भारतीय संघवाद : राज्यों के आर्थिक एवं राजनीतिक प्रबंधन पर उनके पर्याप्त नियंत्रण

प्रश्न: यद्यपि भारतीय संघवाद काफी हद तक परिपक्वता प्राप्त कर चुका है जहां राज्यों को अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रबंधन पर पर्याप्त नियंत्रण है, तथापि गंभीर संरचनात्मक समस्याएं अब भी विद्यमान हैं। चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

दृष्टिकोण

  • प्रस्तावना में, विस्तृत चर्चा कीजिए कि किस प्रकार विगत वर्षों में भारतीय संघवाद परिपक्वता प्राप्त कर चुका है।
  • तत्पश्चात्, राज्यों के आर्थिक एवं राजनीतिक प्रबंधन पर उनके पर्याप्त नियंत्रण को रेखांकित कीजिए।
  • विद्यमान संरचनात्मक समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  • संघवाद को सुदृढ़ करने हेतु अपनाई गयी पहलों का उल्लेख कीजिये तथा जिन मुद्दों का समाधान किए जाने की आवश्यकता है, उनका उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

भारतीय संघवाद ने एक दलीय व्यवस्था तथा अत्यधिक केंद्रीकृत केंद्र सरकार से सहकारी एवं प्रतिस्पर्धी संघवाद की ओर उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें भारतीय राज्यों का अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रबंधन पर पर्याप्त नियंत्रण है। यह निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट होता है:

आर्थिक विकेन्द्रीकरण: 

  • 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के माध्यम से राज्यों की केन्द्रीय करों में हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी गयी है। इससे राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
  • केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के गैर-सांविधिक हिस्से को भी 21% से बढ़ाकर 26% कर दिया गया है तथा सकल कर प्राप्तियों का लगभग 57.6% राज्यों को स्थानांतरित किया जाना है।
  • राज्यों को आर्थिक कूटनीति में प्रतिभाग करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। उदाहरणस्वरूप- त्रिपुरा और पंजाब को अपनी अधिशेष विद्युत क्रमशः बांग्लादेश तथा पाकिस्तान को बेचने की अनुमति प्रदान की गयी है।
  • अप्रत्यक्ष करों के लिए वस्तु एवं सेवा कर (GST) के सार्वभौमिक संहिता (कोड) के रूप में कार्यान्वयन द्वारा राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा मिलेगा।

राजनीतिक प्रबंधन पर नियंत्रण:

  • नीति आयोग के अंतर्गत, नीति निर्माण हेतु राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं केंद्र के मध्य नियमित वार्ताओं को सम्मिलित किया जाता है। इसका उद्देश्य योजनाओं के निर्माण एवं परिकल्पना में संघ-राज्य नीति समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित करना है।
  • अंतर-राज्यीय परिषद, क्षेत्रीय परिषद, राज्यपालों के सम्मेलनों तथा मुख्यमंत्रियों के सम्मेलनों द्वारा सहकारी संघवाद के विचार को बढ़ावा देने के लिए तंत्र स्थापित किया गया है और इनके नियमित आयोजन द्वारा इन्हें संस्थागत बनाया जा रहा है।

संरचनात्मक मुद्दे

  • उत्तरदायित्व बनाम संसाधन: राज्य सरकारें बुनियादी सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पुलिस, विद्युत आदि उपलब्ध कराने हेतु उत्तरदायी एवं जवाबदेह हैं। हालांकि, इनकी संसाधनों तक पहुँच सीमित है।
  • विशेषज्ञता का अभाव : अनुच्छेद 311 द्वारा संरक्षित अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्य सामान्यज्ञ एवं सभी प्रकार के कार्यों का संचालन करने वाले होते हैं, परन्तु इनमें सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक पदों पर एकाधिकार बनाए रखते हुए विभिन्न सेवाओं का प्रबंधन करने के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल का अभाव होता है।
  • संघवाद के तीसरे स्तर (टियर) की विफलता: संविधान के भाग IX ने स्थानीय सरकार का निर्माण किया था। हालाँकि धन, कार्यों एवं कर्मियों की कमी के कारण इस तीसरे स्तर का प्रभाव सीमित ही रहा है।
  • केंद्र की अनम्यता: शिक्षा जैसे विषयों पर केंद्रीय कानूनों में विद्यमान अनम्यता के परिणामस्वरूप अत्यधिक व्यय के बाद भी परिणामों के सुधार की दिशा में विफलता प्राप्त हुई है।
  • केंद्र द्वारा हस्तक्षेप: मनोनीत राज्यपालों को अभी भी केंद्र द्वारा नियंत्रित अभिकर्ता के रूप देखा जाता है।

अतः, इन संरचनात्मक मुद्दों का समाधान किए जाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त कुछ सरल लक्ष्य भी हैं जिन पर विचार किया जा सकता है, जैसे- राज्यों को प्रशासनिक नियंत्रण प्रदान करके केंद्रीय योजनाओं का संरेखण, अभी तक प्रायः अप्रयुक्त रही अंतर-राज्यीय परिषद को क्रियाशील बनाना तथा नीति निर्माण प्रक्रिया में ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकायों को सम्मिलित करना।

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