मध्यप्रदेश का इतिहास एवं संस्कृति

मध्यप्रदेश का इतिहास एवं संस्कृति

  • हिमालय से भी पुराना संभवतः भारतीय उपमहाद्वीप का सर्वाधिक प्राचीन मूल गोंडवाना गोंडों की भूमि के एक बड़े हिस्से को समाहित करने वाला भू-प्रदेश आज का मध्यप्रदेश है ।
  • देश का हृदय स्थल कहा जाने वाला म.प्र. भू-वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वाधिक प्राचीनतम गोंडवाना लैंड’ भू-संहति का भू-भाग है।
  • इसके पूर्वी भू-भाग की ओर ‘विंध्यन शैल’ समूह तथा पश्चिम भाग में दक्कन ट्रेप आवृत्त है।
  • म.प्र. के सीधी, मंदसौर तथा खण्डवा को पूर्व पाषाण कालीन युग का माना जाता है।
  • प्राग ऐतिहासिक काल के अवशेष म.प्र. के रायसेन जिले में स्थित भीम बैठिका की गुफाओं में एवं सागर के निकट पहाड़ियों में शैलचित्रों के रूप में तथा छनेरा, नेमावर, माँजावाड़ी, महावर, देहगाँव, हार्डिया, कबरा व पचमढ़ी आदि से प्राप्त होते हैं।
  • म.प्र. में नर्मदा घाटी क्षेत्र में महेश्वर और नावदा टोली क्षेत्र में सिंधु सभ्यता और ताम्रपाषाण संस्कृति के प्रमाण मिलते हैं ।
  • वैदिक काल में दक्षिण पथ और रेवोत्तर के रूप में म.प्र. का उल्लेख मिलता है।
  • नर्मदा नदी के तट पर महर्षि अगस्त के नेतृत्व में यदु नामक कबीला तथा  श्रापित पचास पुत्र आदि आकर बसे थे ।
  • म.प्र. के महापाषाणकालीन स्मारक दुर्ग, रायपुर, सिवनी तथा रीवा जिलों में प्राप्त हुए हैं।
  • दण्डकारण्य वन का नाम इक्ष्वाकु के पुत्र दण्डक के नाम पर पड़ा ।
  • यहाँ महाकाव्य काल में यादव वंशीय राजा मधू का उल्लेख मिलता है । यह अयोध्या के शासक दशरथ का समकालीन था ।
  • मध्यप्रदेश के घने वनों का रामायण में दण्डकारण्य महावन और महाकांतर का उल्लेख हुआ है।
  • मध्यप्रदेश के वतन, काशी, चेदी, कारूश और दशाड़े आदि क्षेत्रों का महाभारत के युद्ध में उल्लेख हुआ है।
  • मध्यप्रदेश के उज्जैन क्षेत्र का उल्लेख महाजनपद युग के सोलह महाजनपदों में अवंतिका नाम से हुआ है । इसकी दो राजधानियाँ थीं उत्तरी अवंतिका-उज्जैन, दक्षिण अवंतिका-माहिष्मति (महेश्वर)।
  • मौर्य कालीन सभ्यता के अवशेष मध्यप्रदेश के दतिया जिले से अशोक के गुर्जरा अभिलेख के रूप में मिलते हैं।
  • अशोक ने साँची के स्तूपों का निर्माण करवाया था और विदिशा के व्यापारी की पुत्री श्री देवी से विवाह किया था ।
  • पुष्यमित्र शुंग ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था और साँची स्तूपों के तोरण द्वार बनवाये थे।
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने पाटली पुत्र के अलावा उज्जैनी को भी अपनी राजधानी बनाया था।
  • गुप्तकाल में उदयगिरी की गुफाओं तथा किदवा के वैष्णों मंदिर का निर्माण हुआ।
  • बाणभट्ट की कादम्बरी के अनुसार हर्षवर्धन ने विन्ध्या और नर्मदा के उत्तरी भाग में शासन स्थापित किया था ।
  • परमारवंशीय राजपूत राजा-राजाभोज एक प्रतापी राजा था, जो कुशल योद्धा तथा प्रकाण्ड विद्वान माना जाता है । इसने भोपाल के निकट भोजताल और भोजपुर नगर बसाया था।
  • विश्व में प्रसिद्ध खजुराहो मंदिरों का निर्माण राजपूत युग में चंदेल वंशीय शासकों ने करवाया था।
  • माण्डू के शासक होशंगशाह ने मध्य काल में होशंगाबाद शहर की स्थापना की।
  • बाबर ने ग्वालियर, चंदेरी, कालपी आदि पर 1526 में पानीपत के द्वितीय युद्ध द्वारा अधिकार कर लिया था ।
  • मालवा के सुल्तानों ने माण्डू में अनेक प्रसिद्ध इमारतों का निर्माण कराया, जिसमें जहाज महल, हिण्डोला महल, रूपमती का महल, जामा मस्जिद और होशंगशाह का मकबरा उल्लेखनीय है ।
  • रामायण काल में यदुवंशी नरेश मधु जो दण्डकारण्य के शासक थे, अयोध्या नरेश दशरथ के समकालीन थे, जबकि महाभारत काल में यदुवंशीय नरेश नील, विद तथा अनुविद क्रमशः अनूप, अवन्ति तथा विदिशा के शासक थे।
  • मध्यप्रदेश के मौर्यकालीन इतिहास (326-184 ई.पू.) का साक्ष्य जबलपुर की सिहोरा तहसील के अंतर्गत रूपनाथ ग्राम की चट्टान पर उकेरे गए अशोक के शिलालेख से प्रमाणित होता है।
  • आधुनिक अमरकंटक का क्षेत्र प्राचीनकाल में मैकल के नाम से जाना जाता था । मैकल वंश का सर्वप्रथम राजा जयबल था। ग्वालियर दुर्ग को ‘किलों का रत्न या भारत का जिब्राल्टर’ कहा जाता है। मांडू के शासक होशंगशाह ने चित्तौड़ विजय की तथा इस उपलक्ष्य में उसने एक विजय स्तंभ बनवाया । ग्वालियर दुर्ग के कछवाहा शासक महिपाल द्वारा 1093 ई. में सास-बहू के विष्णु मंदिर का निर्माण कराया गया । ‘पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सौ’ नामक पुस्तक में उज्जैनी नगरी को ‘ओजीनी’ लिखा गया है। जयपुर के राम सवाई जयसिंह ने अठारहवीं शताब्दी में जंतर-मंतर वेधशाला का निर्माण उज्जैन में कराया था।
  • बौद्ध ग्रंथों में उज्जैन नगरी का नाम ‘अच्युतगामी’ उल्लेखित है, जबकि महाभारत काल में उज्जैन सांदीपनि आश्रम के नाम से विख्यात था।
  • मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित भरहत स्तूप की खोज 1873 ई. में कनिंघम ने की थी।
  • मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित गुज्जरा में अशोक के लघु शिलालख में अशोक का नाम ‘देवानां प्रिय पियदस्सी’ के रूप में उल्लिखित है।
  • ओरछा की स्थापना 1531 ई. में राजा रुद्रप्रताप ने की थी तथा 1539 ई. में भारतीचंद के समय गढ़कुण्डार के स्थान पर ओरछा को बुंदेलखण्ड की राजधानी बनाया गया था।
  • उज्जैन के समीप धरमत युद्ध (1658 ई.) में औरंगजेब ने शाहजादा दारा को पराजित कर बादशाहत प्राप्त की थी।
  • 1737 ई. में भोपाल के युद्ध में पेशवा बाजीराव ने हैदराबाद के निजाम को पराजित किया । युद्ध के बाद दौरासराय की संधि हुई, जिसमें निजाम ने नर्मदा व चंबल के मध्य के सभी क्षेत्रों पर मराठों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया।
  • शक संवत् 107 महाक्षत्रप हृद्रसिंह का शिलालेख सेतखड़ी (शाजापुर) से मिला है।
  • मिहिरकुल के शासनकाल के पंद्रहवें वर्ष का ग्वालियर अभिलेख मध्यप्रदेश में हूणों की विद्यमानता का साक्ष्य है।
  • हैहय वंश के राजा है हैहय राजा माहिष्मत ने नर्मदा किनारे माहिष्मत नगर बसाया था, जिसे होलकर वंश की रानी अहिल्याबाई ने राजधानी बनाया, वर्तमान में इसका नाम महेश्वर है।
  • झाँसी रेलमार्ग पर स्थित ओरछा में विशाल एवं सुदृढ़दुर्ग बुंदेला वंश के शौर्य पराक्रम और वीरता का प्रतीक है । बुंदेला वंश ने ओरछा (टीकमगढ़) को बुंदेलखण्ड की राजधानी बनाया था। मध्यप्रदेश के राजवंशों में ओलिवंश की राजधानी दशपुर (मंदसौर), कलचुरी वंश की राजधानी त्रिपुरी (जबलपुर), बुंदेलों की राजधानी ओरछा (टीकमगढ़) तथा परमार वंश की राजधानी  थी, जबकि इंदौर होलकर वंश की राजधानी रही है।
  • मध्यप्रदेश में परमार वंश के राजाभोज एक महान् निर्माता थे । भोपाल का तालाब उन्होंने ही बनवाया था । ये विद्वान और लेखक थे । उनकी रचनाओं में समारांगण सूत्र, सरस्वती कंठाभरण, सिद्धांत संग्रह आदि है। साथ ही धार में संस्कृत विद्यालय की स्थापना भी की थी।
  • मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नगरी वर्तमान महेश्वर की स्थापना इक्ष्वाकुवंश के राजा मुचुकुन्द ने अपने पूर्वज मांधाता के नाम पर की थी। 1531 में रुद्रप्रताप बुंदेला ने ओरछा (टीकमगढ़) को राजधानी बनाया  छत्रसाल बुंदेला ने 1075 में पन्ना को राजधानी बनाया  छत्रसाल को 1707 में मुगलों ने राजा की उपाधि दी।
  • पाली ग्रंथों से पता चलता है कि बुद्ध काल में अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी, जहाँ का राजा प्रद्योत था, जो पुलिक का पुत्र था ।
  • होलकरों की राजधानी इंदौर थी | इंदौर के होलकर वंश के संस्थापक मल्हारराव होल्कर थे । सन् 1766 में मल्हारराव की मृत्यु के बाद उनकी पुत्र वधू अहिल्याबाई ने कार्यभार संभाला, जिसकी राजधानी इंदौर थी।
  • एन्टियाल क्रीड्स का राजदूत हेलियोडोरस शुगवश के राजा भा 14वें वर्ष में उसके विदिशा स्थित दरबार में उपस्थित हुआ था।
  • हेलियोडोरस ने विदिशा में ही गरुड़ स्तंभ की स्थापना की थी।
  • सातवाहन नरेश अपीलक का ताँबे का सिक्का मध्यप्रदेश से प्राप्त जो यह स्पष्ट करता है कि इस काल में मध्यप्रदेश के  सातवाहन वंश ने शासन का संचालन किया था।
  • शक (क्षहरात) वंश के प्रथम शासक भ्रमक के सिक्के मध्यप्रदेश मालवा क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं, जिससे यह पता चलता है कि यह भी क्षहरात शासक भूमक के अधीन रहा होगा ।
  • गौतमीपुत्र शातकर्णी के पुत्र वशिष्ठ मुलुभावी के नासिक गुहालेख । उसके द्वारा विजित मध्यप्रदेश के अनूप (नर्मदा घाटी का क्षेत्र) आकार मालवा व अवन्ति (पश्चिम मालवा) की स्थिति देखने को मिलती है।
  • मौर्य सम्राट अशोक ने उज्जयिनी जाते हुए विदिशा के श्रेष्ठी की पत्री । देवी के साथ विवाह किया था । इसी से अशोक के पुत्र महेन्द्र तथा संघमित्रा का जन्म हुआ था।
  • कुषाण वंश का सर्वप्रथम महत्वपूर्ण राजा कुजुल कैडफिसेस था । उसकी मृत्यु के उपरांत विम कैडफिसेस उत्तराधिकारी हुआ, जिसका एक सिक्का मध्यप्रदेश के विदिशा जिले से प्राप्त हुआ |
  • विम कैडफिसेस का उत्तराधिकारी कनिष्क प्रथम था | कनिष्क प्रथम से 324 सिक्के कुषाण शासकों के सिक्कों की निधि से शहडोल से प्राप्त हुए हैं। पुराणों के विवरण से पता चलता है कि पद्मावती में नाग वंश का शासन था । पद्मावती की पहचान मध्यप्रदेश के ग्वालियर के समीप स्थित आधुनिक पद्म पवैया नामक स्थान से की जाती है।
  • मध्यप्रदेश के बघेलखण्ड मुख्यतः रीवा मण्डल में मध्यराज वंश का शासन था । इस वंश का प्रथम ज्ञात राजा काशिपीपुत्र है । भीमसेन के पुत्र कौतनीपुत्र पोठसिरि ने अपनी राजधानी बान्धौगढ़ को बनाया था ।
  • अनुश्रुति के अनुसार राजा नल ने नलपुर नगर बसाया था, जो आधुनिक शिवपुरी जिले में नरवर के रूप में विद्यमान है ।
  • हिन्द यूनानी शासकों का मध्यप्रदेश में निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन प्रदेश के बालाघाट जिले में हिन्द यूनानी शासक मिनेन्डर के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
  • मध्यप्रदेश के विदिशा तथा एरण से गुप्त शासक रामगुप्त के ताँबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिन पर गुप्त लिपि में रामगुप्त का नाम लिखा मिलता है। गरुड़ गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह था । यह बात गुप्तकाल के शिलालेखों व स्तंभ अभिलेखों के साथ ही एरण (सागर) के सिक्कों पर सिंह व गरुड़ का चित्र बने होने से स्पष्ट भी होती है।
  • गुप्तवंश के प्रतापी शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय के तीन अभिलेख पूर्वी मालवा क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं, जो भैंसला (विदिशा) के समीप उदयगिरि की पहाड़ी। से प्राप्त हुए हैं।
  • 510 ई. का प्रस्तर स्तंभ लेख, मध्यप्रदेश के सागर जिले के एरण से प्राप्त हुआ है, जो भानुप्रताप का है | इसमें भानुप्रताप को संसार का सर्वश्रेष्ठ वीर तथा महान् राजा बताया गया है ।
  • मालवा (मध्यप्रदेश) में नवीं सदी में एक नये राजवंश का उदय हुआ, जा परमार राजवंश के नाम से जाना गया । इस वंश की प्रारंभिक स्थापना उपेन्द्र ने की थी।
  • मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड पर चंदेल वंश के शासकों का शासन था । उनके समय इस क्षेत्र को जैजाक भुक्ति कहा जाता था । इसकी स्थापना लगभग 831 ई. में जंजुक नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी।
  •  राजाभोज एक उच्चकोटि के कवि तथा लेखक थे। उन्होंने सिद्धांत संग्रह, सरस्वती कंठाभरण, समरागणसूत्र धारा, तत्व प्रकाश, योगसूत्रवृति, विद्याविनोद आदि अनेक ग्रंथों की रचना की, इसीलिए उन्हें कविराज की उपाधि दी गई।
  • परमार राजाभोज की धारा नगरी (धार) पर चालुक्य नरेश सोमेश्वर द्वितीय ने आक्रमण किया था, जिसमें राजाभोज की हार हुई । यह जानकारी मँगाई लेख (1058) से प्राप्त होती है।
  • मध्यप्रदेश के जबलपुर के पास त्रिपुरी (तेवर) कलचुरी वंश की राजधानी रही है । कलचुरी वंश का संस्थापक कोकल्ल को माना जाता है।
  • राजाधंग चंदेल वंश के प्रतापी शासक थे । राजा मानसिंह तोमर वंश के थे।
  • ये ग्वालियर क्षेत्र के शासक थे । यशोवर्मन चंदेल वंश का पराक्रमी शासक था, कोकल्ल कलचुरी वंश का संस्थापक शासक था, जो त्रिपुरी (जबलपुर) में शासन करता था।
  • मध्यप्रदेश के चंदेल शासक धंग ने अपनी राजधानी कालिंजर से हटाकर खजुराहो (मध्यप्रदेश) को बनाया, जो अंत तक इस वंश की राजधानी बनी रही, जबकि परमारों ने धार, तोमरों ने ग्वालियर को व कलचुरियों ने त्रिपुरी (जबलपुर) को अपनी राजधानी बनाया।
  • खजुराहो के अधिकांश मंदिरों का निर्माण चंदेल शासक धंग के शासन काल में हुआ | धंग ने जिननाथ, विश्वनाथ, वैद्यनाथ आदि मंदिर बनवाये, जबकि यशोवर्मन ने खजुराहो के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर का निर्माण कराया।
  • सन् 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण हेतु मुल्तान के सूबेदार अईन-उल-मुल्क को भेजा, जिसने विजय हासिल की । यहीं से पहली बार मालवा का दिल्ली सल्तनत में प्रवेश हुआ।
  • मध्यप्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र की वीरांगना रानी दुर्गावती इस क्षेत्र की शासिका थी, जिसने अकबर के सिपाहसालार आसफ खाँ से युद्ध करते हुए प्राण न्यौछावर कर दिये थे।
  • अंग्रेजों के साथ मराठों ने चार युद्धों में क्रमशः इस प्रकार हराया- पहले में पेशवा को, दूसरे में होलकर को, तीसरे में सिंधिया को तथा चौथे में भौंसले को परास्त किया। होलकर ने अपना स्वतंत्र शासन इंदौर में स्थापित किया, जबकि ग्वालियर में सिंधिया का स्वतंत्र शासन था ।
  • मध्यप्रदेश की धरती पर अंग्रेजों के विरुद्ध दूसरी ज्वाला 1842 को भड़की, जिसे बुंदेला विद्रोह के रूप में जाना जाता है। 1857 के विद्रोह की आग मध्यप्रदेश में सर्व प्रथम नीमच छावनी में भड़की । वहाँ के सैनिकों ने 3 जून, 1857 को विद्रोह कर दिया । उसके बाद ग्वालियर, महाकौशल, शिवपुरी तथा महू में भी विद्रोह की आग भड़क उठी।
  • 1857 के विद्रोह में इंदौर की विद्रोही सेना का नेतृत्व सआदत खाँ ने किया। यह सेना 21 जुलाई को सआदत खाँ के नेतृत्व में ग्वालियर पहुंची। देशभक्त और महान् योद्धा तात्याटोपे के साथ मानसिंह ने विश्वासघात कर अंग्रेजों के हाथों उन्हें गिरफ्तार करवा दिया । इस प्रकार थोड़े से लालच में गद्दार मानसिंह ने 1857 के इस वीर सैनानी को पकड़वा दिया।
  • 1857 के क्रांतिवीर तात्याटोपे का 18 अप्रल, 1859 का शाम को एक बड़े जन समदाय के समक्ष मध्यप्रदेश के शिवपुरी में पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गई।
  • स्वातंत्र्य समर के प्रथम शहीद माने जाने वाले कुँवर चैनसिंह मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ के राजकुमार थे, जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर वीरता की नई इबारत लिखी थी।
  • 1824 में कुँवर चैनसिंह अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए सीहोर के दशहरा बाग के मैदान में शहीद हो गये थे, यहीं पर उनकी छत्री स्मारक के रूप में निर्मित की गई है।
  • 1824 के संग्राम में कुँवर चैनसिंह की ढाल बनकर लड़ने वाले दो अंगरक्षक शूरमा मुस्लिम थे, जिनके नाम हिम्मत खाँ व बहादुर खाँ थे। इनकी भी कब्र सीहोर के दशहरा बाग में स्थित है।
  • 1 जुलाई, 1857 को भड़के इंदौर (मालवा) विद्रोह के समय यहाँ का कर्नल ड्यूरेण्ड था, जिसने सैनिकों को, खजाना महू भेजने का आदेश दिया था, जिसे इंदौर की सैन्य टुकड़ियों ने मानने से इंकार कर दिया।
  • अमझेरा का राजा बख्तावर सिंह मालवा का पहला शासक था, जिसने कंपनी के शासन का अंत करने का बीड़ा उठाया था । 1857 के विद्रोह में बख्तावर सिंह ने बढ़-चढ़कर भाग लिया ।
  • 1857 के विद्रोह को मध्यप्रदेश के भोपाल में गढ़ी बाम्बापाली के जागीरदार के वंशज फाजिल मोहम्मद खाँ और आदिल मोहम्मद खाँ ने विद्रोह का झण्डा बुलंद किया।
  • मध्यप्रदेश के मण्डला जिले के स्वतंत्रता आंदोलन में वीर सेनानियों में रामगढ़ की रानी अवन्तिबाई का मुख्य योगदान रहा । रानी ने अंग्रेजों के साथ जमकर लोहा लिया और अंत में वीरगति को प्राप्त हुई।
  • नरसिंहपुर में 1842 के विद्रोह से लेकर 1857 के विद्रोह तक प्रमुख विद्रोही नेता मेहरबानसिंह था और वह अंग्रेजों से लोहा लेता रहा । 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की मध्यप्रदेश में शुरुआत ग्वालियर रियासत के विदिशा से हुई।
  • 2 अक्टूबर, 1942 को सत्याग्रहियों ने मण्डलेश्वर जेल के विशालकाय मुख्य द्वार को तोड़ डाला और चौराहे पर अंग्रेजों के विरुद्ध सभा की। मध्यप्रदेश की सिवनी जेल में सुभाष चंद्र बोस, शरद चंद्र बोस, आचार्य विनोबा भावे, पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र, एच.वी. कामथ जैसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को बंद किया गया था।
  • भील बहुल झाबुआ जिले में भी विदेशी वस्तु बहिष्कार जैसे आंदोलन चलाए गए। तिलक के नेतृत्व में 1891 में नागपुर में सम्पन्न अधिवेशन में मध्य प्रांत व मालवा में अनेक स्थानों पर गणेश उत्सव एवं शिवाजी उत्सव का आयोजन किया गया।
  • 1885 में गठित कांग्रेस समिति के मध्य भारत से बापूराव, दादा किनखेड़े, गंगाधर चिटनिस, गोपाल हरिभिण्डे और अब्दुल अजीज ने भाग लिया।
  • 1937 में भोपाल राज्य हिन्दू सभा के अधिवेशन में मास्टर लालसिंह, पण्डित उद्धव दास मेहता व डॉ. जमुना प्रसाद मुखरैया गिरफ्तार किए गए थे। सवालियर के सिंधिया व भोपाल के नवाब ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों का साथ दिया था।
  • भोपाल का जवाब हमीदुल्ला या दो बार चैम्बर  प्रिरोज (नरेन्द्र मण्डल) का अध्यक्ष बनाया गया।
  • सन् 1818 में मध्यप्रदेश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सर्वप्रथम महाकौशल में शुरू हुई। इसके बाद 1833 में रामगढ़ नरेश जुहार सिंह के पुत्र देवनाथ सिंह ने अंग्रेजों के विरु/ असफल विद्रोह किया। सन् 1842 में दुर्गम की संधि से नाराज होकर चन्द्रपुर के जवाहर सिंह बुदेला और परहुत के मधुकर शाह, मदनपुर के गढ़ मुखिया दिलान शाह एवं हीरापुर के हीरोन शाह ने अंग्रेजों के विरूद्र वगावत की।
  • 3 जून, 1857 को नीमच में पैदल तथा घुड़सवार टुकड़ियों ने रात्रि 9 बजे विद्रोह कर दिया एवं नीमच छावनी बंगलों में आग लगा दी। इसी बीच कर्नल सी.वी. सोबर्सने राजपूत सैनिकों के साथ उदयपुर में आकर नीमच के किले पर अधिकार कर लिया।
  • 14 जून, 1857 को ग्वालियर में ; 18 जून, 1857 को महाकौशल में : 20 जून, 1857 को शिवपुरी में ; 1 जुलाई, 1857 में यह विद्रोह होशंगाबाद और मण्डला तक पहुँच गया।
  • सन् 1857 की नरसिंहपुर तथा होशंगाबाद की घटनाएँ भी विद्रोहों के बहुत अनुकूल थीं । इसी तारतम्य में भोपाल के नवाब अली खाँ ने अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रमण कर दिया।
  • 22 मई, 1858 को रानी लक्ष्मीबाई एवं तात्याटोपे की संयुक्त सेनाओं ने कालपी में गरोज की अंग्रेजी सेना पर हमला बोल दिया, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गयी तथा 28 जून, 1858 को शहीद हो गई। राज्य में संगठित राजनीतिक आंदोलन 1885 में कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन के बाद शुरू हुआ।
  • कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन (कलकत्ता में 1886 में संपन्न) में मध्य भारत से बापूराव, दादा किनखड़े, चिटनिस, गोपाल हरि भिंडे और अब्दुल अजीज ने भाग लिया। 1891 ई. में कांग्रेस का सातती अधिवेशन मध्यप्रदेश के नागपुर में सम्पन्न हुआ। तिलक के प्रभाव से मध्य प्रान्त, मालवा आदि में गणेश उत्सव, शिवाजी उत्सव आदि के माध्यम से राष्ट्रीय भावना का प्रचार होने लगा।
  • खण्डवा से ‘सुवोधसिन्धु’ तथा जबलपुर से जबलपुर टाइम्स’ के प्रकाशन के साथ राष्ट्रवाद का प्रचार बढ़ने लगा।
  • 1899 में लाहौर में सम्पन्न कांग्रेस अधिवेशन में मध्यप्रदेश के डॉ. हरिसिंह गौर ने न्याय विभाग और शासन को पृथक करने की माँग के समर्थन में आवाज उठायी। 1923 में जबलपुर में ‘झण्डा सत्याग्रह’ आरंभ हुआ।
  • इसमें राष्ट्रीय ध्वज फहराने के मामले में पंडित सुन्दरलाल को छः मास के कारावास की सजा हुई।
  • 1930 में ‘नमक सत्याग्रह के समय सिवनी के श्री दुर्गाशंकर मेहता ने गाँधी चौक पर नमक बनाकर सेठ गोविंद दास व पण्डित द्वारकाप्रसाद मिश्र ने नमक सत्याग्रह का आरंभ किया रतलाम में राष्ट्रीय आन्दोलन का सूत्रपात स्वामी ज्ञानानन्द की प्रेरणा से आरंभ हुआ। 1942 में मण्डलेश्वर क्रांतिकारी बंदियों द्वारा विद्रोह किया गया ।
  • 1934 में झाबुआ में प्रजा मण्डल के निर्देशन में शराबबंदी, हरिजन उद्धार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार जैसे आंदोलन किये गये।
  • भोपाल में भोपाल राज्य हिन्दू सभा का गठन 1943 में किया गया।
  • राजा बख्तावर सिंह को अपने ही सहयोगियों के विश्वासघात केक 11 नवम्बर, 1857 को लालगढ़ किले के पास गिरफ्तार किया, लेकिन 10 फरवरी,1858 को फाँसी इन्दौर में दी गई।
  • 1930 में जब गाँधीजी ने दाण्डी मार्च पर नमक सत्याग्रह किया था. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दुर्गाशंकर मेहता के नेतृत्व में टुरिया जो सत्याग्रह चलाया । सिवनी के पास चंदन के बगीचों में घास का सत्याग्रह किया जा रहा था।
  • म.प्र. के बैतूल जिले का घोड़ाडोंगरी स्थान अपनी आदिवासी बहुलता के चलते विशिष्ट पहचान रखता है ।
  • यहाँ पर 1930 में जंगल सत्याग्रह हुआ।
  • यहाँ का प्रमुख आदिवासी प्रसिद्ध नेता गंजनसिंह कोरकू था ।
  • म.प्र. के छतरपुर रियासत में चरण पादुका में स्वतंत्रता सेनानियों की सभा पर बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दी गई इसमें कई स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गये थे । यह काण्ड म.प्र. के जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के नाम से जाना जाता है।
  • राजनीतिक रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए 19071 में जवलपुर में क्रांतिकारी दल का गठन किया गया ।
  • 14 जनवरी,1931 को मकर संक्रांति के दिन चरण पादुका में हो रही स्वतंत्रता सेनानियों की सभा पर गोलियाँ चलाने का आदेश (हुक्म) नौगाँव स्थित अंग्रेज पॉलिटिकल एजेन्ट फिशर ने दिया ।
  • 1931 को दिल्ली से मुम्बई जा रही पंजाब मेल में खण्डवा से वीर  यशवंतसिंह, देवनारायण तिवारी तथा दलपत राव ने ट्रेन में सवार अंग्रेज अफसर हैक्सर मेजर शाहन और उसके पालतू कुत्ते को मार डाला।
  • पंजाब मेल के हत्याकाण्ड के क्रांतिकारी वीर यशवंतसिंह, देवनारायण व दलपत को गिरफ्तार कर 10 अगस्त,1931 को खण्डवा की अदालत में तीनों पर मुकदमा चलाया गया, लेकिन 11 दिसम्बर, 1931 को यशवंतसिंह व देवनारायण को जबलपुर जेल में फाँसी दी गई।
  • 15 अगस्त, 1942 को मण्डला में एक बड़ा जूलूस व सभा आयोजित की गई, जिसकी बागडौर मैट्रिक का 19 वर्षीय छात्र उदयचंद्र संभाल रहा था, जिस पर पुलिस ने बर्बरता से गोली चलाई और वीर उदयचन्द्र शहीद हो गया।
  • 1942 की 12 अगस्त को बैतूल में पट्टन बाजार में आंदोलनकारी भीड़ ने पुलिस की वर्दी उतारकर उन्हें खादी के वस्त्र धारण करवा दिए । इस आंदोलन का मुख्य नेता महादेव तेली था, जो शहीद हो गया ।
  • 6 सितम्बर, 1942 को इंदौर के सराफा में सत्याग्रह के दौरान पुलिस ने  लाठी चार्ज किया, उसके बाद गोलियाँ चलायी, इसमें मगनलाल ओसवाल को गोली लगी थी।
  • रीवा राज्य के कृपालपुर ग्राम में लाल पद्मधर सिंह बघेल की शहादत 13  अगस्त, 1943 को जूलूस पर गोलियाँ चलाने से इलाहाबाद में हुई । रीवा के शेर कहे जाने वाले पद्मधरसिंह राष्ट्रीय झण्डा लिए पुलिस के सामने सीना तानकर खड़े हो गये थे।
  • म.प्र. में 1923 को राष्ट्रीय ध्वज की सम्प्रभुता व अस्मिता को लेकर जबलपुर में झण्डा सत्याग्रह हुआ और जबलपुर नगर पालिका भवन पर झण्डा  फहराया।
  • 1923 में जबलपुर में आरंभ हुए, ‘झण्डा सत्याग्रह’ का निर्देशन सर्व श्री देवदास गाँधी, रामगोपालाचार्य तथा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर में झण्डा सत्याग्रह का नेतृत्व भगवानदीन एवं पूरनचंद ने किया।
  • अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा नामक ग्राम में 23 जुलाई, 1906 को हआ था।
  • म.प्र. में पैदा हुए अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद को गिरफ्तार कर 15 बेंतों की सजा के बाद अदालत में पेश करने पर उन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वाधीन तथा अपना घर जेलखाना बताया।
  • जशेखर आजाद ने 1925 से 1927 तक झाँसी और ओरछा के बीच ग्राम सारा के नजदीक सतार नदी के किनारे पं. हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया।
  • 27 फरवरी, 1931 को चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे । यहीं पर उनकी पुलिस से मुठभेड़ हुई और जब एक गोली बची तो भारत माता का यह सिंह सपूत खुद को गोली मारकर शहीद हो गया। म.प्र. के बड़वानी जिले में आने वाले सेंधवा में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व भीमा नायक ने किया । क्रांतिकारी भीमा नायक ने मण्डलेश्वर तथा बड़वानी क्षेत्र का भी नेतृत्व किया।

मध्य प्रदेश के प्राचीन जनपद

 प्राचीनजनपद                                               वर्तमान क्षेत्र

अवन्ति                                                             उज्जैन

वत्स                                                                 ग्वालियर

दर्शाण                                                             विदिशा

अनूप                                                              निमाड़ (खण्डवा)

चेदि                                                                खजुराहो

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