NISAR मिशन और इसके अनुप्रयोगों पर संक्षिप्त चर्चा : भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता

प्रश्न: NISAR मिशन के अनुप्रयोगों पर चर्चा करते हुए, संसाधन जुटाने और विशेषज्ञता विकसित करने के लिए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • NISAR मिशन और इसके अनुप्रयोगों पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • इन अनुप्रयोगों के आधार पर, संसाधन और विशेषज्ञता में व्याप्त अंतरालों को कम किए जाने के लिए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar-NISAR) मिशन को संयुक्त रूप से अमेरिकी-भारत नागरिक अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा एक पृथ्वी निगरानी उपग्रह को विकसित, प्रक्षेपित और संचालित करने के लिए आरम्भ किया गया है। यह पहला डुअल फ्रीक्वेंसी रडार-इमेजिंग सेटेलाइट होगा जो भूगर्भीय प्रक्रियाओं और जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने में सहायता प्रदान करेगा। इसे 2021 में प्रक्षेपित किए जाने की सम्भावना है।

इसके अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:

  • कृषि और अन्य गतिविधियों में सहायता के लिए पारिस्थितिक तंत्र की गतिशीलता एवं कार्बन-चक्र का अध्ययन करना।
  • भविष्य के संसाधनों में वृद्धि और आपदा प्रबंधन में सहायता के लिए पृथ्वी की भूपर्पटी की स्थिति, क्रमिक विकास एवं जटिल प्रक्रियाओं का अध्ययन करना। इन जटिल प्रक्रियाओं में पारिस्थितिक तंत्र में व्यवधान, हिम-चादर में कमी तथा भूकंप, सुनामी, बाढ़, ज्वालामुखी और भूस्खलन आदि जैसे प्राकृतिक संकट समाविष्ट हैं।
  • क्रायोस्फेयर की गतिशीलता को समझना और हिमालयी ग्लेशियरों में स्थानिक-अस्थायी परिवर्तनों का निर्धारण करना तथा क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन पर इनकी प्रतिक्रिया का अध्ययन करना।
  • तटीय और समुद्री प्रक्रियाओं के अस्थायी व्यवहार का निरीक्षण करना।

वास्तव में स्पेस एंड टाइम में मिशन के अभूतपूर्व कवरेज के परिप्रेक्ष्य में, भारत को ऐसे कार्यक्रमों को लॉन्च करने में सक्रिय सहयोग की तथा साथ ही इस प्रकार के प्लेटफार्मों की क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करने की भी आवश्यकता है। भारत को ऐसे सहयोगी प्रयासों के माध्यम से निम्नलिखित अंतरालों को कम करने हेतु महत्त्वाकांक्षी होना चाहिए:

  • संसाधन सम्बन्धी चिंताएं:
  • अपनी क्षमताओं का वाणिज्यिक दोहन: इसके लिए अन्य देशों के साथ सक्रिय संलग्नता की आवश्यकता है।
  • अत्याधुनिक मिशन पर ध्यान केंद्रित किए जाने की आकांक्षा: वर्तमान और भविष्य के कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र की भागीदारी की आवश्यकता है।
  • दुर्लभ मृदा धातुओं जैसे कच्चे माल को अन्य देशों से क्रय करना पड़ता है क्योंकि भारत में ये प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
  • अंतरिक्ष संबंधी घटकों का निर्माण करने की दक्षता एवं क्षमता: विशिष्ट प्रक्रियाओं (niche processes), चिप डिजाइनिंग और विकास इत्यादि के संबंध में ज्ञान होना आवश्यक है।
  • बजटीय आवंटन और वित्तीय संसाधनों की सीमाओं का समाधान किया जा सकता है।
  • विशेषज्ञता विकास:
  • भारत में विज्ञान स्नातकों के लिए अवसरों का सृजन करके उनकी बड़ी संख्या का लाभ उठाना तथा विदेशी प्रतिभा को आकर्षित किया जाना।
  • डेटा एकीकरण, विश्लेषण और अनुप्रयोगों का सृजन: ये प्रक्रियाएं विश्व स्तरीय शैक्षिक प्रक्रियाओं के माध्यम से मानव पूंजी के विकास को संभव बनाती हैं।

यद्यपि ISRO अपने विभिन्न कार्यक्रमों में किफ़ायती और सफल रहा है, परन्तु शांतिपूर्ण उपयोग के लिए ब्रह्मांड की गहन समझ के प्रयासों में, इसकी क्षमताओं को विकसित करने के लिए संभावित अंतरराष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्रों को और परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है।

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