नई प्रौद्योगिकियों के स्वदेशीकरण एवं विकास के महत्व
प्रश्न: विभिन्न क्षेत्रों के उदाहरणों की सहायता से, नई प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण एवं विकास में भारत के प्रदर्शन संबधी उपलब्धियों और सीमाओं पर चर्चा कीजिए। साथ ही, प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण को प्राप्त करने में MSME क्षेत्रक के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- नई प्रौद्योगिकियों के स्वदेशीकरण एवं विकास के महत्व के संबंध में एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- स्वदेशीकरण के विभिन्न क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए।
- स्वदेशीकरण में भारत द्वारा अनुभव की जाने वाली सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
- स्वदेशीकरण को प्राप्त करने में MSME क्षेत्रक के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
सामाजिक-आर्थिक एवं तकनीकी विकास को बढ़ावा देने तथा विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता, रोजगार के अवसरों का सृजन तथा नवाचार को प्रोत्साहित करने हेतु एक राष्ट्र के लिए नई प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण एवं विकास महत्वपूर्ण है।
नई प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण एवं विकास में भारत की उपलब्धियाँ
- रक्षा क्षेत्र: भारत ने रक्षा उत्पादन में 40% तक स्वदेशीकरण प्राप्त कर लिया है। उदाहरण: T-90 टैंक, सुखोई-30 लड़ाकू विमान, आकाश मिसाइल, एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर और तेजस।
- अंतरिक्ष: भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान स्थापित कर लिया है। इनमें राष्ट्रीय विकास के लिए प्रक्षेपण संबंधी सेवाएं, भू-अवलोकन (earth observation), संचार एवं नौवहन तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग इत्यादि शामिल हैं। उदाहरण: स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज और मार्स ऑर्बिटर मिशन के साथ GSLV-MKII का परिचालन।
- जैव प्रौद्योगिकी: हाल ही में, स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित प्रथम रोटावायरस वैक्सीन ‘रोटावैक’ का शुभारम्भ किया गया। इसके अतिरिक्त, लिग्नोसेल्युलोसिक अपशिष्ट से इथेनॉल के वाणिज्यिक उत्पादन ने भी भारत की स्वदेशी विशेषज्ञता को प्रदर्शित किया है।
भारत ने नैनो टेक्नोलॉजी, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, थर्मल पावर, फूड प्रोसेसिंग इत्यादि जैसे अन्य क्षेत्रों में स्वदेशी उपलब्धताओं को भी प्राप्त किया है।हालांकि, वृहद सार्वजनिक क्षेत्र की विज्ञान और प्रौद्योगिकी अवसंरचना के उपलब्ध होने के बावजूद, निम्नलिखित सीमाओं के कारण भारत अपनी नवाचारी क्षमताओं को पूर्ण रूप से विकसित नहीं कर सका है:
- विखंडित नीतियाँ तथा नीतिगत कार्यान्वयन में कमी।
- जटिल और विस्तृत वित्त पोषण प्रक्रियाओं के कारण R&D में अपर्याप्त वित्त पोषण।
- उद्योगों, विशेष रूप से मध्यम और लघु-स्तरीय उद्यमों तथा अनुसंधान एवं विकास या अकादमिक संस्थानों के मध्य समन्वय का अभाव।
- वर्तमान शिक्षा प्रणाली अभी भी ग्रेड और करियर पर केंद्रित है, यह नवाचार और उद्यमिता की ओर उन्मुख नहीं है।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों की अपर्याप्त सुरक्षा।
- निवेश के लिए निजी क्षेत्र को आकर्षित करने और R&D परियोजनाओं के उपक्रम को सक्षम बनाने में असमर्थता।
हालांकि MSMEs, लघु पैमाने पर नई प्रौद्योगिकियों के साथ अनुसंधान करने की अपनी क्षमता के कारण नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें लघु प्रणाली और उप-प्रणाली के उत्पादन के संदर्भ में दुर्बल अवसंरचना, दक्षता (agility), व्यवसाय स्थापित करने की कम लागत, अत्यधिक कुशल श्रम और लागत प्रतिस्पर्धात्मकता से लाभ प्राप्त होता है। भारत में, MSME क्षेत्रक की 3 करोड़ से अधिक इकाइयां विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन के 45% भाग का योगदान करती हैं। इसके महत्व को देखते हुए, SMEs की आउटसोर्सिंग को बढ़ाने हेतु भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को अनिवार्य बनाया गया है, ताकि देश के भीतर नवाचार और विनिर्माण के लिए एक अनुकूल वातावरण विकसित हो सके।
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