म.प्र. में पर्यटन एवं पुरातत्व
सतधारा स्तूप
- म.प्र. का विदिशा जिला अपने साँची के विश्व प्रसिद्ध स्तूपों के लिए तो जाना ही जाता है लेकिन जिले के सतधारा में भी स्तूपों की श्रृंखला मौजूद है।
- जिला मुख्यालय विदिशा से 22 और सांची से करीब 14 किमी दर सलामतपुर के पास सतधारा नदी के पास सांची की तर्ज पर 28 हेक्टेयर क्षेत्र में छोटे-बड़े 30 स्तूपों की श्रृंखला फैली हुई है। इसके अलावा यहां पर 2 विहार भी है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से मिली जानकारी के मुताबिक यहां बौद्ध हीनयान संप्रदाय के स्मारक तथा पुरावशेष 28 हेक्टेयर में फैले हुए हैं । इनमें एक मुख्य स्तूप है । 29 अन्य स्तूप है।
- यहां का मुख्य स्तूप सांची के स्तूप से भी बड़ा नजर आता है । मुख्य स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के काल ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना जाता है । इसके 400 साल बाद इसका ऊपरी भाग पत्थरों से मढ़ा गया जो अब काफी क्षतिग्रस्त हो गया है।
- यहाँ खुदाई में मिट्टी के पात्रों के टुकड़े भी मिले हैं। इन्हें भी 200 से 500 वर्ष ईसा पूर्व का माना गया है। यहां बौद्ध शैलचित्र भी मिले हैं। इन्हें चौथी से सातवीं सदी के बीच का माना जाता है।
गुफाएँ, महल व मकबरे
भीमबैठिका की गुफाएँ
- मध्यप्रदेश की प्राचीनतम गुफाएँ भीमबैठिका की हैं, जो पुरापाषाण संस्कृति का उदाहरण है।
- भीमबैठिका रायसेन में है । वाकणकर ने इनका उत्खनन कराया।
- भीमबैठिका की गुफाएँ भारत में सबसे प्राचीन संस्कृति (पुरापाषाण) का प्रतिनिधित्व करती है।
- भीमबैठिका को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया हैं।
आदमगढ़ की गुफाएँ
ये शैलकृत चित्रित गुफाएँ हैं । ये होशंगाबाद क्षेत्र में है |
उदयगिरि की गुफाएँ
- विदिशा जिले में कुल 20 गुफाएँ है । ये चौथी-पाँचवीं शताब्दी की है । गुफा नं.1 और 20 जैन धर्म से। संबंधित, जबकि गुफा नं. 5 वराह अवतार से संबंधित है।
भर्तृहरि की गुफाएँ उज्जैन
- ये उज्जैन में हैं । यहाँ कुल 9 गुफाएँ हैं, यह खण्डित हो चुकी हैं।
- परमार वंश के शासकों द्वारा 11वीं शताब्दी में भर्तृहरि के सम्मान में कालियादेह के पास इनका निर्माण कराया गया । इनमें रंगीन चित्र हैं।
बाघ की गुफाएँ
- धार के पास बाघनी नदी के किनारे बाघ नामक स्थान पर है।
- इनकी तुलना अजंता की गुफाओं से की जाती है।
- निर्माण गुप्तकाल में (चौथी-पाँचवीं शताब्दी) ही है।
- कुल-9 गुफाएँ, 4 नष्ट हो गयी, 5 शेष हैं ।
- गुफा नं.2 में 5 बौद्धों की मूर्ति है, जिन्हें स्थानीय लोग पाँच पाण्डव मानते हैं। इन्हें “बौद्ध चित्र के प्राण” तथा रंगमहल भी कहते हैं।
- पाण्डव गुफाएँ पचमढ़ी में हैं।
बिलौवा गुंफाएँ
- बिलौवा गुफाएँ म.प्र. के ग्वालियर जिले में अवस्थित हैं।
- इन गुफाओं का निर्माणकाल 11वीं, 12वीं शताब्दी हैं ।
- बिलौवा की गुफाओं में शैलकृत शैव प्रतिमाएँ हैं।
मृगेन्द्रनाथ गुफाएँ
वर्ष 2009 में म. प्र. के पुरातत्व विभाग के रायसेन जिले के पाटनी गाँव टे निकट ‘मृगेन्द्रनाथ गुफा’ की खोज की है । इस गुफा की लम्बाई एक किलोमीटर है, जो प्रदेश की भीम बैठिका की गुफाओं से साम्यता रखती है।
म.प्र. की प्रमुख गुफाएँ
- भीम बैठका की गुफाएँ ओबेदुल्लागंज (रायसेन )
- भर्तहरि की गुफाएँ (उज्जैन)
- उदयगिरि की गुफाएँ( विदिशा)
- बाघ की गुफाएँ बाघ (धार)
- आदमगढ़ की गुफाएँ( होशंगाबाद)
- पाण्डव गुफाएँ पचमढ़ी (होशंगाबाद)
मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक दुर्ग
ग्वालियर दुर्ग
निर्माण सूरजसेन द्वारा 8वीं सदी में कराया। पूर्व का जिब्राल्टर तथा किलों का रत्न कहते हैं।
5 दरवाजे – (1) आलमगीर का दरवाजा, (2) हिंडोला दरवाजा, (3) गुजरी महल दरवाजा,(4) चतुर्भुज दरवाजा, (5) हाथीफोड़ दरवाजा
इमारतें – बादल महल, गुजरीमहल, सास-बहू का मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, मानमंदिर, तेली का मंदिर (सबसे ऊँचा) है तथा द्रविड़ शैली में बना है (उत्तर भारत के सभी) नागर शैली में हैं इसे छोड़कर ।
अन्य दुर्ग व किले
- धार का किला – निर्माण मोहम्मद बिन तुगलक द्वारा 1344 में कराया गया, दक्षिण विजय के दौरान ।
- महल-खरबूजा महल, देवी कालका का मंदिर, अब्दुलाशाह, चंगल का मकबरा।
- असीरगढ़ का किला (बुरहानपुर):-दक्षिण का प्रवेश द्वार कहते है निर्माण-आशा नामक एक अहीर राजा ने कराया।
- चंदेरी का किला (अशोक नगर में):- बेतवा नदी के किनारे। निर्माणः-प्रतिहार राजा कीर्तिपाल ने 11 वीं सदी में कराया।
- इमारतें जौहरकुण्ड:– नौखण्डा महल, हवा महल ।
- बाबर के आक्रमण पर 800 राजपूत रानियों ने जौहर किया था।
- गिन्नौरगढ़ का किला (रायसेन):-गिन्नौरी पहाड़ी पर स्थित है।
- रायसेन का दुर्ग (रायसेन):– बादल महल, राजा रोहित महल, इत्रदान महल। कुएँ और बावड़ी के लिए प्रसिद्ध है।
- ओरछा दुर्ग (टीकमगढ़) :-बेतवा नदी के किनारे ।
- चतुर्भुज मंदिर, रामलला मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि ।
- वीरसिंह देव ने 17 वीं सदी में बनवाया । राजमंदिर, जहाँगीर महल भी है
- अजयगढ़ का दुर्ग (अजयपाल)-‘अमन का महल’ दर्शनीय है।
- बाँधोगढ़ का दुर्ग :- चमत्कारी योगी की समाधि । क्षीरसागर कुण्ड है।
- मंदसौर का किला :– सिवना नदी के किनारे स्थित है । इसे अलाउददीन खिलजी ने बनवाया।
- नरवर का किला-शिवपुरी में है । राजा नल’ और ‘दमयंती की प्रणय कथा।
पुरातात्विक स्थल
- कायथा-कालीसिंध नदी के किनारे का यह स्थान ताम्रपाषाणयगी सभ्यता के प्रमाण प्राप्ति का मुख्य स्थल है। यह सिंधु सभ्यता का भाग है।
- आदमगढ़-यहाँ से पाषाणकालीन सभ्यता के सबसे प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- नागदा– उज्जैन के निकट चम्बल नदी के किनारे बसे इस स्थल से ताम्रपाषाणयुगीन सभ्यता के प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।
- नावदा टोली-खरगोन के महेश्वर में नावदा टोली स्थान से ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- एरण-सागर जिले के एरण से ताम्र पाषाणकालीन सभ्यता के साथ ही भारत में सती-प्रथा के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं।
- जटकरा (खजुराहो)– यहाँ भारतीय पुरातत्व द्वारा सर्वेक्षण के दौरान की गई खुदाई में विशाल मंदिर प्राप्त होने के प्रमाण मिले हैं।
- खलघाट (धार)– यहाँ भगवान बुद्ध के अनुयायियों से संबंधित दो हजार वर्ष पुरानी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ से ताम्रकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- पोतनगर (खरगोन)– यहाँ से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व के प्राचीन बौद्धकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- निन्नौर गाँव (सीहोर)– यहाँ की गई खुदाई में गुप्तकालीन वास्तुकला एवं नगर व्यवस्था के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- जूना एरवास (उज्जैन)– यहाँ की गई खुदाई में लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व की प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
- तादौल (उज्जैन)– यहाँ की गई खुदाई में लगभग दो हजार वर्ष पुराना मंदिर प्राप्त हुआ है।
- खेड़ीनामा (होशंगाबाद)– यहाँ की खुदाई में साढ़े तीन हजार वर्ष प्राचीन ताम्रयुगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
- भीमबेठिका (रायसेन)– यहाँ पाण्डवकालीन गुफाएँ प्राप्त हुई हैं।
- त्योंथर (रीवा)– यहाँ की गई खुदाई में बौद्धकालीन अवशेष तथा ईसा पूर्व तीसरी एवं चौथी सदी में नगरीय सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।