कच्चे माल और उद्योगों की अवस्थिति के मध्य सम्बन्धों का संक्षेप में वर्णन : वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति के प्रभाव

प्रश्न: कच्चे माल और उद्योगों की अवस्थिति के मध्य संबंध स्पष्ट कीजिए। वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति इस संबंध को कैसे परिवर्तित कर रहे हैं?

दृष्टिकोण

  • कच्चे माल और उद्योगों की अवस्थिति के मध्य सम्बन्धों का संक्षेप में वर्णन करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • इस संबंध पर पड़ने वाले वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति के प्रभावों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • जहाँ भी आवश्यक हो, उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  • उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

औद्योगिक अवस्थिति मुख्य रूप से लागत पर निर्भर करती है। केवल संसाधनों की उच्च उपलब्धता ही किसी क्षेत्र में उद्योगों की अवस्थिति हेतु उत्तरदायी कारक नहीं होती। वस्तुतः ये किसी क्षेत्र अथवा जगह में निहित तुलनात्मक लाभ होते हैं जो उद्योगों की स्थापना को प्रेरित करते हैं। उद्योगों की अवस्थिति कच्चे माल, ऊर्जा, बाजार, पूँजी, परिवहन और श्रम आदि की उपलब्धता जैसे कारकों से निर्धारित होती है। अतः विनिर्माण उद्योगों की स्थापना उस स्थान पर करना अत्यधिक लाभप्रद होता है, जहाँ उपभोक्ताओं हेतु उत्पादित वस्तुओं की विनिर्माण लागत और वितरण लागत कम हो।

कच्चे माल की उपलब्धता और उद्योगों की अवस्थिति के मध्य एक मजबूत सम्बन्ध होता है, जिसे नीचे प्रदर्शित किया गया है:

  • वे उद्योग जो प्राथमिक चरणों में भारी और बड़ी मात्रा में कच्चे माल का उपयोग करते हैं, वे सामान्यतः कच्चे माल की आपूर्ति के निकट स्थित होते हैं। उदाहरण के लिए- लौह एवं इस्पात तथा कोयला उद्योग आदि।
  • ऐसे कच्चे माल पर आधारित उद्योग जिनका विनिर्माण की प्रक्रिया में भार कम हो जाता है, कच्चे माल के स्रोत के निकट स्थित होते हैं, जैसे- चीनी मिल इत्यादि।
  • ऐसे कच्चे माल पर आधारित उद्योग जिनका परिवहन उनकी शीघ्र नष्ट होने की प्रकृति के कारण दूर तक नहीं किया जा सकता, कच्चे माल के स्रोत के निकट स्थित होते हैं। उदाहरणस्वरूप- कृषि-प्रसंस्करण और डेयरी उत्पाद।
  • एक उद्योग द्वारा तैयार अंतिम उत्पाद किसी अन्य उद्योग के लिए कच्चा माल हो सकता है। उदाहरण के लिए ढलवां लोहा (pig iron), जिसका प्रगलन उद्योग और स्टील विनिर्माण उद्योग में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। इसलिए इन उद्योगों को एक-दूसरे के निकट स्थापित किया जाता है।
  • कच्चे माल पर आधारित उद्योग जो उच्च परिवहन लागत वहन नहीं कर सकते, उन्हें उनके स्रोत के निकट स्थापित किया जाता है। जैसे सूती वस्त्र उद्योग इत्यादि।

हालांकि वर्तमान में इस परिदृश्य में वैश्वीकरण के प्रभावों और तकनीकी प्रगति के कारण निम्नलिखित तरीके से परिवर्तन हो रहे हैं: 

  • तकनीकी विकास के कारण परिवहन लागत में कमी ने उपर्युक्त वर्णित सम्बन्ध को परिवर्तित किया है तथा वर्तमान में उद्योग अपने कच्चे माल के स्रोत से दूर भी स्थापित किए जा सकते हैं।
  • बाजार और लाभ उन्मुखीकरण: उत्पादों की बढ़ती मांग और उत्पादों के कस्टमाईजेशन (इच्छित विनिर्माण) से संबंधित मांग की प्रवृत्ति में वृद्धि के कारण उद्योग, बाजार के निकटवर्ती स्थानों पर स्थापित किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिएमोबाइल विनिर्माण उद्योग इत्यादि।
  • बैकवर्ड लिंकेज और कोल्ड-चेन स्टोरेज में सुधार: तकनीकी उन्नति के परिणामस्वरूप शीघ्र नष्ट होने वाले कच्चे माल का लंबी दूरी तक परिवहन संभव हुआ है।
  • राज्य की नीतियाँ और प्रोत्साहन: वैश्वीकरण के युग में राज्य उद्योगों को प्रोत्साहित करने और निवेश को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। इसने कच्चे माल की उपलब्धता से स्वतंत्र रहते हुए उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित किया है। उदाहरणस्वरूप- मुक्त व्यापार समझौता, कर छूट, सीमा शुल्क आदि।
  • कृत्रिम परिवेश का निर्माण: तकनीकी प्रगति ने कृत्रिम परिवेश के निर्माण और प्राकृतिक परिवेश में वांछित उत्पाद के उत्पादन के लिए आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता को सुगम बनाया है। उदाहरण के लिए, सूती वस्त्र उद्योग हेतु आवश्यक आर्द्र स्थिति को प्रौद्योगिकी के सहयोग से कृत्रिम रूप में उपलब्ध कराया जा रहा है।
  • उद्योगों का विस्तार: वैश्वीकरण के कारण एकल उद्योगों द्वारा उद्योग को सदैव कच्चे माल के स्थान पर स्थापित करने जैसी बाध्यता से मुक्त होकर विभिन्न स्थानों पर अपनी शाखाएं स्थापित की जा रही हैं। वैश्वीकरण ने राष्ट्रों के मध्य व्यापार संबंधी बाधाओं को कम किया है। साथ ही, उद्योगों को अब कहीं भी स्थापित किया जा सकता है अर्थात कच्चे माल के निकट अवस्थित होने संबंधी निर्भरता की समाप्ति और प्रौद्योगिकी के लाभ के कारण उद्योग अब केवल कच्चे माल की उपलब्धता पर उत्तरोत्तर कम निर्भर होते जा रहे हैं।

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