भारतीय संविधान : ब्रिटिश सिद्धांत और न्यायिक सर्वोच्चता के अमेरिकी सिद्धांत के मध्य संयोजन

प्रश्न: भारतीय संविधान ने संसदीय संप्रभुता के ब्रिटिश सिद्धांत और न्यायिक सर्वोच्चता के अमेरिकी सिद्धांत के मध्य संयोजन को प्राथमिकता प्रदान की है। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • संसदीय संप्रभुता के ब्रिटिश सिद्धांत और न्यायिक सर्वोच्चता के अमेरिकी सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • इन दोनों सिद्धांतों से संबंधित भारतीय संवैधानिक प्रावधानों की चर्चा कीजिए।
  • भारतीय संविधान में दोनों सिद्धांतों के मध्य संयोजन को रेखांकित कर उत्तर को समाप्त कीजिए।

उत्तर:

संसदीय संप्रभुता का ब्रिटिश सिद्धांत निर्धारित करता है कि ब्रिटेन में संसद, सर्वोच्च विधिक प्राधिकरण है जो विधि का अधिनियमन, संशोधन और निरसन कर सकता है। न्यायिक समीक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं होने के कारण न्यायालयों के पास किसी भी संसदीय कानून को अमान्य या असंवैधानिक घोषित करने की शक्ति नहीं है। दूसरी तरफ, न्यायिक सर्वोच्चता का अमेरिकी सिद्धांत न्यायिक समीक्षा की शक्ति को संदर्भित करता है जिसके अंतर्गत न्यायपालिका, विधायिका द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून की समीक्षा कर सकती है तथा इस प्रकार के कानून को असंवैधानिक या अधिकरातीत (ultra-vires) घोषित कर सकता है।

भारतीय संसद ब्रिटिश संसद की भांति सर्वोच्च विधिक प्राधिकरण नहीं है। संसद की संप्रभुता पर अनेक संवैधानिक सीमाएं आरोपित की गयी हैं जैसे- लिखित संविधान, मौलिक अधिकार, मूल ढांचे का सिद्धांत, शक्तियों के विभाजन के साथ संघवाद आदि। इसके अतिरिक्त, संसद द्वारा निर्मित विधियों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती हैं और इसके परिणामस्वरूप न्यायालय के पास कानून को अमान्य या विधि-शून्य घोषित करने का अधिकार है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा का अधिकार प्रदान करता है। तुलनात्मक रूप से, अमेरिकी न्यायालयों की अपेक्षा भारतीय न्यायालयों के पास न्यायिक समीक्षा से सम्बंधित क्षेत्राधिकार सीमित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यायिक शक्ति “विधि की सम्यक प्रक्रिया” के सिद्धांत पर आधारित है और भारतीय संविधान “विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया” को मान्यता प्रदान करता है।

विधि की सम्यक प्रक्रिया के तहत, न्यायालय मूलभूत और प्रक्रियात्मक दोनों आधार पर कानूनों पर प्रश्न उठा सकती है। लेकिन विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत, न्यायालय केवल मूलभूत आधार पर कानून की जांच कर सकती है, चाहे विधि संबंधित प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र में हो या नहीं। यहाँ युक्तियुक्तता, उपयुक्तता या नीति के प्रभाव के आधार पर विधि पर प्रश्न करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।

भारतीय संविधान में इन दोनों सिद्धांतों के सार का समावेश किया गया है। संविधान निर्माताओं द्वारा संसद को अपने संवैधानिक अधिकारिता का उपयोग कर संविधान के अधिकांश भाग में संशोधन करने और अपने क्षेत्राधिकार में शामिल विषयों पर विधि निर्माण की पर्याप्त शक्ति प्रदान की गयी है। साथ ही, संविधान सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक संशोधन और संसदीय विधियों को असंवैधानिक और अमान्य घोषित करने में भी सक्षम बनाता है। अतः भारत व्यवस्था के तहत दोनों प्रणालियों के मध्य एक उच्च स्तरीय संयोजन स्थापित किया गया है

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.