संसदीय समितियां : संसद की दक्षता और विशेषज्ञता बढ़ाने में संसदीय समितियों की भूमिका

प्रश्न: संसदीय समितियां संसद की दक्षता और विशेषज्ञता में वृद्धि करती हैं। इस संदर्भ में, लोक लेखा समिति द्वारा निभाई गई भूमिका का परीक्षण कीजिए एवं इसे और अधिक सशक्त बनाने के उपाय सुझाइए।

दृष्टिकोण:

  • संसद की दक्षता और विशेषज्ञता बढ़ाने में संसदीय समितियों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  • लोक लेखा समिति द्वारा निर्वहन की गयी भूमिका का परीक्षण कीजिए एवं इसे और अधिक सशक्त बनाने के उपाय सुझाइए।

उत्तरः

भारतीय विधायी प्रक्रिया की एक महत्वपूर्ण विशेषता विभिन्न विधायी उद्देश्यों के लिए संसदीय समितियों की नियुक्ति है। संसदीय समितियां संसद की दक्षता और विशेषज्ञता को निम्नलिखित तरीके से बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं:

  • विचाराधीन मुद्दे का गहन अध्ययन: चूंकि संसद के पास सभी विधायी विषयों के निपटान हेतु बहुत सीमित समय होता है, जबकि समितियां किसी विशेष मुद्दे पर अधिक ध्यान और समय देने में सक्षम होती हैं।
  • ये समितियां विभिन्न मंत्रालयों द्वारा की गई अनुदान की मांगों का अध्ययन करने, विभिन्न विभागों द्वारा किए गए व्यय की जाँच करने, भ्रष्टाचार के मामलों की जांच आदि महत्वपूर्ण कार्य करती है।
  • प्रभावी पर्यवेक्षण: विभागों से संबद्ध स्थायी समितियां विभिन्न विभागों के कार्य, उनके बजट, उनके व्यय और बिलों की निगरानी करती हैं।
  • संसद के कार्यभार को कम करना: संयुक्त संसदीय समितियों (JPC) का गठन किसी विशेष विधेयक पर चर्चा करने या वित्तीय अनियमितताओं की जांच के उद्देश्य के लिए किया जा सकता है।
  • विचारधारात्मक और दलगत मतभेदों को दूर करना- समितियां दलों के मध्य सर्वसम्मति बनाने, विषयों से संबंधित विशेषज्ञता विकसित करने और स्वतंत्र विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ परामर्श करने में सक्षम बनाने हेतु एक मंच प्रदान करती हैं। इस प्रकार ये निर्णय निर्माण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाती है।

संसदीय लेखा समिति (PAC) द्वारा निभाई भूमिका 

  • PAC सरकार के वित्त पर संसदीय निरीक्षण बनाए रखती है। इसका मुख्य कार्य भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा प्रस्तुत लेखापरीक्षा रिपोर्ट की जांच करना है।
  • PAC अनाधिकृत व्यय या स्वीकृत सीमाओं से अधिक व्यय संबंधी गतिविधियों को उद्घाटित करता है। इसके कार्य ” इसके ज्ञान, विश्वसनीयता और अर्थ प्रबंधन के कारण व्यय की औपचारिकता से परे” विस्तारित होते हैं।
  • यह न्यून मूल्यांकन (under-assessment), कर चोरी, करों का संग्रहण नहीं करने, अनुचित वर्गीकरण इत्यादि से संबंधित मामलों की जांच करती है। कराधान विधियों में त्रुटियों की पहचान और राजस्व के लीकेज के नियंत्रण हेतु सिफारिशें करती है।

हालांकि, वर्तमान में समिति को पर्याप्त सामर्थ्य का अभाव, तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव, जांच संबंधी कोई शक्ति प्राप्त न होने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह CAG ऑडिट रिपोर्ट के बिना किसी विषय पर स्वतः संज्ञान नहीं ले सकती है।

निम्नलिखित उपायों से इसे और सुदृढ़ बनाया जा सकता है और ये कार्यपालिका की गलत कार्यवाहियों को प्रभावी तरीके से जांच करने में सहायक होंगे।

  • CAG द्वारा लेखा परीक्षा रिपोर्ट को संसद में प्रस्तुत करने की एक समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।
  • सरकारी विभागों के लिए कार्यवाही रिपोर्ट जमा करने हेतु एक समय सीमा निश्चित की जानी चाहिए।
  • PAC के पास जांच हेतु स्वतः संज्ञान संबंधी शक्तियां होनी चाहिए।
  • लोकसभा या राज्यसभा सचिवालयों के माध्यम से उन्हें पर्याप्त तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  • गवाहों के बयानों को प्रसारित करके या प्रेस की अनुमति देकर या साक्ष्य की प्रतिलिपि जनसामान्य को उपलब्ध कराकर सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
  • PAC की मिनट्स ऑफ़ मीटिंग को सार्वजनिक किए जाना चाहिए।

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