7वीं शताब्दी के मध्य के उपरांत मन्दिर स्थापत्य की एक मिश्रित शैली

प्रश्न: यद्यपि दक्कन क्षेत्र में ऐसे मन्दिर हैं जो स्पष्ट रूप से नागर या द्रविड़ शैलियों पर आधारित हैं, तथापि 7वीं शताब्दी के मध्य के उपरांत मन्दिर स्थापत्य की एक मिश्रित शैली प्रचलित हुई। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • कथन की एक संक्षिप्त कालक्रमानुसार पृष्ठभूमि प्रस्तुत कीजिए।
  • चालुक्य राजवंश के दौरान नागर और द्रविड़ शैलियों की विशेषताओं सहित मन्दिर निर्माण संबंधी गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।
  • दक्कन क्षेत्र में राष्ट्रकूट और होयसल राजवंशों के शासन के दौरान मन्दिर स्थापत्य की मिश्रित शैली की चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत में राजनीतिक शासकों ने ही स्थापत्य को संरक्षित और प्रभावित किया। 8वीं सदी के मध्य तक अधिकांश दक्कन क्षेत्र पर चालुक्यों (543-755 ईसवी) का शासन था। कालांतर में दक्कन के उत्तरी भाग में राष्ट्रकूटों (755- 975 ईसवी) और दक्षिणी भाग में होयसलों (1026 -1343) ने चालुक्यों का स्थान लिया। 

नागर और द्रविड़ शैली

चालुक्यों के मन्दिर या तो नागर या द्रविड़ शैलियों पर आधारित थे। मिश्रित शैली ‘परवर्ती’ चालुक्य मन्दिरों की विशेषता थी। चालुक्यों के मंदिर दो प्रकार के थे- शैलकृत (चट्टानों को काटकर बनाये गए मंदिर) और संरचनात्मक मन्दिर। एहोल की रावण फाड़ी गुफा चालुक्यों के शैलकृत अनुप्रयोगों का एक उदाहरण है। संरचनात्मक मन्दिरों का विकास दो चरणों में हुआ है:

  • आरंभिक चरण: एहोल और बादामी के मन्दिर इस चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। लड़खन, मुक्तेश्वर और दुर्गा मंदिर जैसे प्रमुख मंदिर गर्भगृह, रथ और शिखर जैसी नागर विशेषताओं से प्रभावित थे।
  • उत्तरवर्ती चरण: पट्टदकल के मन्दिर संरचनात्मक मंदिरों के उत्तरवर्ती चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। पापनाथ मंदिर नागर शैली से प्रभावित है और विरूपाक्ष मंदिर गोपुरम, सहायक मन्दिर और विमान जैसी द्रविड़ विशेषताओं से प्रभावित है।

मिश्रित शैली

इसे वेसर शैली भी कहा जाता है। इसमें दोनों शैलियों की विशेषताएं निहित हैं। इसका प्रारंभ चालुक्यों के शासनकाल के दौरान हआ तथा राष्ट्रकूट और होयसल शासकों के अधीन यह अपने चरमोत्कर्ष पर पहंची। वेसर की अधिकांश प्रयोगात्मक शैलियाँ दक्कन के दक्षिणी भाग में पाई गईं हैं।

राष्ट्रकूटों ने एलोरा और एलीफैंटा में शैलकृत गुफाओं का निर्माण करवाया। इनके द्वारा निर्मित मन्दिरों में सबसे प्रमुख कैलाशनाथ मन्दिर है, जो दोनों शैलियों से प्रभावित है परंतु इसमें द्रविड़ शैली की विशेषताओं की प्रमुखता है।

दक्षिणी दक्कन में होयसल मन्दिर तारकीय योजना (stellate plan) पर आधारित हैं। इन मन्दिरों में केंद्रीय मन्दिर उभयनिष्ठ मंडप के माध्यम से अन्य दो पार्श्व अधिष्ठापित मन्दिरों से जुड़ा हुआ है। मंदिरों की संरचना एक तारे के समान दिखती है। हलेबिड का होयसलेश्वर मंदिर वेसर शैली का प्रतिनिधित्व करता है।

इस प्रकार, 7वीं शताब्दी के मध्य के बाद की अवधि में दक्कन क्षेत्र में मिश्रित शैली ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की।

Read More 

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.