निबंध: सोशल मीडिया और इसके दुष्परिणाम (Essay on Social media in Hindi)

प्रसिद्ध व्यक्तित्वों के कथन (Quotes by Famous Personalities)

  • सोशल मीडिया ने हमारे संवाद को लोकतांत्रिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है” – नरेंद्र मोदी
  • प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया ने सत्ता को जन केन्द्रित बनाया है” – मार्क मैककिनन
  • “सोशल मीडिया की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसने समाज के कमजोर वर्गों को स्वयं की समस्याओं को उठाने हेतु सशक्त बनाया है” – जॉन रॉनसन
  • “जो भी मीडिया को नियंत्रित करता है, वह लोगों के दिमाग को नियंत्रित करता है” – जिम मॉरिसन
  • “कनेक्टिविटी (परस्पर जुड़ाव) एक मानव अधिकार है” – मार्क जुकरबर्ग

उपाख्यान/लघु कथाएँ (Anecdotes / Short Stories)

  • वर्ष 2008 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा पहले अफ्रीकी-अमेरिकी (अश्वेत) राष्ट्रपति के रूप में चुने गए। हालांकि, उनके उदय के पीछे सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक) एक प्रमुख साधन रहा था, जिसने लोगों को प्रभावित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। इसी प्रकार का एक अन्य उदाहरण वर्ष 2014 में भारत में एक अन्य नेता नरेंद्र मोदी के उदय के संदर्भ में भी देखा जा सकता है।
  • 2010 के दौरान, सम्पूर्ण मध्य-पूर्व में निरंकुश शासनों के विरुद्ध व्यापक असंतोष उभरा था, जिसे || प्राय: अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है। हालांकि यह असंतोष नया नहीं था, जो नया था वह  था सोशल मीडिया और इसकी शक्ति। सोशल मीडिया ने उन लोगों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो लोकतंत्र और निर्णयन प्रक्रिया में भागीदारी की मांग कर रहे थे।
  • यौन उत्पीड़न और शोषण के विरुद्ध सोशल मीडिया पर ‘#मी टू अभियान’ (#MeToo campaign), एक वैश्विक आंदोलन बन गया था और इससे विशेष रूप से कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और शोषण के व्यापक प्रसार का प्रदर्शन करने में सहायता मिली।
  • भारत में नेट न्यूट्रैलिटी के लिए संघर्ष किसी भी स्थल, जल या अंतरिक्ष में नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर लड़ा गया था। सोशल मीडिया पर प्राप्त समर्थन के माध्यम से अंततः सरकार द्वारा नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत की पुष्टि की गयी।

परिचय (Introduction)

  • कनेक्टिविटी और संवाद साझा करने, सीखने, वाद-विवाद करने और चर्चा करने के लिए एक आधार का निर्माण करते हैं।
  • प्राचीन काल से ही ये हमारे जीवन, हमारे समाज का एक अभिन्न अंग रहे हैं। ये वार्तालाप, पत्र भेजने जैसे संचार के प्रत्यक्ष साधनों में ही नहीं बल्कि संचार के अप्रत्यक्ष प्रतिमानों जैसे निष्पादन और गैरनिष्पादन कलाओं में भी शामिल हैं।
  • इसलिए, यह कोई आश्चर्य नहीं है कि मनुष्यों को प्राय: सामाजिक प्राणी के रूप में जाना जाता है।
  • यद्यपि संचार की विषय वस्तु और साधन स्थिर नहीं रहे हैं। कबूतर के माध्यम से पत्र भेजने के साथ संचार का आरम्भ हुआ था। इसके पश्चात डाक के माध्यम से और उसके बाद फिर टेलीफोन के माध्यम से पत्र भेजे जाने लगे। वर्तमान में स्मार्ट फोन तथा सोशल मीडिया के माध्यम से पत्रों का आदान-प्रदान किया जाने लगा है।
  • महत्वपूर्ण बात यह है कि सोशल मीडिया न केवल लोगों के संवाद करने के तरीकों को परिवर्तित कर रहा है बल्कि लोग क्या संवाद करते हैं इसको भी परिवर्तित कर रहा है।
  •  वर्तमान में सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। हमारे दिन का आरम्भ सोशल मीडिया एकाउंट को चेक करने और उन्हें अपडेट करने के साथ होता है और इसी प्रकार की गतिविधियों के साथ दिन का समापन होता है।
  • हालांकि, इन सभी के मध्य सोशल मीडिया की समस्याओं और चुनौतियों के संबंध में स्वीकृति और बहस में वृद्धि भी हो रही है।

परिभाषा (Definition)

  • सामान्य शब्दों में, सोशल मीडिया को फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, लिंक्डइन इत्यादि के समानार्थी के रूप में देखा जाता है।
  • हालांकि, सोशल मीडिया इससे परे है और इसका क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। यह एक व्यापक शब्द है। और यह उन वेबसाइटों और अनुप्रयोगों को संदर्भित करता है जो उपयोगकर्ताओं को सृजन करने, विषय-वस्तु साझा करने, परस्पर वार्ता करने और सोशल नेटवर्किंग में भाग लेने में सक्षम बनाता है।

यह अंतःक्रिया विभिन्न रूपों में हो सकती है, किन्तु कुछ सामान्य प्रकारों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अपने विचारों, किसी तीसरे पक्ष के लिंक, फोटो, वीडियो और पोस्ट को साझा करना
  • किसी की प्रोफ़ाइल का सार्वजनिक रूप से अपडेट प्राप्त होने के साथ-साथ वर्तमान गतिविधियों और यहां तक कि अवस्थिति संबंधी डेटा की जानकारी भी प्राप्त होती है।
  • दूसरों द्वारा साझा की गई फ़ोटो, पोस्ट, अपडेट, वीडियो और लिंक पर कमेन्ट करना और उनकों रेटिंग प्रदान करना।

 

सोशल मीडिया का उदय क्यों हुआ ?

(Rise of Social Media – Why?)

  • सोशल मीडिया को 21वीं शताब्दी की मूक क्रांति (silent revolution) के रूप में वर्णित किया गया है। हाल ही में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की कुल संख्या तीन बिलियन से भी अधिक होचुकी है जिसमें भविष्य में कमी होने के स्थान पर और अधिक वृद्धि होने का ही अनुमान है।
  • किन्तु सोशल मीडिया इतना लोकप्रिय क्यों है? यह अनिवार्य क्यों होता जा रहा है? समाचार से
    शासन तक, वस्तुओं के क्रय-विक्रय से लेकर सामाजिक आंदोलनों के लिए समर्थन प्राप्त करने तक
    लगभग सभी के लिए यह पहली पसंद क्यों बनता जा रहा है?

इसके कुछ कारक निम्नलिखित हैं:

सोशल मीडिया की अनन्य विशेषताएँ

  • गति, उपयोग में सरल, अनुकूलता; कोई प्रयोक्ता शुल्क नहीं (अधिकांश सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन पंजीकरण अथवा उपयोग के लिए कोई शुल्क नहीं लेते हैं), सभी सूचनाओं को भेजने, पोस्ट करने, शेयर करने और प्राप्त करने हेतु केवल एक क्लिक का उपयोग आदि सोशल मीडिया की अनन्य विशेषताएँ (USP) हैं।

डिजिटल पहुँच और अनुप्रयोग

  • भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच चुकी है तथा इनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया साइट्स और एप्लिकेशनों का
    प्रसार भी तेज़ी से हुआ है।

सामाजिक प्रतिष्ठा के मापदंड के रूप में

  • लोगों द्वारा स्वयं की फोटो, वीडियो और व्यक्तिगत सूचनाओं को तेजी से शेयर करने के साथ ही सोशल मीडिया सामाजिक प्रतिष्ठा के मापदंड के रूप में भी उभर रहा है। कमेंट्स, लाइक, फॉलोअर्स की बढ़ती संख्या स्टेटस सिम्बल बन चुका है जो उन्हें सोशल मीडिया पर एक सेलिब्रिटी के रूप में स्थापित कर रहा है।

नगरीकरण और व्यक्तिवाद में वृद्धि तथा पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं का टूटना

  • नगरीकरण और व्यक्तिवाद में वृद्धि तथा परिवार जैसी पारपरिक सामाजिक संरचनाओं के टूटने के
    कारण लोग अकेलेपन, एकान्तता का शिकार होने के साथ ही साथ भावनात्मक रूप से असुरक्षित होते जा रहे हैं।
  • इसके अतिरिक्त, पर्याप्त संसाधनों के अभाव में बढ़ती अपेक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के कारण लोग अपने आप को एक ‘हारा हुआ व्याक्ति’ (लूजर) मान लेते हैं जो उनमें चिंता और कुंठा का कारण बनता है।
  • इस प्रकार के परिदृश्य में, सोशल मीडिया (जहाँ स्वयं की पहचान को गुप्त रखने का विकल्प विद्यमान होता है) लोगों के लिए एक सुरक्षा वाल्व के रूप में कार्य करता है। इसके माध्यम से लोग अपनी कुंठा को व्यक्त कर सकते हैं एवं किसी अन्य के द्वारा उनकी गतिविधियों की जांच करने का भय भी नहीं होता है। उदाहरण के लिए ब्लू व्हेल चैलेंज गेम की बढ़ती लोकप्रियता उन बच्चों के मध्य अधिक थी जो अकेले थे और जिन्हें ‘लूजर’ के रूप में प्रचारित किया गया था।

सोशल मीडिया की उपलब्धियाँ

(What has Social Media done?)

  • सोशल मीडिया के उदय ने विश्व को विभिन्न रूपों में परिवर्तित किया है। वर्तमान में, सोशल मीडिया मानव जीवन और समाज के प्रत्येक पहलू में प्रवेश कर चुका है। इसने लोगों के जीवन को पारस्परिक रूप से पहले की तुलना में कहीं अधिक संयोजित किया है।
  • स्मार्ट फोन, टैबलेट, कंप्यूटर और अन्य मोबाइल उपकरणों की उपलब्धता ने केवल एक स्पर्श से ही सूचनाओं तक पहुंच प्रदान करते हुए लोगों को परस्पर संयोजित किया है। इसने विश्व को सुदृढ़ और रहने के लिए एक बेहतर स्थान बनाया है। इसके कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

राजनीति और मीडिया (Politics and Media)

  • राजनीतिक अभियान और विज्ञापन के लिए एक साधन के रूप में; योजनाओं, पहलों, कानूनों पर
    लोगों की राय प्राप्त करने के एक साधन के रूप में; नीतियों के क्रियान्वयन और निगरानी के एक साधन के रूप में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के एक साधन के रूप में; राजनीतिक अभियानों के लिए समर्थन जुटाने के एक साधन के रूप में।
  • उदाहरण – बराक ओबामा, नरेंद्र मोदी आदि के लिए चुनाव जीतने में सोशल मीडिया की भूमिका;
    MyGov.in सरकार द्वारा आरंभ किया गया एक पोर्टल है जहाँ लोगों से फीडबैक प्राप्त किया जाता है; अरब स्प्रिंग- अरब स्प्रिंग के लिए समर्थन जुटाने में सोशल मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • सोशल मीडिया ने मीडिया के सभी रूपों में वृहद एवं अभूतपूर्व परिवर्तन किया है। ट्विटर और
    फेसबुक समाचारों के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में उभरे हैं। सोशल मीडिया ने नागरिक पत्रकारिता (citizen journalism) को बढ़ावा दिया है। वर्तमान में सोशल मीडिया को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में माना जा रहा है।

सामाजिक मुद्दे और मीडिया (Social Issues and Media)

  • सोशल मीडिया ने लोगों को अधिक सहिष्णु बनाने, अन्य लोगों के विश्वासों एवं संस्कृति के प्रति जागरूक होने में सहायता की है। इसने लोगों की सोचने-समझने की शक्ति को भी व्यापक बनाया है।
  • लोगों को परिवारों, मित्रों, रिश्तेदारों आदि के साथ संपर्क बनाए रखने में सक्षम बनाया है।
  • महिलाओं, संयुक्त राज्य अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकी (अश्वेत) लोगों, जनजातियों इत्यादि जैसे
    कमजोर वर्गों को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने में सक्षम बनाया है।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य के वितरण की पहुंच को बढ़ाने में सहायता की है।
  • उदाहरण – #मी टू अभियान (#Metoo Campaign); #ब्लैक लाइव्स मैटर (#BlackLivesMatter); खानअकैडभी; स्वयं (SWAYAM) आदि।

अर्थव्यवस्था और मीडिया (Economy and Media)

  • रोजगार के एक नए स्रोत के रूप में – प्रत्येक संगठन के पास अब एक अलग सोशल मीडिया
    विभाग है। कंपनियों के लिए फीडबैक के एक साधन के रूप में – PROSUMER की अवधारणा; ई-कॉमर्स, स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना; डिजिटल मार्केटिंग जिसने दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित हस्तशिल्प उत्पादों के विपणन को भी सक्षम बनाया है।
  • उदाहरण – ई-कॉमर्स, स्टार्ट अप्स, पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने सोशल मीडिया के माध्यम से
    व्यापक प्रभाव उत्पन्न किया है तथा डेटॉल ग्लोबल हैंडवाशिंग डे सोशल मीडिया अभियान।

पारिस्थितिकी और मीडिया (Ecology and Media)

  • सोशल मीडिया ने लोगों को पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण के बारे में अधिक जागरूक बनाया
  • इसने स्वतंत्र सक्रियतावाद के उदय को प्रेरित किया है। उदाहरण के लिए डीपवॉटर होराईज़न ऑयल स्पिल के दौरान मेक्सिको की खाड़ी के तटीय निवासियों ने अपने समुदायों द्वारा प्राप्त सूचनाओं के स्वतंत्र एवं नए वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने तथा उन्हें साझा करने हेतु फेसबुक और ट्विटर का उपयोग एक प्लेटफॉर्म के रूप में किया।
  • इसका उपयोग प्रभाव उत्पन्न करने वाले एक साधन के रूप में भी किया जा रहा है और विशिष्ट अभियानों के दौरान समर्थन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। उदाहरण के लिए ग्रीनपीस द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग आर्कटिक क्षेत्र में किये जा रहे शेल ऑयल ऑपरेशंस को लक्षित करने हेतु किया गया; यूरोपीय ग्रीन पार्टी (European Green Party: EGP) के उदय के लिए सोशल मीडिया सक्रियता महत्वपूर्ण रूप से उत्तरदायी रही है।
  • #विश्व पर्यावरण दिवस (#WorldEnvironmentDay) और #पृथ्वी दिवस (#EarthDay) वैश्विक प्रवृत्ति के निर्धारक बन गए हैं और पर्यावरण के संबंध में जागरूकता बढ़ाने में सहायता की है। तमिलनाडु में स्टरलाइट प्लांट के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन सोशल मीडिया के नेतृत्व में ही किया गया था।

नैतिकता और मीडिया (Ethics and Media)

  • सोशल मीडिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत प्रदत्त वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का साधन बन गया है; सोशल मीडिया ने कमजोर वर्गों को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने में सक्षम बनाया है; इंटरनेट के अधिकार को अब क्रमशः मान्यता प्रदान की जा रही ।
  • उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इंटरनेट एक्सेस को एक मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है; हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने प्रत्येक भारतीय के लिए इंटरनेट एक्सेस के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में घोषित किया है।

सोशल मीडिया की चुनौतियां (Social Media & Its challenges)

पहुँच (Access)

  • भारत में अभी तक ग्रामीण क्षेत्रों, महिलाओं, निचले वर्गों आदि तक डिजिटल पहुँच स्थापित नहीं हो पाई है।
  • इसके अतिरिक्त, देशी भाषाओं में डिजिटल साक्षरता एवं सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन की अत्यधिक कमी बनी हुई है।

निजता (Privacy)

  • सोशल मीडिया के कारण लोगों की निजता के संबंध में चिंताएं उत्पन्न हो रही हैं। उदाहरण के लिए फेसबुक एवं कैम्ब्रिज एनालिटिका के मामले, जहां मौद्रिक लाभ प्राप्ति हेतु उपयोगकर्ताओं की निजी सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा रहा था।

आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां

(Challenges to internal Security)

  • सोशल मीडिया ने कट्टरवादी एवं आतंकवादी समूहों की कट्टरता को बढ़ावा देने, लोगों को अपने समूहों में भर्ती करने तथा अपने साहित्य का वितरण करने में सक्षम बनाया है। लोन वुल्फ अटैक की घटनाएं भी कट्टरता फैलाने वाले साहित्य के परिणाम के रूप में देखी जा सकती हैं। उदाहरणISIS ने सोशल मीडिया का कुशलतापूर्वक उपयोग किया है।
  • भ्रामक ख़बरें (फेक न्यूज़) कानून प्रवर्तन एजेंसियों के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रही हैं। उदाहरण के लिए कश्मीर का मामला, भ्रामक ख़बरों के परिणामस्वरूप बंगलौर से उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों का पलायन।

मनोवैज्ञानिक तथा स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं

(Psychological and Health Problems)

  • सोशल मीडिया की लत की समस्या – फेसबुक एडिक्शन डिसऑर्डर; हाल के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग अधिक विषाद एवं खराब स्वास्थ्य का कारण बनता है।
  • FOMO (फियर ऑफ़ मिसिंग आउट) की समस्या – जो व्यक्ति निरंतर अपने जीवन की तुलना अन्य व्यक्तियों के साथ करता रहता है उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ माना गया है। यह स्थिति ईष्र्या की भावना को जन्म देती है। इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया के कारण ही लोग लंबे समय तक एकाग्र नहीं हो पाते हैं।
  • आत्महत्या की लाइव स्ट्रीमिंग – किशोरों के द्वारा आत्महत्या की लाइव स्ट्रीमिंग की नवीन घटनाएं सोशल मीडिया पर बढ़ रही हैं। इस प्रकार की घटनाओं के लिए विभिन्न कारण उत्तरदायी हैं जैसे – मीडिया में अपने नाम को प्रदर्शित करना; लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना; बढ़ते अलगाववाद की प्रतिक्रिया के रूप में जहां आत्महत्या को एक अभिव्यक्ति के रूप में माना जाता है।

शारीरिक समस्याएं:

  • अत्यधिक टाइपिंग के कारण कार्पल टनल सिंड्रोम जो हाथ अथवा कलाई को प्रभावित करता है; तथा आंखों से संबंधित समस्याएँ।
  • थकान – सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग से आवश्यक नींद की कमी हो जाती है,। इससे थकान की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ।
  • व्यायाम की कमी – सोशल मीडिया ने लोगों को विशेष रूप से बच्चों को आलसी बन दिया है एवं उनकी गतिशीलता को कम कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप लोगों का पार्को में घूमना या व्यायाम करना बंद हो गया है।
  • ध्यान भटकना – सोशल मीडिया की लत के सबसे खतरनाक संभावित परिणामों में से एक है – ड्राइविंग के दौरान ध्यान भटकना। जैसे मोबाइल फ़ोन का उपयोग अनेक सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है।

सार्वजनिक जीवन का वस्तुकरण

(Commodification of public life)

  • सोशल मीडिया द्वारा सार्वजनिक जीवन को एक वस्तु के रूप (कमोडिफिकेशन) में प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहा है। जहां जीवन के प्रत्येक पहलू को सार्वजनिक उपभोग के विषय रूप में देखा जा रहा है। निजी एवं सार्वजनिक जीवन के मध्य अब कोई अन्तर नहीं रह गया है। जैसे – सेल्फी के लिए उन्माद, फेसबुक पर लोकेशन अपडेट करना आदि।

साइबर अपराधों की समस्या

(Problem of Cyber crimes)

साइबर अपराध, साइबर बुलिंग, साइबर एब्यूज, ट्रोल एवं विधि प्रवर्तन से संबंधित समस्याएँ विद्यमान हैं।

  • सोशल मीडिया साइबर बुलिंग, साइबर स्टॉकिंग, पहचान को गुप्त रखना, पाइरेसी जैसे
    साइबर अपराधों के क्षेत्र के रूप में उभरा है।
  • इसके अतिरिक्त ट्रोल्स की समस्या के कारण लोगों के साथ निरंतर दुर्व्यवहार किया जा रहा
    है। उदाहरण के लिए, हाल ही में हुआ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मामला दुर्व्यवहार की सीमा के अंतर्गत ही आता है।
  • सोशल मीडिया पर कानून प्रवर्तन स्वयं में एक बड़ी चुनौती है क्योंकि तीव्र गति से सूचनाओं का प्रसार हो रहा है। अपराध करने वाले अपराधियों की पहचान की समस्या और फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया माध्यमों से सहयोग की कमी के कारण अन्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

भ्रामक ख़बरें एवं उनके प्रचार-प्रसार की समस्या

(Problem of Fake News and Propaganda)

  • पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु की अफवाह, अमेरिका में होने वाले चुनावों के दौरान मैसेजिंग ऐप स्नैपचैट पर प्रतिबन्ध जैसी भ्रामक ख़बरें भावनात्मक आघात, प्रतिष्ठा को क्षति, मौद्रिक हानि एवं ब्रांड इमेज क्राइसिस का कारण बनती हैं।
  • सोशल मीडिया को भी प्रचार-प्रसार का एक साधन बना दिया गया है। वेबसाइटों, सोशल मीडिया अकाउंट इत्यादि का उदय, जिसे एक एजेंडे जैसे- किसी ब्रांड या व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाना, द्वेष या हिंसा फैलाना, चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करना, एक विषय पर ही निरंतर बहस करना आदि के रूप में एक संगठन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • सोशल मीडिया वर्तमान में एक दोधारी तलवार के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत हुआ है। जहाँ एक ओर सोशल मीडिया ने हम जिस प्रकार से विचार करते हैं, विश्वास करते हैं एवं कार्यों का निष्पादन करते हैं, उसे परिवर्तित किया है, वहीं दूसरी ओर इसने हमारी निजता के उल्लंघन, ट्रोल्स की समस्या एवं फेक न्यूज़ आदि को बढ़ावा दिया है।
  • इन बढ़ती समस्याओं से सोशल मीडिया के विनियमन एवं इस पर कुछ प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। हालांकि, सोशल मीडिया को विनियमित करना न केवल अवांछनीय है बल्कि यह संभव भी नहीं है।

सोशल मीडिया की विशिष्टता यह है कि इसे स्वयं के द्वारा विनियमित होना चाहिए:

  • प्रौद्योगिकी एवं बेहतर कानूनों के आधार पर निजता से सम्बंधित मुद्दों का समाधान किया जा रहा है। उदाहरण के लिए प्रौद्योगिकी के साथ निजता; यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (General Data Protection Regulation: GDPR) निजता की सुरक्षा के लिए एक आदर्श कानून बन गया है।
  • सोशल मीडिया की सक्रियता एवं नागरिक पत्रकारिता के माध्यम से भ्रामक ख़बरों पर तेज़ी से नियंत्रण किया जा रहा है।
  • स्वयं सोशल मीडिया, सोशल मीडिया से संबंधित मुद्दों एवं चुनौतियों के बारे में लोगों को शिक्षित और जागरूक करने का साधन बन रहा है।
  • यद्यपि सोशल मीडिया कानून प्रवर्तन को कठिन बना रहा है, फिर भी यह एक ही समय में होने वाले अपराधों पर नियंत्रण लगाने एवं उसका समाधान निकालने में सहायता प्रदान कर रहा है।

निम्नलिखित उपायों द्वारा आगे की राह सुनिश्चित की जानी चाहिए:

  • कठोर निजता के कानून का निर्माण एवं उसका क्रियान्वयन।
  • कठोर साइबर सुरक्षा प्रणाली एवं कानून प्रवर्तन।
  • बच्चों को माता-पिता, शिक्षकों एवं समाज द्वारा प्रारंभ से ही सोशल मीडिया की समस्याओं से अवगत कराना एवं जागरूक बनाना।
  • सोशल मीडिया की क्षमता क्रांतिकारी है। डिजिटल पहूँच में हो रही वृद्धि और ऐप्लिकेशनों के विकास में वृद्धि के साथ ही सोशल मीडिया की भी वृद्धि अपरिहार्य है। इसके अतिरिक्त, स्वतंत्रता, पारदर्शिता, खुलेपन जैसे सोशल मीडिया के मूल्य मनुष्यों के लिए सामाजिक प्राणी होने के नाते अंतर्जात हैं।
  • जैसे कि विक्टर ह्यूगो का कथन है कि,”पृथ्वी पर कोई शक्ति किसी विचार को रोक नहीं सकती जिसका समय आ गया हो। “वर्तमान में यह शक्ति” सोशल मीडिया है।
सोशल मीडिया के विनियमन संबंधी मुद्दा (Regulation Issue of Social Media)

  • सोशल मीडिया का विनियमन अनुच्छेद 19 के अंतर्गत प्रत्याभूत वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 19(2) के तहत उल्लिखित इसके प्रतिबंधों के मध्य संतुलन के प्रयास की एक अत्यंत सामान्य दुविधा को प्रस्तुत करता है।
  • भारत में सोशल मीडिया के विनियमन हेतु कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

हालांकि, सोशल मीडिया पर सामग्रियों के विनियमन हेतु अनेक क़ानून विद्यमान हैं -:

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 – इस अधिनियम के अर्थ के अंतर्गत ‘सोशल नेटवर्किंग
    मीडिया’ एक “मध्यस्थ” है और भारत में विधि के अंतर्गत दंडनीय विभिन्न कृत्यों या गलतियों के लिए उत्तरदायी है। अधिनियम की धारा 79 यह अधिदेशित करती है कि यदि किसी साइट पर कुछ आपत्तिजनक सामग्री है तो इस अपराध के उजागर होने के 36 घंटे के भीतर इस पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) – धर्म, मूलवंश इत्यादि के आधार पर समूहों के मध्य शत्रुता को बढ़ावा देना (धारा 153 A), मानहानि (धारा 499), किसी महिला के शील या सम्मान का अनादर करना (धारा 509), आपराधिक धमकी (धारा 506), राजद्रोह (धारा 124-A), मानहानि (धारा 499 और धारा 500) इत्यादि धाराएँ सोशल मीडिया पर सामग्री के विरुद्ध
    आरोपित की जा सकती हैं।

हाल ही में, सोशल मीडिया के विनियमन पर सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षण ने सोशल मीडिया के विनियमन संबंधी लाभों एवं हानियो पर एक नई चर्चा आरम्भ कर दी है।

लाभ –

  • धार्मिक रुढ़िवाद या कट्टरतावाद से संबंधित पोस्ट को नियंत्रित करने में सहायता करेगा और शांति एवं सामाजिक एकजुटता के समक्ष उत्पन्न होने वाले किसी भी खतरे को दूर करने में सहायता करेगा।
  • आतंकवादियों को अपने एजेंडे का प्रसार करने या उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष खतरे उत्पन्न करने से रोकने में भी सहायता करेगा।
  • उन सामग्रियों को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी जो अश्लील या भ्रामक हैं और जिन्हें बच्चों की
    पहुंच से दूर रखना आवश्यक होता है।

हानियाँ –

  • इसका प्रयोग असहमति एवं रचनात्मक आलोचना की आवाजों को दबाने के लिए किया जा सकता है।
  • यह नैतिकता, राजद्रोह या निंदा के नाम पर रचनात्मकता को नष्ट कर सकता है।
  • यह किसी व्यक्ति को उसके विचारों को पूर्णतः व्यक्त करने (शांतिपूर्ण तरीके से) से प्रतिबंधित कर सकता है और बोलने के उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
  • यह लोकतांत्रिक आदर्शों के बिना एक दमनकारी और असहिष्णु समाज के निर्माण का जोखिम उत्पन्न करता है।

नवीनतम पहल

  • सरकार एक ऐसी नीति को अंतिम रूप दे रही है जिसका उद्देश्य सोशल मीडिया पर बाज़ की तरह निगरानी रखना है जिससे कि यह जांच हो सके कि कहीं इसका “दुरुपयोग” भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करने और राष्ट्र-विरोधी प्रचार करने के लिए तो नहीं किया जा रहा है।
  • सरकार सोशल मीडिया और ऑनलाइन सामग्री के लिए भी एक नियामक ढांचा प्रस्तुत करने की
    योजना बना रही है।

आगे की राह

  • निजता के कानूनों को सुदृढ़ करने, बेहतर कानून प्रवर्तन और सोशल मीडिया साइटों और एप्लीकेशन के सुरक्षित सक्रिय सहयोग को अनिवार्य रूप में आगे बढ़ाने का उपाय किया जाना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया के संभावित दुरुपयोगों के सम्बन्ध में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

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