भूमि निम्नीकरण(Land Degradation)

भूमि निम्नीकरण और पुनरुद्धार पर IPBES आकलन रिपोर्ट जारी की गई।

लैंड डीग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी (LDN) क्या है?

UNCCD, LDN को एक अवस्था के रूप में परिभाषित करता है जिसमें पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार्यों का समर्थन करने और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि के लिए आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता निर्दिष्ट कालिक एवं स्थानिक पैमानों तथा पारिस्थितिक तंत्रों के भीतर स्थिर रहती है या वृद्धि करती रहती है। यह एक विशिष्ट दृष्टिकोण है जो निम्नीकृत क्षेत्रों में सुधार सहित उत्पादक भूमि की प्रत्याशित हानि को प्रतिसंतुलित करता है।

पृष्ठभूमि

  • भूमि निम्नीकरण कई रूपों में प्रकट होता हैः परती भूमि, वन्य प्रजातियों की संख्या में कमी, मृदा एवं मृदा-स्वास्थ्य की हानि,
    चारागाह प्रक्षेत्र (rangelands) एवं ताजे जल की कमी तथा निर्वनीकरण।
  • वैश्विक प्रभाव: वैश्विक स्तर पर, लगभग 2 अरब हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत हो गई है और लगभग 3.2 अरब से भी अधिक लोग भूमि निम्नीकरण से प्रभावित हैं। 2050 तक, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले जल के अभाव और फसल उत्पादकता में कमी से बचने हेतु लगभग 143 मिलियन लोग अपने ही देश के भीतर प्रवास कर जायेंगे।
  • भूमि पर बढ़ता दबाव: भारत का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल का लगभग 2.5% है। भारत के पास विश्व के कुल पशुधन का लगभग 20% है तथा इसके साथ ही यहाँ कुल मानव जनसंख्या का 16% से अधिक निवास करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के एक अनुमान के अनुसार, भूमि निम्नीकरण का आर्थिक प्रभाव प्रति वर्ष लगभग 40 बिलियन डॉलर से भी अधिक का है।
  • 2011 में, बॉन चैलेंज द्वारा वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर निर्वनीकरण और निम्नीकरण से प्रभावित भूमि के पुनरुद्धार हेतु वैश्विक प्रयास आरंभ किया गया था।

एजेंडा 21:

इसके अंतर्गत भूमि निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण से निपटने की आवश्यकता की पहचान की गई है। यह सुभेद्य एवं कम प्रभावित क्षेत्रों में निवारक उपायों को अपनाने तथा मध्यम से गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास कार्यों को अपनाने पर बल देता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया जाएगा:

  • उन्नत भूमि उपयोग नीतियां, पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त और आर्थिक रूप से व्यवहार्य प्रौद्योगिकियां।
  • उन्नत भूमि, जल और फसल प्रबंधन उपाय, प्राकृतिक संसाधनों का सहभागी प्रबंधन।

UNCCD की 10 वर्ष की रणनीति (2008-2018): इसे 2007 में मरुस्थलीकरण/भूमि निम्नीकरण को रोकने के लिए। SAVING OUR LAND वैश्विक साझेदारी बनाने और प्रभावित क्षेत्रों में सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए अपनाया गया था, जिससे गरीबी में  कमी लाने के साथ-साथ पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाया जा सके।

  • 2015 में, UNCCD पर कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COPs) द्वारा भी लैंड डीग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी (LDN) के लिए लक्ष्य निर्धारण प्रक्रिया का समर्थन किया गया है। तब से, 2030 तक लैंड डीग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी को प्राप्त करने के लिए भारत सहित 100 से अधिक देशों द्वारा इस स्वैच्छिक प्रक्रिया में  भाग लेने हेतु हस्ताक्षर किया जा चुका है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • मानव गतिविधियों के माध्यम से भूमि निम्नीकरण पृथ्वी पर छठी बार जीवों के सामूहिक विलोप, प्रजातियों की विलुप्ति  और जलवायु परिवर्तन को तीव्र करने की संभावनाओं को प्रेरित करता है।
  • मानव गतिविधियों ने पृथ्वी की सतह के 75% से अधिक भाग को प्रभावित किया है और इसके 2050 तक 90% तक बढ़ने का अनुमान है। मुख्यतः मरुस्थल, पहाड़ी क्षेत्र, टुंड्रा और ध्रुवीय क्षेत्र मानव उपयोग या उसके बसाव के लिए अनुपयुक्त हैं।
  • आर्द्रभूमियां विशेष रूप से निम्नीकृत हुई हैं। इनमें वैश्विक स्तर पर पिछले 300 वर्षों के दौरान 87% की कमी हुई है, इसमें से 54% की कमी 1900 के बाद दर्ज की गई है।
  • बढ़ता GHG उत्सर्जन: भूमि निम्नीकरण जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्ता है, अकेले निर्वनीकरण का मानव प्रेरित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में लगभग 10% का योगदान है, जबकि 2000 से 2009 के मध्य मृदा में संग्रहीत कार्बन की निर्मुक्ति 4.4 बिलियन टन CO2 के वार्षिक वैश्विक उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है।
  • 1970 से 2012 के मध्य, स्थल आधारित कशेरुकी वन्यजीव प्रजातियों के औसत आबादी आकार सूचकांक में 38% और ताजे जल की प्रजातियों में 81% की गिरावट दर्ज की गई है।
  • वित्तीय हानि: 2010 से जैव-विविधता और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं की हानि के कारण भूमि निम्नीकरण की लागत विश्व के  वार्षिक सकल उत्पाद का लगभग 10% रही थी।

रिपोर्ट के अनुसार 2050 के लिए अनुमान

  • ऐसा अनुमान किया गया है कि 4 अरब लोग शुष्क भूमि में निवास करेंगे और लगभग 50-700 मिलियन लोगों को प्रवास के लिए
    बाध्य होना पड़ेगा।
  • वैश्विक स्तर पर इसके करण फसल उपज में औसतन 10% तक की कम हो जाएगी और कुछ क्षेत्रों में यह कमी 50% तक भी हो सकती है।
  • अधिकांश निम्नीकरण मध्य और दक्षिण अमेरिका तथा उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्रों में होगा।
  • उपभोग, जनसांख्यिकी और प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व वृद्धि 21वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग चार गुना कर देगी ।
  • पशुधन के पालन के लिए आवश्यक प्रक्षेत्र (चरागाह क्षेत्रों) की क्षमता भी भविष्य में कम हो जाएगी, ऐसा भूमि निम्नीकरण तथा प्रक्षेत्र में कमी दोनों के सम्मिलित प्रभाव के कारण होगा।
  • 2050 तक जैव-विविधता हानि के लगभग 38-46% तक पहुँचने का अनुमान है।

भूमि निम्नीकरण और भारत

  • ISRO द्वारा जारी मरुस्थलीकरण एवं भूमि निम्नीकरण एटलस रिपोर्ट के अनुसार, देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग
    30% निम्नीकरण से प्रभावित है।
  • भूमि निम्नीकरण के कारण: सीमान्त और निम्न उत्पादक भूमि पर या प्राकृतिक खतरों के लिए सुभेद्य भूमि पर कृषि कार्यों का विस्तार, अनुचित फसल चक्रण प्रणाली, कृषि रसायनों का अत्यधिक उपयोग, सिंचाई प्रणाली का कुप्रबंधन इत्यादि

निर्वनीकरण और कम उत्पादक भूमि पर कृषि के विस्तार के लिए जिम्मेदार हैं

  • इसके लिए कृषक परिवारों में गरीबी, भूमि विखंडन, असुरक्षित भूमि स्वामित्व, कुछ संसाधनों की मुक्त पहुंच की प्रकृति
    और नीतिगत एवं संस्थागत विफलताओं आदि को अंतर्निहित कारण माना जा सकता है।

स्थायी भूमि एवं पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन कार्यक्रम

(Sustainable land and Ecosystem Management Programme: SLEM)

  • यह GEF कंट्री पार्टनरशिप प्रोग्राम (CPP) के तहत भारत सरकार और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) की एक संयुक्त
    पहल है।
  • उद्देश्य: जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए स्थायी भूमि प्रबंधन और जैव-विविधता के उपयोग के साथ-साथ वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को बढ़ावा देना ।
  • MoEF के अंतर्गत गठित मरुस्थलीकरण प्रकोष्ठ, SLEM कार्यक्रम संबंधी दृष्टिकोण के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयन एजेंसी है। ICFRE, देहरादून को SLEM प्रोग्राम के लिए तकनीकी सुविधा प्रदाता संगठन के रूप में नामित किया गया है।

भूमि निम्नीकरण का मुकाबला करने के लिए सुझाव

प्रक्षेत्र (ऐसे क्षेत्र जहां मुख्य रूप से घास या घास जैसे पौधे एवं झाड़ियां पाई जाती हैं, इसके अंतर्गत विश्व के कुल भूमि सतह का ।
लगभग आधा भाग सम्मिलित है) में भूमि निम्नीकरण के संरक्षण के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं

  • भूमि क्षमता और स्थिति आधारित आकलन और निगरानी।
  • चरागाहों पर बढ़ते दबाव का प्रबंधन, चारा और चारा फसलों का प्रबंधन, अतिरिक्त चारा फसलों का प्रबंधन (Silvopastoral
    management), खरपतवार और कीट प्रबंधन इत्यादि।
  • उचित अग्नि व्यवस्था (fire regimes) बनाए रखने और स्थानीय पशुधन प्रबंधन आधारित कार्यप्रणालियों और संस्थानों की
    पुन:स्थापन या विकास को सुनिश्चित करना।आक्रामक प्रजातियों के परिणामस्वरूप भूमि निम्नीकरण का मुकाबला करने के लिए उनके आगमन मार्ग की पहचान एवं निगरानी और इन प्रजातियों के विस्तार को रोकने के लिए आवश्यक उन्मूलन और नियंत्रण उपायों (यांत्रिक, सांस्कृतिक, जैविक और रासायनिक) को अपनाना।

LDN प्राप्त करने के लिए उठाए गए कदम

  • 2015 में अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों में से एक 2030 तक LDN को प्राप्त करना है।
  • UNCCD राष्ट्रीय लैंड डीग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी (LDN) लक्ष्य निर्धारण प्रक्रिया में इच्छुक देशों का समर्थन कर रहा है, जिसमें LDN लक्ष्य निर्धारण कार्यक्रम (TSP) के माध्यम से 2030 तक LDN प्राप्त करने के लिए नेशनल बेसलाइन, लक्ष्य और संबंधित उपायों
    की परिभाषा शामिल है।
  • LDN फंड UNCCD द्वारा समर्थित और मिरोवा (एक निजी निवेश प्रबंधन कंपनी) द्वारा प्रबंधित है। इसे टिकाऊ कृषि, टिकाऊ पशुधन प्रबंधन, कृषि वानिकी, टिकाऊ वानिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, अवसंरचना विकास और पारिस्थितिकी पर्यटन सहित विश्व भर में भूमि पुनर्मुधार और टिकाऊ भूमि प्रबंधन पर बैंक ग्राह्य (bankable) परियोजनाओं में निवेश के लिए निर्मित किया गया है।
  • UNCCD द्वारा ग्लोबल लैंड आउटलुक नामक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें मानव कल्याण के लिए भूमि की गुणवत्ता के केंद्रीय महत्व को प्रदर्शित किया गया है; भूमि परिवर्तन, निम्नीकरण और हानि की मौजूदा प्रवृतियों का आकलन प्रस्तुत किया गया है; प्रेरक कारकों की पहचान और प्रभावों के विश्लेषण किया गया है।
  • भूमि निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण की चुनौतियों का सामना करने के लिए 2011 में UNCCD के COP10 में लैंड फॉर लाइफ प्रोग्राम आरंभ किया गया था।
  • भारत में, 2001 में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने हेतु अगले 20 वर्षों के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP) को आरंभ किया गया था।
  • एकीकृत जल-संभर प्रबंधन कार्यक्रम, प्रति बूंद अधिक फसल, स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, राष्ट्रीय हरित मिशन जैसी योजनाओं में DLDD से निपटने के लिए घटक विद्यमान हैं।
  • इसरो एवं 19 अन्य सहयोगियों द्वारा, GIS परिवेश में भारतीय रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग करके, संपूर्ण देश का मरुस्थलीकरण
    एवं भूमि निम्नीकरण एटलस (2016) तैयार किया गया था।

खनन क्षेत्रों में भूमि निम्नीकरण के संरक्षण के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं:

  • खनन अपशिष्ट (मृदा और जल) का ऑन-साइट प्रबंधन, खनन साइट की स्थलाकृति में सुधार और ऊपरी मृदा का शीघ्र
    प्रतिस्थापन।
  • उपयोगी घास के मैदान, वन, आर्द्रभूमि और अन्य पारिस्थितिक तंत्रों का पुनरुद्धार करने हेतु पुनर्निर्माण और पुनर्वास उपायों
    को अपनाना।

आर्द्रभूमि क्षेत्र में भूमि निम्नीकरण का संरक्षण:

इसके अंतर्गत नियंत्रक बिंदु और प्रदूषण स्रोतों को अवरुद्ध करना, एकीकृत भूमि और जल प्रबंधन रणनीतियों को अपनाना, निष्क्रिय एवं सक्रिय पुनरुद्धार उपायों के माध्यम से आर्द्रभूमि जलक्षेत्र, जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की कार्य प्रणाली को पुनस्र्थापित करना, जैसे- निर्मित आर्द्रभूमियां (constructed wetlands) इत्यादि सम्मिलित हैं।

कृषि उत्पादकता को बढ़ाना

  • कम भूमि निम्नीकरण करने वाले खाद्य आहारों की ओर स्थानांतरण, अवहनीय स्रोतों से प्राप्त पशु आधारित प्रोटीन का कम उपयोग, खाद्य हानि एवं अपशिष्ट में कमी।
  • संस्थागत, शासन, समुदाय और व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न नीतिगत उपकरणों और अनुक्रियाओं का समन्वित और एक साथ उपयोग करना।
  • स्थायी भूमि प्रबंधन कार्यप्रणालियों की डिजाइन, कार्यान्वयन और मूल्यांकन में स्थानीय लोगों एवं स्थानीय समुदायों सहित भूमि प्रबंधकों की प्रमुख भूमिका को पहचानना।
  • शहरी नियोजन, देशज प्रजातियों का पुनःरोपण, हरित अवसंरचना विकास, दूषित और सील्ड मृदा (जैसे- एस्फाल्ट के अंतर्गत) के
    उपचार, अपशिष्ट जल उपचार और नदी चैनल की पुनस्र्थापना।
  • निम्नीकरण को बढ़ावा देने वाले विकृत प्रोत्साहनों को समाप्त करना, जैसे- अधिक उत्पादन को बढ़ावा देने वाली सब्सिडी; इसके
    स्थान पर अधिक सकारात्मक प्रोत्साहनों पर विचार करना जो स्थायी भूमि प्रबंधन कार्यप्रणालियों को अपनाने को बढ़ावा देते हों।

निष्कर्ष

भूमि निम्नीकरण समस्या का समाधन न केवल देशों के लिए आर्थिक रूप से लाभप्रद है, बल्कि यह SDGs और पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है। भूमि निम्नीकरण में कमी और परिवर्तन मृदा की कार्बन अवशोषण एवं भंडारण प्रक्रियाओं के माध्यम से 2030 तक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में % तक की कटौती कर सकता है।

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