नियत अवधि का रोजगार (FTE) की अवधारणा : FTE के कार्यान्वयन से सम्बंधित चुनौतियों

प्रश्न: परीक्षण कीजिए कि क्या नियत अवधि का रोजगार, ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस, श्रम कल्याण और रोजगार सृजन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम होगा।

दृष्टिकोण

  • नियत अवधि का रोजगार (FTE) की अवधारणा के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • उल्लेख कीजिए कि FTE, ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस, श्रम कल्याण और रोजगार सृजन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में किस प्रकार सहायता कर सकता है।
  • FTE के कार्यान्वयन से सम्बंधित चुनौतियों को रेखांकित कीजिए, जो इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में बाधक हो सकती हैं।

उत्तर

श्रम बाजार में तीन अलग-अलग प्रतिभागी हैं, जिनके परस्पर विरोधी हित प्रतीत होते हैं। इसमें नियोक्ता, नियोजित व्यक्ति और रोजगार की चाह रखने वाले व्यक्ति शामिल हैं। नियोक्ता व्यवसाय करने में सुगमता (ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस) और कम लागत चाहते हैं; नियोजित कर्मचारी, श्रम कल्याण को अधिकतम करने का प्रयास करते हैं, जबकि रोजगार की चाह रखने वाले व्यक्ति चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था में अधिक संख्या में रोजगार के अवसर उपलब्ध हों। सरकार, नीति-निर्माता के रूप में, इन तीनों के हितों को प्राप्त करने की इच्छा रखती है। FTE एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से सरकार का उद्देश्य व्यवसाय करने की क्षमता को सुगम बनाना, श्रम से सम्बद्ध मूलभूत अधिकारों की रक्षा करते हुए रोजगार सृजन को अधिकतम करना है। FTE (फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट) एक अनुबंध है जिसमें कोई कंपनी या उद्यम किसी कर्मचारी को एक विशिष्ट अवधि के लिए कार्य पर रखता है। FTE में, कर्मचारी कंपनी के वेतन भुगतान (payroll) पर नहीं होते है।

 औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) केंद्रीय (संशोधन) नियम, 2018 के तहत सरकार ने सभी क्षेत्रकों के लिए कर्मचारियों को कार्य पर रखने की सुविधा का विस्तार किया है। इस कदम का उद्देश्य ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस, श्रम कल्याण और रोजगार सृजन में सुधार लाना है।

FTES निम्नलिखित तरीकों से ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस में सुधार कर सकते हैं:

  • यह कंपनियों को कामगारों की प्रकृति के बारे में स्पष्टता प्रदान करता है। इससे उन्हें पूंजी और/अथवा श्रम में निवेश के संबंध में बेहतर योजना बनाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • कठोर श्रम कानूनों को प्रायः उद्योगों द्वारा भारत में विनिर्माण आधार स्थापित करने में सबसे बड़ी बाधा के रूप में उद्धृत किया गया है। अनुपालन के लिए कम लागत के कारण FTE नियमों का अनुपालन करना आसान है।
  • FTE नियम, कामगारों को मूलभूत सुरक्षा प्रदान करते हुए कंपनी की आवश्यकता के अनुसार कर्मचारियों की भर्ती और छंटनी प्रक्रिया को आसान बनाते हैं। कंपनियां धोखाधड़ी और गैर-निष्पादन के लिए कामगारों को नौकरी से निकालने के अधिकार को बनाए रखती हैं।
  • अनुबंध को नवीनीकृत करना अथवा नहीं करना, कंपनियों पर निर्भर करेगा।

FTES निम्नलिखित तरीकों से श्रम कल्याण में सुधार कर सकते हैं:

  • श्रम ब्यूरो के वार्षिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत में लगभग 33 प्रतिशत अस्थायी कामगार (casual workers) हैं। 95 प्रतिशत से अधिक अस्थायी कामगारों के पास नौकरी का लिखित अनुबंध भी नहीं है। FTEs से श्रम शक्ति को औपचारिक बनाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • निश्चित अवधि के कामगार स्थायी कामगारों के समान लाभ के हकदार होंगे, जिसमें काम के घंटे, मजदूरी और अन्य वैधानिक लाभ शामिल हैं।
  • इन नियमों ने अस्थायी कर्मचारियों को रोजगार से बाहर निकलने को भी कठिन कर दिया है। यदि कामगारों ने तीन महीने की निरंतर सेवा पूरी कर ली है, तो उसे सेवा समाप्त करने से पूर्व दो सप्ताह का नोटिस दिया जाना चाहिए।
  • यह कामगारों को स्थायी नौकरी दिलाने में सहायता करेगा क्योंकि कंपनियां उन्हें उनके प्रदर्शन के आधार पर वेतन भुगतान पर रख सकती हैं।
  • इस प्रकार श्रमिकों को अधिकतम लाभ प्रदान करते हुए मध्यस्थों की भूमिका कम से कम की जाएगी।

FTEs रोजगार सृजन में सहायता कर सकते हैं:

  •  श्रम नीति पर स्पष्टता प्रदान करने से, FTE नियम, पूंजी और श्रम के आनुपातिक परिनियोजन पर निर्णयों को इष्टतम बनाने में सहायता करेंगे, जो कठोर श्रम कानूनों के कारण पूंजी गहन विनिर्माण की वर्तमान प्रवृत्ति के विपरीत है।
  • FTE उन क्षेत्रों के लिए सहायक होगी, जो प्रकृति में मौसमी हैं। उनकी वृद्धि से अन्य क्षेत्रों जैसे-अवसंरचना, लॉजिस्टिक आदि को बढ़ावा प्राप्त होगा और बदले में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
  • चूंकि FTEs एक अल्पकालिक अनुबंध होगा, यह श्रमिकों के साथ-साथ उद्यमों को भी अनुबंध में लाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
  • MSMEs और SMEs को प्रोत्साहित किया जाएगा, क्योंकि वे अर्थव्यवस्था में प्रमुख रोजगार सृजनकर्ता हैं।

हालाँकि FTEs के कार्यान्वयन से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ हैं:

  • उद्योग बढ़ती लागत और दायित्वों का हवाला देते हुए इसके कार्यान्वयन के अनिच्छुक हैं, क्योंकि कामगारों के साथ स्थायी कामगारों जैसा व्यवहार किए जाने की आवश्यकता होती है। नए नियमों से कंपनियों के लिए प्रशासनिक लागत और वैधानिक कार्यभार में वृद्धि होगी।
  • श्रम समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए इस संबंध में सभी राज्यों को एक ही स्तर पर लाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • नियम में अपीलीय प्राधिकारी के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया हैं, जिससे स्पष्टीकरण, एस्केलेशन (समस्या के हल न होने पर उसका उच्च प्राधिकारी तक पहुंचाना) और शिकायत से निपटने के लिए संपर्क किया जा सकता है।
  • चूंकि भर्ती और छंटनी (hiring and firing) करना आसान है, इससे कामगारों का शोषण हो सकता है, अतः वे इस तरह के अनुबंधों में प्रवेश हेतु हतोत्साहित होते हैं। सरकार को पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने की आवश्यकता है।

जहां तक श्रम कल्याण और श्रम की औपचारिकता का संबंध है, सभी राज्यों में नियमों को सार्वभौमिक रूप से अपनाने के साथ, इसके एक महत्वपूर्ण परिवर्तक (game changer) होने की अपेक्षा है। भर्ती प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से, भारत में ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस में भी सुधार होगा।

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