1975 में राष्ट्रीय आपात का अधिरोपण
प्रश्न:1975 में राष्ट्रीय आपात का अधिरोपण संभवत: भारत के लोकतंत्र द्वारा सामना की गई सबसे कठिन परीक्षा थी। चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण:
- उन परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए जिनके तहत 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया गया था।
- ऐसे कुछ दृष्टान्तों का उल्लेख कीजिए जो दर्शातें हैं कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे कठिन परीक्षा थी।
उत्तरः
राष्ट्रीय आपातकाल लागू होने से पूर्व भारत अशांति के दौर से गुज़र रहा था। 1973 के तेल संकट, मानसून की विफलता, खाद्य फसलों का अपर्याप्त प्रबंधन, बेरोजगारी में वृद्धि तथा सरकार में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के चलते यह दौर उच्च मुद्रास्फीति का साक्षी रहा। इन परिस्थितियों के दौरान कार्यपालिका की सिफारिशों पर अनुच्छेद 352 लागू कर दिया गया तथा 26 जून 1975 को आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी गई।
निम्नलिखित करणों से आपातकाल की अवधि भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे कठिन परीक्षा सिद्ध हुई
- नागरिक अधिकारों का निलम्बन तथा प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध: सरकार ने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए न्यायालय में जाने के अधिकार को निलंबित कर दिया। इसी प्रकार, प्रेस की स्वतंत्रता का भी दमन किया गया।
- निरंकुश प्रवृत्तियों में वृद्धि: सरकार ने अधिकारवादी शक्तियों को ग्रहण करके सभी विरोधों को कुचल दिया। कठोर कानूनों जैसे आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम इत्यादि को शक्तिशाली बनाया गया।
- शक्तियों का दुरुपयोग: केंद्र सरकार ने विभिन्न तरीकों से अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। उदाहरण के लिए समाचार-पत्र प्रतिष्ठानों की विद्युत आपूर्ति बाधित कर दी गयी, निवारक निरोध अधिनियम का प्रयोग करते हुए विपक्षी दलों के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया इत्यादि।
- अत्याचारों में वृद्धि: शाह आयोग के अनुसार एक लाख से अधिक व्यक्ति गिरफ्तार अथवा नजरबंद कर लिए गए। साथ ही इस दौर में यातना एवं हिरासत में मृत्यु, निर्धनों का जबरन स्थानांतरण तथा जनसंख्या नियंत्रण के लिए अनिवार्य नसबंदी जैसी घटनाएँ देखने को मिलीं।
- लोकतंत्र और संविधानवाद को संकट: कार्यपालिका द्वारा अपनाई गई उग्र नीतियों के परिणामस्वरूप न्यायपालिका के साथ इसका एक दीर्घकालिक गतिरोध उत्पन्न हो गया। ऐसे संवैधानिक संशोधन लाए गए, जिनसे संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन होने की आशंका थी। साथ ही, प्रतिबद्ध नौकरशाही के विचार को प्रोत्साहित किया गया, जहां लोक सेवकों से उनकी नैतिकता और बुद्धिमत्ता के बजाय सरकार के आदेश का पालन करने की अपेक्षा की गई।
वर्तमान में भी आपातकाल के उन 21 महीनों को भारतीय लोकतंत्र के अंधकार-काल के रूप में देखा जाता है, क्योंकि इसने लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया था। हालाँकि इसके बाद भी, आपातकाल का एक लाभ यह हुआ कि इसने संवैधानिक नैतिकता का सुदृढ़ीकरण किया। इससे न केवल नागरिकों के मध्य नागरिक स्वतंत्रताओं के संबंध में जागरूकता पैदा हुई, बल्कि भारतीय संविधान की कमजोरियाँ एवं शक्तियाँ भी उभरकर सामने आईं। इसके साथ ही, मुख्य रूप से यह तथ्य दृढ़ता से स्थापित हुआ है कि भारत में लोकतंत्र को समाप्त करना अत्यंत कठिन है।
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