पहुंच और लाभ साझाकरण (एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग) : यह जैव विविधता के स्थायी उपयोग में किस प्रकार सहायक है

प्रश्न: पहुंच और लाभ साझाकरण (एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग) क्या है? यह जैव विविधता के संधारणीय उपयोग में किस प्रकार सहायक है, स्पष्ट कीजिए। साथ ही, पहुंच और लाभ साझाकरण सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न प्रणालियों का उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पहुंच और लाभ साझाकरण को परिभाषित कीजिए। 
  • यह जैव विविधता के स्थायी उपयोग में किस प्रकार सहायक है, व्याख्या कीजिए।
  • पहुँच और लाभ साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर के तंत्रों को सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर

  • पहुँच और लाभ साझाकरण (Access and Benefit Sharing: ABS) से तात्पर्य उस तरीके से है जिससे आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच स्थापित की जा सकती है और उनके उपयोग से होने वाले लाभों को संसाधनों का उपयोग करने वाले लोगों अथवा देशों (उपयोगकर्ताओं) के मध्य साझा किया जाता है जो इन्हें प्रदान (प्रदाता) करते हैं।

जैव विविधता के स्थायी उपयोग में ABS का महत्व:

  •  यह स्वयं के आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग करने के लिए देशों के संप्रभु अधिकार को स्वीकार करता है। इसमें इन संसाधनों के उपयोगकर्ताओं के अधिकार को नियंत्रित करना और पहुंच को सीमित करना तथा लाभ-साझाकरण सम्बन्धी दायित्वों को लागू करना शामिल हैं।
  • यह सुनिश्चित करता है कि जिस प्रकार से आनुवंशिक संसाधनों तक पहुंच और उनका उपयोग किया जाता है वह उपयोगकर्ताओं, प्रदाताओं और पारिस्थितिकी एवं समुदायों (जहां वे संसाधन पाए जाते हैं) के लिए लाभ को अधिकतम करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि प्रासंगिक लक्षणों के साथ उपयुक्त आनुवंशिक संसाधन (जो खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं) उपलब्ध और सुलभ हैं।
  • यह स्थानिक लोगों और स्थानीय समुदायों (ILC) के आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित मूल्यवान पारंपरिक ज्ञान को महत्व प्रदान करता है, जिसे संरक्षण के लिए लागू किया जा सकता है।
  • यह आनुवंशिक संसाधनों तक पहुंच हेतु अधिक पूर्वानुमान योग्य परिस्थितियों का निर्माण करके सभी हितधारकों के लिए कानूनी निश्चितता और पारदर्शिता का प्रावधान करता है।

ABS सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक स्तर पर मौजूदा तंत्र :

  • आनुवंशिक संसाधनों तक पहुंच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण, जैव विविधता पर अभिसमय (CBD) के तीन उद्देश्यों में से एक है।
  • नागोया प्रोटोकॉल में आनुवांशिक संसाधनों तक पहुंच (स्थानिक लोगों के पारंपरिक ज्ञान से संबंधित), लाभ-साझाकरण और घरेलू कानून अथवा ABS पर नियामक आवश्यकताओं के अनुपालन से संबंधित दायित्व शामिल हैं।
  • यह प्रदाता द्वारा उपयोगकर्ता को एक पूर्व सूचना सहमति (PIC) प्रदान करने और दोनों पक्षों के मध्य वार्ताओं के लिए पारस्परिक सहमति संबंधी शर्ते (MAT) विकसित करने का आह्वान करता है ताकि आनुवंशिक संसाधनों और संबंधित लाभों के उचित और न्यायसंगत साझाकरण को सुनिश्चित किया जा सके। 
  • यह सूचनाओं के आदान-प्रदान और प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन की सुविधा के लिए एक मंच के रूप में एक्सेस एंड बेनिफिट-शेयरिंग क्लियरिंग-हाउस (ABSCH) की भी स्थापना करता है।
  • FAO सम्मेलन, 2001 में खाद्य और कृषि हेतु पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि को अपनाया गया है जो आनुवंशिक संसाधनों के लिए उपयोग और लाभ-साझाकरण हेतु पहला कानूनी रूप से बाध्यकारी और क्रियाशीलअंतर्राष्ट्रीय साधन है।

ABS सुनिश्चित करने के लिए विद्यमान राष्ट्रीय तंत्र:

  • CBD का एक हस्ताक्षरकर्ता होने के कारण, भारत ने तीन मुख्य उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2002 में जैव विविधता अधिनियम बनाया: 
  • जैव विविधता का संरक्षण,
  • इसके घटकों का स्थायी उपयोग और
  • जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का न्यायसंगत साझाकरण।
  • राष्ट्रीय जैव विविधता अधिकरण (NBA) ABS सम्बन्धी एप्लीकेशनों की ई-फाइलिंग को सक्षम बनाने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के साथ कार्य कर रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, भारत ने नागोया प्रोटोकॉल (2014) को अपनाया, जिसके अनुसरण में NBA ने ABS दिशा-निर्देश, 2014 प्रकाशित किए, जो भारत से प्राप्त जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के निर्धारण और उन्हें साझा करने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करते हैं।
  • भारत में ABS समझौतों को लागू करने के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण प्राप्त करने के लिए ABS पर UNEP-GEF MoEF परियोजना 10 राज्यों में कार्यान्वित की जा रही है।

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