अभिवृत्ति और व्यवहार

प्रश्न: अभिवृत्ति और व्यवहार इतनी घनिष्ठता से गुथे हुए हैं कि एक में परिवर्तन अनिवार्य रूप से दूसरे को प्रभावित करता है। उदाहरणों के साथ इस कथन की व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • अभिवृत्ति और व्यवहार को परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • अभिवृत्ति एवं व्यवहार द्वारा एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
  • अभिवृत्ति और व्यवहार के मध्य विसंगतियों को स्पष्ट कीजिए।
  • जहां भी आवश्यक हो, उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

अभिवृत्ति किसी विषय-वस्तु के प्रति सहमति या असहमति की भावना, विश्वास या विचार को संदर्भित करती है। व्यवहार एक क्रिया या प्रतिक्रिया होती है जो किसी घटना या आंतरिक उत्तेजनाओं की अनुक्रिया स्वरूप घटित होती है।

अतः अभिवृत्ति कुछ भावनाओं के प्रति एक पूर्वाग्रह है जबकि व्यवहार, क्रिया या निष्क्रियता द्वारा उन भावनाओं की अभिव्यक्ति  है।

व्यवहार पर अभिवृत्ति का प्रभाव

यह माना जाता है कि अभिवृत्ति सामान्यतः विषयों, स्थानों और वस्तुओं के प्रति मानवीय व्यवहार को निर्देशित करती है। उदाहरण के लिए, एक खेल के प्रति उत्साही व्यक्ति से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद उस खेल को खेलने या देखने के लिए समय निकाले।

इसी प्रकार, नकारात्मक अभिवृत्तियां व्यक्ति को कुछ कार्यों में भागीदारी करने से रोकती हैं, जैसे कि किसी देश के लोकतांत्रिक संस्थानों या चुनाव में भाग ले रहे उम्मीदवार के प्रति अनास्था लोगों को वोट न देने के लिए प्रेरित कर सकती है।न केवल व्यक्तिगत अभिवृत्ति बल्कि सामाजिक अभिवृत्ति भी व्यक्तिगत व्यवहार को प्रभावित करती है। उदाहरण- समाज में विज्ञान विषय के पक्ष में पूर्वाग्रह अनेक छात्रों को इन विषयों के चयन हेतु बाध्य करता हैं, जबकि उनकी रुचि कुछ मानविकी विषयों में होती है।

अभिवृत्ति पर व्यवहार का प्रभाव

किसी व्यक्ति का व्यवहार किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु या घटना के प्रति उसकी अभिवृत्ति को भी निर्धारित करता है। उदाहरणस्वरूप: नियोक्ता-कर्मचारी के संबंधो में सुधार हेतु अपनाई गई “भूमिका निर्वहन (role playing)” तकनीक इस सिद्धांत पर आधारित है कि जब व्यक्ति किसी भूमिका का निर्वहन स्वयं करके देखता है तो उसे इस बात की अनुभूति होती है कि उसकी अभिवृत्ति कैसे किसी विशेष व्यक्ति या नौकरी के प्रति सही नहीं है। इससे अंततः उसकी अभिवृत्ति में परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होता है।

इस बात के प्रति सचेत होने से भी पूर्व कि उन्होंने एक अभिवृत्ति विकसित कर ली है, लोग अपने समक्ष आने वाली प्रत्येक वस्तु के लिए “अच्छे” या “बुरे” के रूप में त्वरित एवं स्वतःस्फूर्त प्रभाव का अनुभव करते हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञापन, राजनीतिक अभियान, सामाजिक संदेश जैसे बीमा पॉलिसी, धूम्रपान छोड़ना तथा अन्य प्रेरक मीडिया संदेश आदि सभी इस आधार पर बनाए जाते हैं कि व्यवहार अभिवृत्ति का अनुसरण करता है और अभिवृत्ति को उचित रीति से प्रेषित सही सूचनाओं द्वारा प्रभावित किया जा सकता है।

इसी प्रकार, कई बार व्यक्ति नए अनुभवों और तरीकों को सीखने हेतु प्रयासरत रहता है और समाज के प्रति अपनी अभिवृत्तियों को परिवर्तित करने के क्रम में नए व्यवहारों को अपनाता है। यह विशेष रूप से उन बच्चों के लिए सत्य है जो दूसरों के कार्यों का अनुकरण करते हैं तथा एक सीमा तक यह सीखा हुआ व्यवहार उनकी अभिवृत्ति और विश्वास को आधार प्रदान करता है।

किसी वस्तु के प्रति अपने व्यवहार में परिवर्तन के अनुसार भी व्यक्ति अपनी अभिवृत्ति को परिवर्तित करता है। उदाहरण- मदिरा को नापसंद करने वाला कोई व्यक्ति उस दशा अपनी अभिवृत्ति को परिवर्तित कर सकता है जब वह स्वयं इसका सेवन प्रारंभ कर दे, भले ही प्रारम्भ में उसने यह कदम सहकर्मियों के दबाव में उठाया हो।

अभिवृत्ति और व्यवहार के मध्य असंगतता:

कभी-कभी अभिवृत्ति और व्यवहार एक-दूसरे के विरोधाभासी भी हो सकते हैं। मानसिक अभिवृत्ति की उदारवादी प्रवृत्ति सहनशीलता को प्रदर्शित करती है, हालाँकि पाखंड (hypocrisy) भी इसी असंगतता का परिणाम है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति दूसरे धर्मों के लोगों के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति रख सकता है लेकिन व्यवसायिक लेन-देन करते समय (जैसे कि एक दुकानदार और एक ग्राहक के मध्य) वह इनसे पूर्णतया उपयुक्त ढंग से व्यवहार कर सकता है।

एक व्यक्ति उदारवादी प्रकृति के आधार पर किसी अन्य धर्म से संबंधित धार्मिक गतिविधियों का विरोध करता है जबकि स्वतंत्रता के आधार पर अपने स्वयं के धर्म के प्रतिगामी आदेशों (regressive diktats) पर सहमति प्रदान करता है। ऐसे मामलों में, व्यवहार और अभिवृत्ति के मध्य की विसंगतियों को चिन्हित करना, व्यवहार को पुनर्निर्देशित करके उसे अभिवृत्ति के साथ समन्वित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।

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