नैतिक मार्गदर्शक के स्रोत रूप में नियम, कानून, व्यवस्था एवं अंतरात्मा 

व्यक्ति जब कोई कार्य करता है तो वह यह भी जानना चाहता है कि उसका यह कार्य नैतिक है या अनैतिक? अत: किसी कर्म की नैतिकता या अनैतिकता के लिए व्यक्ति के पास दो मार्गदर्शक स्रोत होते हैं। ये स्रोत लोक प्रशासकों के लिए खासतौर से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन स्रोतों से लोक प्रशासकों को एक बेहतर, स्पष्ट एवं व्यावहारिक मार्गदर्शन प्राप्त होता है जिससे उन्हें निर्णय लेने में आसानी होती है। इन मार्गदर्शक स्रोतों में एक है कानून जो किसी प्रशासक पर बाह्य प्रभाव डालता है तथा दूसरा है स्वयं अपनी अंतरात्मा जो व्यक्ति को खुद से यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित?

कानून की अवधारणा

(The Notation of Law)

नीतिशास्त्र के अंतर्गत कानून का अभिप्राय नैतिकता से भी जुड़ा होता है। संत थॉमस एक्वीनास के अनुसार कानून तर्क पर आधारित एक अध्यादेश के समान होता है जिसका उद्देश्य होता है सर्वसाधारण का कल्याण और यह स्वयं उन लोगों द्वारा जारी किया जाता है जिन्हें व्यक्ति या समुदाय की परवाह होती है। एक्वीनास ने इस रूप में समझाने की कोशिश की है कि अंग्रेजी का शब्द ‘Law’ (लॉ) लैटिन शब्द ‘Lex ‘(लेक्स) से व्युत्पन्न है। लैटिन शब्द ‘Lex'(लेक्स) स्वयं एक अन्य लैटिन शब्द ‘Ligare’ से बना है जिसका अर्थ है ‘बांधना’। अतः इस अर्थ के अनुसार कानून (Law) का अभिप्राय है कार्य करने के लिए प्रेरित करना अथवा कार्य करने से रोकना। अत: कानून व्यक्ति पर एक प्रकार से बाध्यता आरोपित करता है।

अतः कानून एक विशिष्ट प्रकार की कार्य प्रणाली का निर्माण करता है जिसका अनुसरण करना अनिवार्य माना जाता है। एक्वीनास का यह मानना है कि कानून के रूप में एक कार्य-प्रणाली तैयार करते समय कानून निर्माता अर्थात् विधायक को तर्कसंगत होकर समझदारी से कार्य करना चाहिए अथवा निर्णय लेना चाहिए। अर्थात् वह (कानून निर्माता) जो भी निर्णय ले उसका न्यायशील, उचित और व्यावहारिक होना अनिवार्य है।

अधिनियम

(Regulation)

यद्यपि कानून तर्क पर आधारित एक नियम अथवा अध्यादेश है परंतु यह अधिनियम या साधारण नियम से भिन्न होता है। अधिनियम के माध्यम से कानून के स्पष्टीकरण में मदद मिलती है परंतु कई बार अधिनियम अपने इस कार्य में सफल नहीं होता है। अधिनियम कल्याण का उद्देश्य होता है। व्यक्ति विशेष या समूह विशेष का कल्याण परंतु विधि अथवा कानून का निर्माण सार्वजनिक कल्याण पर आधारित होता है। स्रोत के आधार पर विधि अथवा कानून का निर्माण करने वाले न्यायिक क्षेत्र से होते हैं अथवा वे लोग होते हैं जो समुदाय के विधिक प्रभावी होते हैं। वहीं अधिनियम (विनियम) का स्रोत एक संगठन परिवार का वरिष्ठ या प्रधान भी हो सकता है। विस्तार के आधार पर कोई कानुन सामान्यतः विधि निर्माता के क्षेत्राधिकार से बाहर अनुपालन योग्य नहीं होता। अमेरिका में बना कानुन यूरोप में लागू नहीं हो सकता। वहीं अधिनियम (विनियम) किसी व्यक्ति के अन्यत्र जाने पर भी लाग हो सकता है और उस पर अपना नियंत्रण बनाए रखता है।

कानून अथवा विधि का विभाजन (Division of Law):

संत एववीनास ने दो प्रकार के कानूनों की चर्चा की थी: 

  • प्राकृतिक कानून (प्राकृतिक विधि)
  • औपचारिक कानून (सकारात्मक विधि)

प्राकृतिक कानून का विकास समय के साथ या फिर मानव के अस्तित्व में आने के साथ हुआ। यह मानव स्वभाव पर आधारित है और मानव तर्क इसकी खोज कर सकता है। यह ऐसे विधियों का समूह है जो कि विधि निर्माताओं को स्वतंत्र इच्छा पर आधारित होता है, और जिसे कुछ बाह्य चिन्ह द्वारा प्रस्थापित किया जाता है। औपचारिक अथवा सकारात्मक कानून (विधि) दो प्रकार के होते हैं-दैविक एवं मानवीय। यदि औपचारिक विधि का लेखक ईश्वर है, तो वह मानव दैविक औपचारिक विधि है। यदि औपचारिक (सकारात्मक) विधि का तात्कालिक स्रोत मानव है तो वह मानव औपचारिक विधि है। इसमें अतिरिक्त दैनिक औपचारिक विधि के प्रकार हैं, ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट (ईसाई धर्म)। मानव सकारात्मक विधि के भी दो प्रकार हैं, सिविल, यदि वह राज्य द्वारा प्रख्यापित किया गया है 

प्राकृतिक विधि के गुण(Qualities of Nature of Law) : संत एक्वीनास के अनुसार प्राकृतिक विधि (कानून) के दो गुण हैं:

  • सार्वभौमिकता
  • अपरिवर्तनीयता

सार्वभौमिकता का अभिप्राय है कि प्राकृतिक विधि का विस्तार सभी मनुष्यों तक है। अनुभवजन्य तर्कों से भी यही बात सिद्ध होती है। सभी मनुष्यों (देश काल से पर) में समान मानव तर्क निहित हैं और उनके पास कम से कम इतना तो ज्ञान हा हो सकता है कि क्या सही है और क्या गलत है? पर प्राकृतिक विधि प्रत्येक मनुष्य में एक ही तरीके से स्वयं को प्रकट नहीं कर सकती। प्राकृतिक विधि का दूसरा गुण है इसकी अपरिवर्तनशीलता। इसका तात्पर्य है कि यह परिवर्तित नहीं होता। यह सभी जगहों एवं सभी समयों के मनुष्यों के लिए समान रहता है। प्राकृतिक विधि परिवर्तित नहीं होता, इसके पीछे तर्क यह है कि मानव स्वभाव परिवर्तित नहीं होता।

नागरिक कानून (Civil Law)

सिविल लॉ अथवा नागरिक कानून वह विधि है जिसे कानून निर्माता स्वतंत्रतापूर्वक अधिनियमित और प्रख्यापित करता है। इसके विपरीत प्राकृतिक विधि मनुष्य के अस्तित्व, विकास एवं आवश्यकता को देखते हुए उत्पन्न हुई है। हालांकि नागरिक कानून एव सावधान की उत्पत्ति भी प्राकृतिक कानून में ही निहित है। नागरिक कानन अनिवार्य रूप से तीन कार्य करता है

  • कभी-कभी ये प्राकृतिक कानून की घोषणा करती है या उसे दोहराती है
  • नागरिक कानून (विधि) कभी-कभी यह निर्धारित करती है कि प्राकृतिक कानून मे क्या क्या है ?
  • नागरिक  कानून अक्सर वैसे मुद्दों को संबोधित करता है जिन्हें प्राकृतिक विधि(कानून) द्वारा – आदेशित नहीं किया गया होता है यह निषिद्ध किया गया होता है।

प्राकृतिक कानून की महज घोषणा या दोहराव सामान्यतया कोई समस्या खड़ी नहीं करता। पर जब नागरिक कानून (सिविल लॉ) प्राकृतिक कानून में तथाकथित अस्पष्ट सिद्धांतों को स्पष्ट या प्रत्यक्ष करने का प्रयास करती है तब समस्या खड़ी हो सकती है। हालांकि प्रत्येक व्यक्ति इस स्पष्टीकरण या व्याख्या से सहमत नहीं हो सकता। यही बात उस नागरिक कानून (सिविल लॉ) के साथ भी लागू होती है जिनका प्राकृतिक कानून से कोई लेना-देना नहीं होता। कुछ लोग इसे प्राकृतिक कानून में हस्तक्षेप के रूप में देख सकते हैं। यह तथ्य हमें औपचारिक अथवा सकारात्मक कानूनों (Positive Law)का पालन करने के लिए आज्ञाकारिता एवं दायित्व के मुद्दे की ओर ले जाता है। आगे यह वैधानिकता एवं नैतिकता के बीच भेद की ओर भी ले जाता है।

प्राकृतिक, औपचारिक (सकारात्मक) और सिविल (नागरिक) कानून के प्रभाव

मनुष्यों पर प्राकृतिक कानून के दो प्रभाव देखे जाते हैं। प्राकृतिक कानून न केवल यह कहता है कि क्या अच्छा है। बल्कि यह हम पर अच्छा करने व बुराई से बचने का नैतिक दायित्व का आरोपण भी करता है। नैतिक दायित्व कानून द्वारा आदेशित किसी कार्य को करने की अनिवार्यता है। हमें इसका पालन अवश्य करना चाहिए। प्राकृतिक कानून प्रजाति, धर्म या लिंग के परे सभी मनुष्यों को इसके सिद्धांतों का पालन करने का नैतिक दायित्व आरोपित करता है।-

एक्वीनास ने जब कहा कि ‘Law’ शब्द ‘Ligare’ से व्युत्पन्न है और इस लैटिन शब्द का अर्थ है बांधना तो उसका मत लन भी यही था कि प्राकृतिक कानून मनुष्यों को अपने सिद्धांतों से बांध देता है अथवा उन पर अपना नियंत्रण रखता है। यदि अज्ञानता या किसी अन्य कारण से कोई व्यक्ति प्राकृतिक कानून को अलग तरीके से समझता है तो भी वह अपनी समझ के आधार पर ही इससे ( प्राकृतिक कानून ) स्वयं बंधा हुआ पाता है। व्यवहार में इसका अभिप्राय है कार्य के ध्येय, परिस्थिति एवं उद्देश्य को समझना और तदनुसार कार्य करना। इसे ही एक प्रकार से बंधा हुआ होना अथवा नियंत्रित होना समझा जाता है। प्राकृतिक कानून का मनुष्यों पर दूसरा प्रभाव सभी कानूनों की अवधारणा का अनुसरण करना है। प्राकृतिक कानून के साथ दंड एवं प्रतिबंध जुड़ा हुआ है।

प्राकृतिक कानून का पालन करने के लिए पुरस्कार है और उसका अनुपालन नहीं करने के लिए दंड का प्रावधान है। कुछ प्रतिबंध प्राकृतिक है । है या कार्य का प्राकृतिक तौर पर अनुसरण करता है। अन्य प्रतिबंध सकारात्मक है। इस अर्थ में कानून निर्माता मुक्त होकर उसका प्रयोग करता है। उदाहरण के तौर पर, अल्कोहल के प्रभाव में ड्राइविंग, ड्राइवर के लाइसेंस के निलंबन का कारण बन सकता है।

यदि औपचारिक/सकारात्मक कानून प्राकृतिक कानून पर आधारित है और अक्सर प्राकृतिक कानून का स्पष्टीकरण करती है तो औपचारिक (सकारात्मक) कानूनों का पालन करना दायित्व है। यह नैतिक दायित्व इस मान्यता पर आधारित है कि औपचारिक कानून प्राकृतिक कानून का अनुसमर्थन करती है, या फिर उसे आदेशित नहीं करती जिसे प्राकृतिक कानून निषिद्ध करता है अथवा उसे निषिद्ध करता है जिसे प्राकृतिक कानून आदेशित करता है।

नागरिक कानूनों (सिविल लॉ) का पालन करना उस मान्यता पर आधारित है कि कानून को अधिनियमित करने वाली उचित प्राधिकार युक्त सत्ता सरकार है। नागरिक कानून (सिविल लॉ) प्राकृतिक कानून के प्रतिकूल नहीं है। नागरिक कानून का नैतिक रूप से पालन करना संभव है। ये कानून जनसाधारण के कल्याण के लिए है और कानूनी प्राधिकार ने इसे पर्याप्त ढंग से प्रख्यापित किया है। यदि उपर्युक्त में से कोई भी शर्त अनुपस्थित रहती है, तो नागरिकों को किसी विशेष सिविल लॉ (नागरिक कानून) का पालन नहीं करना चाहिए। यही तर्क सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन करता है, हालांकि यह अवज्ञा अवैध हो सकता है एवं इसका परिणाम दंड भी हो सकता है। वस्तुत: कभी-कभा नातक होने के लिए गैर-कानूनी भी होना पड़ता है। सविनय अवज्ञा भी ऐसा ही कुछ है। सविनय अवज्ञा में शामिल होने या सिविल लों से उच्चतर कानून के अनुपालन के द्वारा कोई व्यक्ति वास्तव में नैतिक रूप से कार्य कर रहा होता है, पर वह गैर-कानूनी ही कहलाता है। सैद्धांतिक तौर पर नागरिक कानून (सिविल लॉ) को प्राकृतिक कानून से उत्पन्न होना चाहिए और इसलिए वैधानिकता और नैतिकता को समरूप होना चाहिए।

व्यवहार में वैधानिकता एवं नैतिकता समान नहीं हो सकती। कोई व्यक्ति जो कार्य करे वह नैतिक हो सकता है पर उसी समय वह नागरिक कानून (सिविल लॉ) का उल्लंघन के लिए जेल भेजा जा सकता है, भले वह जो कर रहा हो वह नीतिशास्त्रीय एवं नैतिक हो। इस मामले में कानून अन्यायी हो सकता है ।

आमतौर पर यह माना जाता है कि नागरिक कानून का अवश्यमेव पालन करना चाहिए। लेकिन यह मान्यता विशेष कानून के संदर्भ में प्रासंगिक स्थितियों को दर्शाने के लिए निश्चित रूप से मूल्यांकित की जानी चाहिए। व्यक्ति नागरिक कानून का अर्थ अलग लगा सकता है और किसी विशेष विधि को प्राकृतिक कानून के प्रतिकूल मान सकता है। इस प्रकार, सविनय अवज्ञा उच्चतर कानून का जवाब है,और कभी-कभी इससे ईश्वर की विधि का आह्वान होता है जिसका पालन किया जाना चाहिए। संत थॉमस एक्वीनास उन सिविल कानूनों को अन्यायी मानते हैं जो कि प्राकृतिक कानून का अनुसमर्थन नहीं करते।

अंतरात्मा: नैतिक मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में कानून की चर्चा व्यक्ति बाह्य नैतिकता के सिद्धांतों पर केंद्रित थी। अंतरात्मा का संबंध व्यक्ति के अंतर्मन से है जो व्यक्ति के क्रियाकलापों में नैतिकता का निर्धारण करती है। अंतरात्मा मस्तिष्क का विशेष कार्य है जिसकी भूमिका तब मायने रखती है जब व्यक्ति की बौद्धिक शक्ति किसी विशेष कार्य की अच्छाई या बुराई पर कोई निर्णय देती है। यह विशेष, मजबूत मानव प्रक्रियाओं पर व्यावहारिक निर्णय है।

कर्तव्यशास्त्रीय दृष्टिकोण से अंतरात्मा एक निर्णय है- एक बौद्धिकता का कार्य है। यह अनुभव या भावना नहीं है। वस्तुत: यह एक बौद्धिक निर्णय है। हम लोग अक्सर लोगों को ऐसा कहते हुए पाते हैं कि ‘जो तुम्हें अच्छा लगे तो उसे करो’। लेकिन क्या वास्तव में जो भी अच्छा लगे उसे करना नैतिक रूप से जायज है?

अंतरात्मा कार्य विशेष के संदर्भ में भी निर्णय देती है। अंतरात्मा, पूर्व के क्रियाकलापों या घटित होने वाले क्रियाकलापों की नैतिकता पर व्यवहारिक निर्णय ले सकती है।

अंतरात्मा विधि से भिन्न है। विधि (कानून) क्रियाकलाप से संबंधित एक सामान्य नियम बताती है, वहीं अंतरात्मा किसी विशेष कार्य के लिए व्यवहारिक नियम प्रस्तुत करती है। अंतरात्मा विशेष क्रियाकलापों पर कानून या नियम को लागू करती है, इसलिए यह कानून से व्यापक है।

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