होमरूल लीग आंदोलन के उद्भव, महत्त्व और पतन
प्रश्न: भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान होमरूल लीग आंदोलन के उद्भव, महत्त्व और पतन पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- होमरूल लीग आंदोलन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- इस आंदोलन के उद्भव हेतु उत्तरदायी कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।
- आंदोलन के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
- 1919 तक आंदोलन के पतन के कारणों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर
होमरूल लीग आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध के प्रति भारत की प्रतिक्रिया थी। यह आंदोलन एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में आरम्भ किया गया था। लीग का गठन आयरिश होमरूल लीग की तर्ज पर किया गया था तथा लीग ने ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के समान डोमिनियन स्टेट का दर्जा प्राप्त करने हेतु प्रयास किया। इस आंदोलन ने भारत में उग्र राजनीति की एक नई प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व किया।
आंदोलन के उद्भव हेतु उत्तरदायी कारक निम्नलिखित थे:
- मॉर्ले-मिंटो सुधारों से नरमपंथियों का मोहभंग हो गया था।
- लोगों को उच्च करों, मुद्रास्फीति आदि के रूप में युद्ध के दुष्परिणामों का सामना करना पड़ा।
- प्रथम विश्व युद्ध ने साम्राज्यवादी शक्तियों के वास्तविक उद्देश्यों को उजागर किया तथा श्वेत नस्ल की सर्वोच्चता (white superiority) के मिथक को तोड़ दिया।
- तिलक और एनी बेसेंट द्वारा आंदोलन को सक्षम नेतृत्व प्रदान किया गया, जिसने आंदोलन का अत्यधिक क्षेत्रीय विस्तार किया।
- 1917 की रूसी क्रांति ने भी लीग के अभियान को बल प्रदान किया।
1916 में एनी बेसेंट और तिलक द्वारा भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में दो अलग-अलग लीगों की स्थापना की गई थी। जहाँ एक ओर बेसेंट का दृष्टिकोण अखिल भारतीय था वहीं तिलक की लीग में केवल भारत के शिक्षित उच्च वर्ग की ही भागीदारी थी। परन्तु दोनों राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित कर भारत में स्व-शासन प्राप्त करने के एकसमान उद्देश्य से प्रेरित थे।
महत्त्व
- इस आंदोलन ने सूरत अधिवेशन में हुए कांग्रेस विभाजन के पश्चात् निष्क्रिय हो चुके स्वतंत्रता आंदोलन को पुनः सक्रिय किया क्योंकि नरमपंथी कांग्रेसी और गोखले की सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्य भी आंदोलन में शामिल हो गए।
- इसने शिक्षित अभिजात वर्ग की अपेक्षा जनसामान्य पर अपना ध्यान केन्द्रित किया और इस प्रकार आम जन के लिए स्वशासन के आदर्शों को प्रोत्साहित किया।
- इसके द्वारा जनता के लिए अध्ययन कक्षों, पुस्तकालयों, समाचार पत्रों आदि के माध्यम से राजनीतिक शिक्षा और विचारविमर्श को प्रोत्साहित किया गया।
- आंदोलन नई पीढ़ी के कई नेताओं को आगे लाने तथा राष्ट्रवादी आंदोलन का विस्तार गुजरात एवं सिंध जैसे नए क्षेत्रों में करने में सफल रहा।
- इसने लखनऊ समझौते (1916) में नरमपंथी और गरमपंथी दल के एकीकरण के माध्यम से कांग्रेस को पुनर्जीवित किया।
हालांकि प्रभावी संगठन के अभाव, 1917-18 के दौरान सांप्रदायिक दंगों की घटनाओं, मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के कारण प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं के मध्य विभाजन और अस्थिर नेतृत्व के कारण 1919 तक होमरूल लीग आंदोलन का पतन हो गया। फिर भी, इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आगे के काल में ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को चुनौती दिए जाने की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी।
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