजों की सीटों की नीलामी में अधिकतम बोली राजस्व में वृद्धि कर सकती है किन्तु कॉलेज की शुचिता एवं इसके मूल्यों को नष्ट कर देती हैं।
  • आर्थिक संकट: बाजार के लालच ने ही 2008 का वित्तीय संकट उत्पन्न किया और भविष्य में भी इसी प्रकार के संकटों का खतरा बढ़ रहा है।

उपयोगितावादी दर्शन के संदर्भ में लालच:

उपयोगितावादी दर्शन सामाजिक उपयोगिता को अधिकतम करने के तर्क पर आधारित है। चूंकि मुक्त बाजार उन खरीदारों को वस्तु आवंटित करता है जो उन्हें सर्वाधिक महत्व देते हैं और उनके लिए भुगतान करने के अधिक इच्छुक हैं। इसके फलस्वरूप आर्थिक दक्षता और सामूहिक कल्याण में सुधार होता है।

हालांकि विगत कुछ दशकों में न्यायसंगत स्व-हितों को अपनाना हानिकारक रहा है। अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर और बढ़ता जा रहा है। विश्व वित्तीय संकट के प्रति अधिक सुभेद्य है और कई अन्य मुद्दों के मध्य लालच ने पर्यावरणीय विनाश का मार्ग प्रशस्त किया है। इस प्रकार, यह तर्क दोषपूर्ण है और लालच स्पष्ट रूप से गैर-उत्तरदायी जोखिम को बढ़ावा देने के साथ ही समाज में विश्वास को कम करता है।

(b). हालांकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संबंध में, लोगों को उस सीमा तक प्रत्येक उस वस्तु की खरीद और बिक्री की स्वतंत्रता होनी चाहिए जहाँ तक वे दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करते है। इसके बावजूद बाजारों में नैतिक सीमाएं होनी चाहिए और धन द्वारा सब कुछ खरीदा जाना संभव नहीं होना चाहिए। यह आवश्यक है कि कुछ मूल्य सामाजिक और नागरिक जीवन के विभिन्न पक्षों को नियंत्रित करें। इसके साथ ही केवल मुनाफे और लाभ के संदर्भ में सभी वस्तुओं का मूल्य निर्धारण नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ पहले मनुष्यों का गुलामों के रूप में व्यापार किया जाता था और उनके साथ वस्तुओं जैसा व्यवहार किया जाता था। इस प्रकार का व्यवहार मनुष्यों को, गरिमा और सम्मान के योग्य व्यक्तियों के रूप में उचित तरीके से महत्व देने में विफल रहा।

यह माना जाता है कि कुछ चीजें ऐसी भी हैं जिन्हें बेचा नहीं जा सकता है। उदाहरण के लिए, नागरिकों को अपने वोट की बिक्री की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह माना जाता है कि नागरिक कर्तव्यों को सार्वजनिक उत्तरदायित्व के रूप में देखा जाना चाहिए न कि निजी संपत्ति के रूप में।

इसी प्रकार के तर्कों का प्रयोग अन्य विभिन्न सन्दर्भो में किया जा सकता है। उनमें से कुछ सन्दर्भ निम्नलिखित हैं:

  • लाभ-आधारित स्कूलों, अस्पतालों का प्रसार
  • कृत्रिम प्रजनन के लिए डिजाइनर अण्डों (eggs) और शुक्राणुओं का विपणन
  • गर्भधारण के लिए सरोगेट माताओं की आउटसोर्सिंग
  • कंपनियों और देशों द्वारा ‘प्रदूषण के अधिकार’ की खरीद-बिक्री
  • चुनाव अभियान के दौरान धन का प्रयोग खरीद-फरोख्त का माहौल उत्पन्न करता है
  • अपेक्षाकृत अधिक आक्रमक प्रक्रियाओं के लिए औषधियों के सुरक्षा परीक्षण हेतु उच्च भुगतान के साथ गिनी पिग का प्रयोग।
  • फ्लैश ट्रेड

बगैर किसी सिद्धांत और नियमों के, बाजार अर्थव्यवस्था, एक बाजार रूपी समाज में परिवर्तित हो गई है जिसमें मनुष्य को वस्तुओं की तुलना में गौण स्थान दिया जाता है। अंतर केवल यह है कि जहाँ बाजार अर्थव्यवस्था उत्पादक गतिविधियों को संगठित करने का एक साधन है वहीं बाजारोंमुख समाज जीवन का एक पहलू है, जिसमें वस्तुगत बाजार सम्बंधित मूल्य, मानव प्रयास के प्रत्येक पहलू में सम्मिलित होते हैं। इसलिए वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बाजारों की भूमिका और पहुंच पर विमर्श न केवल आर्थिक पक्षों पर, बल्कि नैतिक तर्क के आधार पर भी करने की आवश्यकता है।

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