उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य जनसांख्यिकीय विभाजन
प्रश्न: उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य स्पष्ट जनसांख्यिकीय विभाजन है। पुष्टि कीजिए। इस प्रवृत्ति से जुड़ी चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं।
दृष्टिकोण
- उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य जनसांख्यिकीय विभाजन से संबंधित तथ्यों का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- इस प्रवृत्ति से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिए।
- इन चुनौतियों से निपटने तथा प्रभावशाली जनसांख्यिकीय प्रबंधन को सुनिश्चित करने हेतु कुछ रणनीतियों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, बढ़ती साक्षरता तथा शिशु उत्तरजीविता दरों के कारण उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य एक स्पष्ट जनसांख्यिकीय विभाजन उत्पन्न हुआ है। दक्षिण भारत के राज्यों, यथा- कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) की कुल प्रजनन दर (TFR) 2 से भी कम है जिसकी तुलना यूनाइटेड किंगडम और स्वीडन जैसे विकसित देशों के साथ की जा सकती है।
जबकि वर्ष 2016 में बिहार की TER 3.3 तथा उत्तर प्रदेश की 3.1 थी। वर्तमान जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति के अनुसार पांच राज्य, यथा- बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश वर्ष 2030 तक भारत में 55% से अधिक जनसंख्या वृद्धि हेतु उत्तरदायी होंगे।
यह प्रवृत्ति निम्नलिखित चुनौतियाँ उत्पन्न करती है:
- अन्तर्राज्यीय प्रवास: दक्षिण भारत में आर्थिक विकास के स्तर को बनाए रखने और विस्तारित करने हेतु कार्यशील युवा जनसँख्या का अभाव हो सकता है। अन्तर्राज्यीय प्रवास को यदि उचित रीति से प्रबंधित नहीं किया गया तो यह “बाहरी व्यक्ति-विरोधी” भावनाएं उत्पन्न कर सकता है। भिन्न-भिन्न भाषाओं और संस्कृतियों से संबंधित नये समुदायों के शामिल होने की चुनौती भी विद्यामन है।
- बच्चों और वृद्धजनों की बढ़ती संख्या को पीछे छोड़ते हुए दक्षिण की ओर प्रवास कर रहे युवा लोगों का सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ।
- राजनीतिक तनाव: बढ़ती उत्तर-दक्षिण असमानता के विशेष रूप से राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, वित्त आयोग की अनुशंसाओं में जनसंख्या को भी एक मानदंड के रूप में स्वीकार किया गया है जो आगे राजनीतिक तनाव उत्पन्न कर सकता है।
- आर्थिक संवृद्धि प्रभावित: बीमारु (BIMARU) राज्यों के मामले में, इनकी विस्फोटक जनसांख्यिकीय वृद्धि ने इन राज्यों द्वारा प्राप्त किए गए आर्थिक लाभों को निष्प्रभावी बना दिया है जबकि दक्षिणी राज्यों द्वारा महत्वपूर्ण संवृद्धि दर की प्राप्ति की जा रही है।
हालांकि, यदि पर्याप्त समयोचित आर्थिक अवसर उपलब्ध करवाए जाएं तो जनसांख्यिकीय लाभांश और परिणामी उच्च युवा कार्यशील जनसंख्या राष्ट्र के लिए परिसंपत्ति सिद्ध हो सकती हैं। अनुकूल दर पर अन्तर्राज्यीय प्रवासन अधिक विकसित राज्यों में श्रम की मांग की पूर्ति कर सकता है। इस प्रकार, प्रतिस्थापन जन्म दर के निम्न स्तर पर होने के बावजूद दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में जनसंख्या में वृद्धि जारी रह सकती है। इसके अतिरिक्त, दक्षिणी राज्यों की उपलब्धियां उत्तरी राज्यों के अनुकरण हेतु एक आदर्श (role model) के रूप में कार्य कर सकती हैं।
आगे की राह
बीमारु (BIMARU) राज्यों में शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। प्रवासन प्रवाहों की गहन समझ विकसित करने की आवश्यकता है ताकि आवास, अवसंरचना इत्यादि जैसी नागरिक सुविधाओं हेतु परवर्तित होती आवश्यकता के संदर्भ में आंकलन और अनुमान किया जा सके। अपर्याप्त संसाधनों में नवीन प्राथमिकताओं को अवश्य जोड़ा जाना चाहिए, जैसे- वृद्धजनों के लिए सामाजिक कार्यक्रम, वहीं युवा लोगों की समस्याओं का भी समाधान किया जाना चाहिए। राज्यों को श्रम कल्याण हेतु एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
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