लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम से सम्बंधित मुद्दे (Issues Related To RPA)

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951, संसद और राज्य विधानमंडल के चुनावों के संचालन, चुनाव अपराध, राजनीतिक दलों के पंजीकरण आदि के संबंध में नियमों और विनियमों को अधिनियमित करता है। विगत कुछ वर्षों में, इससे सम्बंधित विभिन्न मुद्दों को उठाया गया है। इस सन्दर्भ में हाल ही उठाये गए मुद्दे निम्नलिखित हैं

महत्वपूर्ण धाराएं

सम्बंधित मुद्दे

धारा 29A, जो निर्वाचन आयोग (EC) में राजनीतिक दलों के पंजीकरण से संबंधित है।
  • यह EC को राजनीतिक दल के पंजीकरण को रद्द करने की शक्ति प्रदान नहीं करता है। विनियामक शक्तियों की कमी राजनीतिक दलों की संख्या में भारी वृद्धि कर रही है। वर्तमान में कुल पंजीकृत राजनीतिक दलों में से लगभग 20 प्रतिशत ही चुनाव में भाग लेते हैं। शेष 80 प्रतिशत दल चुनावी प्रणाली और सार्वजनिक धन पर बोझ बनते हैं क्योंकि उन्हें विभिन्न प्रोत्साहन प्रदान किये जाते हैं। हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने अपराधी व्यक्ति को राजनीतिक दल के गठन की अनुमति न देने या इस धारा के तहत पार्टी के पदाधिकारी बनने से अयोग्य घोषित करने की ECI की शक्तियों की जांच करने का निर्णय लिया है।

 

 

धारा 33 (7) जो किसी उम्मीदवार को एक ही समय में दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति प्रदान करती है। (इस धारा को दिनेश गोस्वामी कमेटी की सिफारिश के आधार पर उम्मीदवारों को दो सीटों से अधिक से चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने के लिए जोड़ा गया था)।
  • हाल ही में ECI ने एक सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति देने के लिए इस धारा में संशोधन का समर्थन किया है। इससे पूर्व, विधि आयोग ने भी यह प्रस्तावित किया था। निम्नलिखित आधारों पर दो सीटों से चुनाव लड़ने का विरोध किया जाता है।
  • अतिरिक्त सीट रिक्त हो जाने पर उप-चुनाव आयोजित करने हेतु सार्वजनिक धन पर

अतिरिक्त वित्तीय बोझ।

  • यह उन भावी नेताओं के साथ अन्यायपूर्ण है जिन्हें बड़े नेताओं के लिए अपनी सीट छोड़नी
  • पड़ती है। नेताओं द्वारा इसका उपयोग उनके निम्नस्तरीय राजनीतिक प्रदर्शन के चलते उनकी विफलता के विरुद्ध सुरक्षा उपाय के रूप में किया जाता है।
  •  वित्तीय रूप से अपेक्षाकृत कम सुदृढ उम्मीदवारों के प्रति भेदभाव।
  •  यदि लोकतंत्र में एक व्यक्ति, एक वोट का सिद्धांत आदर्श है तो ‘एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र का भी अनुपालन किया जाना चाहिए।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8, जो MP’s और MLA’s की निरर्हताओं के नियमों का प्रावधान करती
  •  मतदाताओं के साथ अन्याय क्योंकि रिक्त सीट को कम महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र के रूप में देखा जाता है और मतदाताओं के प्रति विश्वासघात के समान माना जाता है।
  •  यदि मौजूदा प्रावधानों को बनाए रखा जाता है तो रिक्त सीट के उप-चुनाव की लागत दो सीटों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को वहन करनी चाहिए।
  • निर्वाचन आयोग (EC) ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका का समर्थन किया है। इसके तहत अपराधी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने और राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए विधायिका में उनके प्रवेश पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
  •  वर्तमान में निरर्हता नियम निम्नानुसार हैं:
  •  यदि किसी भी सांसद को गंभीर अपराधों का दोषी ठहराया जाता है तो उसे अधिनियम की धारा 8 (1), (2) के तहत कम से कम छह वर्ष के लिए निरर्हित तथा कारावास या जुर्माने से दंडित किये जाने का प्रावधान है। गंभीर अपराधों के तहत धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता का प्रसार; चुनावी कदाचार आदि शामिल हैं।
  •  धारा 8 (3) के अनुसार कोई भी सांसद जो किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है। और दो वर्ष या अधिक अवधि के कारावास से दंडित किया गया है. ऐसी दोषसिद्धि की तिथि से निरर्शित होगा और उसे छोड़े जाने से छह वर्ष की अतिरिक्त कालावधि के लिए निरर्हित बना रहेगा।
  • धारा 123 (3) चुनाव में मत पाने के लिए “भ्रष्ट आचरण” का पालन करने से संबंधित है।
  • गत वर्ष, सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की खंडपीठ ने फैसला दिया कि ‘चुनावी प्रक्रिया में धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय या भाषा को कोई भूमिका निभाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। साथ ही यदि इन विचारों के आधार पर वोट मांगने के लिए अपील की जाती है तो उम्मीदवार के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
  •  यह भारतीय लोकतंत्र में चुनावों की पंथनिरपेक्ष अवधारणा को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है।

 

 

 

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