खनन की एक संक्षिप्त परिभाषा

प्रशन: खनन की विभिन्न पद्धतियों की व्याख्या कीजिए। भारत में खनन गतिविधियों को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, खनन गतिविधियों से सम्बद्ध चिंताओं की भी विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • खनन की एक संक्षिप्त परिभाषा देते हुए इसकी विभिन्न पद्धतियों की व्याख्या कीजिए।
  • भारत में खनन गतिविधियों को प्रभावित करने वाले कारकों को रेखांकित कीजिए।
  • खनन गतिविधियों से संबद्ध चिंताओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर:

खनन से आशय ऐसी प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक भाग से विभिन्न खनिज पदार्थों जैसे- धात्विक यौगिकों तथा कोयला, रेत, तेल व प्राकृतिक गैस इत्यादि जैसे गैर-खनिज पदार्थों को उत्खनित किया जाता है। अयस्क की उपस्थिति और प्रकृति के आधार पर, खनन निम्न प्रकार के होते हैं:

  •  धरातलीय खनन (Surface mining): इसे विवृत खनन (open-cast) भी कहा जाता है, यह खनिजों के खनन की सबसे सरल व सस्ती विधि है और इस विधि का प्रयोग सतह के निकट विद्यमान पदार्थों के खनन हेतु किया जाता है। इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर किया गया व्यय अपेक्षाकृत कम होता है। इस विधि के अंतर्गत उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।
  • भूमिगत खनन (Underground mining): अयस्क के धरातल के नीचे गहराई में निक्षेपित होने की स्थिति में भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि (shaft method) का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में, लंबवत कूपक गहराई तक खोदे जाते हैं जहां से खनिजों तक पहुँचने हेतु भूमिगत गैलरियां विस्तृत होती हैं। इन मार्गों से ही खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है।

अन्य पद्धतियों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • प्लेसर खनन, इस विधि का उपयोग नदी मार्गों, पुलिन बालू अथवा अन्य परिवेशों की तलछटों से मूल्यवान धातुओं के निष्कर्षण के लिए किया जाता है।
  • स्व-स्थानिक खनन, इस विधि का उपयोग मुख्य रूप से यूरेनियम के खनन के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत खनिज संसाधनों को उसी स्थान पर विलयित (dissolving) किया जाता है। इसके पश्चात धरातल से शैलों को हटाए बिना सतह पर इस खनिज को परिष्कृत किया जाता है।

भारत में खनन गतिविधि को प्रभावित करने वाले कारक:

भौतिक कारक

  • खनिज निक्षेपों का आकार तथा अयस्क की श्रेणी: यह एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि खनन के लिए बड़ी मात्रा में महंगे उपकरणों की आवश्यकता होती है। उच्च श्रेणी के अयस्क अधिक मात्रा में धातुओं का उत्पादन करते हैं, इसलिए ये अधिक खनन गतिविधियों को आकर्षित करते हैं।
  • निक्षेपों की उपलब्धता की अवस्था: यह खनन की विधि के प्रयोग को निर्धारित करता है।
  • अभिगम्यता (पहुंच): भू-भाग और जलवायु अभिगम्यता का निर्धारण करते हैं जो खनन कार्यों में सहायता अथवा अवरोध उत्पन्न करता है।

आर्थिक कारक

  • खनिज की मांग: स्वर्ण, हीरा, तांबा, यूरेनियम इत्यादि की अत्यधिक माँग के कारण इनका प्राय: उच्च कीमत पर खनन किया जा सकता है तथा इन्हें उच्च लागत पर विक्रय किया जा सकता है।
  • विद्यमान तकनीक और उसका उपयोग: प्रौद्योगिकी में परिवर्तनों के कारण खनिज संसाधनों के दोहन के तरीकों में भी परिवर्तन हुआ है। उदाहरण के लिए, सुदूर संवेदन तकनीकों (रिमोट सेंसिंग तकनीकों) की सहायता से, किसी क्षेत्र में खनिज संसाधनों के भंडारों का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • परिवहन लागत: परिचालन लागत के संदर्भ में, तटीय स्थानों अथवा औद्योगिक स्थलों के निकट स्थित निक्षेपों का दूर – स्थित अंतर्देशीय निक्षेपों की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है।
  • अन्य कारक: इसके अंतर्गत श्रम लागत, अवसंरचना के विकास हेतु पूंजी, प्रशुल्क नीतियां इत्यादि सम्मिलित होते हैं।

खनन गतिविधि से संबद्ध चिंताएं:

  • वनस्पति-ह्रास और भूमि क्षरण: खनन के लिए वनस्पति के साथ-साथ मूलाधार मृदा की परतों और ऊपरी शैल खण्डों को हटाने की आवश्यकता होती है, जिससे उस क्षेत्र का भू-परिदृश्य नष्ट हो जाता है।
  • भू-अवतलन: खनन क्षेत्रों के अवतलन के परिणामस्वरूप इमारतों में झुकाव, घरों में दरारें, सड़कों में संकुचन (बकलिंग), रेल की पटरियों में मुड़ाव, पाइप लाइनों की दरारों से गैस का रिसाव आदि विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है, जो गंभीर आपदाओं का कारण बनती हैं।
  • जल प्रदूषण: अयस्कों में उपस्थित सल्फर से सल्फ्यूरिक अम्ल का निर्माण होता है जो खनन गतिविधियों के माध्यम से सतही जल के साथ-साथ भूजल के प्रदूषण (खान से होने वाला अम्लीय अपवाह) का भी एक गंभीर कारण बनता है। यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ व भारी धातुएँ भी जल निकायों को प्रदूषित करती हैं।
  • वायु प्रदूषण: सल्फर ऑक्साइड, आर्सेनिक अम्ल, कैडमियम और लेड आदि प्रगालकों का निकटवर्ती वायुमंडल में तीव्रता से प्रसार हो जाता है। साथ ही, खनन गतिविधियां उस क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर धूल प्रदूषण का कारण बनती हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण: ड्रिलिंग व विस्फोट जैसी गतिविधियां, फावड़ों, डंपरों, ड्रिलिंग यंत्रों, बुलडोज़रों, रिपर्स इत्यादि जैसे खनन उपकरणों का संचालन निकट के क्षेत्र में गंभीर ध्वनि प्रदूषण का कारण बनता है।
  • व्यावसायिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: विभिन्न प्रकार की खदानों में काम करने वाले खनिक (खदानों या खानों में खनन कार्य करने वाले श्रमिकों को खनिक कहते हैं) एस्बेस्टोसिस, सिलिकोसिस, ब्लैक लंग डिजीज इत्यादि रोगों से पीड़ित हो जाते हैं। मेघालय (रेट-होल खनन) में खदानों का ढह जाना, यह खनन से संबंधित एक अन्य गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.