म.प्र. में राज्यव्यवस्था
- देश के अनरूप म.प्र. में भी संसदीय शासन प्रणाली को अपनाते हुए शासन संचालन किया जाता है।
- म.प्र की विधायिका एक सदनात्मक है अर्थात् यहाँ पर केवल विधान राज्य विधान परिषद् नहीं है | हालाँकि “विधान परिषद” की का प्रस्ताव विधानसभा ने पारित अवश्य किया था, लेकिन उसे क़भी में नहीं भेजा गया इसलिए राज्य में विधान परिषद् का गठन नहीं हो सका।
- राज्य का यह एक सदनात्मक विधानमण्डल राज्यपाल एवं विधानसभा से मलकर बना है। इस प्रकार राज्यपाल, राज्य विधायिका का अभिन्न अंग है।
- म.प्र की विधानसभा में वर्तमान में 230 निर्वाचित विधानसभा सदस्य नया एक सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित एंग्लो इंडियन समुदाय से होता है। इस प्रकार प्रदेश में कुल विधानसभा के लिए स्थान 231 (230+1) है। विभाजन से पहले 320 सीटें थी, जिसमें से 90 सीटें छत्तीसगढ़ में चली गयी।
- वर्ष 2000 में राज्य से छत्तीसगढ़ अलग हो जाने के बाद राज्य में 29 लोकसभा सीटें तथा 11 राज्य सभा सीटें रह गयी है ।
- 230 विधान सभा सीटों में 47 सीटे अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित है तथा 35 सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है।
- प्रदेश के 5 जिले अलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी, डिंडोरी तथा अनूपपुर की संपूर्ण विधानसभा सीटें ST कोटे के लिए रिजर्व है ।
- प्रदेश के मुरैना, दतिया तथा उज्जैन जिले में सर्वाधिक दो-दो विधानसभा सीटे SC कोटे के लिए रिजर्व है।
- म.प्र. की 29 लोकसभा सीटों में से 6 सीटे यथा शहडोल, मण्डला, बैतुल, धार, रतलाम-झाबुआ तथा खरगोन ST कोर्ट के लिए रिजर्व हैं, जबकि 4 सीटें यथा उज्जैन, भिण्ड, टीकमगढ़ तथा देवास-शाजापुर लोकसभा सीट SC कोटे के लिए रिजर्व है।
- राज्य का पुराना विधानसभा भवन “मिन्टोहाल” है, जहाँ 1 नवंबर, 1956 से अगस्त 1996 तक राज्य विधानसभा का कार्य संचालित होता रहा है।
- दरअसल राज्य के पुनर्गठन के पहले सितंबर 1956 में नयी एकीकृत विधानसभा के लिए भोपाल की एक सुंदर इमारत ‘मिन्टोहॉल’ को चुना गया ।
- वास्तव में 12 नवंबर, 1909 को गर्वनर जनरल लार्ड मिन्टो अपनी पत्नी के साथ जब भोपाल आए तो उन्हें ठहराने के लिए इस इमारत का नामकरण हा “मिन्टो हॉल” कर दिया गया जो अगले 40 वर्षों तक राज्य विधानसभा भवन के रूप में कार्यरत रहा।
- राज्य के नए विधान सभा भवन का नाम “इंदिरा गाँधी विधान भवन” है, सक वास्तुकार प्रसिद्ध वास्तुविद् चार्ल्स कोरिया है |
- नये भवन का शिलान्यास 14 मार्च, 1981 को हुआ तथा 17 सिंतबर, 1984 को निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और इस नव निर्मित भवन का उद्घाटन 3 अगस्त, 1996 को तात्कालिन राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के द्वारा किया गया।
म.प्र. के गठन के पूर्व प्रचलित विधानसभा
- राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद नये म.प्र. का गठन 1 नवंबर, 1956 को हुआ, लेकिन म.प्र. के इस नवीन स्वरूप में आने से पहले चार विधान सभाएँ कार्यरत् थी। “
- 15 अगस्त, 1947 के पूर्व देश में कई छोटी बड़ी रियासतें एवं राज्य अस्तित्व में थे । स्वाधीनता पश्चात् उन्हें स्वतंत्र भारत में विलीन और एकीकृत किया गया।
- 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिसके कारण संसद एवं विधान मंडल कार्यशील हुए।
- 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के फलस्वरूप 1 नवंबर, 1956 को नया राज्य मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया । इसके घटक चार राज्य थे, जिनकी अपनी विधानसभाएँ थी।
- पुनर्गठन के बाद सभी चारों विधानसभाएँ एक विधानसभा में समाहित हो गई।
विन्ध्य प्रदेश विधान सभा
- 4 अप्रैल, 1948 को विन्ध्य प्रदेश की स्थापना हुई । इसके राजप्रमुख मार्तण्ड सिंह हुए।
- सन् 1950 में यह राज्य’स’ श्रेणी में कर दिया गया |
- 1952 के आम चुनाव में यहां की विधानसभा के लिए 60 सदस्य चुनें गये, जिसके अध्यक्ष शिवानन्द थे।
- 1 मार्च, 1952 से यह राज्य उप राज्यपाल का प्रदेश बना दिया गया।
- पं. शंभूनाथ शुक्ल मुख्यमंत्री बने ।
- विन्ध्य विधान सभा की पहली बैठक 21 अप्रैल, 1952 को हुई।
मध्यभारत (ग्वालियर)
- मध्यभारत इकाई की स्थापना ग्वालियर, इंदौर और मालवा रियासतों को मिलाकर मई, 1948 में की गई थी।
- ग्वालियर के तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया को आजीवन राज प्रमुख एवं लीलाधर जोशी को प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया |
- 75 सदस्यीय विधानसभा में 40 प्रतिनिधि ग्वालियर, 20 इंदौर और शेष 15 अन्य छोटी रियासतों से चुने गए यह विधानसभा 31 अक्टूबर, 1956 तक कायम रही।
भोपाल विधानसभा
- प्रथम आम चुनाव के पूर्व तक भोपाल राज्य केन्द्र शासन के अंतर्गत मध्य आयुक्त द्वारा शासित होता रहा।
- इसे तीस सदस्यीय विधानसभा के साथ ‘स’ श्रेणी के राज्य का दर्जा प्रदान किया गया था।
- प्रथम आम चुनाव के बाद विधिवत् विधानसभा का गठन हुआ ।
- भोपाल विधानसभा का कार्यकाल मार्च 1952 से अक्टूबर, 1956 तक लगभग साढ़े चार साल रहा।
- भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा थे ।
सेंट्रल प्राविन्सेस एण्ड बरार
- पूर्व में वर्तमान महाकौशल, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बरार क्षेत्र को मिलाकर सेंट्रल प्राविन्सेस एण्ड बरार नामक राज्य अस्तित्व में था।
- राज्य पुनर्गठन के बाद महाकौशल और छत्तीसगढ़ का क्षेत्र यानी पूर्व मध्यप्रदेश (जिसे सेंट्रल प्राविन्सेस कहा जाता था ।) वर्तमान मध्यप्रदेश का भाग बना।
- इसके बाद उस क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों को भी वर्तमान मध्यप्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में शामिल किया गया ।