भारत में फार्मास्युटिकल (औषध) उद्योग की अवस्थिति : कर संरचना में हुए परिवर्तन

प्रश्न: उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, भारत में फार्मास्युटिकल (औषध) उद्योग की अवस्थिति के विभिन्न कारकों के महत्व का परीक्षण कीजिए। कर संरचना में हाल में हुए परिवर्तन इसे किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं।

दृष्टिकोण

  • वर्तमान स्थिति की तथ्यात्मक पृष्ठभूमि तथा भारत में औषध उद्योग की संभावनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  • उदाहरणों सहित, भारत में औषध उद्योग की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए। 
  • व्याख्या कीजिए कि कर संरचना में हाल ही में हुए वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसे परिवर्तन इस क्षेत्र को किस प्रकार प्रभावित करेगा।

उत्तर

विश्व में भारतीय औषध उद्योग मात्रा के संदर्भ में चौथे तथा मूल्य के संदर्भ में तेहरवें स्थान पर है। इसने वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवा बाजार, जैव प्रौद्योगिकी और नॉवल ड्रग डिलीवरी सिस्टम्स (रोगी के शरीर में दवा पहुँचाने के नवाचारी तरीके) में अपना एक अलग स्थान बनाया है।

औषध उद्योग फुटलूज उद्योग (अर्थात ऐसा उद्योग जिसे अपने संचालन के लिए विशिष्ट स्थानीय संसाधनों की आवश्यकता न हो) का उदाहरण है और इस प्रकार इसे निम्नलिखित कारकों के आधार पर, जहाँ भी व्यवहार्य मानदंडो की पूर्ति हो रही हो, स्थापित किया जा सकता है:

  • कच्चे माल की उपलब्धता, निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करती है तथा परिचालन व्यय को न्यून करती है। उदाहरण के लिए, पेट्रो-रसायन केंद्र भारत के पश्चिमी तट के निकट अवस्थित है।
  • बाजार की निकटता/परिवहन तंत्र: उदाहरण के लिए, भारत के पश्चिमी क्षेत्र में कांडला जैसी बंदरगाहों की निकटता के कारण औषध उद्योगों की प्रधानता है, जो अफ्रीका और यूरोप में जेनेरिक दवाओं के सुगम निर्यात की सुविधा प्रदान करता है।
  • लागत प्रभावी दरों पर कुशल तथा अकुशल दोनों श्रम की उपलब्धता औषध उद्योग स्थापित किए जाने की पूर्व शर्त  है।
  • भूमि और जलवायु की उपयुक्तता: अत्यंत उष्ण, आर्द्र, शुष्क अथवा शीत जलवायु औषधीय संयंत्रों की स्थापना हेतु उपयुक्त नहीं है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव, अपशिष्ट निपटान तथा सुरक्षा-संबंधी आवश्यकताओं पर समुचित ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है ताकि भोपाल गैस त्रासदी जैसी मानव जनित आपदाओं की रोकथाम की जा सके।
  • पूँजी की सुगम उपलब्धता तथा अनुकूल सरकारी नीतियाँ: उदाहरण के लिए, गुजरात जैसे राज्यों की स्थायी नीतियों व हिमाचल प्रदेश में करों की न्यूनतम दरों ने अनेकों औषध उद्योगों को आकर्षित किया है।
  • सस्ती दरों पर विद्युत की अबाध आपूर्ति: उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश में बार-बार होने वाली विद्युत कटौतियों ने कंपनियों को गुजरात जैसे नियमित विद्युत आपूर्ति प्रदान करने वाले राज्यों की ओर स्थानांतरित होने के लिए बाध्य किया है।
  • जल की गुणवत्ता: उदाहरण के लिए, पर्वतीय राज्यों में उपलब्ध स्वच्छ गुणवत्ता वाला जल, सक्रिय औषधीय सामग्रियों (APIs) के निर्माण के लिए आवश्यक है।

भारतीय औषध उद्योग के वर्ष 2015 से 2020 के मध्य वार्षिक रूप से 5% की प्रत्याशित औसत वैश्विक दर की अपेक्षा 15% की दर से वृद्धि करने की आशा है। भारतीय औषधि निर्यात संवर्धन परिषद (PEPCI) के अनुसार, भारतीय औषध निर्यातों के भी वर्ष 2020 तक 30 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की सम्भावना है।

इस संबंध में, वस्तु एवं सेवा कर (GST) का क्रियान्वयन गेम चेंजर सिद्ध हो सकता है। यद्यपि दवाओं के मूल्य निर्धारण, छूट तथा अनुपालन मानकों के संबध में कुछ चिंताएं हैं, तथापि यह मध्यम से दीर्घावधि के लिए इस उद्योग हेतु निम्नलिखित तरीकों से एक बेहतर विकास सिद्ध होगा:

  • इससे दो पक्षों के मध्य होने वाले अंतर्राज्यीय लेन-देन के लिए कर तटस्थ का निर्माण करेगा, जिससे अनेक राज्यों पर निर्भरता घटेगी व क्षेत्रीय केंद्रों पर ध्यान बढ़ेगा।
  • इसके माध्यम से कुशल आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को बढ़ावा मिलने की संभावना है, परिणामस्वरूप दवाओं की अंतिम लागतें पर्याप्त रूप से कम हो सकेंगी। इससे सटीक पूर्वानुमान किया जा सकेगा तथा बेहतर व उन्नत आर्डर-फुल्फिल्मन्ट साइकिल टाइम भी विकसित किया जा सकेगा।
  • गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब जैसे विभिन्न राज्यों में चुंगी कर जैसे प्रपाती करों (Cascading Tax) की समाप्ति हो जाएँगे। महँगी मशीनों तथा उपकरणों के आयात पर लगाए गए शुल्कों पर टैक्स क्रेडिट का प्रावधान प्रौद्योगिकी लागत में कमी लाएगा।

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