कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने और जलवायु परिवर्तन की सुभेद्यता को कम करने में प्रौद्योगिकी की क्षमता पर चर्चा

प्रश्न: उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की सुभेद्यता को कम करने हेतु किसानों की सहायता करने के लिए प्रौद्योगिकी की क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं हो पाया है। इसके कारणों की पहचान कीजिए और कृषि में प्रौद्योगिकी प्रसार में सुधार हेतु उपाय सुझाइए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने और जलवायु परिवर्तन की सुभेद्यता को कम करने में प्रौद्योगिकी की क्षमता पर चर्चा कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि किन कारणों से कृषि में प्रौद्योगिकी की क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं हो पाया है।
  • कृषि में प्रौद्योगिकी प्रसार में सुधार हेतु उपाय सुझाइए।

उत्तर

कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की सुभेद्यता का समाधान करने के लिए प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है।

इसे निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:

कृषि उत्पादकता में वृद्धि 

  • डिजिटल तकनीक फसल और आगत चयन, ऋण और बीमा की सुविधा, मौसम संबंधी सलाह और फसल रोगों/कीट से  संबंधित सहायता निर्देश के साथ-साथ घरेलू एवं निर्यात बाजारों पर रीयल-टाइम डेटा प्रदान कर सकती है।
  • रिमोट सेंसिंग (उपग्रहों के माध्यम से), GIS, फसल एवं मृदा स्वास्थ्य निगरानी तथा पशुधन एवं कृषि प्रबंधन की प्रौद्योगिकियों में एक और कृषि क्रांति लाने की संभावना निहित है।
  • प्रभावी कृषि प्रसार के साथ कम्प्यूटरीकृत परीक्षण उपकरणों का उपयोग करके, मृदा परीक्षण को लागू करने के साथ न्यूनतम मृदा व्यवधान, मिश्रित कृषि, स्थायी मृदा आच्छादन और फसल चक्रण संबंधी कृषि संरक्षण सिद्धांतों को प्राप्त किया जा सकता है।
  • जो प्रौद्योगिकियां कृषि वस्तुओं की शेल्फ लाइफ (सामग्री के भंडार और उपयोग होने तक की अवधि) को बढ़ाती हैं अथवा बायो-फोर्टिफाई करती हैं, उनमें अपशिष्ट को कम करने और पोषण को बढ़ाने की क्षमता होती है।

जलवायु परिवर्तन के कारण सुभेद्यता का सामना करना:

  • अनुसंधान में अधिक निवेश के साथ बहु-प्रतिरोधी फसलों का विकास किया जा सकता है जो सूखे, बाढ़, वर्षा में कमी और अधिक परिवर्तनीयता जैसे चरम मौसमी दशाओं का सामना कर सकती हैं। इसी प्रकार पशुपालन के माध्यम से पशुधन की स्वदेशी नस्लों को संरक्षित किया जा सकता है और जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से प्रतिरोधी नस्लों का विकास किया जा सकता है।
  • जल के कुशल उपयोग की ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रौद्योगिकियां जल के उपयोग में कमी ला सकती हैं। इसी प्रकार, एक्वापोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स भूमि उपलब्धता की समस्याओं का समाधान करने के व्यवहार्य तरीकों को प्रस्तुत करते है।
  • प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित सूचनाएं प्रसारित करने वाली प्रौद्योगिकियां अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन के कारण होने वाली क्षति को रोकने में सहायक हैं।

इन लाभों के बावजूद, निम्नलिखित चुनौतियों के कारण कृषि में प्रौद्योगिकी की क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं किया जा सका है:

  • एक विविधतापूर्ण कृषि क्षेत्र के लिए विश्वसनीय, अद्यतन, स्थान-विशिष्ट भंडार-गृह (repository) की अनुपस्थिति।
  • निम्न डिजिटल साक्षरता दर, लैंगिक विभाजन और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण और शिक्षा में निवेश की कमी।
  • कृषि में हस्तक्षेप के वास्तविक प्रभाव की अपर्याप्त निगरानी।
  • चीन जैसे देशों की तुलना में कृषि अनुसंधान में कम निवेश।
  • जीनोमिक्स प्रौद्योगिकियों का प्रतिरोध; उदाहरण के लिए, बीटी बैंगन, बीटी सरसों आदि को अपनाए जाने का विरोध।

तात्कालिक आवश्यकता

अनुसंधान क्षेत्र में न केवल निवेश की कमी है, बल्कि कृषि प्रसार प्रणाली, जैसे कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा सीमित परिणाम दिए गए हैं। इस प्रकार, चुनौतियों की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एक सुसंगत, जलवायु-स्मार्ट, एकीकृत ढांचे की आवश्यकता है, जो मिशन मोड दृष्टिकोण से परे है।

प्रौद्योगिकी का इन्क्यूबेशन परिणाम आधारित प्रौद्योगिकी नीति के माध्यम से किया जाना चाहिए जो कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और इन्क्यूबेशन को प्रोत्साहित करता है। उत्पादकता प्राप्त करने के क्रम में जागरूकता और आउटरीच गतिविधियों को बढ़ाने के लिए पंचायत और उचित मूल्य की दुकानों के विशाल नेटवर्क का उपयोग किया जाना चाहिए।

भौतिक अवसंरचना, विद्युत, ब्रॉडबैंड, परिवहन इत्यादि में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। इसके साथ ही भारत को डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने हेतु विशेष रूप से निर्धन क्षेत्रों में सर्वाधिक गरीब लोगों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए अत्यधिक निवेश की आवश्यकता है।

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