लेटरल एंट्री (Lateral Entry)

केंद्र सरकार ने लैटरल एंट्री के माध्यम से वरिष्ठ स्तरीय पदों हेतु आवेदन आमंत्रित किए हैं।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  •  कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने आर्थिक कार्य, राजस्व, वाणिज्य और राजमार्ग तथा अन्य विभागों में 10 संयुक्त सचिव स्तरीय पदों
    हेतु आवेदन आमंत्रित किए हैं।
  • चयन हेतु मानदंड- स्नातक डिग्री, न्यूनतम 40 वर्ष आयु तथा राजस्व, वित्त, परिवहन, नागरिक विमानन और वाणिज्य जैसे क्षेत्रों में
    15 वर्ष का अनुभव।
  • यह भर्ती कार्य-निष्पादन के आधार पर तीन से पांच वर्ष हेतु अनुबंध आधार पर की जाएगी।

लैटरल एंट्री के पक्ष में तर्क

  • नीति निर्माण में सहायक- महत्वपूर्ण पदों पर विशिष्ट कौशलों तथा प्रमुख विशेषज्ञता प्राप्त व्यक्तियों का नियुक्त किया जाना
    आवश्यक है, क्योंकि नीति निर्माण प्रकृति में जटिल हो रहा है।
  •  IAS अधिकारी केवल व्यवस्था के भीतर से सरकार को देखते हैं जबकि लैटरल एंट्री सरकार को हितधारकों (निजी क्षेत्र, गैर
    सरकारी क्षेत्र तथा समग्र जनता) पर अपनी नीतियों के प्रभाव को समझने में समर्थ बनाएगा।
  • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने 1965 में विशेषज्ञता की आवश्यकता को रेखांकित किया था। सुरिंदर नाथ समिति तथा होता समिति ने क्रमशः 2003 और 2004 में इस अनुशंसा को पुनः दोहराया तथा द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने भी ऐसी
    ही आवश्यकता का उल्लेख किया है।

शासन और क्षमता में वृद्धि

पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी लिमिटेड ने अपनी 2012 की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार और अक्षमता के कारण भारतीय नौकरशाही को एशिया की निकृष्टतम नौकरशाही के रूप में रैंकिंग प्रदान की थी।

  • IAS में करियर प्रगति लगभग स्वचालित है जो अधिकारियों को आरामदायक स्थिति (कम्फर्ट ज़ोन) में बनाए रखती है। इस
    प्रकार लैटरल एंट्री से व्यवस्था के अंदर प्रतिस्पर्धा को प्रेरणा मिल सकती है।
  • वाई.के.अलघ की अध्यक्षता में सिविल सेवा परीक्षा समीक्षा समिति की एक संघ लोक सेवा आयोग-अधिकृत रिपोर्ट में भी
    सरकार के मध्य एवं उच्च स्तरों में लैटरल एंट्री की अनुशंसा की गयी थी।
  • नीति आयोग ने 2017-2020 हेतु अपने तीन वर्षीय एजेंडा में कहा था कि क्षेत्रक विशेषज्ञों को लैटरल एंट्री के माध्यम से
    व्यवस्था में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि वे “स्थापित करियर वाली नौकरशाही में प्रतिस्पर्धा लाएंगे।”
  • सरकार में प्रतिभा का प्रवेश और प्रतिधारण– न्यायमूर्ति बी.एन.श्रीकृष्णा की अध्यक्षता वाले केन्द्रीय वेतन आयोग की रिपोर्ट
    (2006) में कहा गया था कि लैटरल एंट्री “सरकार में प्रतिभा के प्रवेश और उसके प्रतिधारण को सुनिश्चित कर सकती है। लेटरल एंट्री वैसी नौकरियों से भी संबंधित हो सकती है जिनकी अत्यधिक मांग है या जो खुले बाजार में अत्यधिक मूल्यवान मानी जाती हैं।
  • अधिकारियों की कमी- कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 1,500 IAS अधिकारियों की कमी है।। बासवान समिति (2016) ने अधिकारियों की कमी पर विचार करते हुए लैटरल एंट्री का समर्थन किया था।
  • IAS अधिकारियों की कम आयु में भर्ती- यह उनकी प्रशासनिक एवं न्यायिक क्षमताओं की जांच को कठिन बना देती है। कुछ जो संभावित रूप से बेहतर प्रशासक हैं, वे असफल हो जाते हैं तथा कुछ जो सफल हो जाते हैं उनमें आवश्यक योग्यता की कमी होती है। ऐसे में सिद्ध क्षमताओं से युक्त मिड-करियर लैटरल एंट्री इस कमी को पूरा करने में सहायता करेगी।
  • कोई नई परिघटना नहीं है यह भारतीय रिज़र्व बैंक तथा पूर्ववर्ती योजना आयोग और साथ ही साथ नीति आयोग में भी सफल रही
  • वित्त मंत्रालय ने शैक्षणिक समुदाय और निजी क्षेत्र से सरकार के लिए सलाहकारों की नियुक्ति की प्रथा का संस्थाकरण कर
    दिया है।
  • इस अवधारणा का पहले से ही यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, न्यूज़ीलैण्ड इत्यादि देशों द्वारा
    अनुकरण किया जा रहा है।

लैटरल एंट्री के विपक्ष में तर्क

  • निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा उनकी अल्प सेवा अवधि (विशेषतया 3-5 वर्ष के दिए गए लघु कार्यकाल) में लिए गए निर्णय हेतु
    उत्तरदायित्व तथा जवाबदेहिता सुनिश्चित करना कठिन है।
  • दीर्घकालिक हित नहीं- वर्तमान सिविल सेवा से लाभ यह है कि नीति-निर्माता सरकार में दीर्घकालिक हित रखते हैं।
  • संवैधानिक प्रणाली की उपेक्षा- सरकार की हालिया व्यवस्था मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता वाली समितियों को पेशेवरों की भर्ती हेतु निर्देश देती है। यह व्यवस्था संघ लोक सेवा आयोग जैसी स्वतंत्र संस्था की उपेक्षा करती है।
  • भर्ती में पारदर्शिता- चयन प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप की सम्भावना है तथा यह भाई-भतीजावाद (नेपोटिज्म) को बढ़ावा दे सकती है और तंत्र को हानि पहुंचाती है चूंकि एक विजयी राजनैतिक दल द्वारा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को सरकारी पद पर नियुक्त करके या अन्य तरह से पक्ष लेकर प्रतिफल प्रदान किया जा सकता है।
  • कार्य-क्षेत्र अनुभव का अभाव- जो अधिकारी नियुक्त होंगे वे ज्ञान के प्रभुत्व पर अंक प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु वे “कार्य क्षेत्र (फील्ड)”
    में अनुभव की दृष्टि से असफल सिद्ध हो सकते हैं।
  • विद्यमान प्रतिभा को प्रतिबंधित करना- लैटरल एंट्री यह दर्शाती है कि निजी पेशेवरों की तुलना में अनुभवी लोक सेवक कम सक्षम हैं
    तथा उनकी विशेषज्ञता में कमी है। यह आवश्यक रूप से सत्य नहीं है।
  • सर्वोत्तम प्रतिभा को केवल तभी आकर्षित किया जा सकता है जब उच्चतम प्रबंधकीय पदों तक पहुंचने का यथोचित आश्वासन
    प्राप्त हो।
  • संयुक्त सचिव तथा उससे उच्च पदों हेतु एक अनुबंध आधारित व्यवस्था के सुझाव द्वारा यह संकेत जा सकता है कि सेवा के 15
    18 वर्षों में केवल मिड-करियर प्रस्थिति तक ही पहुंचा जाएगा एवं तत्पश्चात पदोन्नति के संबंध में बड़ी अनिश्चितता बनी
    रहेगी।

पूर्व के अनुभव-

सार्वजनिक उपक्रमों के संचालन हेतु निजी क्षेत्र के प्रबंधकों को शामिल करने के पूर्व अनुभव विशेष रूप से
संतोषजनक नहीं रहे थे। उदाहरणार्थ एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइन्स इत्यादि।

 आरक्षण का मुद्ददा-

यह अस्पष्ट है कि क्या लैटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती हेतु आरक्षण का प्रावधान होगा या नहीं।

आगे की राह

भारतीय सिविल सेवा वेबर की आदर्श नौकरशाही की सभी विशेषताओं को चित्रित करती है जैसे कि पदसोपान, शक्ति का विभाजन आदि। संस्थागत लैटरल एंट्री के अतिरिक्त विभिन्न सुधार तत्कालीन समय की आवश्यकता है, जैसे कि:

  • आकांक्षी तथा सेवारत लोक सेवकों हेतु लोक प्रशासन विश्वविद्यालयों की स्थापना: यह देश की राजनीतिक अर्थव्यवस्था, कार्यक्षेत्र विशेषज्ञता में वृद्धि और बेहतर प्रबंधकीय कौशल का गहन ज्ञान प्राप्त करने हेतु महत्वाकांक्षी सिविल सेवकों के एक वृहद् समूह का | सृजन कर सकता है तथा सेवारत नौकरशाहों को सक्षम बना सकता है।
  • निजी क्षेत्र में प्रतिनियुक्ति: एक संसदीय पैनल ने कार्यक्षेत्र में विशेषज्ञता तथा प्रतिस्पर्धा लाने हेतु निजी क्षेत्र में IAS और IPS की प्रतिनियुक्ति की अनुशंसा की है।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा अनुशंसित केन्द्रीय सिविल सेवा प्राधिकरण को लैटरल एंट्री हेतु विज्ञापित पदों पर तथा सरकार द्वारा इसे हस्तांतरित अन्य विषयों पर निर्णय लेना चाहिए।
  • मूल्यांकन प्रणाली: यथा वरिष्ठ नौकरशाहों हेतु सरकार की नवीन “360 डिग्री” निष्पादन मूल्यांकन प्रणाली जिसके अंतर्गत अधिकारियों को उनके वरिष्ठों, कनिष्ठों तथा बाह्य हितधारकों के फीडबैक के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है। नौकरशाहों के जिले के वार्षिक विकास संकेतकों से संलग्न प्रोत्साहनों की व्यवस्था भी की जा सकती है।
  • नौकरशाही संबंधी निर्णय-निर्माण को कम केंद्रीकृत तथा अधिक पारदर्शी बनाना: औपनिवेशिक भारतीय सिविल सेवा को कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने तथा राज्य नेतृत्व विकास का अनुकरण करने के एक प्राथमिक उद्देश्य के साथ निर्मित किया गया था। साथ ही इसे जनसामान्य की आवश्यकताओं से पृथक रखा गया था। भारत को इस टॉप-डाउन अप्रोच को अवश्य समाप्त करना होगा।
  • प्रत्येक विभाग हेतु लक्ष्य निर्धारण और निगरानी को संस्थागत बनाना: प्रत्येक मंत्रालय और सरकारी एजेंसी को एक स्पष्ट समय सीमा के साथ परिणाम आधारित लक्ष्यों का निर्धारण करना चाहिए।
  • सरकारी कर्मचारियों हेतु एक मानव संसाधन प्रणाली लागू करना: मानव संसाधन प्रबंधन को सरकार में रणनीतिक कार्य करने की आवश्यकता है। इसे एक एकीकृत ऑनलाइन मंच के माध्यम से कार्यान्वित करना चाहिए जो कर्मचारियों के नियुक्ति से सेवा-मुक्ति तक के समय को शामिल करता है।
  • केंद्र और राज्य स्तर पर मंत्रालयों के लिए ई-गवर्नेस और पेपरलेस गवर्नेस रैंकिंग: प्रत्येक सरकारी विभाग और एजेंसी को इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से ई-ऑफिस सिस्टम को अपनाने, कागज उपयोग को कम करने तथा नागरिक भागीदारी के आधार पर रैंक प्रदान की जानी चाहिए। यह वर्धित क्षमता, फाइलों पर प्रगति की बेहतर निगरानी तथा नागरिकों के साथ बेहतर सम्पर्क प्रदान करेगा।
  • यथासंभव बाह्य स्रोतों से सेवाओं की आपूर्ति: जहाँ तक संभव हो सरकारी प्रशासनिक प्रणाली पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए। निजी क्षेत्र को सेवाओं को उपलब्ध करवाने हेतु अनुमति प्रदान करने के लिए आधार आधारित पहचान सत्यापन प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।
  • सचिवों का दीर्घ कार्यकाल: वर्तमान में जब तक एक अधिकारी की अतिरिक्त सचिव से सचिव पद तक पदोन्नति होती है, तब तक उसके सेवानिवृत होने में केवल दो वर्ष या उससे भी कम समय शेष रह जाता है। यह अवस्था दो महत्वपूर्ण अक्षमताओं का सृजन करती है।

प्रथम, दो वर्ष से भी कम समयावधि के कार्यकाल के दौरान एक अधिकारी प्रमुख पहलों को प्रारम्भ करने में सशंकित होता है। द्वितीय, तथा अत्यंत महत्वपूर्ण है कि अधिकारी द्वारा उठाया गया कोई भी गलत कदम सेवानिवृति के पश्चात् पक्षपात या भ्रष्टाचार के आरोप का कारण बन सकता है। इसलिए अधिकारी किसी प्रमुख परियोजना पर निर्णय लेने हेतु दुविधाग्रस्त रहता है।

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