पशुधन खेती (लाइवस्टॉक फ़ार्मिंग) : लचीला (रिजिल्यंट) बनाने हेतु उठाए जा सकने वाले कुछ कदम

प्रश्न: पशुधन खेती (लाइवस्टॉक फ़ार्मिंग) न केवल जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है, बल्कि इससे प्रभावित भी होता है। इस कथन का सविस्तार वर्णन कीजिए और पशुधन खेती को संधारणीय के साथ-साथ लचीला (रिजिल्यंट) बनाने हेतु उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों की विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन की भूमिका पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  • जलवायु परिवर्तन तथा पशुधन खेती के एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
  • पशुधन खेती को संधारणीय और लचीला (रिजिल्यंट) बनाने हेतु उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों का सुझाव कीजिए।

उत्तर

पशुधन खेती विभिन्न जानवरों जैसे मवेशी, मुर्गी, बकरी, घोड़े आदि का भोजन और अन्य मानवीय उपयोग के लिए पालन है। यह कृषिगत सकल उत्पादन मूल्य में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

पशुधन खेती और जलवायु परिवर्तन

FAO के अनुसार, पशुधन आपूर्ति श्रृंखला मानव-प्रेरित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में लगभग 14.5% का योगदान करती है। इसके अंतर्गत प्रमुख उत्सर्जित गैसों में मीथेन (मुख्यत: पशुओं में आंत्र किण्वन (enteric fermentation) के कारण उत्पन्न) तथा नाइट्रस ऑक्साइड (गैस खाद भंडारण और जैविक/अकार्बनिक उर्वरकों के उपयोग से जनित) है। इसके अतिरिक्त, खाद्य उत्पादन और प्रसंस्करण, विनिर्माण तथा उर्वरकों और कीटनाशकों आदि के उपयोग के दौरान परिणामी भूमि उपयोग में होने वाले परिवर्तन के कारण भी महत्वपूर्ण उत्सर्जन होता है।

दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन भी विभिन्न तरीकों से पशुधन खेती को प्रभावित करता है:

  • अत्यधिक गर्मी से उत्पन्न तनाव (हीट स्ट्रेस) के कारण मवेशियों में दुग्ध और मांस का उत्पादन कम होता है, भ्रूण का विकास अवरुद्ध होता है साथ ही भ्रूण मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • जलवायु परिवर्तन प्रजातियों के संघटन को प्रभावित करता है, जो पशुधन उत्पादकता का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है।
  • यह अधिक नम और उष्ण जलवायु के कारण विभिन्न स्वास्थ्य जोखिमों में वृद्धि करता है।
  • अपने शरीर के तापमान को एक नियत सीमा तक बनाए रखने हेतु, पशु सामान्यतः प्रतिपूरक और अनुकूलित तंत्र को अपनाते हैं, जिससे संभवतः उनकी उत्पादक क्षमता प्रभावित होती है।
  • अनियमित जल उपलब्धता से चारे की उत्पादकता और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।

पशुधन खेती को संधारणीय और लचीला बनाने के उपाय

  • पशुधन को बदलते परिवेश के प्रति अनुकूलित करने, दबाव या आघात के विरुद्ध प्रतिरोध में सुधार हेतु सुनियोजित प्रजनन कार्यक्रमों का संचालन और पशु आनुवंशिक विविधता का संरक्षण।
  • पशुधन की स्थानिक और कालिक उपस्थिति, गर्भाधान और पोषक तत्व प्रबंधन, फलीदार पौधों के उपयोग आदि के द्वारा पशुधन की खाद्य आवश्यकताओं पर दबाव का बेहतर प्रबंधन करना।
  • पशुओं के अवशिष्ट से पुनर्चक्रण और पोषक तत्वों और ऊर्जा को पुनर्णाप्त करके चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था में पशुधन को बेहतर तरीके से एकीकृत करना।
  • खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार करके तथा रोगों, परजीवियों और कीटों के आक्रमण को कम करने हेतु पर्याप्त पशु चिकित्सा अवसंरचना की स्थापना करके मौजूदा पशुधन की उत्पादकता और उनके लचीलेपन को बढ़ाना।
  • पशुधन क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के वैज्ञानिक मूल्यांकन के माध्यम से ज्ञान और साक्ष्य आधार को सुदृढ़ करना तथा पशुधन प्रबंधन हेतु एक राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश रूपरेखा विकसित करना।

उपर्युक्त उपायों के साथ-साथ वैज्ञानिक पशु पालन प्रथाओं में किसानों को प्रशिक्षित करना, मौसम की जानकारी का उपयोग करने और मौसम-सूचकांक आधारित बीमा के लिए लचीलापन में सुधार आदि जैसे अन्य उपाय भी जलवायु परिवर्तन हेतु पशुधन खेती की दीर्घकालिक स्थिरता और लचीलापन में सुधार करने में योगदान दे सकते हैं।

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