मध्यप्रदेश सांस्कृतिक परिद्रश्य

मध्यप्रदेश का साहित्य

प्राचीन साहित्य

  • संस्कृत के महाकवि कालिदास म.प्र. के ही नहीं, बल्कि देश के संस्कृत सिरमौर कवि हैं, उन्हें भारत का शेक्सपीयर कहा जाता है।
  • कालिदास उज्जैन नरेश विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से एक थे।
  • कालिदास द्वारा रचित कुमारसंभव संस्कृत का महाकाव्य है, जिसमें मात-पार्वती के विवाह एवं कुमार कार्तिकेयन के जन्म के साथ ही तारकासुर वध की कथा का भी वर्णन किया गया है।
  • कालिदास का ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ नाटक है । इसमें हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत एवं महर्षि कण्व की कन्या शकुन्तला की प्रेम कहानी के अत्यन्त उदात्त स्वरूप का वर्णन किया गया है।
  • म.प्र. के भर्तृहरि शतक काव्य के अग्रदूत रहे हैं । ‘शतकाय उनकी प्रसिद्ध रचना है। उन्होंने नीति-शतक, शृंगार-शतक तथा वैराग्य- शतक नामक प्रमुख रचनाएँ लिखी हैं।
  • म.प्र. के साहित्यकार भर्तृहरि की साधनास्थली उत्तर प्रदेश का चूनार नामक स्थान है तथा राजस्थान का सरिका क्षेत्र उनकी समाधि स्थली है।

मध्यकालीन साहित्य

  • केशवदास इन्द्रजीत के दरबार में एक वैश्या राम प्रवीण पर आशक्त हो गए थे। इन्होंने राम प्रवीण की प्रेरणा से ही रसिक प्रिया नामक ग्रन्थ लिखा।
  • म.प्र. की हिन्दी भाषा में लिखने वाले प्रमुख बाल साहित्य के रूप में जहूरबख्श का नाम उल्लेखित है।
  • महाकवि पद्माकर अनेक शासकों के यहाँ रहे, जिनमें जैनपुरा व सुगरा के शासक, दतिया नरेश के अलावा जयपुर के प्रतापसिंह व जगत सिंह व ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया के यहाँ रहे |
  • ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया के दरबार में रहते हुए महाकवि पद्माकर ने ‘अलीजाह प्रकाश’ ग्रन्थ की रचना की, जबकि प्रतापसिंह व जगतसिंह के यहाँ प्रतापसिंह विरुदावली व जगत विनोद नामक ग्रंथों की रचना की।
  • कवि श्रेष्ठ भूषण ने प्रख्यात ग्रन्थ ‘छत्रसाल दशक’ की रचना की । छत्रसाल दशक में वीर छत्रसाल के पराक्रम, वीरता, युद्ध कौशल आदि की यशोगाथा है।
  • कवि भूषण का जन्म 1630 में हुआ था । इनके पिता का नाम पंडित रत्नाकर त्रिपाठी था, इनका उपनाम ‘जटाशंकर’ था।
  • म.प्र. के साहित्यकार बाणभटट ने ‘हर्षचरित’ नामक ग्रंथ लिखा है। इस ग्रंथ में हर्ष की जीवन-गाथा का यशस्वी उल्लेख किया गया है | बाणभटट की कादम्बरी, चण्डी शतक, पार्वती परिणय भी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
  • महाकवि भवभूति संस्कृत नाटक के उत्कृष्ट नाटककार हैं । उन्होंने तीन नाटक लिखे हैं – महावीर चरित्र, मालती माधव और उत्तर रामचरित।
  • सन् 1612 में म.प्र. के ओरछा में जन्में ‘आचार्य केशवदास’ को रीति काव्य का प्रवर्तक माना जाता है । इनकी मुख्य रचनाएँ रतन बावनी वीरसिंह चरित्र, रसिक प्रिया, कवि प्रिया, जसचंद्रिका, विज्ञान गीता आदि हैं।
  • लोक कवि जगनिक विख्यात ‘आल्हाखण्ड’ की रचना कर अमर हो गए।
  • आल्हाखण्ड का संबंध महोबा के राजवंश से है । इसमें दो प्रसिद्ध वीरों आल्हा और ऊदल का चरित्र वर्णित है ।
  • पहली बार 1865 में फर्रुखाबाद के बन्दोबस्त अधिकारी चार्ल्स इलियट के आल्हाखण्ड की 23 खण्डों की एक पाण्डुलिपी तैयार करवायी, जबकि बिजन्ट स्मिथ ने बुन्देलखण्ड में इस काव्य का संग्रह किया था ।
  • लोक कवि ईसुरी बुन्देलखण्ड के गौरव को बढ़ाने वाले कवि हैं। ईसुरी द्वारा रचित फागों ने बुन्देली लोक साहित्य को समृद्धता प्रदान की है। म.प्र. के लोक कवि घाघ मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे । घाघ को चौधरी की उपाधि भी सम्राट अकबर द्वारा ही प्रदान की गई थी।
  • घाघ ने अपनी कहावतों से यह सिद्ध कर दिया कि वे एक महान कृषि पण्डित थे । उन्होंने भूमि की उर्वरा शक्ति, फसलों के बोने, बीज़ों के मध्य की दूरी आदि का तार्किक ज्ञान कराया।
  • सिंगाजी म.प्र. के निमाड़ अंचल के सन्त कवि थे । उनका जन्म संवत् 1574 में बड़वानी स्टेट में एक छोटे से ग्राम खजूरी में हुआ, वे जाति के गवली थे। संत सिंगाजी कबीर के समकालीन माने जाते हैं ।
  • संत सिंगाजी ने कबीर की तरह ‘साखियाँ’ लिखी हैं । सिंगाजी की रचनाओं को कबीर के दर्शन की नई अभिव्यक्ति कहा जा सकता है।

आधुनिक साहित्य

  • मध्य प्रदेश में जन्में कवि माखनलाल चतुर्वेदी (1889-1968) का काव्य अखण्ड देशप्रेम और पुरुषार्थ से भरा है वे राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हुए हैं । उनके योगदान के लिए उन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से  पुकारा जाता है। मध्य प्रदेश के सीधी जिले में मोहारा गाँव में चाँदी देवी का मेला लगता है। तक्षकेश्वर का मेला मंदसौर में, शहीद मेला सनावद में तथा राई मेला गुना  में लगता है । नवग्रह मेला खरगोन, कालका मंदिर मेला धार, सिद्धेश्वर मेला शिवपुरी, चामुण्डा माता का मेला देवास में लगता है।
  • पण्डित माखनलाल चतुर्वेदी ने 1912 में अध्यापन कार्य छोड़कर ‘प्रभा’ नामक पत्रिका का प्रकाशन, संचालन एवं सम्पादन का कार्य किया । इसके अतिरिक्त कर्मवीर’ समाचार-पत्र में सम्पादक भी रहे । पण्डित माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को म.प्र. के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में हुआ था । इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई।
  • हिन्दी साहित्य जगत की महान पुत्री सुभद्राकुमारी चौहान की रचनाओं में से एक बिखरे मोती’ है । अन्य रचनाओं में त्रिधारा, मुकुल, उन्मादिनी, सभा के खेल, सीधे-सीधे चित्र आदि हैं।
  • बालकृष्ण शर्मा नवीन ने महात्मा गाँधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, जेल गए और स्वतंत्रता के पश्चात् उन्हें संविधान निर्मात्री परिषद् का सदस्य भी बनाया गया तथा सांसद भी रहे ।
  • बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का जन्म ग्वालियर राज्य के शाजापुर के भयाना नामक ग्राम में 8 दिसम्बर, 1898 को हुआ था, जबकि 1917 में गजानंद माधव मुक्तिबोध का जन्म हुआ था।
  • भवानी प्रसाद मिश्र की आठ कविता संग्रह प्रकाशित हुई हैं, लेकिन इनमें से ‘गीत फरोश’ कविता के कारण भवानी प्रसाद मिश्र को विशेष ख्याति मिली
  • म.प्र. के होशंगाबाद जिले के जमानी ग्राम में जन्में हरिशंकर परसाई का मुख्य योगदान व्यंग्य के क्षेत्र में रहा है। इन्होंने सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग्य किया है।
  • हरिशंकर परसाई ने जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन किया था, जबकि ‘कल्पना’ मासिक पत्रिका भवानी प्रसाद मिश्र ने तथा ‘प्रभा’ का सम्पादन माखनलाल चतुर्वेदी ने किया ।
  • हँसते हैं, रोते हैं, हरिशंकर परसाई’ की रचना है।
  • गजानन माधव मुक्तिबोध- चाँद का मुँह टेढ़ा, एक साहित्यिक डायरी, चम्बल की छाती।
  • बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’- प्राणार्पण, कुमकुम,अपलक, उर्मिला, रश्मि रेखा।
  • शरद जोशी-रहा किनारे बैठ, किसी बहाने, परिक्रमा, तिलिस्म।
  • हरिशंकर परसाई- हँसते हैं, रोते हैं, भूत के पाँव पीछे, तट की खोज आदि।
  • उर्दू साहित्यकारों में मुल्ला रमूजी ने हास्य और व्यंग्य की विधाओं में बहुत नाम कमाया । इन्हें गुलाबी उर्दू का ख्यातनाम रचनाकार माना जाता है।
  • ‘झाँसी की रानी’ नामक प्रसिद्ध कविता की रचनाकार सुभद्राकुमारी चौहान ऐसी कवयित्री हैं, जिन्हें सेक्सरिया पुरस्कार से दो बार सम्मानित किया गया है।
  • म.प्र. में व्यंग्य विधा में मुख्य योगदान देने वाले व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म सन् 1931 में म.प्र. के उज्जैन नगर में हुआ था। उनकी रचनाएँ पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

संगीत

  • म.प्र. के सरोद वादक उस्ताद अलाउद्दीन खान प्रसिद्ध संगीतकार हैं। उन्होंने मैहर में ‘मैहर बैंड’ की स्थापना की । मैहर को संगीत की नगरी बनाने में बाबा अलाउद्दीन खान का विशेष योगदान है।
  • तानसेन अकबर के नवरत्नों में से एक थे । उनका वास्तविक नाम रामतनु पाण्डे था, जबकि मोहम्मद गौस ने तानसेन का नाम मोहम्मद अता अली खाँ रखा था।
  • उस्ताद आमिर खाँ ने प्रसिद्ध फिल्म ‘बैजू बावरा’ के अतिरिक्त ‘झनकझनक पायल बाजे’, ‘गूंज उठी शहनाई में भी अपना संगीत दिया है। कुमार गंधर्व का जन्म 1924 में वेलगाँव में हुआ था । इनका वास्तविक नाम शिवपुत्र’ था । एक मठ में संन्यासी ने इन्हें कुमार गंधर्व’ की उपाधि दी।
  • कुमार गंधर्व ने शास्त्रीय संगीत में अनोखा प्रयोग किया है । इनका बहुचर्चित राग ‘गाँधी राग’ है, जबकि इनकी पुस्तक का नाम ‘अनूप राग’ है । गाँधी को शांतिपूर्ण सूरों में बजाया जाता है ।
  • संगीत सम्राट तानसेन संगीत के सातों सूरों में प्रवीण थे । कहा जाता है कि एक षड्यंत्र के तहत उनसे ‘दीपक राग’ गवाया गया , जिससे उनका शरीर जल गया और इसी से उनकी मृत्यु मानी जाती है, हालाँकि मृत्यु बाद में हुई थी।
  • म.प्र. के हिन्दी भाषा में पहला व पूर्ण एवं मान्य व्याकरण रचने वाले विद्वान कामता प्रसाद गुरू को माना जाता है ।
  • आमीर खाँ का जन्म 1913 में इन्दौर में संगीत सम्पन्न परिवार में हुआ। उस्ताद आमीर खाँ को इन्दौर घराने की शैली का प्रवर्तक माना जाता है ।

लोक जीवन

  • मध्य प्रदेश में ब्रज भाषा का मुख्य क्षेत्र उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश है। इस में मुख्यतः मुरैना व ग्वालियर ब्रजभाषी जिले हैं।
  • मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, उमरिया, सीधी, शहडोल जिले बघेलखण्डी भाषा बोली जाती है, जबकि बालाघाट जिला बुन्देलखा। भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।
  • मध्य प्रदेश की कोरकू जनजाति बहुल जिले बैतूल, होशंगाबाद कि व खरगोन में मुख्यतः ‘कोरकू बोली’ बोली जाती है।
  • मध्य प्रदेश के गुना जिले में चंदेरी नामक स्थान पर प्रतिवर्ष चैत्रमाला लगने वाला मेला चंदेरी के मेले के नाम से प्रसिद्ध है | यहाँ पर काले के साथ अन्य कई वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है।
  • सिंहस्थ मेला या कुम्भ का मेला भारत में चार स्थानों पर आयोजित होगा है । जिनमें से मध्य प्रदेश का उज्जैन एक है, जहाँ सिंहस्थ मेले का आयोजन होता है । यह प्रति 12 वर्ष बाद आयोजित होता है।
  • मध्य प्रदेश के रीवा जिले में प्रतिवर्ष बसंत पंचमी को महामृत्युंजय का मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में आराधना करने से वर्षा होती है। मध्यप्रदेश के गुना जिले के सनावद गाँव में प्रतिवर्ष सत्यवादी तेजाजी की याद में तेजाजी का मेला लगता है |
  • जल बिहारी का मेला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में प्रतिवर्ष अक्टूबर माह में आयोजित किया जाता है । यह दस दिवसीय मेला है।
  • मध्य प्रदेश के पश्चिम निमाड़ (खरगोन) के पिपल्याखुर्द में महान संत सिंगाजी तथा उनके भतीजे कालूजी महाराज के दो प्रसिद्ध मेलों का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है, लेकिन इंदिरा सागर बाँध में ये डूब क्षेत्र में आ गये। इसलिए अब नहीं लगते।
  • मान्धाता का मेला पूर्वी निमाड़ (खण्डवा) जिले के मान्धाता नामक पवित्र स्थान पर लगता है, जबकि पचमढ़ी में शिवरात्रि का मेला आयोजित होता है।
  • मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के अवन्तिपुर गरोड़िया नामक स्थान पर बाबा गरीबनाथ का मेला लगता है । बाबा गरीबनाथ, नाथ समुदाय के अनुयायी थे।
  • बाबा शाहबुद्दीन ओलिया की दरगाह पर आयोजित किया जाने वाला बाबा शाहबुद्दीन ओलिया का उर्स नीमच जिले में होता है । ग्वालियर में ‘रामलीला मेला’, शिवपुरी में पीर बुधान का मेला लगता है।
  • मध्य प्रदेश के उज्जैन संभाग में सर्वाधिक मेले आयोजित किये जात यहाँ लगभग 227 मेले आयोजित होते हैं।
  • मध्य प्रदेश उत्सव देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित किया जाता है। देश के सांस्कृतिक विकास तथा लोक परम्पराओं की झांकी प्रदर्शित की जाती है।
  • कालिदास की स्मृति को अमर बनाने के लिए कालिदास अकादमी द्वारा जालिदास समारोह का आयोजन किया जाता है, जो एक सप्ताह तक चलता है।
  • चक्रधर फेलोशिप (शास्त्रीय) संगीत क्षेत्र में दी जाती है । यह फेलोशिप यप्रदेश) के राजा चक्रधरसिंह की स्मृति में दी जाती है, जो तबला वादक थे । संगीत पर इनकी रचित कई पुस्तकें हैं।
  • मध्य प्रदेश के खजुराहो में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला खजुराहो नृत्य मध्य प्रदेश का ही नहीं, देश का भी सबसे बड़ा नृत्य समारोह है। देश के संस्कृति विभाग द्वारा इन्दौर, उज्जैन एवं माण्डव (माण्डू) में बनाउत्सव’ आयोजित किया जाता है । इसमें मालवी शैली का नृत्य प्रस्तुत किया जाता है।
  • आमीर खाँ संगीत समारोह इन्दौर में होता है । ये सुप्रसिद्ध सितार वादक थे, इस समारोह में देश की सांस्कृतिक एवं शास्त्रीय संगीत से जुड़ी महान् हस्तियाँ शिरकत करती हैं।
  • मध्य प्रदेश में देश का यह अपनी किस्म का अनोखा समारोह है, जो भोपाल में आयोजित किया जाता है, इसमें प्राचीन से लेकर वर्तमान तक के वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन होता है।
  • माखनलाल चतुर्वेदी समारोह का आयोजन खण्डवा में होता है । इसके अतिरिक्त बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ समारोह शाजापुर व निमाड़ उत्सव, खण्डवा व खरगोन में होता है।
  • खजुराहो नृत्य समारोह सन् 1976 में खजुराहो (छतरपुर) में प्रारंभ किया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य देशी व विदेशी पर्यटकों को अधिक संख्या में आकर्षित करने के साथ-साथ नृत्य परम्परा देना है।
  • मध्यप्रदेश के गायकों में तानसेन (ग्वालियर), उस्ताद हाफिज अली खाँ (ग्वालियर), लता मंगेशकर का जन्म मध्यप्रदेश में ही हुआ, जबकि उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का जन्म मध्यप्रदेश से बाहर जिला त्रिपुरा के शिवपुरी ग्राम में हुआ था । इनका बचपन का नाम आलम था । मध्यप्रदेश का सतना जिला मैहर संगीत के कारण प्रसिद्ध है । यहाँ पर संगीत विद्यालय स्थापित किया गया है तथा यह उस्ताद अलाउद्दीन खाँ जैसे संगीतकार की कर्मभूमि रहा है। यह मंदिरों के स्थानों के लिए भी जाना जाता है।
  • अमजद अली खाँ सरोद वादन के लिए प्रसिद्ध हैं । रविशंकर सितार, जाकिर हुसैन तबला वादन में प्रसिद्ध हैं।
  • मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रविन्द्र भवन 4,000 दर्शकों की क्षमता पला सभागृह है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ सभागृहों में से एक है । यहाँ अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है ।
  • सन् 1954 में साहित्यिक संबंधी कार्यों को सम्पन्न करने के लिए मध्य श साहित्य परिषद् की स्थापना की गई। इस परिषद् का मुख्यालय भोपाल में है।
  • मध्य प्रदेश में आयोजित किये जाने वाले अधिकांश समारोहों का न मध्य प्रदेश कला परिषद् द्वारा किया जाता है । इस परिषद् की पापना 1952 में राजधानी भोपाल में की गई थी।
  • सन् 1985 में मध्य प्रदेश संस्कृत अकादमी की स्थापना की गई, जबकि 1978 में उर्दू अकादमी, 1979 में अलाउद्दीन खाँ संगीत अकादमी तथा सन् 1983 में सिंधी अकादमी की स्थापना की गई। इसके अलावा 1987 में तुलसी अकादमी भी स्थापित की गई।
  • मध्य प्रदेश के मुख्य लोकनृत्य भगोरिया, परधौनी, बधाई, सैरा, चटकोरा, मटकी आदि हैं।
  • कर्मा मध्यप्रदेश की गौंड व बैगा जनजाति का मुख्य लोकनृत्य है । भगोरिया भीलों का तथा राई बुन्देलखण्ड (मध्यप्रदेश) का लोकनृत्य है।
  • गम्मत निमाड़ का लोकनृत्य है, राई बुंदेलखण्ड व बघेलखण्ड का नृत्य है । दादर बघेलखण्ड का व मटकी, नाच मालवा का परम्परागत लोकनृत्य है ।
  • कठी तथा कलगी तुर्रा निमाड़ के विख्यात् नृत्य नाट्य हैं । मध्य प्रदेश के मालवांचल का प्रमुख लोकनाट्य है, जिसे प्रदेश का प्रतिनिधि लोकनाट्य कहा जाता है ।
  • मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड में लोकप्रिय लोकनाट्य स्वांग है, जिसमें राई स्वांग भी आता है। मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति द्वारा देवताओं की आराधना में किया जाने वाला कर्मा उत्सव ऋतुचक्र से जुड़ा है।
  • गणगौर में गायन के साथ नृत्य भी किया जाता है । यह मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल में प्रचलित है। गणगौर उत्सव पर सैदा नृत्य भी किया जाता है, जो प्रदेश के बुंदेलखण्ड में प्रचलित है।
  • मध्य प्रदेश के मालवा अंचल का मटकी नृत्य मालवा का एकल नृत्य है। रीना नृत्य बैगा व गोंड स्त्रियों द्वारा तथा भगोरिया नृत्य भीलों द्वारा समूह में किया जाने वाला नृत्य है।
  • मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति द्वारा विवाह के अवसर पर बारात की आगवानी के समय परधौनी नृत्य किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश में बैगा आदिवासियों द्वारा किया जाने वाला ‘बलमा नृत्य प्रेमप्रसंग पर आधारित है।
  • जिंदबा का अनुष्ठान ‘बलि के देन’ विवाह के अवसर पर होता है, जिसे पुरुषों का देखना वर्जित होता है, उसे लुका-छिपी से देखते हैं और पकड़े जाने पर महिलाओं द्वारा पिटाई कर दी जाती है ।
  • बधाई नृत्य मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र में खुशी के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है, जो विवाह, पुत्र-जन्म व फसल कटाई आदि अवसरों पर किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में प्रचलित ढोलामारु की कथा लोकनाट्य मूलतः राजस्थान से आई है । यह मध्य प्रदेश की राजस्थान से जुड़ी सीमा में प्रचलित है।
  • छाहुर मध्यप्रदेश के बघेलखण्ड का एक पारंपरिक लोकनाट्य है । वास्तव में छहुर’ बघेलखण्ड का प्रतिनिधि लोकनृत्य है।
  • ‘लारुकाज’ गोंडो का एक मुख्य पर्व है, जिसे ‘नारायण देव’ के सम्मान में मनाया जाता है । यह पर्व सूअर के विवाह का प्रतीक माना जाता है।
  • मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में अविवाहित युवतियों द्वारा संजा पर्व मानाया जाता है । इस पर्व को बुंदेलखण्ड में मनाया जाता है, जिसे ‘मामूलिया’ कहा जाता है।
  • नौराता के साथ-साथ मालवा में घड़ल्ला भी मनाया जाता है । इसमें लड़कियाँ सामूहिक रूप से छिद्रयुक्त घड़ा एक लड़की सिर पर रखकर गीत गाती है।
  • मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध रंगकर्मी बाबा डिके का जन्म 7 जून, 1919 को नीमच में हआ। उन्होंने 75 नाटकों के 2000 से अधिक प्रदर्शन किये।
  • जगदीश स्वामीनाथन मध्यप्रदेश के उत्कृष्ट चित्रकार हैं, न कि रंगकर्मी, जबकि बंसी कोल, नरहरि पटेल व निशा मिश्र देश के ख्यात रंगकर्मी हैं।
  • 1770 के आसपास रीवा नरेश विश्वनाथ सिंह ने रामकथा पर आधारित ‘आनंद रघुनंदन’ लिखा । भारतेन्दु ने इसे हिन्दी का पहला नाटक माना ।
  • पिथौरा भित्ति चित्र मध्यप्रदेश के झाबुआ का अनुष्ठानिक चित्रकर्म है । पिथौरा में घोड़ों का चित्रांकन मुख्य रूप से होता है । इसके चित्रकार को ‘लिखिन्दर’ कहा जाता है।
  • मध्य प्रदेश के भील आदिवासी पेया फल्या पिथौरा भित्ति के प्रमुख चित्रकार हैं। साथ ही वे कुक्षी के छीपा शिल्प के भी मुख्य कलाकार हैं।
  • अमृता शेरगिल फेलोशिप ललित कला के लिए दी गई शिक्षावृत्ति है। इसकी राशि प्रतिमाह 1000 रुपये है तथा अवधि एक वर्ष है।
  • मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित गजानंद माधव मुक्तिबोध फैलोशिप साहित्य के क्षेत्र में दी जाती है ।
  • मध्य प्रदेश शासन द्वारा संगीत के क्षेत्र में दी जाने वाली फैलोशिप उस्ताद अलाउद्दीन खाँफैलोशिप है। इसकी भी राशि 1000 रुपयेव अवधि एक वर्ष है।
  • चक्रधर शिक्षावृत्ति रूपंकर कला के क्षेत्र में दी जाती है । एक वर्ष तक दी जाने वाली इस शिक्षावृत्ति की राशि 1000 रुपये है।
  • श्री विष्णु चिंचालकर मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध चित्रकार रहे हैं । उनका जन्म 1917 में देवास के पास एक गाँव में हुआ था । वे अपने समय के सिद्धहस्त चित्रकार देवलालीकर के मार्गदर्शन में रहे।
  • मध्य प्रदेश के बघेलखण्ड में विरहा गायन, विदेसिया गायन, बसदेव गायन की परम्परा के साथ ही बघेली लोकगीत बघेलखण्डी राग गायन भी प्रचलित है।
  • मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध चित्रकारों में मकबूल फिदा हुसैन, नारायण श्रीधरबेन्द्रे, राजाराम, सैयद हैदर राजा, डॉ. मंजूषा गांगुली व देवयानी कृष्ण शामिल हैं।

मध्यप्रदेश के प्रमुख लोकनाट्य

  • माचा-यह मालवा क्षेत्र का प्रमुख लोक नाट्य है । इसका जन्म स्थान उज्जैन माना जाता है।
  • काठी-काठी मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र का प्रचलित लोकनाट्य है । यह देव उठनी ग्यारस से प्रारंभ होकर महाशिवरात्रि तक चलता है ।
  • नौटंकी-यह मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र का लोक नाट्य है । इसमें सामाजिक विषयों पर नाटक आदि का मंचन किया जाता है ।
  • कर्मा-यह बैगा जनजाति का लोकनाट्य है । यह लोक-नाट्य दशहरा से प्रारंभ होकर वर्षा ऋतु तक चलता है । इसमें मुख्यतः नृत्य एवं गायन होता है।
  • राई स्वांग-यह बुन्देलखण्ड का प्रमुख लोकनाट्य है। इसमें अभिनय तथा – राई नृत्य दोनों आयोजित होता है।
  • पण्डवानी-पण्डवानी का अर्थ पाण्डवों की कहानी से लगाया जाता है। इसमें कथा, संगीत, अभिनय एवं संगीत सभी कुछ प्रस्तुत किया जाता है। इसमें तीजनबाई, रीतु वर्मा, झाड़ देवांगन आदि प्रमुख कलाकार हैं।
  • गणगौर- यह निमाड़ क्षेत्र का एक लोक गायन है । इसमें चैत्र मास में गौरी की पूजा तथा गायन एवं नृत्य होता है । इसमें टोकरियों में गेहूँ के पौधे लगाये जाते हैं तथा उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है।

मध्यप्रदेश के प्रमुख मेले

  1. महामृत्युंजय का मेला -रीवा
  2. सिंहस्थ मेला (कुम्भ)-उज्जैन
  3. जोगेश्वरी देवी-चंदेरी (अशोकनगर)
  4. सिंगाजी का मेला-पिपल्या खुर्द (प.निमाड़)
  5. कालूजी महाराज मेला-पिपल्या खुर्द (प.निमाड़)
  6. कानाबाबा मेला-सोडलपुर (हरदा)
  7. तेजाजी का मेला-सनावद (गुना)
  8. धामोनी उर्स-धामोनी (सागर)
  9. पीर बुधान मेला-साँवरा (शिवपुरी)
  10. हीरा भूमिया मेला-गुना

लोक नृत्य

  • रीना नृत्य -बैगा तथा गौंड स्त्रियों का दीपावली के बाद किया जाने वाला नृत्य है।
  • बलमा नृत्य-अपनत्य-प्रेम प्रसंग पर आधारित है । बैगा आदिवासियों द्वारा किया जाता है ।
  • चटकोरा नृत्य-कोरकू आदिवासियों का नृत्य है।
  • भगौरिया नृत्य-भीलों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • मटकी नृत्य-मालवा का एकल नृत्य है। गोंचो नृत्य-गोंडों द्वारा किया जाता है।
  • बार नृत्य-कंवर आदिवासियों का नृत्य है ।
  • लहंगी नृत्य-कंजर तथा बंजारों का नृत्य है।
  • परधौनी नृत्य-विवाह के अवसर पर बैगा आदिवासियों द्वारा बारात की अगवानी के समय किया जाता है।
  • कानरा नृत्य-मध्य भारत एवं बुन्देलखण्ड में धोबी जाति का नृत्य है ।
  • बरेदी नृत्य-यह गवाल जनजाति के लोगों से संबंधित है । इस नृत्य में चरवाहा जिसकी गाय चराता है, उसके घर जाकर नृत्य करता है और ईनाम प्राप्त करता है।

म.प्र. की प्रमुख बोलियाँ

मध्यप्रदेश की प्रमुख भाषा हिन्दी है, परन्तु यहाँ के अनेक प्रान्तों में अनेक बोलियाँ बोली जाती हैं । ये निम्न प्रकार की है

  • बुन्देलखण्डी – दतिया, गना, शिवपुरी, भिण्ड, ग्वालियर, मुरैना, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, पन्ना, विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद, नरसिंहपर जबलपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट आदि।
  • निमाड़ी – खण्डवा, खरगोन, धार, देवास, बड़वानी, झाबुआ, इन्दौर।
  • बघेलखण्डी – रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया।
  • मालवी – सीहोर, नीमच, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, झाबुआ, उज्जैन, देवास, इन्दौर आदि
  • बृजभाषा – भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर आदि।
  • कोरकू – बैतूल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, खरगोन आदि
  • भीली – रतलाम, धार,झाबुआ, खरगोन एवं अलीराजपुर!
  • गोंडी – छिंदवाड़ा सिवनी बालाघाट मंडला डिंडोरी होशंगाबाद!

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