पृथ्वी के वायुमंडल के निर्माण में ज्वालामुखियों द्वारा निभायी गई भूमिका

प्रश्न: अतीत में पृथ्वी के वायुमंडल के निर्माण में ज्वालामुखियों ने क्या भूमिका निभायी है? समकालीन समय में जलवायु परिवर्तन पर ज्वालामुखीय गतिविधियों के प्रभाव का सविस्तार वर्णन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पृथ्वी के वायुमंडल के निर्माण में ज्वालामुखियों द्वारा निभायी गई भूमिका पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • वैश्विक जलवायु पर, ज्वालामुखी विस्फोट से निर्मुक्त होने वाली गैसों का प्रभाव दर्शाइए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार यह ग्रह के शीतलन पर प्रभाव डालता है।

उत्तर

पृथ्वी के वायुमंडल के आरंभिक विकास में ग्रहीय आउट-गैसिंग (गैसों के निर्मुक्त होने की प्रक्रिया) के अभिकर्ता के रूप में ज्वालामुखी क्रियाओं का मुख्य योगदान रहा है। ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग से जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया तथा अत्यल्प मात्रा में स्वतंत्र ऑक्सीजन भी निर्मुक्त हुई।

ज्वालामुखीय विस्फोटों से निकली राख और सल्फर-समृद्ध एरोसोल ने वायुमंडल को ढंक लिया। इससे पृथ्वी की सतह तक पहुंचने वाले सौर विकिरण की मात्रा कम हो गई और इस प्रकार ग्रह का शीतलन हआ। जब पृथ्वी का तापमान कुछ कम हआ तो जल वाष्प ने संघनित होकर वर्षा का रूप ले लिया और कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसें उसमें घुल गईं।

कुछ शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि समुद्री ज्वालामुखियों (सबमरीन वॉल्केनो) ने प्रभावी रूप से वायुमंडल से ऑक्सीजन को हटाकर इसे ऑक्सीजन युक्त खनिज में आबंधित कर गैसों और लावा के अपचायक मिश्रण का निर्माण किया। हालांकि, जब स्थलीय ज्वालामुखियों की संख्या बढ़ गई, तो वायुमंडल में ऑक्सीजन की कुल मात्रा में भी वृद्धि हो गयी। ये प्रक्रियाएं लम्बे समय तक चलती रहीं और परिणामस्वरूप वायुमंडल का निर्माण हुआ। इस वायुमंडल में मानवजनित और अन्य प्राकृतिक कारणों से हुए सूक्ष्म परिवर्तन से वर्तमान वायुमंडल का विकास हुआ है।

ज्वालामुखीय विस्फोट और जलवायु परिवर्तन:

  • ज्वालामुखी विस्फोट समतापमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य कणों को निर्मक्त करते हैं। गैसें जल से अभिक्रिया कर एरोसोल का निर्माण करती हैं। यह एरोसोल समतापमंडल में उपस्थित रहते हैं तथा सूर्य से आने वाले प्रकाश और ऊष्मा को परावर्तित करते हैं। इस प्रकार, ये प्रकाश और ऊष्मा को परावर्तन करके क्षोभभमंडल का तापमान कम करते हैं और साथ ही वायुमंडलीय परिसंचरण पैटर्न को भी परिवर्तित करते हैं।
  • सल्फर युक्त एरोसोल कण ओजोन क्षरण की दर को तीव्र करने हेतु उत्तरदायी हैं।

उदाहरण के लिए: 1991 में पिनाटुबो विस्फोट जैसे विशाल ज्वालामुखी विस्फोट का वैश्विक स्तर पर कई वर्षों तक 0.1 डिग्री से 0.3 डिग्री सेल्सियस तक का शीतलन प्रभाव हो सकता है।

  • अत्यधिक ज्वालामुखी क्रियाओं ने वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि की हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के कारणों में से एक है। ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण प्रतिवर्ष 100 मिलियन टन से अधिक CO2 का उत्पादन होता है।

उदाहरण के लिए: 1980 में माउंट सेंट हेलेन्स में होने वाले विस्फोट के कारण केवल 9 घंटों में ही वायुमंडल में लगभग 10 मिलियन टन CO2 निर्मुक्त हुई थी।

  • गहरे रंग का लावा-प्रवाह अधिक सौर ऊर्जा को अवशोषित करता है। अतः एक विशाल लावा प्रवाह स्थानीय क्षेत्र का तापमान बढ़ाने में सक्षम है।

इस प्रकार ज्वालामुखी क्रिया का जलवायु पर शीतलन और तापन दोनों प्रभाव हो सकता है। हालांकि, दीर्घावधि में बारंबार घटित होने वाले ज्वालामुखी विस्फोटों का पृथ्वी के लिए शीतलनकारी प्रभाव होगा एवं इससे ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने में सहायता मिलेगी।

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