फड़ ,पट्टचित्र ,यक्षगान, छऊ, संकीर्तन, पर एक संक्षिप्त टिप्पणी

प्रश्न: निम्नलिखित पर एक संक्षिप्त लेख (टिप्पणी) लिखिए:

(a) Phad (फड़)

(b) Pattachitra (पट्टचित्र)

(c) Yaksha Gana (यक्षगान)

(d) Chhau (छऊ)

(e) Sankirtana (संकीर्तन)

दृष्टिकोण

  • विशेषताओं, उद्भव स्थल आदि पर प्रकाश डालते हुए प्रत्येक विषय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर

(a) फड़ चित्रकला 

  • फड़, पट्ट चित्रकला (scroll painting) का एक प्रकार हैं। यह लगभग 700 वर्ष पुरानी है और इसका मूल स्थान राजस्थान में भीलवाड़ा है।
  • इसके अंतर्गत सामान्यतः लोक देवताओं, वीर व्यक्तियों के साहसिक कार्यों, ग्रामीण जीवन, जीव-जंतुओं व पौधों आदि का चित्रांकन किया जाता है।
  • फड़ चित्र एक सुसंपन्न गीत और नृत्य प्रदर्शन का भाग होते हैं जिसे किसी लोकगायक युगल, सामान्यतः भोपा और भोपी नामक एक पुजारी और उसकी पत्नी, द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
  • फड़ चित्रों की एक विशिष्ट विशेषता इसकी मोटी रेखाएँ और आकृतियों का द्वि-आयामी स्वरूप होती है जिसमें संपूर्ण रचना को खण्डों में नियोजित किया जाता है।

(b) पट्टचित्र

  • पट्टचित्र ओडिशा की परंपरागत कपड़ा-आधारित पट्ट-चित्रकला है जिसमें जगन्नाथ और वैष्णव संप्रदाय द्वारा प्रेरित हिंदू देवी-देवताओं की कहानियों का चित्रण किया जाता है।
  • पट्टचित्र को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग भी प्रदान किया गया है।
  • ये पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर क्षेत्र के धार्मिक केंद्रों से प्राप्त, 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के ओडिशा के पुराने भित्ति चित्रों के समान हैं।
  • पुरी और इसके आस-पास के क्षेत्रों, विशेषकर रघुराज गाँव, में इस कला के सबसे उत्कृष्ट चित्र प्राप्त होते हैं।
  • रघुराज गाँव का प्रत्येक परिवार पट्टचित्र बनाता है।

(c) यक्षगान

  •  यक्षगान मुख्य रूप से कर्नाटक और केरल में प्रचलित एक पारंपरिक नृत्य-नाट्य लोककला है। यह नृत्य, संगीत, संवाद, वेशभूषा, श्रृंगार और रंगमंच का एक समन्वित प्रदर्शन है।
  • माना जाता है कि यक्षगान, भक्ति आंदोलन के काल में, पूर्व-शास्त्रीय संगीत और नाट्य कला से विकसित हुआ था।
  • इसका प्रदर्शन प्रारंभिक रूप से ड्रम को बजाने के साथ शुरू होता है जिसे अब्बार या पीटीक कहा जाता है।
  • इसमें एक कहानी सुनाने वाला होता है जो गाते हुए कहानी सुनाता है और अभिनेता संगीत पर नृत्य करते हैं।
  • इसकी कहानियाँ हिंदू महाकाव्यों जैसे रामायण, महाभारत आदि से प्रेरित होती हैं।

(d) छऊ नृत्य

  • छऊ नृत्य युद्ध कला, आदिवासी एवं लोक जीवन के तत्वों को प्रदर्शित करने वाला पूर्वी भारत का एक अर्द्ध शास्त्रीय नृत्य है।
  • इसकी तीन अलग-अलग शैलियों को बंगाल में पुरुलिया छऊ, झारखंड में सरायकेला छऊ और ओडिशा में मयूरभंज छऊ के नाम से जाना जाता है।
  • यह नृत्य हिंदू महाकाव्यों- रामायण और महाभारत में वर्णित अलग-अलग घटनाओं को आधार बनाकर मंचित किया जाता  है।
  • नृत्य पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा किया जाता है जो विशाल रंगीन मुखौटे पहनते हैं। यह यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल है।

(e) संकीर्तन

  • मणिपुरी संकीर्तन, भारत के मणिपुर राज्य में मंदिरों और घरों में प्रचलित एक लोक कला है। इसमें धार्मिक गायन, वादन और नृत्य का समन्वय होता है।
  • संकीर्तन का प्रदर्शन मन्दिर के मुख्य भाग (केंद्र) में किया जाता है। कलाकारों द्वारा गीत और नृत्य के माध्यम से कृष्ण के जीवन और लीलाओं का वर्णन किया जाता है।
  • यह यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में सम्मिलित है।

Read More 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.