हेट स्पीच

हेट स्पीच (Hate Speech): परिचय

केंद्र सरकार द्वारा गठित टी.के. विश्वनाथन समिति ने हेट स्पीच (द्वेषपूर्ण भाषण) के सन्दर्भ में कठोर प्रावधान बनाने की अनुशंसा की है।

जहाँ हेट स्पीच को प्रायः कट्टर द्वेषपूर्ण भाषण के रूप में ख़ारिज कर दिया जाता है, वहीं यह एक कहीं अधिक गंभीर परिणाम के चेतावनी संकेत के रूप में भी कार्य कर सकती है। अत्यधिक द्वेषपूर्ण हेट स्पीच प्रायः सामूहिक हिंसा का कारण बनती है। टेक्स्ट मैसेज और इंटरनेट की बढ़ती प्रभावशाली भूमिका ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है। इन सबके बावजूद हेट स्पीच को प्रतिबंधित करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार को प्रोत्साहित करने के मध्य एक संतुलन स्थापित करना चाहिए।

पृष्ठभूमि

  •  उच्चतम न्यायालय ने हेट स्पीच के मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता का अनुभव किया। इस सन्दर्भ में विधि आयोग ने हेट स्पीच पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • विश्वनाथन समिति का गठन हेट स्पीच तथा हिंसा को बढ़ावा देने वाले साइबर अपराधों से बेहतर ढंग से निपटने हेतु एक कानूनी तंत्र की स्थापना करने के लिए किया गया है। समिति को हेट स्पीच पर विधि आयोग की रिपोर्ट की जांच करने का कार्य भी सौंपा गया था।

उच्चतम न्यायालय ने यह पाया कि “हेट स्पीच व्यक्तियों को, किसी समूह विशेष की सदस्यता के आधार पर हाशिए पर पहुँचाने का प्रयास है। हेट स्पीच उस समूह के सदस्यों को बहुसंख्यकों के समक्ष अमान्यता प्रदान करके समाज के अंदर उनकी सामाजिक स्थिति एवं स्वीकृति को कम कर देती है। इस प्रकार प्रारम्भ में यह किसी विशिष्ट समूह के सदस्यों का उत्पीड़न करती है, परन्तु यही कालांतर में उन सुभेद्य समूहों पर व्यापक हमलों के लिए आधार तैयार करती है।

विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट के अनुसार, “हेट स्पीच से आशय सामान्यतः मूलवंश, नृजातीयता, लिंग, यौन उन्मुखता (sexual orientation) तथा धार्मिक विश्वास के आधार पर परिभाषित किए गए व्यक्तियों के किसी समूह के विरुद्ध घृणा की भावना को बढ़ावा देने से है। इस प्रकार, हेट स्पीच किसी व्यक्ति को लिखित या मौखिक शब्द, संकेत अथवा उसकी श्रवण सीमा अथवा दृश्य सीमा के अंतर्गत होने वाली दृश्य प्रस्तुति के माध्यम से भयभीत करने या चेतावनी देने अथवा हिंसा के लिए उकसाने से सम्बंधित है|

मानवाधिकार परिषद की ‘विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण पर विशेष प्रतिवेदक की रिपोर्ट (Report of the Special Rapporteur on the promotion and protection of the right to freedom of opinion and expression) में व्यक्त किया गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निम्नलिखित आधारों पर प्रतिबंधित किया जा सकता है:

  • चाइल्ड पोर्नोग्राफी (बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु)।
  •  हेट स्पीच (प्रभावित समुदायों के अधिकारों की रक्षा हेतु)।
  • मानहानि (अनुचित हमलों के विरुद्ध दूसरों के अधिकारों और प्रतिष्ठा की रक्षा हेतु)।
  • जनसंहार करने के लिए निर्देश देना और जन उत्तेजना फैलाना (दूसरों के अधिकारों की रक्षा हेतु)।।
  • भेदभाव, शत्रुता या हिंसा को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय, नस्लीय या धार्मिक घृणा का समर्थन करना (दूसरों के अधिकारों की रक्षा हेतु, जैसे कि जीवन का अधिकार)

भारत में इससे संबंधित कानून

अनुच्छेद 19

संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है। हालांकि, यह अधिकार भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार अथवा नैतिकता या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिए उकसाने के आधार पर युक्तियुक्त प्रतिबंधों के अधीन है।

भारतीय दंड संहिता (IPC)

भारतीय दंड संहिता (IPC) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने हेतु निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं:

  • धारा 153 (a): यदि कोई व्यक्ति धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शब्दों,संकेतों या अन्य माध्यमों से वैमनस्य को बढ़ावा देता है, तो उसे तीन वर्ष के कारावास या अर्थ दंड अथवा दोनों से दण्डित किया जायेगा।
  • धारा 295 (a): यदि कोई भी व्यक्ति भारत के किसी भी वर्ग के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से शब्दों, दृश्य प्रतिरूपण या अन्य माध्यमों से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है। तो उसे दंडित किया जाएगा।

इन परिवर्तनों की आवश्यकता क्यों है?

  • जहां ऐसे भाषण के कारण गरिमा को ठेस पहुँचती है, वहीं यह “अव्यक्त आश्वासन” भी कमजोर होता है कि किसी लोकतंत्र में नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यक या सुभेद्य समूहों के नागरिकों को बहुसंख्यकों के समान स्तर पर ही रखा जाता है।
  • साथ ही सुदृढ़ साइबर कानूनी ढांचे के अभाव में, बड़े पैमाने पर महिलाओं को अनेक प्रकार की अभद्रता एवं अन्य अपमानों तथा हेट स्पीच का निशाना बनाया जा रहा है।

टी.के. विश्वनाथन समिति द्वारा किए गए अवलोकन

  • समिति का मत है कि मूलभूत प्रावधानों को IT अधिनियम की अपेक्षा IPC में सम्मिलित करना अधिक प्रभावी है, क्योंकि IT अधिनियम मुख्यतः ई-कॉमर्स विनियमन से संबंधित है।
  • IT अधिनियम की धारा 78 मुख्य रूप से ‘क्षमता निर्माण से संबंधित’ है। अतः अधिकारियों को संवेदनशील बनाने तथा उन्हें इलेक्ट्रॉनिक विशेषज्ञता, कंप्यूटर-फॉरेंसिक और डिजिटल फॉरेंसिक से सम्बंधित सहायता प्रदान करने के लिए इसकी पुनर्समीक्षा की आवश्यकता है।
  • इसने प्रत्येक राज्य में स्टेट साइबर क्राइम कोऑर्डिनेटर (धारा 25B) और एक डिस्ट्रिक्ट साइबर क्राइम सेल (धारा 25C) की स्थापना करने के लिए CrPC में संशोधन करने की अनुशंसा की है।
  • हेट स्पीच का आशय “किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के विरुद्ध अत्यधिक अपमानजनक, निन्दात्मक या भड़काऊ भाषण” से होना चाहिए जो “चोट पहुँचाने के भय या चेतावनी देने के उद्देश्य से किया गया हो।
  • समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि जांच एजेंसियों द्वारा प्रावधानों के दुरुपयोग को प्रतिबंधित करने और सोशल मीडिया के अबोध उपयोगकर्ताओं की रक्षा के लिए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है।

कई अनुशंसाएँ विधि आयोग की रिपोर्ट से ली गयीं, जो इस प्रकार हैं:

  •  धर्म, जाति, समुदाय, लिंग, यौन उन्मुखता, जनजाति, भाषा, जन्म स्थान आदि के आधार पर ऑनलाइन अभिव्यक्तियों के माध्यम से घृणा को प्रोत्साहित करने पर प्रतिबंध लगाने के लिए धारा 153C को अंतःस्थापित किया जाना चाहिए।
  •  विधि आयोग द्वारा पहचान के आधार पर चेतावनी, भय, हिंसा के लिए उकसाने आदि को प्रतिबंधित करने के लिए धारा 505A को अंतःस्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया था।
  •  यह स्पष्ट किया गया कि अभिप्राय की आवश्यकता (need for intent) को स्थापित किया जाना चाहिए।

समिति की अनुशंसाओं से संबंधित चिंताएँ

  • विधि आयोग किसी भाषण को हेट स्पीच घोषित करने के लिए भाषण के लेखक की स्थिति, भाषण से पीड़ित लोगों की स्थिति तथा भाषण के संभावित प्रभावों की पहचान करता है। हालांकि, समिति की रिपोर्ट में इन चिंताओं को स्पष्ट रूप से परिलक्षित नहीं किया गया है।
  • इसके अलावा, रिपोर्ट के द्वारा अत्यंत व्यापक शब्दों जैसे- अत्यधिक अपमानजनक, अभद्रता, अपमान, उत्तेजक, झूठी एवं अत्यंत आक्रामक सूचना इत्यादि का प्रयोग किया गया है जो हमें पुनः धारा 66A में विद्यमान अस्पष्टता की स्थिति में ले जाती है।

विधि आयोग ने दण्ड की अनुशंसा की है

वैमनस्य भड़काने से रोकना:

यदि कोई व्यक्ति

  • भय उत्पन्न करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को सुनाई देने या दिखाई देने वाले धमकी भरे शब्दों या संकेतों का प्रयोग करता है,या
  •  हिंसा को भड़काने वाले शब्दों या संकेतों के माध्यम से वैमनस्य का समर्थन करता है तो उसे 2 वर्ष के कारावास सहित दण्ड | दिया जाएगा। हालांकि, वैमनस्य को भड़काने का आधार धर्म, जाति, समुदाय, लिंग, लिंग पहचान, यौन-उन्मुखता, जन्म
    स्थान, निवास स्थान, अक्षमता इत्यादि होना चाहिए। यह एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध होगा।

कुछ मामलों में भय, चेतावनी या हिंसा को भड़काने के कारण:

यदि कोई व्यक्ति कुछ आधारों (जैसे- धर्म, जाति, समुदाय, लिंग, लैंगिक पहचान) पर धमकी भरे अथवा अपमानजनक शब्दों या संकेतों का प्रयोग

  •  किसी व्यक्ति की दृश्य या श्रृव्य परिधि के भीतर भय उत्पन्न करने के उद्देश्य से, या
  •  हिंसा भड़काने के उद्देश्य से करता है।

तो ऐसा करने वाला व्यक्ति दण्ड का भागी होगा। ऐसे मामलों में एक वर्ष तक कारावास और/या 5,000 रुपये तक का जुर्माना देय होगा। यह एक गैर-संज्ञेय और जमानती अपराध होगा।

निष्कर्ष

उस संदर्भ की जाँच करना महत्वपूर्ण है जिसमें भाषण दिया गया है ताकि इसके पीछे की प्रेरणा और संभावित प्रभाव को सही ढंग से निर्धारित किया जा सके। भाषण के खतरे को उस संदर्भ के आधार पर ही अनुमानित किया जाना चाहिए जिसमें वह दिया गया या प्रसारित किया गया है। अनुवाद में भाषण का मूल संदेश नष्ट हो सकता है।

2014 में प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हेट स्पीच को समता के अधिकार के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए देखना चाहिए। हालांकि हेट स्पीच का विनियमन करते समय कुछ दोषों का निवारण करना आवश्यक है ताकि देश को एक प्रक्रियात्मक लोकतंत्र से वास्तविक लोकतंत्र में परिवर्तित किया जा सके।

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