कश्मीर मुद्दा (Kashmir Issue)

कश्मीर मुद्दे के दो आयाम

बाह्य आयाम

पाकिस्तान की संलिप्तता और जम्मू-कश्मीर राज्य पर इसके दावों के कारण;

  • कश्मीर के माध्यम से भारत के विरुद्ध पाकिस्तान द्वारा छद्म युद्ध के प्रसार ने हमारी आंतरिक सुरक्षा स्थिति को निरंतर असुरक्षित बनाया हुआ है। राष्ट्र की मुख्यधारा से जम्मू-कश्मीर को अलग करने के अतिरिक्त, यह भारत के विकास के इतिहास में एक गंभीर समस्या है।
  •  इससे देश के संसाधनों का निरंतर अपव्यय हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप रक्षा व्यय में वृद्धि हुई है।

आंतरिक आयाम

भारत से जम्मू-कश्मीर के लोगों की सामाजिक-राजनीतिक मांगों के कारण

  •  धर्म और क्षेत्र के साथ-साथ बहु नृ-जातीयता/बहु-सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों के मध्य एक जटिल अंतःक्रिया है
  • अधिक स्वायतता और विशिष्ट अधिकारों की मांग हेतु किये जाने वाले विरोध, आंदोलन, और बंद ने राज्य में गतिरोध
    उत्पन्न किया है। यह राज्य की राजव्यवस्था की अस्थिर प्रकृति को रेखांकित करता है
  • मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों के कारण भारत को महान वैश्विक शक्ति के रूप में घोषित किये जाने के समक्ष बाधा।

पाकिस्तान के उद्देश्य

  • बलपूर्वक कश्मीर को हड़पने के अपने सभी प्रयासों की विफलताओं और अपने प्रयासों में पराजित होने के लिए बदला लेने का एजेंडा। 1971 के युद्ध में अपनी हार का बदला लेने के लिए कश्मीर को भारत से अलग करना जैसे कि भारत ने
    बांग्लादेश को पाकिस्तान से पृथक किया था।
  • अस्थिरता का माहौल बनाए रखना जिससे भारत को अपने पर्याप्त संसाधनों को सतर्कता और सुरक्षा के लिए प्रयोग
    करना पड़े, इस प्रकार भारत की संवृद्धि में बाधाएं उत्पन्न करना।
  • अपनी पहचान के एकीकरण और अखंडता के लिए पाकिस्तान में भारत विरोधी भावनाओं को उग्र बनाये रखना। यह पाकिस्तानी सेना को स्वयं के लिए धन और भत्ते की उदार प्राप्ति सुनिश्चित करने के अतिरिक्त, देश पर अपनी पकड़
    बनाए रखने में भी सहायता करता है।कश्मीर मुद्दे का एक समस्या के रूप में अंतर्राष्ट्रीयकरण करना, जिसमें एक लोकप्रिय आंदोलन को भारत द्वारा मजबूती से दबाया गया है।

कश्मीर में युवाओं के मध्य वैमनस्य क्यों?

  •  मुख्य धारा के राजनीतिक दलों के विरुद्ध अविश्वास: लोगों में यह भावना है कि राजनीतिक दल लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय सत्ता में रहने के ज्यादा इच्छुक हैं।
  •  आंदोलनों और पथराव के आरोप में अत्यधिक संख्या में कश्मीरी युवाओं को जेल हुई थी। उनमें से अनेक युवाओं की कानून और व्यवस्था सनिश्चित करने के लिए पनः विभिन्न मौकों पर निवारक गिरफ़्तारी की गई थी। इसने यवाओं में पलिस और सुरक्षा बलों के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न किया।
  • बेरोजगारी युवाओं में निराशा का एक प्रमुख कारण है। अस्थिर सुरक्षा स्थिति के साथ-साथ 2014 में आयी बाढ़ के कारण विगत दो वर्षों में पर्यटन में गिरावट आयी है।
  • कश्मीर में व्यवसायों और उद्यमों की संख्या सीमित है। नागरिक सुविधाओं अत्यधिक निम्नस्तरीय होने और मौसम की प्रतिकूल दशाओं के कारण उत्पादक कार्य हेतु सीमित दिन ही उपलब्ध होते हैं।
  • कई सरकारी विभागों में विशेष रूप से सरकारी नौकरियां प्राप्त करने के मामलों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप भी लगाए जाते हैं।
  •  कश्मीरी लोगों ने अपने सम्पूर्ण जीवन में हिंसा और आंदोलनों को देखा है। उन्होंने कई मुठभेड़ और सुरक्षा बलों की अत्यधिक उपस्थिति देखी है, जो समाज में भय और अशांति की भावना उत्पन्न करती है।

कश्मीरी लोगों का पाकिस्तान के प्रति दृष्टिकोण

  •  नृ-जातीयता और संस्कृति के आधार पर पाकिस्तान का जम्मू-कश्मीर के साथ केवल एक सीमित सम्पर्क है। पाकिस्तान के वे भाग जहाँ भिन्न संस्कृतियां और नृजातीय जनसंख्या निवास करती है, अधिकत्तर युद्धरत्त रहते हैं और पक्षपातपूर्ण व्यवहार के कारण पाकिस्तान से अलग होने की मांग करते हैं।
  •  पाकिस्तान में कानून और व्यवस्था की स्थिति के बारे में कश्मीरी अवगत हैं, जहां न्यायेतर हत्याएं; सड़कों, मस्जिदों और स्कूलों पर नियमित बम विस्फोट की घटनाएं सामान्य हैं।
  •  पाकिस्तान में निम्नस्तरीय मानवाधिकार रिकॉर्ड, इसकी संशोधनवादी नीतियों और इसके नेताओं के तानाशाही रवैये का अधिकतर कश्मीरियों द्वारा दृढ़ता से विरोध किया जाता है।
  • कश्मीरी लोग आतंकवादियों के द्वारा स्थानीय लोगों के साथ किए गए अत्यंत खराब व्यवहार से भी पीड़ित हैं, जो युवाओं को बलपूर्वक आतंकवादियों के रूप में भर्ती करने के लिए ले जाते हैं और महिलाओ का भी शोषण करते हैं।
  • बुरहान वानी प्रकरण के पश्चात्, कश्मीर में पाकिस्तान के समर्थन में भावनाओं में वृद्धि हुई है। यह पाकिस्तान के प्रति कश्मीरियों में किसी बड़े आशावाद के कारण नहीं बल्कि यह भारत के विरुद्ध अधिक विरोधी भावनाओं के कारण हुआ है, क्योंकि स्थानीय पुलिस और भारतीय सुरक्षा बलों के द्वारा काफी लोगों की मौतें हुई हैं और काफी लोग घायल भी हुए हैं।

कश्मीरी पंडितों की वापसी 

महत्व

  • कश्मीरी पंडितों की उनकी मातृभूमि पर वापसी कश्मीरी समस्या के स्थायी समाधान की प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण कारक है। |
  •  कश्मीरी पंडित न केवल कश्मीरी समाज का अभिन्न अंग हैं, बल्कि कश्मीरियत के महत्वपूर्ण तत्त्व भी हैं। ये समेकित कश्मीरी संस्कृति का मिलन बिंदु हैं, जिसके बिना धर्मनिरपेक्ष भारत के साथ कश्मीर का एकीकरण अपूर्ण है।
  •  मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी में पंडितों का पुनर्वास करना एक सद्भाव और धार्मिक सद्भावना का विख्यात उदाहरण
    स्थापित करने के समान है।

कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास

  •  घाटी में अस्थिर सुरक्षा माहौल को देखते हुए, मात्र आवास के लिए स्थान के प्रावधान अथवा यहां तक कि आजीविका के लिए नौकरियों के द्वारा पुनर्वास प्राप्त करना अत्यंत कठिन है।
  • लोगों के मध्य आपसी संपर्क (पीपल टू पीपल कॉन्टैक्ट) को समाज में समुदायों के मध्य विश्वास और सुरक्षा की भावना के निर्माण के लिए दृढ़ वांछनीय तत्व के रूप में देखा जाता है।
  •  इसकी अनुपस्थिति में, बस्तियां शत्रुतापूर्ण तत्वों का लक्ष्य बन जाएंगी, जिससे कश्मीर घाटी में निवासियों के मध्य विश्वसनीय सुरक्षा की भावना उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी।

 कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में संभावित कदम 

कश्मीर में हिंसा का निवारण

  •  इसकी प्राप्ति के लिए, सभी पार्टियों द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए। पाकिस्तान की ओर से कश्मीर में आतंकवाद के
    लिए किसी भी प्रकार की सहायता को समाप्त किया जाना चाहिए।
  • अंतर्राष्ट्रीय दबाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों की पर्याप्त पहुंच वाले प्रशिक्षण शिविरों और मौद्रिक सहायता को समाप्त कर सकता है।

 भारतीय विदेश नीति में परिवर्तन

  • भारत को सीमा विवादों का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए और कश्मीर मुद्दे का समाधान करने से पूर्व चीन के
    साथ मित्रवत संबंध विकसित करना चाहिए।
  • जब तक पाकिस्तान और चीन सहयोगी बने रहेंगे और भारत उनका साझा विरोधी रहेगा, तब तक कश्मीर का रणनीतिक महत्व इस मुद्दे के किसी भी समाधान की अनुमति नहीं प्रदान करेगा।

राज्य में अधिक भागीदारी

भारत सरकार को राज्य में अधिक भागीदारी भी प्रदर्शित करनी चाहिए।

  • इसे कश्मीरी लोगों की आवश्यकताओं और इच्छाओं पर विचार करना चाहिए ताकि लोगों में स्वीकार किए जाने और भारत का अभिन्न हिस्सा होने की भावना जाग्रत हो सके।

कश्मीर से पाकिस्तान को अलग करना

  • कश्मीर मुद्दे को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान के पास केवल सीमित क्षमता है। यहां तक कि आतंकवाद के लिए,
    इसकी प्रभावकारिता काफी हद तक लोगों की जमीनी स्तर की सहायता पर निर्भर करती है।
  • कश्मीर में अलगाववाद का राजनीतिक मुद्दा भारत के लिए बड़ी चुनौती है। इसलिए, आंतरिक मुद्दों का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता है।

घाटी में अधिकांश लोगों में व्याप्त अलगाव और उपेक्षा की भावना को समाप्त करना ।

  • घाटी में लोगों के लिए अत्यधिक मानवीय सहायता भेजना तथा स्थानीय प्रशासन में भ्रष्टाचार, अन्याय और अक्षमता को समाप्त करना।
  • कश्मीरी अवसंरचना में निवेश से लोगों के जीवन में सुधार लाएगा और यह भारत के विरुद्ध असंतोष को कम करने में
    सहायक होगा।

मानवाधिकारों के दुरुपयोग की जांच

भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के दुरुपयोग की जांच करना। यदि क्षेत्र में हिंसा कम हो जाती है, तो राज्य से सुरक्षा बलों को वापस बुलाकर कश्मीर में सामान्य स्थिति को पुनः बहाल करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

कश्मीरी पंडित

कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडित आबादी को उनके मूल घरों में पुनः अधिवासित किया जाना चाहिए। इससे धार्मिक सहिष्णुता बढ़ेगी और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में भी अधिक योगदान प्राप्त होगा।

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