भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी : इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में संक्रमण से जुड़ी चुनौतियां

प्रश्न: भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए, इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में संक्रमण से जुड़ी चुनौतियों की विवचेना कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के संदर्भ का परिचय दीजिए।
  • भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की संभावनाओं को रेखांकित कीजिए।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में संक्रमण से जुड़ी चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • सुगम संक्रमण के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर:

भारत सरकार कार्बन उत्सर्जन को कम करने और अपने अभीष्ट राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने हेतु प्रयासरत है। संधारणीय परिवहन के लिए अपनी संभावनाओं के कारण भारत वर्ष 2030 तक पूर्णतया इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की योजना बना रहा है।

भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की संभावनाएँ:

  • निम्न परिचालन लागत: इलेक्ट्रिक वाहनों के परिचालन से यात्रियों की एक विशाल आबादी को कम किराए का लाभ प्राप्त हो सकता है।
  • पर्यावरणीय लाभ: परिवहन क्षेत्रक भारत में CO2 के उत्सर्जन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से वर्ष 2030 तक भारत की ऊर्जा मांग में 64% और कार्बन उत्सर्जन में 37% तक की कमी आ सकती है।
  • आयात पर निर्भरता में कमी: भारत अपने परिवहन ईंधन के 80 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति करने हेतु तेल का आयात करता है। इलेक्ट्रिक वाहन (electric vehicles:EV) आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता को कम कर भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • आर्थिक अवसर: इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और बैटरी विनिर्माण जैसे संबद्ध क्षेत्रों (जो सनराइज उद्योग हैं) को प्रोत्साहित करने से भारत के परिवहन बाजार क्षेत्रक में विविधता आएगी तथा अत्यधिक आर्थिक अवसर सृजित होंगे। उदाहरण के लिए, भारत के बैटरी बाजार का आकार वर्ष 2025 तक 9 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, जिनमें से अधिकांश बैटरियों का प्रयोग इलेक्ट्रिक वाहनों में किया जाएगा।
  • भारत में उपलब्ध क्षमता: इस मिशन में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की दिशा में स्थानांतरण हेतु विनिर्माण और IT सॉफ्टवेयर में कुशल मानव शक्ति तथा तकनीक की उच्च उपलब्धता का लाभ उठाया जा सकता है।

उपर्युक्त संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने ‘फेम-इंडिया योजना’ (हाइब्रिड एवं विद्युत वाहनों का शीघ्र अंगीकरण और विनिर्माण) के चरण-2, नेशनल मिशन ऑन ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज, पॉलिसी ऑन चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि सहित विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन किया है।

इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में संक्रमण से संबद्ध चुनौतियाँ:

  • EV उत्पादन के लिए एक स्थिर नीति का अभाव: EV उत्पादन पूँजी गहन क्षेत्रक है, जिसके ब्रेक इवेन (ऐसी स्थिति जहाँ न लाभ होता है और न हानि) पॉइंट पर पहुँचने तथा इसके पश्चात् लाभ की प्राप्ति हेतु दीर्घावधिक नियोजन की आवश्यकता है। EV उत्पादन से संबंधित सरकारी नीतियों में अनिश्चितता, इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है।
  • अपर्याप्त चार्जिंग अवसंरचना: चार्जिंग अवसंरचना की सीमित उपलब्धता भारत में ई-वाहनों के त्वरित अंगीकरण में एक प्रमुख बाधा है।
  • बैटरी सम्बन्धी प्रौद्योगिकी: भारत को अपनी जलवायवीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त बैटरियों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, लीथियम-आयन बैटरी के निर्माण में प्रयुक्त लीथियम और कोबाल्ट जैसे कच्चे माल के अभाव का उपयुक्त आयात द्वारा निवारण किया जाना चाहिए।
  • उपभोक्ता लागत: वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत डीजल/पेट्रोल कारों की कीमत की तुलना में लगभग दोगुनी है। अनुसंधान एवं विकास (R&D) के निम्न स्तर के कारण पारंपरिक आंतरिक दहन इंजनों की तुलना में लागत अधिक बनी हुई है।
  • चार्जिंग में अत्यधिक समय की हानि: फास्ट चार्जर इलेक्ट्रिक कार को चार्ज करने में लगभग आधे घंटे का समय लेता है, जबकि स्लो चार्जरों के लिए यह अवधि 8 घंटे भी हो सकती है। यह पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने हेतु लगने वाले आवश्यक समय से बहुत अधिक है।
  • एकाधिक प्राधिकरण: इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को दिशा-निर्देशों के लिए भारी उद्योग मंत्रालय और सड़क परिवहन मंत्रालय, चार्जिंग अवसंरचना पर ऊर्जा मंत्रालय तथा कराधान संबंधी मुद्दों के लिए वित्त मंत्रालय एवं GST परिषद से संबंद्ध प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है।
  • रासायनिक प्रदूषण: प्रदूषण को रोकने हेतु भारत में बैटरियों के लिए पर्यावरण अनुकूल निपटान सुविधाओं का अभाव है।

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लक्ष्यों को प्राप्त करने और व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए परिवहन क्षेत्र हेतु एक नीतिगत ब्लूप्रिंट की आवश्यकता है। इसमें वाहनों की लागत और चार्जिंग समय को कम करने के लिए बैटरी स्वैपिंग (बैट्री बदलना) जैसे तत्व शामिल होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, “मेक इन इंडिया” को मुख्य लक्ष्य के रूप में रखते हुए, इलेक्ट्रिक वाहन घटकों के आयात शुल्क के लिए एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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