शासन में जन-सहभागिता में सुधार (Improving People’s Participation in Governance)

जन-सहभागिता का आशय उस प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से लोग अपनी आवश्यकताओं को पहचानने में सक्षम होते हैं तथा सहभागितापूर्ण कार्रवाई की रुपरेखा, कार्यान्वयन और मूल्यांकन में भाग ले सकते हैं। सक्रिय जन-सहभागिता निम्नलिखित तरीकों से सुशासन में अपना योगदान दे सकती है:

  • यह नागरिकों को जवाबदेही की मांग हेतु सक्षम बनाती है।
  • सरकारी कार्यक्रमों एवं सेवाओं को अधिक प्रभावी तथा संधारणीय बनाती है।
  • समाज के निर्धन एवं हाशिए पर रहने वाले वर्गों को लोक नीति और सेवा वितरण में भागीदारी में सक्षम बनाती है।
  • स्वस्थ एवं जमीनी स्तर के लोकतंत्र को प्रोत्साहित करती है।
  • लोगों को विकास प्रक्रिया में समान हितधारकों के रूप में देखा जाता है।

 विधान-पूर्व संवीक्षा (Pre-Legislative Scrutiny)

  •  लोकतान्त्रिक ढांचे के अंतर्गत आने वाले सभी हितधारकों के लिए समान पहुंच और अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु नागरिकों
    और नीति निर्माण प्रक्रिया के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
  • विधान-पूर्व संवीक्षा के अंतर्गत किसी विधेयक को संसद के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व उन पर जनसामान्य की सहभागिता प्राप्त की जाती है। इसके तहत, नागरिक आपस में और विधि निर्माताओं के साथ संवाद की प्रक्रिया में भागीदारी करते हैं तथा आने वाले
    विधेयकों पर चर्चा और विचार-विमर्श करते हैं।

लाभ

  • प्रत्यक्ष जन भागीदारी के कारण विधि निर्माण प्रक्रिया की पारदर्शिता में वृद्धि
  • व्यवधान मुक्त प्रक्रिया- यह किसी प्रस्तावित कानून में परिवर्तन हेतु संसद में उत्तरवर्ती चरण के बजाय प्रारंभिक चरण में ही
    आसानी से परिवर्तन का अवसर प्रदान करती है जिससे इस प्रकार की प्रक्रिया सुगम हो जाती है।
  • विस्तृत विधान बनाने से पहले ही नीति निर्माताओं और विधायिका के सदस्यों को प्रस्तुत बेहतर और सुविचारित अभिमत यह
    सुनिश्चित करेगा कि प्रारूप कानून उन त्रुटियों से मुक्त है जिन्हें आसानी से टाला जा सकता है। साथ ही, इससे विधान में होने वाले संशोधनों की संभावना भी कम हो सकती है।
  • समिति का सुदृढ़ीकरण – यह देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त विभिन्न विचारों के कारण संसदीय समिति की चर्चा को अधिक सूचनापरक बना सकती है।
  • विधि निर्माण प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाना- इससे ऐसे कानूनों का निर्माण सुनिश्चित होता है जो अभिजात वर्गों और विशेष हितों को सुदृढ़ बनाने के बजाय आम लोगों की इच्छाओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करते हैं।
  • सदनों में व्यवधान की प्रवृत्ति बढ़ने के कारण यह संसद में पर्याप्त चर्चा और विचार-विमर्श न हो पाने संबंधी कमी को दूर कर सकती है।

संसद द्वारा अधिनियमित कानून का नागरिकों के जीवन पर व्यापक प्रभाव हो सकता है। अतः एक सूक्ष्म जन संवीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि कानून के उद्देश्यों और प्रस्तावों को व्यापक स्वीकृति प्राप्त हो। सिविल सोसाइटी द्वारा तैयार किए गए सूचना का अधिकार अधिनियम और जन लोकपाल विधेयक इसका उदाहरण हैं।

  • 2014 में, भारत सरकार द्वारा विधान पूर्व परामर्श की नीति अपनाई गई थी। इसमें यह अधिदेशित किया गया है कि सभी विधानों के प्रारूप (अधीनस्थ विधानों सहित) को 30 दिनों के लिए जन सामान्य की टिप्पणियों को आमंत्रित करने हेतु पब्लिक डोमेन में रखा जाए। साथ ही, कैबिनेट की स्वीकृति के लिए भेजे जाने से पूर्व संबंधित मंत्रालय की वेबसाइट पर टिप्पणियों का सारांश उपलब्ध कराया जाए।
  • इसके अतिरिक्त, हालांकि विधेयकों के प्रारूपों के संबंध में जनसहभागिता सांविधिक रूप से अनिवार्य नहीं है, किन्तु भारत सरकार सार्वजनिक सहभागिता में वृद्धि करने हेतु विभिन्न सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं को अपना सकती है; जैसे कि:
  • विधेयक द्वारा संबोधित विधायी प्राथमिकताओं पर एक ग्रीन पेपर तैयार करना और इसे नागरिकों के लिए उपलब्ध कराना।
  • आगामी वर्ष में प्रस्तुत किए जाने वाले प्रस्तावित विधेयकों की एक सूची प्रकाशित करना और इन विधेयकों के प्रारूप संस्करणों
    को एक संसदीय समिति को भेजना।यह जनसामान्य की टिप्पणियों को स्वीकार करेगी और विशेषज्ञों से परामर्श लेगी (जैसा कि वर्तमान में ब्रिटेन में प्रचलित है)।

इसके अतिरिक्त, सरकार जन सहभागीदारी के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकती है:

  • विधेयक द्वारा निर्मित प्रक्रियाओं/निकायों के लिए बजटीय आवंटन निर्दिष्ट करने वाले प्रत्येक विधेयक हेतु वित्तीय ज्ञापन उपलब्ध कराना।
  • विस्तारित पहुँच के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना।
  • विधायी प्रस्तावों के संबंध में अपने प्रतिनिधियों को आवेदन प्रस्तुत करने के नागरिकों के अधिकार का विस्तार करना।
  • विधेयक पर सुझाव आमंत्रित करने हेतु Mygov प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करना।

अतीत में, सरकार द्वारा सक्रिय जन भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु अनेक कदम उठाए गए हैं, जैसे प्रत्यक्ष कर संहिता के प्रारूप और इलेक्ट्रॉनिक सर्विस डिलिवरी विधेयक के प्रारूप के मामलों में उठाये गए कदम। संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा हेतु गठित राष्ट्रीय आयोग द्वारा अनुसंशा की गयी है कि प्रारूप विधेयकों का विशेषज्ञों और जनसामान्य द्वारा समग्रता और गहनता से परीक्षण किया जाना चाहिए। इस अनुशंसा को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए।

 सिटीजन चार्टर (Citizens Charters)

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसके तहत केंद्र सरकार से प्रत्येक सरकारी विभाग में एक सिटीजन चार्टर और शिकायत निवारण अधिकारी की व्यवस्था करने तथा एक शिकायत निवारण आयोग स्थापित करने की मांग की गयी है।
याचिका में कहा गया है कि सेवाओं की समयबद्ध प्रदायगी के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के
एक अभिन्न अंग के रूप घोषित किया किया जाना चाहिए।

सिटीजन चार्टर क्या है?

  • यह किसी संगठन को पारदर्शी, उत्तरदायी और नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाने हेतु एक आवश्यक उपकरण है।
  • यह एक सार्वजनिक दस्तावेज़ है, जो एक विशिष्ट सेवा के संदर्भ में नागरिकों के अधिकारों, सेवा के मानकों, उपयोगकर्ताओं के संबंध
    में पात्रता की शर्ते, और मानकों का अनुपालन न होने पर उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध उपचारों को परिभाषित करता है।

सिटीजन चार्टर के घटक:

संगठन के लक्ष्य एवं मिशन वक्तव्यः

  • यह वांछित परिणाम एवं परिणामों और लक्ष्यों को प्राप्त करने की व्यापक रणनीति प्रदान करता है।
  • यह उपयोगकर्ताओं को उनके सेवा प्रदाता के मंतव्य से अवगत कराता है और संगठन को जवाबदेह बनाये रखने में सहायता
    करता है।
  • संगठन को स्पष्ट रूप से यह बताना होता है कि यह किस विषय से संबंधित है और इसमें व्यापक रूप से कौन-कौन सी सेवाएं शामिल हैं। यह उपयोगकर्ताओं को किसी विशेष सेवा प्रदाता से अपेक्षित सेवाओं के विषय में जानकारी प्रदान करने में सहायता
    करता है
  • सिटीजन चार्टर द्वारा चार्टर के संदर्भ में नागरिकों के उत्तरदायित्व को भी निर्धारित किया जाना चाहिए।

सिटीजन चार्टर के लाभ

  • नागरिकों को सेवा वितरण मानकों की स्पष्ट समझ प्रदान करके जवाबदेहिता में वृद्धि करता है।
  • निश्चित मापदंड आधारित सेवा वितरण मानकों का पालन करने के लिए सार्वजनिक प्रतिबद्धता सुनिश्चित करके संगठनात्मक | प्रभावशीलता और प्रदर्शन में वृद्धि करता है।
  • सेवा वितरण प्रदर्शन की निष्पक्ष निगरानी करने के लिए आंतरिक और बाहरी, दोनों ही अभिकर्ताओं के लिए एक प्रक्रिया निर्धारित करता है।
  • सेवा वितरण के लिए एक अधिक पेशेवर और ग्राहक के प्रति जवाबदेह परिवेश का निर्माण और कर्मचारियों के नैतिक स्तर में वृद्धि करता है।
  • सरकार के राजस्व को बढ़ाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों द्वारा सेवाओं के लिए भुगतान की गयी राशि सरकारी
    कोष में ही संग्रहित हो ( कर्मचारियों की जेब में नहीं)।

भारत में सिटीजन चार्टर से सम्बंधित मुद्दे :

  • खराब प्रारूप और सामग्री – अधिकांश संगठनों में अर्थपूर्ण और संक्षिप्त सिटीजन चार्टर के निर्माण की पर्याप्त क्षमता नहीं है। अंतिम उपयोगकर्ताओं के प्रति एजेंसियों के उत्तरदायित्व के निधारण हेतु आवश्यक जानकारियां अधिकांश चार्टर्स में शामिल नहीं होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक चार्टर तैयार करते समय उपभोक्ताओं या गैर सरकारी संगठनों से परामर्श नहीं किया जाता है। जन
  • जागरूकता में कमी– वितरण सम्बन्धी मानकों के संबंध में जनता को जागरूक और शिक्षित करने के प्रभावी प्रयास नहीं किए गए हैं और अधिकांश लोगों को इसके संबंध में जानकारी उपलब्ध ही नहीं है। इसके अतिरिक्त जन-जागरूकता के प्रसार के लिए
    किसी प्रकार के धन आवंटन का प्रावधान नहीं है।
  • चार्टर में किए गए वादों को पूरा करने के लिए एवं अपनी प्रक्रियाओं का आकलन और सुधार करने के मामले में पर्याप्त प्रयास नहीं
    किये जाते हैं।
  • चार्टर को अधिकांशतः अद्यतित (update) नहीं किया जाता है और कुछ चार्टर सिटीजन चार्टर कार्यक्रम की शुरुआत के समय के अर्थात एक दशक से भी अधिक पुराने हैं।
  • परिवर्तन का प्रतिरोध – नवीन व्यवस्था नागरिकों के प्रति एजेंसी और उसके कर्मचारियों के व्यवहार और दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण
    परिवर्तन की मांग करती है। कभी-कभी, निहित हित सिटीजन चार्टर को पूर्णतः या आंशिक रूप से अप्रभावी बनाने का काम करते
  • चार्टर की व्यवस्था नहीं किये जाने पर दंड संबंधी प्रावधानों की अनुपस्थिति के कारण सभी मंत्रालयों/विभागों द्वारा इसे नहीं
    अपनाया गया है।
  • सेवा वितरण सम्बन्धी मापदंडो/मानकों को कदाचित ही चार्टर्स में उल्लिखित किया जाता है, इसलिए यह आकलन करना कठिन हो | जाता है कि सेवा का वांछित स्तर प्राप्त हो पाया है अथवा नहीं।

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाएँ:

  • चार्टर निर्माण से पहले आंतरिक पुनर्गठन होना चाहिए – संगठन के भीतर मौजूदा तंत्र और प्रक्रियाओं का समग्र विश्लेषण होना
    चाहिए और यदि आवश्यक हो, तो इन्हें पुनर्गठित किया जाना चाहिए और नई पहलों को अपनाया जाना चाहिए।
  • एक ही मापदंड सभी के लिए अनुकूल नहीं हो सकता, इसलिए सिटीजन चार्टर्स का निर्माण एक विकेंद्रीकृत गतिविधि के रूप में
    होना चाहिए तथा सम्बंधित मुख्यालय को केवल व्यापक दिशानिर्देश देने चाहिए।
  •  व्यापक परामर्श प्रक्रिया- संगठन के भीतर व्यापक परामर्श के बाद इसे दृढ़ प्रतिबद्धता से नागरिक समाज के साथ सार्थक विचारविमर्श के बाद तैयार किया जाना चाहिए।
  • त्रुटियों के मामले में निवारण तंत्र की व्यवस्था- इसमें संगठन द्वारा अपेक्षित सेवाओं का वितरण करने में असफल होने की स्थिति में प्रदान की जाने वाली क्षतिपूर्ति को स्पष्ट रूप से वर्णित किया जाना चाहिए और नागरिकों को भी शिकायत निवारण तंत्र का सहारा लेना चाहिए।
  • एक बाहरी एवं अधिमान्य एजेंसी के माध्यम से समय-समय पर सिटीजन चार्टर का आवधिक मूल्यांकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • अंतिम उपयोगकर्ता के फीडबैक पर आधारित- पब्लिक डोमेन में रखे जाने के बाद भी इसकी व्यवस्थित निगरानी और समीक्षा आवश्यक है। इस संदर्भ में समय-समय पर अंतिम उपयोगकर्ता की प्रतिक्रिया से सिटीजन चार्टर को लागू करने वाली एजेंसी की प्रगति और परिणामों का आकलन किया जा सकता है।
  • परिणामों के लिए अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराना- निगरानी तंत्र को उन सभी मामलों में उत्तरदायित्व विशेष रूप से निर्धारित करना चाहिए जहां सिटीजन चार्टर का अनुपालन नहीं किया गया हो।

 सेवोत्तम मॉडल:

  • यह एक सेवा वितरण आधारित उत्कृष्टता मॉडल है, जो लोक सेवा वितरण में उत्कृष्टता लाने के लिए एक मूल्यांकन सुधार ढांचा प्रदान करता है। सिटीजन चार्टर्स द्वारा लोक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने सम्बन्धी वांछित परिणाम प्राप्त करने में असफल होने के कारण। सेवोत्तम जैसे मॉडल की आवश्यकता उत्पन्न । हुई है।
  • यह आंतरिक प्रक्रियाओं की गुणवत्ता एवं सेवा वितरण की गुणवत्ता पर उनके प्रभाव का आकलन करने के लिए एक मूल्यांकन तंत्र के
    रूप में कार्य करता है।

घटक:

  • प्रथम घटक के रूप में एक चार्टर के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है। अतः नागरिकों के इनपुट प्राप्त करने के लिए एक
    माध्यम की स्थापना की जानी चाहिए जिससे संगठन सेवा वितरण आवश्यकताओं को निर्धारित कर सके।
  • लोक शिकायत निवारण के लिए एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली की आवश्यकता होती है, जिसमे अंतिम निर्णय भले ही कुछ
    भी हो, शिकायत के निपटारे की पूरी प्रक्रिया से उपभोक्ता को संतुष्ट होना चाहिए।

सेवा वितरण में उत्कृष्टता, यह निर्धारित करती है कि एक संगठन उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकता है, यदि वह बेहतर सेवा वितरण के लिए महत्वपूर्ण उपकरणों का भलीभांति प्रबंधन करे और वितरण में निरंतर सुधार करने की अपनी क्षमता का निर्माण करे|

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.