उत्तर प्रदेश में बाढ़ एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है। इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार को रणनीति पर चर्चा करें।

उत्तर की संरचनाः

भूमिका:

  • उत्तर प्रदेश में बाढ़ की तीव्रता के संदर्भ में (राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के आँकडों के अनुसार) भूमिका लिखें।

मुख्य भाग:

  • उत्तर प्रदेश के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का वर्णन करें।
  • इस आपदा से निपटने के राज्य सरकार की रणनीति-आपदा पूर्व, आपदा के दौरान एवं आपदा के पश्चात्, को बताएँ।
  • बाढ़ नियंत्रण से संबंधित चुनौतियों को बताएँ।

निष्कर्ष:

  • बाढ़ से होने वाली क्षति को न्यूनतम करने के प्रयास के संदर्भ में निष्कर्ष दें।

उत्तर

भूमिकाः

बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जिसमें जल का अस्थायी अतिप्रवाह होने से सूखी भूमि पर अत्यधिक जल-जमाव हो जाता है। बाढ़ का पानी तेज बहाव का या स्थिर भी हो सकता है।

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश के अनुसार राज्य के कुल 73.06 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ग्रस्त है। राज्य का औसतन 26.89 लाख हेक्टेयर क्षेत्र प्रतिवर्ष बाढ़ से प्रभावित होता है। इससे मानव जीवन के अतिरिक्त फसलों, घरों और पशुओं का अनुमानित नुकसान लगभग 432 करोड़ रूपए है। जिससे उत्तर प्रदेश में बाढ़ को एक गम्भीर प्रकृतिक आपदा के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

मुख्य भागः

राज्य में बाढ़ पैदा करने वाली महत्वपूर्ण नदियाँ गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, शारदा, घाघरा, राप्ती और गंडक हैं। बाढ़ की समस्या पश्चिम से पूर्व और दक्षिण से उत्तर तक बढ़ती जाती है। पूर्वी जिलों और साथ ही नेपाल सीमा के पास स्थित तराई क्षेत्र सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित हैं।

बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और जिला आपदा प्रबंधन प्राधि करण का गठन कर तीन चरणीय रणनीतियाँ अपनायी हैं

  • आपदा पूर्व चरण: इस चरण में संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहन दिया जाता है।

संरचनात्मक कार्य

  1. तटबंधों का निर्माणः तटबंधों का निर्माण करके बाढ़ के जल को नदी तट से बाहर बहने और आस-पास के इलाकों में फैलने से रोकने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य में अभी तक 30 तटबंधों का निर्माण किया जा चुका है।
  2. जलाशयों का निर्माण: नदियों के मार्ग में जलाशयों का निर्माण कर बाढ़ के समय अतिरिक्त जल को भण्डारित किया जा रहा है। जैसे- शारदा सागर, माताटीला, कमला सागर आदि जलाशयों का निर्माण किया गया है।
  3. नदी जलमार्ग में जमे गाद को निकालना: गंगा, यमुना, राप्ती आदि नदियों के बहाव मार्ग में जमे गाद को निकालकर नदियों के जल वहन क्षमता को बढ़ाया जा रहा है।
  4. बाढ़ के जल को मोड़नाः शारदा नहर, मध्य गंगा नहर, रामगंगा नहर आदि कृत्रिम जल वाहिकाओं के माध्यम से बाढ़ के समय नदियों के अतिरिक्त जल को अन्य क्षेत्रों में पहुँचाया जा रहा है।
  5. जलग्रहण क्षेत्र उपचारः वाटरशेड प्रबंधन तथा गंगा हरितिमा अभियान, चेक डैम तथा अवरोध बेसिनों का निर्माण कर बाढ़ की प्रचण्डता को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।

गैर-संरचनात्मक कार्य-इसके अन्तर्गत विधायी, कानूनी एवं प्रशासनिक निर्णय आते हैं।

  1. बाढ़ से संबंधित आँकड़ों का एकत्रीकरण, विश्लेषण एवं प्रसारण का कार्य किया जाता है। यह कार्य राज्य का सिंचाई विभाग करता है।
  2. बाढ के मैदानों का ऊँचाई एवं उपयोग के अनुसार क्षेत्रीकरण (Zoning) का कार्य किया जा रहा है।
  3. राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, बाढ प्रबंधन योजनाओं का निर्माण कर बाढ़ के दौरान लोगों को त्वरित सहायता पहुँचाने का प्रयास करता है।
  4. बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिससे आपदा के दौरान राहत एवं बचाव कायाँ में आसानी हो।
  5. राज्य में पीएसी के अधीन फ्लड डिवीजन का गठन किया गया है।
  • आपदा के दौरानः जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के नेतृत्व में आपदा के शमन एवं लोगों को राहत पहुँचाने का कार्य किया जाता है।
  1. जिलाधिकार के कार्यालय में आपातकालीन सेंटर की स्थापना की जाती है।
  2. आपदा से संबंधित विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय कर आपदा को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
  3. राहत एवं बचाव अभियान चलाकर लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से निकाला जाता है।
  4. अस्थायी आश्रम शिविरों का निर्माण तथा भोजन, कपड़ा एवं दवाईयों का प्रबंध किया जाता है।
  • आपदा पश्चातः यह चरण अनुक्रिया व पुनर्बहाली गतिविधियों का होता है।
  1. बाढ़ से हुई क्षति का अनुमान लगाकर लोगों को उचित मुआवजा प्रदान करना।
  2. विस्थापन के शिकार लोगों के लिए आश्रय स्थलों का निर्माण किया जाता है।
  3.  बाढ से क्षतिग्रस्त सार्वजनिक भवनों, सड़कों, रेल पटरियों आदि का मरम्मत किया जाता है।

चुनौतियाँ:

  • आपदा राज्य सूची का विषय है जबकि आपदा से निपटने के लिए राज्य की केन्द्र पर निर्भरता अधिक है।
  • वित्त एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी है।
  • नेपाल द्वारा बिना किसी सूचना दिए नदी जल को भारत की ओर छोड़ना। अतः इस विषय पर दोनों देशों के मध्य समन्वय तथा सूचना आदान-प्रदान का अभाव एक बड़ी समस्या है।

निष्कर्षः

राज्य सरकार उपर्युक्त रणनीतियों के साथ-साथ आपदा तैयारी के एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उत्तर प्रदेश रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर (आर.एस.ए.सी.) की मदद से बाढ़ प्रवण जिलों के विस्तृत डिजिटलीकृत मानचित्र तैयार करवा रही है। जिससे योजनाओं के निर्माण तथा बाढ़ के दौरान राहत एवं बचाव कार्यों में तीव्रता लाकर क्षति को न्यूनतम किया जा सके।

 

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