स्वास्थ्य देखभाल वित्त पोषण (Healthcare Financing)

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission: NHM) में वित्त और लेखा कर्मचारियों की कमी के मुद्दे को अधिकांश राज्यों में हल किया जा रहा है। इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि विगत वर्षों की सभी CRM रिपोर्टों में इस मुद्दे को रेखांकित किया गया था। यद्यपि, यह मुद्दा छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लिए अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।

कुछ बेहतर पद्धतियों की पहचान की गयी है जिन्हें अन्य राज्यों में लागू किया जा सकता है:

  • छत्तीसगढ़ में राज्य स्वास्थ्य प्रणाली (State Health System: SHS) के लिए NHM के तहत केंद्रीय और राज्य * हिस्सेदारी को एक साथ रिलीज करना।
  • असम में सभी नियमों और विनियमों के पूर्ण ज्ञान को सुनिश्चित करने हेतु वित्तीय दिशानिर्देशों और सरकारी वित्तीय
    नियमों (Government Financial Rules: GFR) पर सभी वित्तीय कर्मचारियों का अनिवार्य परीक्षण करना।
  • ASHA प्रोत्साहनों के लिए आशा-सॉफ्ट पेमेंट नामक एक नए सॉफ्टवेयर का उपयोग, जो पश्चिम बंगाल में विभिन्न
    राज्य विभागों में कार्यरत सभी अनुबंध कर्मचारियों के लिए गतिविधि के अनुसार प्रोत्साहन की सटीक पहचान तथा
    उनके लिए समूह स्वास्थ्य बीमा योजना के कार्यान्वयन में सहायता करता है।

अधिकांश राज्यों ने इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर के लिए सिस्टम स्थापित किए हैं। इस प्रणाली ने लाभार्थियों को तीव्रता से फंड हस्तांतरण सुनिश्चित करने में राज्यों की सहायता की है और कुछ कुप्रथाओं को समाप्त कर दिया है।

  • विभिन्न राज्यों द्वारा एक बेहतर वित्तीय प्रबंधन प्रणाली की ओर अग्रसर होने के लिए पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (Public Financial Management System: PFMS) को सफलतापूर्वक अपनाया गया है जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत विभिन्न उदार नियमों (flexible pools) के तहत किए जाने वाले व्यय की रियल टाइम निगरानी और रिपोर्टिंग की सुविधा प्रदान करता है।
  • परिवार का आउट ऑफ़ पॉकेट एक्सपेंडिचर (OOPE) अभी भी एक समस्या बना हुआ है। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाओं और नैदानिकी जैसी विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन के बावजूद, अधिकांश राज्यों में उच्च OOPE के मामले दर्ज किए गए हैं। किसी भी राज्य की रिपोर्ट ने OOPE को कम करने के लिए राज्यों द्वारा किए गए उपायों और राज्य स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों पर टिप्पणी नहीं की है अथवा सूचना का संग्रहण नहीं किया है।
  • अधिकांश राज्यों में राज्य कोषागार से राज्य स्वास्थ्य समितियों (SHS) को धनराशि के हस्तांतरण में विलम्ब एक बड़ी समस्या है
  • विभिन्न राज्यों में वैधानिक दायित्वों का अनुपालन न किया जाना भी एक प्रमुख मुद्दा है। अधिकांश राज्यों में 2016-17 के लिए सांविधिक लेखा परीक्षा का कार्य पूर्ण हो गया था, परन्तु अंतिम रिपोर्ट अभी भी नहीं आई है। हालांकि, सभी राज्यों में
    समवर्ती लेखा परीक्षा (concurrent audit) का अनुपालन निम्नस्तरीय पाया गया था।

अनुशंसाएं

  • राज्यों को धनराशि के प्रभावी उपयोग के लिए राज्य हिस्सेदारी के साथ ट्रेजरी से राज्य स्वास्थ्य सोसाइटी खातों में निधि को
    समयबद्ध रूप से जारी करना चाहिए। इसी प्रकार, SHS को भी समय-समय पर जिला स्वास्थ्य समितियों (District
    Health Societies: DHS) को धनराशि जारी करना चाहिए।
  • बेहतर नियोजनऔर संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करते हुए राज्यों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि
    पूल्स (सामूहिक लाभ कोषों) के मध्य धनराशि के डायवर्जन में लचीलेपन का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब आवश्यक हो तथा इसके अतिरिक्त इसे नियमित रूप से प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, डायवर्टेड फंड्स (diverted funds) का उसी वित्तीय वर्ष के भीतर वापस भुगतान किया जाना चाहिए और निधि के स्थायी डायवर्जन से सख्ती से बचा जाना चाहिए
  • राज्यों को बैंक एकीकरण के मुद्दे को संबोधित करना चाहिए और हस्तांतरण के विलम्ब को रोकने के लिए सिंक्रनाइज़ेशन
    सुनिश्चित करना चाहिए।
  • पूर्वोत्तर राज्यों और पहाड़ी राज्यों को बिना बैंकिंग सुविधाओं वाले क्षेत्रों में बैंक शाखाओं की संख्या बढ़ाने के लिए को राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ जोड़ा जाना चाहिए
  • इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्याओं का सामना करने वाले राज्यों को इस मुद्दे का समाधान करने के लिए संबंधित सरकारी विभागों से भी जोड़ा जाना चाहिए।
  • राज्यों को सरकारी मानदंडों के अनुसार उच्च प्राथमिकता वाले जिलों के लिए उच्च आवंटन सुनिश्चित करना चाहिए।
  • उच्च OOPE को संबोधित करने के लिए, राज्यों को मुफ्त दवाएं एवं नैदानिक स्कीम तथा JSSK (जननी शिशु सुरक्षा
    कार्यक्रम) योजना जैसे कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना चाहिए
  • राज्यों को निधि के न्यून उपयोग वाले क्षेत्रों एवं कारणों की नियमित रूप से जांच करने तथा धनराशि के बेहतर उपयोग हेतु
    सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए सहायक पर्यवेक्षण प्रदान की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (National Health Protection Scheme)

इस योजना को बजट 2018 में न्यू इंडिया, 2022 के लिए आयुष्मान भारत कार्यक्रम के एक प्रमुख घटक के रूप में घोषित किया
गया।

संबंधित जानकारी

आयुष्मान भारत कार्यक्रम में दो घटक हैं –

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना और
  • स्वास्थ्य एवं देखभाल केंद्र (राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के तहत इसकी कल्पना की गई है।)

इसमें 10 करोड़ से अधिक गरीब और सुभेद्य परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थियों तक) को शामिल किया जाएगा, जिसके तहत द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रूपये तक का कवरेज प्रदान किया जाएगा।
यह वर्तमान में चल रही केंद्र प्रायोजित योजनाओं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (Rashtriya Swasthya Bima Yojana: RSBY) और वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना (Senior Citizen Health Insurance Scheme: SCHIS) को शामिल किया जाएगा।

लाभार्थियों के बेहतर लक्ष्यीकरण के लिए यह एक नकद रहित और आधार सक्षम योजना है।

वित्त

यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसमें प्रीमियम के भुगतान के संदर्भ में योगदान का अनुपात निम्नवत है –

  •  केंद्र और सभी राज्यों एवं विधानसभा वाले केंद्र-शासित प्रदेशों की हिस्सेदारी क्रमश: 60:40 होगी।
  • केंद्र और पूर्वोत्तर राज्यों एवं 3 हिमालयी राज्यों की हिस्सेदारी क्रमश: 90:10 होगी।
  • बिना विधायिका वाले केंद्र-शासित प्रदेशों (UTs) के मामले में 100% योगदान केंद्र द्वारा दिया जाएगा।
  • केंद्रीय वित्त पोषण: 2000 करोड़ रुपये की प्रारंभिक पूंजी की घोषणा की गई है और शेष राशि के लिए 1% अतिरिक्त उपकर (बजट-2018) अधिरोपित कर वित्त उपलब्ध कराया जाएगा।

इस योजना का लाभ पूरे देश में कहीं से भी उठाया जा सकता है और जिसके तहत लाभार्थी देश के किसी भी सूचीबद्ध सार्वजनिक/निजी अस्पतालों से नकद रहित लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

राज्यों की भूमिका

राज्यों की भूमिका इसके सुचारू कार्यान्वयन में सर्वोपरि है, क्योंकि

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य, राज्य सूची का विषय है अतः स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने सहित जमीनी स्तर
    पर स्वास्थ्य सेवाओं के प्रभावी वितरण की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है।
  • NHPS को विभिन्न राज्यों (जैसे- महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और गोवा) में पहले से चल रही विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं को समेकित करने के रूप में देखा जा सकता है।

चुनौतियां

  •  पारिवारिक आय के अलावा अन्य किसी मानदंड के आधार पर लाभार्थी की पहचान करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा
    और इससे व्यापक असंतोष उत्पन्न होगा।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपेक्षा करना- ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी, 2016 से स्पष्ट है कि पिछले तीन दशकों में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या स्थिर बनी हुई है, जबकि यह योजना स्वास्थ्य देखभाल के तृतीयक स्तर को अनावश्यक रूप से बढ़ावा देगी, जिससे लागत के बढ़ने की संभावना है।
  • पिछले अनुभवों (RSBY का मूल्यांकन) से स्पष्ट है कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा (PHI) को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए संस्थागत विशेषज्ञता और क्षमता की कमी है।।
  • अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से भी स्पष्ट है कि सरकार के लिए बीमा-आधारित स्वास्थ्य देखभाल प्रावधान, वित्तपोषण के सन्दर्भ में एक मंहगा मॉडल है।
  • निम्नस्तरीय स्वास्थ्य अवसंरचना जैसे अस्पताल में विद्यमान बिस्तर, डॉक्टर (मुख्य रूप से विशेषज्ञ), स्वास्थ्य देखभाल
    कर्मचारी, नैदानिक सुविधायें (diagnostic facilities), फार्मेसियाँ आदि जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
  • संघीय व्यवस्था के विरुद्ध- यह राज्यों की अपनी नीतियों का निर्माण करने की स्वायत्तता को कम करता है जो संवैधानिक रूप से उनके अधिकार क्षेत्र में अधिदिष्ट है।अनावश्यक रूप से अस्पताल में भर्ती करने, तत्पश्चात अधिक समय तक भर्ती रखने इत्यादि के माध्यम से त्वरित मौद्रिक लाभ प्राप्त करने संबंधी अनैतिक चिकित्सिकीय प्रथाएं पिछली योजनाओं में सामने आई हैं।
  • धोखाधड़ी की घटनाएं- सरकारी बीमा योजनाओं के तहत लाभार्थियों द्वारा झूठे बीमा दाबों का सहारा लिया जाता है तथा अस्पताल एवं बीमा कंपनियाँ पंजीकरण, निदान और उपचार के लिए अतिरिक्त चार्ज करती हैं, इस प्रकार यह इन सभी की
    आपसी सांठ-गाँठ को दर्शाता है।
  • संरचनात्मक मुद्दे- जैसे कि भारत में रोगों की निगरानी और स्वास्थ्य पर धन का कुशलतम उपयोग दोनों ही अपर्याप्त हैं।

NHPS का महत्व

  • यह सरकार द्वारा वित्त पोषित विश्व का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम होगा।
  • यह उत्पादकता बढ़ाने, मजदूरी की क्षति को रोकने और निर्धनता में कमी लाकर न्यू इंडिया 2022 के निर्माण में सहायता करेगा।
  • यह विभिन्न राज्यों में उपलब्ध विभिन्न हेल्थकेयर बीमा सुविधाओं को सुदृढ़ करेगा।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत स्वास्थ्य व्यय को 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक किए जाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता कर सकता है, जिससे यूनिवर्सल हेल्थकेयर कवरेज को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
  • यह निजी और सरकारी अस्पतालों में मरीजों के एक समान वितरण को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि योजना का लाभ सार्वजनिक और निजी अस्पतालों के नेटवर्क द्वारा वितरित किया जाना है।

आगे की राह

  • दीर्घकालिक बीमारियों के लिए बाह्य रोगी सेवाओं को भी व्यय में शामिल करके आयुष्मान भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दायरे को विस्तारित किया जा सकता है।
  • विविध प्रकार के रोग प्रोफाइल- प्रत्येक राज्य को चिकित्सा प्रक्रियाओं की उनकी स्वयं की सूची निर्मित करने के लिए लचीलापन प्रदान किया जाना चाहिए।
  • योजना को व्यवहार्य और टिकाऊ बनाने के लिए NHPS में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • बीमारी के बढ़ने के कारण अस्पताल में भर्ती होने के बोझ को कम करने, पोषण की स्थिति में सुधार करने, जागरूकता बढ़ाने और कुशल स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली को बनाए रखने के लिए निवारक स्वास्थ्य देखभाल को NHPS का एक अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए।
  • तकनीकी का लाभ उठाना- बीमा आधारित NHPS में धोखाधड़ी को रोकने, जवाबदेही सुनिश्चित करने एवं निगरानी रखने के लिए रोगियों के एक समेकित इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड (electronic medical record: EMRs) को विकसित करने के लिए ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
  • परिणामों को मापने और योजना के दुरुपयोग से निपटने के लिए रोगी और सेवा प्रदाताओं दोनों के ही स्तरों पर नियमित जाँच एवं संतुलन की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का मूल्यांकन

(Evaluation of Rashtriya Swasthya Bima Yojana)

मूल्यांकन के प्रमुख बिंदु

  • यह गरीबों द्वारा स्वास्थ्य देखभाल पर किये जाने वाले क्षमता से अधिक खर्च को कम करने में असमर्थ है। इस प्रकार बीमारी
    भारत में मानव वंचना के सर्वाधिक व्यापक कारणों में से एक है।
  • योजना में कोई संशोधन नहीं: 2008 से इसके तहत 30,000 रुपये का बीमा किया जाता है जबकि अस्पताल में भर्ती की लागत लगभग दोगुनी हो गयी है। इसके साथ ही यह अस्पताल में भर्ती होने के पश्चात होने वाले खर्यों को भी इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
  • देखभाल की प्रक्रिया में देरी: काम के दिनों और मजदूरी को खोने के भय के कारण गरीब तब तक अस्पताल में भर्ती होने में देरी करते हैं जब तक कि गंभीर रूप से बीमार न हो जाएँ। यह लागत और स्वास्थ्य, दोनों के परिप्रेक्ष्य से महँगा है।
  • सकारात्मक प्रभाव: RSBY के प्रभावी होने के बाद “आभासी आय हस्तांतरण” के कारण गरीबों द्वारा गैर-चिकित्सीय खर्च में
    वृद्धि हुई है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY)

  • यह BPL (गरीबी रेखा के नीचे) परिवारों के लिए कर-वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजना है। इसका प्रबंधन निजी बीमा
    कंपनियों के माध्यम से किया जाता है।
  • इसकी शुरुआत 2007-08 में असंगठित क्षेत्र में कामगारों के लिए की गयी थी। (1 अप्रैल 2008 से)
  • यह IT-समर्थित और स्मार्ट कार्ड आधारित कैशलेस स्वास्थ्य बीमा प्रदान करती है, जिसमें प्रति परिवार प्रति वर्ष पारिवारिक फ्लोटर आधार पर मातृत्व लाभ सहित कुल बीमा राशि 30,000/- रुपए होगी।
  • अनुदान पद्धति: भारत सरकार तथा राज्य सरकार का योगदान क्रमशः 75:25 के अनुपात में है।
  • यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लागू की गयी है।

आगे की राह

  •  निजी स्वास्थ्य बीमा को बढ़ावा देना: चूंकि कम और निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए वित्तपोषण हेतु पूर्ण कर राजस्व का प्रयोग संभव नहीं है।
  • सख्त निगरानी: ऐसी प्रदाता भुगतान विधियों का उपयोग करना जो स्वस्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा अनावश्यक चिकित्सा और परीक्षण करने को कम करती हों तथा प्रदाताओं की ऑडिट करने के लिए एक IT सिस्टम स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित करती
  • योजना में बाह्य रोगियों के देखभाल (OC) को शामिल करना: भारत में बाह्य रोगियों की देखभाल में कुल स्वास्थ्य उपयोग का 70% तक और कुल स्वास्थ्य व्यय का 60% तक शामिल है। इससे निर्धनों द्वारा चिकित्सीय देखभाल लेने में विलम्ब करने के उदाहरणों में कमी आएगी।
  • जोखिम में साझेदारी करने और पूर्व-भुगतान के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC) को प्राप्त किया जा सकता ।

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