केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964 का संक्षिप्त परिचय : सरकारी नीतियों की आलोचना पर प्रतिबन्ध

प्रश्न: “सरकार की नीतियों की आलोचना का पूर्णतया निषेध अमान्य और शून्य है, और यदि आलोचना करने वाला व्यक्ति एक सरकारी सेवक है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।” सिविल सेवा आचरण नियमावली,1964 के संदर्भ में आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली, 1964 का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • उन नियमों का उल्लेख कीजिए जो सरकारी नीतियों की आलोचना पर प्रतिबन्ध लगाते हैं।
  • सिविल सेवकों द्वारा सरकारी नीतियों की आलोचना का निषेध लोकतंत्र में वांछनीय नहीं हैं, कारण बताइए।
  • साथ ही, नियमों की आवश्यकता हेतु तर्क प्रस्तुत कीजिए।
  • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।

उत्तर

सिविल सेवा आचरण नियमावली, 1964 को सिविल सेवकों में पूर्ण सत्यनिष्ठता, कर्तव्य के प्रति समर्पण और राजनीतिक तटस्थता बनाए रखने के लिए तैयार किया गया है। हालांकि, कुछ नियम सिविल सेवकों द्वारा सरकार की आलोचना का निषेध करते है।

उदाहरण के लिए नियमावाली 9 किसी भी सिविल सेवक को “अपने नाम से या अज्ञात रूप से या उपनाम या किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर” किसी ऐसे कथन (विवरण) से संबंधित तथ्य या विचार को प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाता है जो केंद्र सरकार या राज्य सरकार की वर्तमान या हाल में ही आरंभ की गई नीतियों या कार्यों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता हो। “

सरकार की आलोचना का निषेध क्यों विवादित है?

  • लोकतंत्र सरकार और इसकी नीतियों की निष्पक्ष आलोचना पर आधारित होता है।
  • कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य वाद में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह निर्णय दिया गया कि “चूंकि अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों पर लागू होता है अतः अन्य सभी नागरिकों के समान सिविल सेवकों को भी मौलिक अधिकार से संबंधित सुरक्षा प्राप्त है।”
  • ऐसी पूर्वधारणा है कि सरकार के प्रति की जाने वाली आलोचना अनुशासन सम्बन्धी कारवाई को अत्यधिक क्लिष्ट बनाती है।
  • इन नियमों का निर्माण लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के समय ही किया गया था किन्तु अब कई दशकों के उपरांत हमारा लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है, अत: रचनात्मक आलोचना की स्वीकृति मिलनी चाहिए।
  • इन नियमों में सत्तारूढ़ औपनिवेशिक शासन के तत्व विद्यमान हैं ,जो सत्तावादी शासन के अनुकूल हैं ,न कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के अनुकूल।

इस प्रकार के नियम की आवश्यकता क्यों है?

  • अनामिता सिविल सेवा का आधारभूत मूल्य है। किसी पद के कर्तव्यों से असम्बद्ध विषयों पर विचारों की अभिव्यक्ति से इस  मूल्य के साथ समझौता किये जाने की सम्भावना हो सकती है।
  • आलोचना के राजनीतिकरण को प्रतिबंधित करता है क्योंकि इसे राजनीतिक दलों द्वारा सरकार की आलोचना हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • ऐसे नियम सिविल सेवकों की तटस्थता और निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं और वे चर्चा में आए बिना निरंतर सहायता एवं परामर्श देते हैं तथा साथ ही नीतियों का कार्यान्वयन करते हैं।
  • लोक सेवक को सत्ता में कौन-सा राजनीतिक दल है, इसके बारे में चिंतित हुए बिना कार्य करने और राजनीतिक स्वामियों से सुसंगत संबंध बनाए रखने में मदद करता है।
  • इससे नीति निर्माण में निरंतरता आती है।
  • नीतियों की आलोचना सरकार के प्रति जनता के विश्वास को कम करती है।

अतः आचरण नियमवाली में सुधार की आवश्यकता हो सकती है किन्तु स्पष्ट रूप से निषेध की पूर्ण रूपेण अस्वीकृति अनुचित है। इस संबंध में निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • इसे दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (2ND ARC) द्वारा अनुशंसित “कोड ऑफ़ एथिक्स” के अपेक्षाकृत व्यापक सेट द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
  • एक आंतरिक तंत्र का निर्माण किया जा सकता है जिसमें अधिकारी नीतियों सम्बन्धी अपना असंतोष व्यक्त कर सकें जिस पर सरकार द्वारा आवश्यक रूप से ध्यान दिया जाए।
  • नीतियों और सरकार/मंत्री की आलोचना के मध्य विभेद किया जाना चाहिए। जहां एक सामान्य नागरिक के रूप में पहले की अनुमति दी जा सकती है, वहीं दूसरे को विनियमित किया जाना चाहिए।
  • सामूहिक जवाबदेहिता का एक सामान्य सिद्धांत सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि नीतियों को कोई प्रश्न उठे बिना लागू किया जा सके।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर विचारधारात्मक आलोचनाओं ने सरकार के साथ-साथ सिविल सेवक पर भी नागरिकों के विश्वास को नष्ट कर दिया है। ऐसे में, इनसे भी बचा जाना चाहिए। हालांकि, इस तरह की आलोचनाओं का पूर्णतया निषेध सिविल सेवक को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के स्पष्ट उल्लंघन पर भी केवल मूक दर्शक बने रहने पर विवश कर देगा।

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