परमाणु हथियारों के द्वारा वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा : भारत द्वारा NPT में शामिल होने या शामिल न होने के पीछे तर्क

प्रश्न: परमाणु हथियारों का प्रसार और उनके उपयोग का खतरा वैश्विक सुरक्षा की प्रमुख चिंताएं हैं, इसके बिना वर्तमान अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अप्रभावी प्रतीत होती है। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, इस संदर्भ में भारत की नीति की प्रमुख विशेषताओं को चिन्हित कीजिए तथा चर्चा कीजिए कि क्या भारत को वर्तमान प्रारूप वाले NPT में सम्मिलित होना चाहिए।

दृष्टिकोण

  • हाल की घटनाओं का उद्धरण देते हुए, संक्षिप्त विवरण दीजिए कि किस प्रकार परमाणु हथियारों के द्वारा वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है।
  • परमाणु हथियारों के अप्रसार के लिए अनेक प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किए जा रहे हैं जिसके अंतर्गत PTET, CTBT, NPT एवं FMCT प्रमुख है।
  • इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय समझौते यथा अफ्रीका की पलिंडाबा संधि और हाल ही में संयुक्त राष्ट्र परमाणु हथियार संधि के द्वारा भी परमाणु हथियारों के प्रसार को प्रतिबंधित करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की असफलता को रेखांकित कीजिए, एवं इसके द्वारा भारत की परमाणु नीति को किस प्रकार का स्वरुप प्रदान किया गया, स्पष्ट करें।
  • भारत द्वारा NPT में शामिल होने या शामिल न होने के पीछे दिए गए तर्क की पुष्टि करना।

उत्तर

द्वितीय विश्व युद्ध के बमबारी के पश्चात ‘डूम्सडे क्लॉक’ को द बुलेटिन ऑफ द अटॉमिक साइंटिस्ट्स (The Bulletin of the Atomic Scientists) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह क्लॉक एक प्रतीकात्मक घडी है जो मानव गतिविधियों के कारण वैश्विक तबाही की संभावना को अभिव्यक्त करता है। 2018 में, इसके समय को 30 सेकंड बढ़ाया गया है तथा वर्तमान में इसे मध्यरात्रि 12 बजे से 2 मिनट पहले कर दिया गया है, जो वर्ष 1950 के दशक (2 मिनट) के सबसे निकट है। कोरियाई प्रायद्वीप में फैले तनाव, हथियारों का गप्त प्रसार एवं परमाणु आतंकवाद के खतरे ने शांति के लिए परमाणु हथियारों’ के निर्माण के मिथक को तोड़ दिया है।

परमाणु अप्रसार संरचना द्वारा परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार पर नियंत्रण के लिए एवं परमाणु हथियारों के उपलब्ध भंडार को समाप्त करने के लिए अनेक बहुपक्षीय, द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय समझौते किए गए है।

वर्तमान में परमाणु अप्रसार संरचना की सीमाएं

  • NPT की कमियां:
  • भारत, इज़राइल, पाकिस्तान जैसे परमाणु हथियार संपन्न देशों का इस संधि से बाहर रहना।
  • गैर-परमाणु हथियार संपन्न देशों द्वारा परमाणु हथियार प्राप्त करना -उदाहरण के ईरान एवं उत्तरी कोरिया जैसे देशों द्वारा परमाणु हथियार प्राप्त करना। 
  • इस प्रावधान को नॉन स्टेट ऐक्टर को संबोधित करने के अनुसार डिजाइन नहीं गया है, जिसके फलस्वरूप यह आतंकवादी संगठनों के खतरों एवं परमाणु ब्लैक मार्केट को रोकने में असफल रहा है। 
  • यह परमाणु हथियार सम्पन्न देशों एवं गैर-परमाणु हथियार सम्पन्न देशों के मध्य भेदभाव को बढ़ाता है।
  • परमाणु प्रौद्योगिकी के दोहरे उपयोग के कारण इसका दुरुपयोग किया जा सकता है यथा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किए आवश्यक संवर्द्धन का प्रयोग सैन्य गतिविधियों में भी किया जा सकता है।
  • निःशस्त्रीकरण का सीमित प्रभाव- रुस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे राष्ट्रों के परमाणु हथियारों के भंडार में वृद्धि हुई है।
  • FMCT एवं CTBT जैसे व्यापक परीक्षण एवं विस्फोटक नियंत्रण संधियों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है।
  • परमाणु संपन्न देशों की निष्क्रियता- क्षेत्रीय शांति और हाल ही में हस्ताक्षरित संयुक्त राष्ट्र परमाणु संधि से 9 परमाणु सम्पन्न देशों का शामिल न होना।
  • द्विपक्षीयवाद की असफलता- देशों के मध्य बढ़ती असुरक्षा की भावना ने परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा में वृद्धि की है। उदाहरण के लिए चीन, भारत तथा पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों का विकास किया है।

भारत के परमाणु सिद्धांत (2003) ने 1998 के परमाणु परीक्षणों के पश्चात भारत को एक संयमी एवं जिम्मेदार देश के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान नहीं दिया गया है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

  •  गैर-परमाणु हथियार वाले देशों पर प्रथम प्रयोग नहीं किया जाएगा; परमाणु हथियार स्वयं की सुरक्षा के लिए निर्मित किए गए हैं, न कि किसी राष्ट्र के खिलाफ युद्ध के लिए।
  • प्रथम प्रयोग द्वारा अस्वीकार्य क्षति पहुंचने पर व्यापक प्रयोग के द्वारा परमाणु प्रतिकार किया जाएगा। विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखना। (जो किसी प्रकार की हथियार प्रतिस्पर्धा का भाग नहीं है) परमाणु हथियार मुक्त विश्व की प्रतिबद्धता तथा इसके लिए निरीक्षण एवं गैर-भेदभावपूर्ण निःशस्त्रीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • नाभिकीय त्रयी, केवल रणनीतिक तैयारियों के लिए है न कि सामरिक उपयोगिता के लिए। जो चीन एवं पाकिस्तान से भिन्न है। (Hatf IX missile)
  • परीक्षण पर एकपक्षीय प्रतिबंध और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर प्रतिबन्ध है।

NPT गैर-हस्ताक्षरकर्ता देश के रूप में भारत की NSG में भागीदारी का चीन द्वारा विरोध किया जा रहा है, जिससे भारत के इसमें शामिल होने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं।

NPT में शामिल होने के कारण

  • इसके द्वारा भारत चिकित्सा अनुप्रयोगों, ऊर्जा सुरक्षा आदि जैसी प्रौद्योगिकियों एवं परमाणु सामग्री तक अपनी पहुंच सुनि को निश्चित करना चाहता है।
  • इसके द्वारा भारत के प्रौद्योगिकियों के निर्यात को बढ़ावा प्राप्त हो सकेगा।
  • यदि इसमें पाकिस्तान को शामिल किया जाता है तो यह उपमहाद्वीप में परमाणु प्रतिस्पर्धा का एक कारण भी बन सकता
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी को सशक्त करेगा।

हालांकि, भारत NPT को स्वीकार न करने के अपने रुख पर कायम है क्योंकि:

  • भेदभावपूर्ण पहुंच- इसका निर्माण केवल P5 देशों की देखरेख में किया गया है, जो परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र हैं।
  • इसके द्वारा केवल क्षैतिज (horizontal) प्रसार की जांच की जाती। यह जाँच करने में केवल P5 देशों को ही शामिल किया गया है, जो परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र हैं।
  • निःशस्त्रीकरण के लिए समयबद्धता निर्धारित नहीं है।
  • खराब ट्रैक रिकॉर्ड-ईरान एवं उत्तर कोरिया के मामले में, इसके अतिरिक्त पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में चीन द्वारा दिए गए सहयोग के लिए उसे जिम्मेदार नहीं माना गया।
  • शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों से भारत को खतरा।

भारत NPT के तीन आधारों को पहले से स्वीकार करता है जिसके अंतर्गत – परमाणु हथियारों का अप्रसार, निरस्त्रीकरण एवं परमाणु प्रौद्योगिकी का शांतिपूर्ण उपयोग सम्मिलित है। भारत को NPT से वैधता की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारत की पहचान विश्व में एक जिम्मेदार परमाणु राष्ट्र के रूप में है, जिसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, रिपोर्टों यथा IAEA की रिपोर्ट, NSG से प्राप्त छूट तथा संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान आदि के साथ असैनिक परमाणु समझौतों के रूप में देखा जा सकता है।

Read More

 

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.