मध्यप्रदेश सिंचाई नदी परियोजना
मध्यप्रदेश सिंचाई नदी परियोजना
महत्वपूर्ण तथ्य
- ग्वालियर राज्य के तत्कालीन महाराजा ने सन् 1905 में सिंचाई विभाग की स्थापना की थी।
- म.प्र. की पहली नहर 1923 में बालाघाट जिले में बैनगंगा नहर बनाई गई थी।
- म.प्र. के रायसेन जिले के भोजपुर में बेतवा नदी पर 1010-1053 ईस्वीं में परमार राजा भोज द्वारा बनवाया गया विशाल साइक्लोपियन बांध को प्रदेश का सबसे पुराना बाँध माना जाता है।
- 1927 में मुरैना जिले के जौरा शहर के पास पगारा गाँव में आसन नदी पर बना ‘पगारा बाँध’ को प्रदेश की सिंचाई परियोजनाओं का प्रथम वृहद उदाहरण के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- म.प्र. के बालाघाट जिले की बैनगंगा नदी पर वर्ष 1911 में धती बांध का निर्माण ब्रिटिश सिविल इंजीनियर सर जार्ज मोस हैरियट की देखरेख में हुआ था।
- प्रदेश के रायसेन जिले में वर्ष 1933 में बना पलकमती सिंचाई टैंक प्रदेश का पहला सिंचाई टैंक माना जाता है, जबकि दूसरा टैंक 1936 में बालाघाट के मुरुम नाला में बनाया गया था ।
- म.प्र. जल संसाधन विभाग की स्थापना वर्ष 1956 में की गई ।
- वर्ष 1953-54 में निर्मित चम्बलघाटी परियोजना प्रदेश की पहली नदी घाटी परियोजना है।
- सिंचाई अनुसंधान संचालनालय का गठन वर्ष 1964 में किया गया ।
- म.प्र. में जल मौसम विज्ञान संचालनालय की स्थापना वर्ष 1981 में की गयी थी।
- म.प्र. में सर्वाधिक सिंचाई कुओं व नलकूपों से होती है । प्रदेश का मंदसौर जिला कुओं द्वारा सर्वाधिक सिंचाई करने वाला जिला है |
- चोरल परियोजना प्रदेश की पहली अंतर्घाटी परियोजना है।
- मध्यप्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार राज्य की 10 प्रमुख नदियों में वार्षिक औसतन 81500 मिलियन घन मीटर सतही जल उपलब्ध है, जिसमें से लगभग 56800 मिलियन घन मीटर जल का उपयोग किया जा सकता है, जो कुल उपलब्ध जल क्षेत्र का 69.7% है।
- मध्यप्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार वर्ष 2016-17 में शुद्ध सिंचित क्षेत्र 98.76 लाख हेक्टर था जो बढ़कर 2017-18 में 105.66 लाख हेक्टर हो गया । इस प्रकार गत वर्ष की तुलना में 6.99 प्रतिशत की वृद्धि रही।
- वर्ष 2017-18 में शुद्ध सिंचित क्षेत्र में सर्वाधिक सिंचाई का प्रतिशत 67.34 प्रतिशत कुएँ एवं नलकूप से है, उसके बाद नहरों/तालाबों से सिचाई का प्रतिशत 20.24 प्रतिशत तथा अन्य स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत 12.42 रहा।
- वर्ष 2017-18 में अद्यतन लगभग 24.73 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का उपयोग किया गया । वर्ष 2018-19 में माह दिसम्बर, 2018 तक 29.22 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का उपयोग किया गया ।
- समस्त फसलों का सिंचित क्षेत्र वर्ष 2016-17 में 106.71 लाख हेक्टेयर रहा एवं वर्ष 2017-18 में 113.94 लाख हेक्टेयर रहा ।
- प्रदेश में भूगर्भीय जल की मात्रा 34159 मिलियन घनमीटर है।
- प्रदेश के समस्त शासकीय स्रोतों से वर्ष 2025 तक सिंचाई क्षमता बढ़ाकर 60 लाख हैक्टेयर किया जाना है।
- मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 5 सितम्बर, 2018 को खरगोन जिले के भीकनगांव में 745 करोड़ रूपये लागत की बिंजलवाड़ा उद्वहन सिंचाई योजना का भूमि-पूजन किया। उन्होंने कहा कि यह निमाड़ क्षेत्र की पहली योजना है, जिसमें किसी भी किसान की भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा।
- बिंजलवाड़ा उद्वहन सिंचाई योजना से 129 गांव की 50 हजार 164 हेक्टेयर कृषि भूमि को उद्वहन सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी। योजना में सम्पूर्ण जल वितरण पाईप प्रणाली से किया जाएगा। किसान को प्रत्येक 2.50 हेक्टेयर चक तक पाईप द्वारा 20 मीटर दाब युक्त पानी मिलेगा। इससे किसान आधुनिक कृषि की नवीन तकनीकों फव्वारा और ड्रिप पद्धति से सिंचाई कर सकेंगे।
- मध्यप्रदेश में उपलब्ध जल संसाधनों के समुचित एवं समन्वित विकास के लिए 1956 में जल संसाधन विभाग की स्थापना की गई।
- स्वतंत्रता पूर्व ग्वालियर राज्य उत्कृष्ट एवं विकसित सिंचाई प्रणालियों के लिए जाना जाता था।
- 1905 में ग्वालियर राज्य के तत्कालीन महाराजा ने राज्य में सिंचाई विभाग की स्थापना की थी।
- अपर्याप्त वर्षा अथवा अवर्षा की स्थिति में कृत्रिम रूप से फसलों को पानी देना सिंचाई कहलाता है।
- मध्यप्रदेश में सिंचाई के प्रमुख साधन कुएँ हैं इसके बाद नहरें तथा तृतीय स्थान पर तालाब आते हैं।
- प्रदेश की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है।
- प्रदेश के औसत से अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में मुरैना, ग्वालियर, दतिया, भिण्ड, शिवपुरी, टीकमगढ़ व छतरपुर मुख्य है |
- प्रदेश के बालाघाट, होशंगाबाद, उज्जैन, इंदौर, धार और खरगोन जिलों में भी औसत से अधिक सिंचाई होती है ।
- प्रदेश का डिण्डोरी जिला न्यूनतम सिंचाई वाला जिला है ।
- केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार प्रदेश में उपलब्ध सतह जल से 102 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता अर्जित की जा सकती है।
- वर्तमान में मध्यप्रदेश का लगभग 37% क्षेत्र सिंचित है।
- कुँओं द्वारा प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र सिंचित (सर्वाधिक) होता है।
- मध्यप्रदेश में सिंचाई उद्वहन निगम की स्थापना 1976 में की गई।
- प्रदेश के बालाघाट व सिवनी जिलों में तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है।
- प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर, दतिया, टीकमगढ़ तथा होशंगाबाद क्षेत्र में नहरों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है।
- शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में मध्यप्रदेश का सातवाँ स्थान है।
- मध्यप्रदेश में जल संसाधनों की जानकारी अब इन्टरनेट पर उपलब्ध है।
- नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण का गठन 1980 में किया गया ।
- उर्मिल परियोजना उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश की संयुक्त परियोजना है।
- बारना परियोजना रायसेन जिले में बाड़ी नगर के समीप राष्ट्रीय राजमार्ग पर बारना नदी पर स्थित है।
- सुक्ता परियोजना खण्डवा जिले में खण्डवा से 40 किमी. दूर सुक्ता नदी पर स्थित है । इससे 18583 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होगी।
- मध्यप्रदेश के गोदावरी कछार में बैनगंगा नदी पर निर्माणाधीन अपर बैनगंगा परियोजना को संजय सरोवर योजना भी कहा जाता है ।
- बाणसागर परियोजना के जल वितरण में मध्यप्रदेश का हिस्सा 2,46,689 हेक्टेयर मीटर का है।
- मध्यप्रदेश की केन-बेतवा लिंक परियोजना से प्रदेश की 4.90 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई हो सकेगी।
- केन-बेतवा लिंक परियोजना मध्यप्रदेश के पन्ना राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरेगी, जिसे पर्यावरणीय क्रांति के रूप में देखा जा रहा है |
- थॉवर परियोजना मण्डला जिले के झुलपुर गाँव के निकट थॉवर नदी पर स्थित है। इसका निर्माण कार्य 1977 में प्रारंभ हुआ था।
- माही परियोजना धार में माही नदी पर निर्मित है । जिस पर दो बाँध तथा दो नहरें निर्मित की जानी हैं।
- इंदौर की महू तहसील में निर्मित की जा रही चोरल नदी परियोजना प्रदेश की पहली अंतरघाटी परियोजना है।
- 5 अक्टूबर, 2006 को लोकार्पित की गई मध्यप्रदेश की मान परियोजना धार जिले से 55 किमी. दूर ‘जीराबाद’ के पास मान नदी पर निर्मित की गई है।
मध्यप्रदेश के प्रमुख साधनों द्वारा शुद्ध सिंचित क्षेत्र प्रतिशत में (2016-17)
साधन सिंचित क्षेत्र (% में)
कुएँ / नलकूप 67.34%
नहरों/तालाबों द्वारा 20.24%
अन्य साधनों द्वारा 12.42%