उत्तर प्रदेश की कला परम्परा में चित्रकला एवं मूर्तिकला के आधुनिक विकास की व्याख्या करें?

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  •  बताएं कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी, जौनपुर, गोरखपुर एवं मथुरा आदि क्षेत्र चित्रकला एवं मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध हैं।

मुख्य भाग:

  • उत्तर प्रदेश में चित्रकला की विषयवस्तु एवं विशेषता तथा आधुनिक विकास को बताएं।
  • उत्तर प्रदेश में मूर्तिकला की विषयवस्तु एवं विशेषता तथा आधुनिक विकास को बताएं।

निष्कर्ष:

  • बताएं कि उत्तर प्रदेश की मूर्तिकला एवं चित्रकला ने सामान्य भारतीय शैली को अधिक महत्व दिया है जबकि क्षेत्रीय प्रभाव को कम।

उत्तर

भूमिकाः

  • उत्तर प्रदेश में कला परम्परा का एक लम्बा इतिहास रहा है। वाराणसी, जौनपुर, गोरखपुर, अवध आदि क्षेत्रों में चित्रकला एवं मूर्तिकला के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

मुख्य भाग:

चित्रकला एवं मूर्तिकला के विकास की स्थिति इस प्रकार से है-

चित्रकला

कला जगत के विशिष्ट भारतीय गुणों व चरित्रों, परम्पराओं व रूढ़ियों, अंधविश्वासों व प्रतीकों से भरा, निजी व पुरातन इतिहास बिखरा पड़ा है। 1911 में ‘राजकीय कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ’ की स्थापना के बाद भारतीय चित्रकला की आधुनिक दुनिया में उत्तर प्रदेश का भी प्रवेश हुआ। बंगाल के ललित मोहन सेन ने इस महाविद्यालय के प्राचार्य के पद से ग्राफिक के तकनीक पक्ष एवं रचना प्रक्रिया में बौद्धिक चिंतन का सूत्र दिया। स्वाधीनता के बाद इस क्षेत्र में गति आयी। वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कला का एक पूरा विभाग ही खुला। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी कला शिक्षा का कार्य प्रारम्भ हुआ।

उत्तर प्रदेश के एक महत्वपूर्ण चित्रकार शमशेर बहादुर सिंह ने यथार्थवादी चित्रकला में महत्वपूर्ण कार्य किया। वह हिन्दी के कवि भी रहे हैं। उनके काम में गहरी संवेदना, मानव जीवन के यथार्थवादी एवं संवेगात्मक चित्र मिलते हैं। चित्रों में टूटी खाट, एक छोटा सा कमरा, एक छत, एक रेल क्रासिंग से लेकर पुण्ट स्तनों का सौन्दर्य मिलता है। उत्तर प्रदेश के कवि चित्रकारों में कुछ अन्य प्रमुख हैं, जैसे-महादेवी वर्मा, विपिन कुमार अग्रवाल, जगदीश गुप्त, श्रीपत राय आदि। उत्तर प्रदेश में 1957-58 में ‘फोर अर्टिस्ट ग्रुप’ (एफएजी) तथा 1960 में ग्रुप ऑफ यंग पैंटर्स एवं स्कल्पटर्स (जीवाईपीएस) की स्थापना हुई। ये ग्रुप्स तथा कुछ कलाकार जैसे सरला साहनी, विजय चक्रवर्ती, एस.जी. श्रीखंडे आदि उत्तर प्रदेश में चित्रकला का एक वातावरण तैयार किया जिसमें संवेदना, यथार्थ एवं परिस्थितियों का पुट था।

मूर्तिकला

मूर्तिकला के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश में निजी प्रयासों से लखनऊ में ‘सृष्टि आर्ट गैलरी’ (1994) तथा 1997 में ‘गैलरी डी आर्ट’ नाम से एक कला दीर्घा को उद्घाटित किया गया। इसी प्रकार अन्य शहरों में जैसे वाराणसी में एबी.सी. आर्ट गैलरी, कानपुर में चिकित्षी शिल्प कला केन्द्र, गोरखपुर में सृजन आदि की स्थापना हुयी। 1949-50 में कुछ नयी पीढ़ी के कलाकारों ने लीक से हटकर काम किया जैसे सुरेश्वर सेन, विश्वनाथ खन्ना, आर.एस. विष्ट, मदनलाल नागर आदि ने। इसी समय के एक मूर्तिकार ‘जय नारायण सिंह’ का विशेष महत्व था। इन्होंने मूर्तिकला को नयी शैली प्रदान की थी और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किये थे। इन्होंने न्यूड फोटोग्राफी में भी कलात्मक प्रयोग किये।

निष्कर्षः

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश ने सामान्य भारतीय शैली को ही स्थान दिया। क्षेत्रीयता का प्रभाव कम देखने को मिलता है। इस क्षेत्र में सरकारी कम बल्कि निजी प्रयासों को सफलता मिली है।

 

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