मुद्रा आपूर्ति एवं इसकी कार्यप्रणाली की संक्षिप्त व्याख्या

प्रश्न: अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति को विनियमित करने के लिए प्रयुक्त विभिन्न मात्रात्मक और गुणात्मक नीतिगत साधनों को स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • मुद्रा आपूर्ति एवं इसकी कार्यप्रणाली की संक्षिप्त व्याख्या करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति को विनियमित करने के लिए प्रयुक्त विभिन्न मात्रात्मक और गुणात्मक नीतिगत साधनों को परिभाषित कीजिए।
  • विभिन्न मात्रात्मक और गुणात्मक साधनों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर:

मुद्रा आपूर्ति से आशय एक निश्चित अवधि में किसी देश की अर्थव्यवस्था में परिसंचरणशील मुद्रा एवं अन्य तरल प्रपत्रों के संपूर्ण भंडार से है। इसे केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक नीतिगत साधनों का उपयोग करके विनियमित किया जाता है। भारत में, मुद्रा आपूर्ति का विनियमन RBI द्वारा विभिन्न मात्रात्मक और गुणात्मक साधनों का उपयोग करके किया जाता है, ताकि मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, मूल्य स्थिरता तथा स्थिर आर्थिक विकास को सुनिश्चित किया जा सके।

मात्रात्मक या सामान्य विधियों से आशय उन विधियों से है जिनका उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा बैंकिंग प्रणाली में क्रेडिट और मुद्रा आपूर्ति की कुल मात्रा को प्रभावित करने के लिए किया जाता है, इन विधियों का उपयोग बिना किसी विचार-विमर्श के किया जाता है। जबकि गुणात्मक या चयनात्मक उपायों से आशय उन उपायों से है, जिनका उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था के विशिष्ट क्षेत्रों में ऋण के प्रवाह को विनियमित करने के लिए किया जाता है।

मुद्रा विनियमन की मात्रात्मक विधियों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • बैंक दर नीति- वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण के प्रवाह को प्रभावित करने के लिए बैंक दर (वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा आरोपित दर) में किया गया सुविचारित परिवर्तन बैंक दर नीति कहलाता है। बैंक दर में कमी होने से ऋण सस्ता हो जाता है।
  • खुले बाजार की संक्रियाएं- खुले बाजार की संक्रियाओं (OMOs) से आशय केंद्रीय बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को किए जाने वाले सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से है। इसमें रेपो और रिवर्स रेपो दरें सम्मिलित होती हैं। ये बजटीय संसाधनों के जुटाव को सक्षम बनाती हैं तथा प्रणाली में अतिरिक्त तरलता को समाप्त करने के लिए एक साधन के रूप में कार्य करती हैं।
  • रिजर्व संबंधी आवश्यकताएँ: बैंक जमाओं की एक निश्चित राशि केंद्रीय बैंक में आरक्षित की जाती है। यह वाणिज्यिक बैंकों के अतिरिक्त रिजर्व की मात्रा को तथा बैंकिंग प्रणाली के क्रेडिट गुणक को भी प्रभावित करके मुद्रा आपूर्ति को विनियमित करती है। भारत में इसे नकद आरक्षित अनुपात (CRR) के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • सांविधिक तरलता अनुपात (SLR): SLR से आशय निधियों के उस प्रतिशत से है, जिन्हें बैंकों को तरल संपत्ति के रूप में सदैव बनाए रखना होता है। जब SLR उच्च होता है, तब बैंकों के पास वाणिज्यिक परिचालन के लिए मुद्रा की अल्प मात्रा उपलब्ध होती है और इसलिए ऋण देने के लिए धन की मात्रा भी कम होती है।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था: केंद्रीय बैंक अधिक मुद्रा का मुद्रण कर सकता है, परन्तु इससे मुद्रास्फीति में अधिक वृद्धि हो जाती है तथा यह मुद्रा आपूर्ति को विनियमित करने के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण विकल्प भी नहीं है।
  • मात्रात्मक सहजता: केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों और निजी संस्थाओं से सरकारी बॉन्ड या अन्य वित्तीय परिसंपत्तियां खरीदकर अर्थव्यवस्था में मुद्रा का एक पूर्व-निर्धारित मात्रा में समावेश करता है।

गुणात्मक विधियों में निम्नलिखित विधियाँ सम्मिलित हैं:

  • मार्जिन आवश्यकता का विनियमन- ‘मार्जिन’, दिए गए ऋण की राशि का वह हिस्सा होता है, जिसे बैंक द्वारा वित्तपोषित नहीं किया जाता। मार्जिन आवश्यकता में वृद्धि से प्रतिभूतियों के अधिग्रहण मूल्य में संकुचन होता है और इसमें कमी से अधिग्रहण मूल्य में वृद्धि होती है। मार्जिन आवश्यकताओं में परिवर्तन को विशिष्ट वस्तुओं के विरुद्ध क्रेडिट के प्रवाह को प्रभावित करने के लिए अभिकल्पित किया जाता है।
  • क्रेडिट राशनिंग- यह एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक द्वारा ऋण की अधिकतम राशि को सीमित करने का प्रयास किया जाता है। यह अवांछित क्षेत्रों में बैंकों के ऋण जोखिम को कम करने में सहायता करता है।
  • उपभोक्ता ऋण का विनियमन- केंद्रीय बैंक इस विधि का उपयोग मुद्रास्फीति पर नियंत्रण स्थापित करने और अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने के उद्देश्य से ऋण शर्तों को प्रतिबंधित या उदार बनाने के लिए करता है।
  • नैतिक प्रत्यायन (Moral Suasion)- नैतिक प्रत्यायन वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को सामान्य मौद्रिक नीति का अनुपालन करने का परामर्श देता है या उन्हें प्रोत्साहित करता है।
  • प्रत्यक्ष कार्रवाई- यह केंद्रीय बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को उनकी उधार एवं निवेश नीतियों के संबंध में जारी किए गए निर्देशों को संदर्भित करता है। इसका उपयोग प्रायः तब किया जाता है, जब कोई बैंक केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित शर्तों तथा आवश्यकताओं का उल्लंघन करता है।

समग्र रूप से, किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति और ऋण नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता अनेक कारकों पर निर्भर करती है तथा ये उपाय एक अर्थव्यवस्था की समग्र वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाए रखने एवं इसके वृहद् आर्थिक संकेतकों को स्थिर करने हेतु आवश्यक हैं।

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