नैतिक दुविधा

प्रश्न:यह व्याख्या करते हुए कि नैतिक दुविधा क्या है, चर्चा कीजिए कि किस प्रकार यह न केवल प्रतिस्पर्धी हितों और मूल्यों के मध्य चयन को प्रतिबिंबित करता है अपितु यह किसी व्यक्ति के चारित्रिक गुण का एक परीक्षण भी है।

दृष्टिकोण:

  • नैतिक दुविधा का संक्षेप में अर्थ बताइए।
  • नैतिक दुविधा किस प्रकार किसी व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण करती है। चर्चा कीजिए। 
  • नैतिक संघर्ष के समाधान हेतु सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

उन कार्यों में से चयन करना सरल होता है जिनमें परिणाम स्पष्ट रूप से सही या गलत होते हैं। किन्तु तब नैतिक दुविधा उत्पन्न होती है जब किसी कार्य के अच्छे या बुरे होने के संबंध में अस्पष्टता होती है। नैतिक दुविधा को ऐसी स्थिति के रूप में वर्णित किया जाता है जिसमें किसी को उन नैतिक रूप से अनिवार्य कदमों के मध्य निर्णय लेना पड़ता है जिनमें से कोई भी स्पष्टतः स्वीकार्य या वरीय न हो। इसमें प्रायः किसी दी गयी अवांछित या जटिल स्थिति में सिद्धांतों के प्रतिस्पर्धी समूह के मध्य चयन करना आवश्यक होता है। कई बार हितों के संघर्ष या व्यक्तिगत मूल्यों और पेशेवर नैतिकता में टकराव, अस्पष्ट या प्रतिस्पर्धी उत्तरदायित्व आदि के कारण व्यक्ति निजी व पेशेवर जीवन में स्वयं को नैतिक दुविधा की स्थिति में पाता है। नैतिक दुविधा न केवल प्रतिस्पर्धी हितों और मूल्यों के मध्य के चयन की स्थिति को दर्शाती है बल्कि यह निम्नलिखित रूप में किसी के चरित्र की सुदृढ़ता का परीक्षण भी करती है:

  • नैतिक दुविधाओं के समाधान हेतु अत्यधिक ईमानदारी की आवश्यकता होती है। प्रायः लोगों के लिए व्यक्तिगत हितों की अवहेलना करते हुए सार्वजनिक हित में कार्य करना आवश्यक होता है। इसके लिए समर्पण और ईमानदारी के साथ ही व्यक्तिगत लाभ के प्रलोभन को नियंत्रित करने की क्षमता का होना भी आवश्यक है।
  • इसी प्रकार नैतिक दुविधाओं के समाधान हेतु साहस, विवेक, विनम्रता, आशावाद और दृढ़ संकल्प आदि आवश्यक चारित्रिक गुण हैं।
  • एक सुदृढ़ चरित्र महत्वपूर्ण मुद्दों की पहचान करने, प्राथमिकताओं को निर्धारित करने और प्रतिस्पर्धी मूल्यों को सुलझाने की क्षमता प्रदान करता है।
  • केवल नैतिक मानदंडों से नैतिक व्यवहार सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत ईमानदारी की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति की नैतिक विफलता की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति होता है।
  • नैतिक दुविधाओं के समाधान के सन्दर्भ में किसी व्यक्ति का मार्गदर्शन करने वाले कानून, नियम और नैतिक मानक वास्तविक जीवन में उत्पन्न होने वाले असंख्य द्वंद्वों के समाधान की क्षमता प्रदान करने हेतु पर्याप्त नहीं होते हैं।

नैतिक दुविधाओं का समाधान, न्यायोचित दृष्टिकोण (जस्टिस एप्रोच) अपनाकर किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण के अंतर्गत यह माना जाता है कि निर्णय समता और निष्पक्षता के मानकों पर आधारित होना चाहिए। नैतिक दुविधाओं के सामना की स्थिति में एक व्यक्ति के पास व्यक्तिगत तौर पर नैतिक निर्णयन की क्षमता के साथ ही दृढ़ता और किए गए कार्यों का उत्तरदायित्व स्वीकार करने की भी क्षमता का होना आवश्यक है।

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