भारत में भूमि अधिकार : पट्टे की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा

प्रश्न: पट्टे की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के बीच प्रत्यक्ष संबंध को ध्यान में रखते हुए, भारत में भूमि अधिकारों के लिए एक हितकर कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पट्टे की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • पट्टे की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के मध्य संबंध का वर्णन कीजिए।
  • निवर्तमान भूमि पट्टा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए इस सन्दर्भ में आगे की राह सुझाइए।

उत्तर

पट्टे की सुरक्षा भूमि के प्रयोग और अधिकारों के हस्तांतरण से लाभ प्राप्त करने की क्षमता से संबंधित होती है। खाद्य सुरक्षा तब अस्तित्व में होती है जब सभी व्यक्तियों की प्रत्येक समय पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक शारीरिक और आर्थिक पहुँच हो। यह व्यक्तियों के एक क्रियात्मक एवं स्वस्थ जीवन हेतु आहार-संबंधी आवश्यकताओं तथा खाद्य प्राथमिकताओं को पूरा करती है। ये दोनों सुरक्षाएं निम्नलिखित आयामों के माध्यम से अंतर्संबंधित हैं:

  • कमजोर भूमि अधिकारों अर्थात् पट्टे की अपर्याप्त सुरक्षा के परिणामस्वरुप भूमि के निम्नस्तरीय प्रबंधन के कारण अंततः भू निम्नीकरण और भूमि की उत्पादकता में कमी होती है।
  • यह अनौपचारिक या प्रच्छन्न पट्टेदारी में भी योगदान देती है।
  • वैकल्पिक रूप से, विधिक तौर पर समर्थित भूमि अधिकार कृषकों (जोतदारों/पट्टेदारों/बंटाईदारों) को भूमि संसाधनों में निवेश (और संरक्षण) करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • अधिकांश पट्टेदार निर्धन होते हैं और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि निर्धन परिवारों को असंगत रूप से प्रभावित करती है, क्योंकि वे प्रायः अपनी आय का एक बड़ा भाग खाद्य पदार्थों के ऊपर व्यय करते हैं।
  • इससे असंगठित पट्टेदारों की ऋण, बीमा तथा अन्य सहायक सेवाओं तक पहुँच बाधित होती है।
  • पट्टेदारी पर वर्तमान कठोर कानूनों में भू-स्वामियों को अपनी भूमि को पट्टे पर देने से प्रतिबंधित किया गया है और इस कारण कई व्यक्ति भूमि को अकृषित रखने को प्राथमिकता देते हैं।
  • इसके साथ ही, भूमि पट्टा बाजार भूमिगत रूप से संचालित किया जा रहा है जहाँ पट्टेदारी लिखित बाध्यकारी अनुबंधों के बजाय मौखिक वायदों पर होती है, जिसे भू स्वामी की इच्छा पर निरस्त किया जा सकता है। इस प्रकार भूमि पट्टेदारी कानूनों के तत्काल निरीक्षण की आवश्यकता है।

उपर्युक्त कारकों के फलस्वरूप भारत की कृषि संभाव्यता यथार्थ में परिणत नहीं हो पा रही है। अतः पारदर्शी भूमि पट्टेदारी कानूनों को लागू करना आवश्यक है जो संभावित पट्टेदार या बंटाईदार को भू-स्वामियों के साथ लिखित अनुबंधों में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान करें।

इस संदर्भ में नीति आयोग की टी. हक़ समिति द्वारा मॉडल लैंड लीजिंग लॉ का प्रारूप तैयार किया गया है, जिसमें व्यापक प्रावधान सम्मिलित हैं जैसे:

  • भू-स्वामी और काश्तकार के मध्य औपचारिक पट्टा समझौता तथा अधिकारों के प्रयोग और हस्तांतरण हेतु नियम व शर्तों का निर्धारण आपसी सहमति से करना।
  • भूमि-पट्टों से संबंधित विवादों के निर्णयन हेतु विशेष भूमि न्यायाधिकरणों की स्थापना करना।
  • अपेक्षित उपज को रेहन के रूप में रखने के बदले बंटाईदारों सहित सभी पट्टेदारों को औपचारिक ऋण, बीमा आदि सहजता से उपलब्ध करवाना।
  • भू-स्वामियों को अविच्छेद्य (indefeasible) अधिकार प्रदान करने हेतु भूमि के दस्तावेजों और पंजीकरण प्रणाली का डिजिटलीकरण करना, जैसा कि कर्नाटक में किया गया है।

कुल मिलाकर, विभिन्न राज्यों द्वारा ऐसे हितकर विधिक फ्रेमवर्क के अंगीकरण से पट्टेदारों को भूमि सुधार में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इस प्रकार कृषि क्षमता और अंततोगत्वा खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा।

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