भू-जल प्रबंधन (Groundwater Management)

जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति द्वारा भू-जल प्रबंधन के लिए निम्नलिखित अनुसंशाए दी गयी है।

  • संसाधनों का नियमित मूल्यांकनः भू-जल संसाधनों का नियमित आधार पर यथा प्रत्येक दो वर्षों के पश्चात् आकलन (अंतिम आकलन वर्ष 2011 में किया गया था) किया जाना चाहिए।
  • डार्क ब्लॉक का अध्ययन: भूमि-उपयोग और डार्क ब्लॉक (अति दोहित इकाइयां) के तहत आने वाली कृषि भूमि के अनुपात का आकलन करने के लिए एक अध्ययन प्रारंभ किया जाना चाहिए। इससे अधिक जल दबाव वाले क्षेत्रों में उपयुक्त फसल पद्धति के
    निर्धारण में सहायता मिलेगी।

कृषि के लिए भू-जल निकासी

अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए, सुझाए गए उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • खेतों में जल प्रबंधन तकनीकों और बेहतर सिंचाई उपायों को अपनाना
  • ‘भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण हेतु मास्टर प्लान’ का कार्यान्वयन
  • कृषि क्षेत्र में विद्युत् की मूल्य निर्धारण संरचना में सुधार, क्योंकि विद्युत् की एक समान दर भू-जल के प्रयोग को प्रतिकूल रूप
    से प्रभावित करती है।

नीति निर्माण

दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित करने के लिए भूजल निष्कासन पर एक सुपरिभाषित नीति तैयार की जानी चाहिए।

  • जल को संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत लाना: यह एक व्यापक कार्य योजना को विकसित करने में सहायता करेगा। केंद्र और राज्यों के मध्य सहमति के परिणामस्वरूप भू-जल सहित जल का बेहतर संरक्षण, विकास और प्रबंधन होगा।
  • 2013 में केंद्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा भू-जल के लिए कृत्रिम पुनर्भरण के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया था। राज्यों/संघ शासित प्रदेशों द्वारा की गयी अनुवर्ती कार्यवाहियों की व्यापक समीक्षा की जानी चाहिए। साथ ही, योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक समयबद्ध रोडमैप तैयार किया जाना चाहिए।
  • मनरेगा और भूजल प्रबंधन के मध्य समन्वयःयोजना के तहत किए गए भूजल संरक्षण से संबंधित कार्यों पर अनुकूलित प्रतिफल प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
  • जल निकायों की गणना और वाटर मीटर की स्थापना: देश में जल निकायों (तालाबों सहित) की गणना प्रारंभ की जानी चाहिए और इसे एक निश्चित समय-सीमा में पूरा किया जाना चाहिए। सिंचाई और पीने के लिए भू-जल के अधिक उपयोग को विनियमित करने के उद्देश्य से ‘लाभार्थी द्वारा भुगतान (Beneficiary Pays)’ के सिद्धांत पर सभी ट्यूब-वेल में जल मीटर की स्थापना अनिवार्य की जानी चाहिए।
  • उद्योगों के नियमित निरीक्षण को संस्थागत बनाना: शर्तों के अनुपालन को सुनिश्चित कराने हेतु उद्योगों का नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए।

भूजल के संरक्षण, सुरक्षा, विनियमन और प्रबंधन के लिए मॉडल विधेयक की मुख्य विशेषताएं

  • जीवन के लिए जल का अधिकार: गैर-भेदभाव और न्यायसंगत पहुंच के साथ नागरिकों के लिए सुरक्षित जल के अधिकार की स्वीकृति।
  • कॉमन पूल रिसोर्सेज: निगम एवं वृहद संस्थाओं के भू-जल निष्कर्षण के तरीके पर सख्त नियम; भूमि का स्वामित्व भू-जल तक विस्तृत नहीं हैं, यह समुदाय के स्वामित्व के अधीन है। भूजल एक मुफ्त संसाधन नहीं होगा; यहां तक कि भुगतान पश्चात् भी सभी के लिए न्यायसंगत उपलब्धता सुनिश्चित करते हुए संधारणीय उपयोग की अनुमति होगी।
  • सहायकता का सिद्धांत: जल के अंतिम उपयोगकर्ताओं, पंचायत और स्थानीय निकायों की सहभागिता बढ़ाना।
  • भू-जल उपयोग के संदर्भ में प्राथमिकता का निर्धारण: भू-जल के उपयोग में शीर्ष प्राथमिकता पीने, स्वच्छता, खाद्य सुरक्षा, निर्वाह कृषि, महिलाओं की जरूरतों को ही दी जानी चाहिए। इसके पश्चात् उद्योग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • संस्थान: भू-जल सुरक्षा बोर्ड और भू-जल संरक्षण क्षेत्र भी होंगे जो राज्य निकायों द्वारा प्रबन्धित किए जाएंगे।
  • प्रोत्साहन: उन लोगों को प्रोत्साहन दिया जाएगा जो कम जल-गहन फसलों की खेती करते हैं।
  • जुर्माना: 5,000 रुपये से 5,00,000 तक का जुर्माना लगाया जाएगा जो उल्लंघन के स्तर और अपराधी पर निर्भर करेगा।

उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित उपाय भी किये जा सकते हैं:

  •  मिहिर शाह समिति की सिफारिश: बांधों के निर्माण से विकेंद्रीकृत प्रबंधन और जल रख-रखाव की दिशा में फोकस स्थानांतरित करने हेतु, CWC और केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB, जो भू-जल संसाधनों का प्रबंधन करता है) को सम्मिलित कर राष्ट्रीय जल आयोग का गठन करना।

अटल भू-जल योजना (2018)

अटल भू-जल योजना (2018) को कार्यान्वित किया जाना चाहिए

  • उद्देश्य: भू-जल का पुनर्भरण करना और कृषि उद्देश्यों हेतु पर्याप्त जल भंडार बनाना।
  • भू-जल के मांग पक्ष प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना अर्थात् जल के न्यूनतम उपयोग से किस प्रकार आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है इस पर ध्यान केंद्रित करना।
  • इसे प्रारंभ में गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 78 चिन्हित जिलों में । सामुदायिक भागीदारी के आधार पर कार्यान्वित किया जाएगा।
  • केंद्रीय योजना के लिए कुल व्यय 6000 करोड़ है, जिसका आधा हिस्सा विश्व बैंक द्वारा ऋण के रूप में प्रदान किया जायेगा। ०
  • सामुदायिक भागीदारी और व्यवहार संबंधी परिवर्तनों को प्रोत्साहित करना : ग्राम पंचायतों सहित राज्यों को प्रोत्साहन के रूप में 50% धन देकर भू-जल प्रबंधन के लक्ष्यों को प्राप्त करना।

जल संरक्षण

  • देश में वर्ष भर जल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मानसून में प्राप्त वर्षा जल को संचयित करने के लिए एक पुरानी तकनीक ‘वर्षा जल संचयन'(Rainwater harvesting) को प्रोत्साहित करना।
  • भूजल के स्तर में सुधार के लिए नदी के किनारे पर चेक डैम बनाना।
  • स्थानीय समुदायों द्वारा जल निकायों को बनाए रखने और प्रबंधित करने की प्राचीन प्रणाली को पुनर्जीवित करना जैसे कि तमिलनाडु में कुडिमारामठ प्रथा, झालारस (राजस्थान), अहार पायनेस (दक्षिणी बिहार), जोहड़, बाउलि (लगभग सम्पूर्ण देश में), बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली (पूर्वोत्तर भारत) आदि
  • सिंचाई जल के मूल्य निर्धारण पर गठित वैद्यनाथन समिति की रिपोर्ट (1992) के आधार पर सिंचाई जल का मूल्य निर्धारण किए जाने से सिंचाई जल के दक्ष उपयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • जल साक्षरता आंदोलन: CGWB देश में वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण को बढ़ावा देने के लिए जन जागरूकता । कार्यक्रम आयोजित कर रहा है।
  • वॉटर बैंकिंग और आभासी स्थानान्तरण – वाष्पीकरण हानि से बचाव के लिए एक वर्ष के अधिशेष जल को स्थानीय रूप से एक अबाधित जलीय निकाय में संग्रहीत किया जा सकता है। इस जल को आगामी वर्षों में “बैंकर” द्वारा निकाल कर “ग्राहक” के जल संसाधनों की पूर्ति के लिए स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • अन्य उपायों में लवणीय अतिक्रमण से जलीय निकायों की रक्षा हेतु भू-जल रिसाव को अधिकतम करने के लिए वायु युक्त रबर बांध के साथ अवसंरचना मॉडल का निर्माण करना सम्मिलित हैं।
  • प्रति इकाई क्षेत्र से निष्कासित भू-जल की मात्रा के आधार पर एक नया जल संरक्षण शुल्क (जो कि रुपये 1 से लेकर रुपये 6 प्रति घन मीटर तक हो सकता है, जहां एक घन मीटर 1,000 लीटर के बराबर है) आरोपित किया जाना चाहिए।
  • सरकारी अवसंरचना परियोजनाओं, सरकारी जल आपूर्ति एजेंसियों और समूह आवास सोसायटियों । निजी आवास
    सोसायटियों को केवल मूलभूत सुविधाओं के संदर्भ में जल संरक्षण शुल्क से छूट प्रदान करना।

सफल केस स्टडी

  • समुदाय प्रबंधित जल आपूर्ति कार्यक्रम (गुजरात): इसका उद्देश्य पिछड़े समुदायों के लोगों के घरों सहित प्रत्येक परिवार के स्तर पर नल के जल की कनेक्टिविटी के माध्यम से ग्रामीण समुदाय को पर्याप्त, नियमित और सुरक्षित जल की आपूर्ति करना
  • मध्य प्रदेश का ‘भागीरथ कृषि अभियान’: इसके परिणामस्वरूप स्थानीय किसानों, सरकारी अधिकारियों और नाबार्ड जैसे वित्तीय संस्थानों के प्रयासों के माध्यम से सिंचाई क्षमता में वृद्धि हेतु हजारों कृषि जलाशयों का निर्माण हुआ है।
  • भू-जल प्रबंधन के लिए डेटा: आंध्र प्रदेश का ऑनलाइन वाटर डैशबोर्ड: इसके तहत, राज्य ने भू-जल प्रबंधन के लिए नियामक ढांचा तैयार करने के अतिरिक्त, महत्वपूर्ण और अति दोहित इकाइयों का 100% मानचित्रण किया गया है और इनमें से 96% में पुनर्भरण अवसंरचना का निर्माण किया है।

जल शोधन

  • विषाक्त धातुओं से दूषित मृदा और आर्द्रभूमि के लिए फाइटोइक्स्ट्रक्शन जैसी ग्रीन रेमीडिएशन तकनीकों का प्रयोग। जैसे -प्रदूषकों विशेष रूप से क्रोमियम को अवशोषित करके प्रदूषित जल को साफ करने के लिए जलकुम्भी (water hyacinth) काउपयोग किया जाता है।
  • लघु उद्योगों के लिए साझा प्रदूषण उपचार सुविधाओं की स्थापना के साथ-साथ चर्मशोधन शालाओं , खनन और अन्य उद्योगों के औद्योगिक बहिःस्राव के लिए रासायनिक और जैविक उपचार की व्यवस्था की जा सकती है।

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