निर्धनता और इसकी प्रकृति : समाज के लिए नैतिक निहितार्थ

प्रश्न: तर्कसंगत रूप से, निर्धनता केवल आंकड़ों की विषय-वस्तु नहीं है। हम जिस समाज में रहते हैं, यह उसकी प्रकृति का एक प्रतिबिम्ब है। इस सन्दर्भ में, उस समाज के लिए नैतिक निहितार्थों की चर्चा कीजिए जहाँ निर्धनता व्यापक रूप से विद्यमान है।

दृष्टिकोण

  • निर्धनता और इसकी प्रकृति की चर्चा कीजिए और बताइए कि यह किस प्रकार मात्र आंकड़ों तक सीमित होने से कहीं अधिक है।
  • उस समाज के लिए नैतिक निहितार्थों की चर्चा कीजिए जहाँ निर्धनता व्यापक रूप से विद्यमान है।
  • आगे की राह बताइए।

उत्तर

निर्धनता एक ऐसी दशा है जिसके अंतर्गत लोगों को प्रतिष्ठित और गरिमापूर्ण जीवन तक पहुँच नहीं प्राप्त होती है। एक सांख्यिकीय उपकरण के रूप में निर्धनता को मापने और विश्लेषण करने के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। सबसे अधिक मापी जा सकने वाली निर्धनता आय सम्बंधित निर्धनता है। हालांकि, निर्धनता आंकड़ों और संख्याओं से कहीं अधिक है क्योंकि यह समाज के नैतिक मानकों को प्रतिबिंबित करती है। यह व्यक्ति और समाज के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक चिंताओं वाली एक बहुआयामी अवधारणा है।

  • सामाजिक- यह भेदभाव, अवसर की असमानता और सामाजिक बहिष्कार को प्रतिबिंबित करने के साथ-साथ सामाजिक संघर्ष को भी बढ़ावा देती है। अत्यधिक निर्धनता का तात्पर्य एक अन्यायपूर्ण समाज है।
  • आर्थिक – गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच और क्षमताओं के विकास में बाधा पहुंचाती है।
  • राजनीतिक – यह समाज में हाशिए पर स्थित वर्गों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व और भागीदारी को प्रतिबंधित करती है।

निर्धनता के कई नैतिक आयाम हैं क्योंकि निर्धनता वितरणमूलक अन्याय और करुणा की कमी को उजागर करती है। गांधी जी ने भी निर्धनता को हिंसा का सबसे निकृष्टतम रूप बताया था। अनैतिक साधनों से धन के संचय की रोकथाम और कुछ लोगों के हाथों में धन का एकत्रण लोकतांत्रिक राज्य के समक्ष एक प्रमुख चुनौती है। इसके साथ ही निर्धनता का समाज पर अनैतिक प्रभाव भी पड़ता है क्योंकि – 

  • यह वितरणमूलक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है जिसका लक्ष्य लोगों के मध्य अधिक समानता को बढ़ावा देने हेतु संसाधनों का पुनर्वितरण करना है।
  • नैतिक दृष्टिकोण से देखने पर स्पष्ट होता है इन समूहों द्वारा अनुभव की गयी क्षतियों का कारण आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों द्वारा उनके मूल्य और योगदान को व्यवस्थित रूप से अस्वीकार किये जाने में निहित है।
  • आत्म-बोध और व्यक्ति के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
  • मानव गरिमा को हानि पहुँचाती है। व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करती है, जैसे- पर्यावरण को स्वच्छ रखने का अधिकार, गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार आदि।
  • अन्याय और असमानता को बढ़ावा देती है।
  • विभिन्न अधिकारों और अधिकारों तक पहुंच में बाधा उत्पन्न करती है।
  • सुभेद्यता को बढ़ाती है।
  • सामाजिक एकजुटता और सामाजिक पूंजी को नष्ट करती है।

सामाजिक नैतिकता निर्धनता उन्मूलन और विभिन्न निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों की सफलता से जुड़ी प्राथमिकताओं को भी निर्धारित करती है। इनका संबंध निम्नानुसार है –

नैतिक दृष्टिकोण => सामाजिक मानदंड => राजनीतिक प्रक्रियाएं => नीति => निर्धनता में कमी।

वस्तुतः निर्धनता को संबोधित करने के प्रयास नैतिक अनिवार्यताओं को संबोधित किए बिना अपर्याप्त होंगे। व्यक्तिगत और संस्थागत, दोनों स्तरों पर नैतिक संवीक्षा की आवश्यकता है। व्यक्तियों को अधिक सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और दूसरों की कीमत पर धन संगृहीत करने के भ्रष्ट आचरण से बचना चाहिए। इसके साथ ही सरकार की विकास नीतियों में वितरणमूलक न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि ‘अंत्योदय के माध्यम से सर्वोदय’ को सुनिश्चित किया जा सके।

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