अंग्रेजों द्वारा सांस्कृतिक और शैक्षिक सुधारों को अपनाए जाने के उद्देश्यों पर संक्षिप्त चर्चा
प्रश्न: भारत में अंग्रेज न केवल क्षेत्रीय विजय और राजस्व पर नियंत्रण चाहते थे; अपितु वे यह भी मानते थे कि उनका मूल निवासियों को सभ्य बनाने’, उनके रीति-रिवाजों और मूल्यों को परिवर्तित करने का एक सांस्कृतिक मिशन भी था। आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- अंग्रेजों द्वारा सांस्कृतिक और शैक्षिक सुधारों को अपनाए जाने के उद्देश्यों पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- इस उद्देश्य के लिए अंग्रेजों द्वारा किए गए उपायों और उनके वास्तविक निहितार्थों को सूचीबद्ध कीजिए।
- भारत में प्रचलित परंपरागत शिक्षा प्रणाली पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर
अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत पर अपना क्षेत्रीय नियंत्रण स्थापित किया, परन्तु उनका कार्य राजनीतिक नियंत्रण की स्थापना के साथ पूर्ण नहीं हुआ था। वे यह भी मानते थे, कि उनका एक सांस्कृतिक मिशन भी है जिसका लक्ष्य मूल निवासियों को सभ्य बनाना तथा उनके रीति-रिवाजों और मूल्यों को परिवर्तित करना था।
कई ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का मत था कि प्राच्य सभ्यताएं कभी संवैधानिक सरकार की स्थापना के स्तर तक प्रगति करने में सक्षम नहीं होंगी। अतः अपने उपनिवेशों में ‘सुव्यवस्थित स्वतंत्रता’ (ordered liberty) की स्थापना करना, ब्रिटिश शासन का उद्देश्य था।
हालांकि, सभ्य बनाने के इस मिशन का वास्तविक उद्देश्य साम्राज्यवाद का नैतिक औचित्य सिद्ध कर ब्रिटेन में साम्राज्यवादी भावनाओं को सुदृढ़ करना था।
अंग्रेज एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहते थे जो रक्त और रंग के आधार पर भारतीय हो जबकि रूचि, नैतिकता, विचारों और बुद्धि के आधार पर अंग्रेज हो। अंग्रेजों द्वारा अपने इस उद्देश्य की पूर्ति निम्नलिखित प्रकार से की गयी:
- अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा द्वारा पाश्चात्यकरण: मैकाले के विवरण पत्र (Macaulay’s Minutes) ने अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम, 1835 के पारित होने का मार्ग प्रशस्त किया। इसके द्वारा अंग्रेजी को भारत में उच्च शिक्षा के मुख्य माध्यम के रूप में स्थापित कर दिया गया। अंग्रेजों का मत था कि ‘भारतीय ज्ञान यूरोपीय ज्ञान की तुलना में निम्न है। अतः अंग्रेजी, पश्चिमी विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में हुई प्रगति के संदर्भ में मूल निवासियों को अधिक जागरूक बनाएगी।
- विश्वासपात्र सिविल सेवकों और ब्रिटिश वस्तुओं की मांग: 1854 के वुड डिस्पैच से अंग्रेजी शिक्षा के लिए आर्थिक तर्कों को और अधिक मान्यता मिली। इसमें भारतीयों की रूचि और इच्छाओं को परिवर्तित करने के लिए यूरोपीय शिक्षा पर बल दिया गया। इसका आशय ब्रिटिश वस्तुओं के लिए मांग का सृजन करना और कंपनी में विश्वासपात्र सिविल सेवकों की निरंतर आपूर्ति बनाए रखना था।
- नैतिक चरित्र और साम्राज्य के प्रति निष्ठाभाव: अंग्रेजों ने ईसाई धर्म की शिक्षा के माध्यम से लोगों के नैतिक चरित्र में सुधार के लिए ईसाई मिशनरियों के आगमन का भी समर्थन किया। यह इस तर्क पर आधारित था कि आधुनिक शिक्षा भारतीयों के अपने धर्म में विश्वास को कम करते हुए उन्हें धीरे-धीरे ईसाई धर्म की ओर उन्मुख करेगी परिणामतः वे अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति निष्ठावान हो जाएंगे।
इन नीतियों ने पाठशाला आधारित पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली (जो भारत की स्थानीय आवश्यकताओं के अनुकूल थी) को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया। इसके फलस्वरूप शिक्षा तक पहुंच में वर्गीय विभाजन (अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त वर्ग के रूप में) भी हुआ। महात्मा गांधी के अनुसार औपनिवेशिक शिक्षा द्वारा भारतीयों के मन में हीन भावना भर दी गयी। इसने उनके समक्ष पश्चिमी सभ्यता को श्रेष्ठ सभ्यता के रूप में प्रस्तुत किया। अतः गांधीजी का मत था कि भारतीय भाषाओं को शिक्षण का माध्यम होना चाहिए।
समग्र रूप से, सांस्कृतिक सुधार प्रक्रिया लोगों को सभ्य बनाने का एक स्वार्थपूर्ण तरीका था जो भारत और विदेशों में ब्रिटिश हितों की पूर्ति के दृष्टिकोण से अधिक जबकि लोकोपकारी दृष्टिकोण से कम निर्देशित था।
Read More
- भारत में अंग्रेज़ों द्वारा प्रारंभ की गयी राजस्व व्यवस्था की विभिन्न पद्धतियां
- बंगाल में अंग्रेजों द्वारा स्थायी बंदोबस्त
- भारत में रेलवे की शुरुआत की संक्षिप्त व्याख्या : अंग्रेज़ों के साम्राज्यवादी, औपनिवेशिक एवं सामरिक उद्देश्यों की पूर्ति
- 1757 से 1856 तक अंग्रेजों के भारत विजय
- भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखने में प्लासी के युद्ध का महत्व