निबंध: भारत में स्वास्थ्य देखभाल( Essay on Health care in India)

प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथन (Quotes by Famous Personalities)

  •  “स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है; सोने व चाँदी के टुकड़े नहीं।”- महात्मा गांधी
  • “शरीर के स्वास्थ्य को अच्छा रखना हमारा कर्तव्य है, अन्यथा हम अपने मन को मजबूत और स्पष्ट रखने में सक्षम नहीं होंगे।” महात्मा बुद्ध
  • अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ जीवन के सबसे महान वरदान हैं।”-पब्लियस सायरस
  •  स्वस्थ नागरिक किसी देश के लिए सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं।”-विंस्टन एस.चर्चिल
  •  “यदि धन खो दिया तो हमने कुछ नहीं खोया है, लेकिन यदि स्वास्थ्य खो दिया तो हमने अवश्य कुछ खो दिया है।”-फ्रांसीसी लोकोक्ति
  • “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः”अर्थात “सभी खुश रहें, सभी निरोगी रहें।”- उपनिषद

परिचय (Introduction)

  • प्राचीन भारत में स्वास्थ्य को किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक कल्याण के रूप में परिभाषित किया गया था। इस प्रकार, औषधि की चिकित्सा पद्धति केवल रोग और स्वतंत्र उपचार प्रणाली से संबंधित नहीं थी।
  • यह व्यक्ति के उपचार में विभिन्न संकल्पनाओं यथा आहार, जलवायु, आस्था, संस्कृति, अलौकिक एवं आनुभविक अवधारणाओं आदि को शामिल करती थी।
  • उपचार के लिए प्राकृतिक और निवारक दृष्टिकोण पर बल दिया जाता था। इसका उद्देश्य रोग के मूल कारण का उपचार करना था।
  • इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सकों में सुश्रुत, चरक और वाग्भट शामिल थे। सुश्रुत को “भारतीय शल्य चिकिसा का जनक” भी माना जाता है।
  • इस प्रकार, भारत के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में योग, ध्यान एवं आयुर्वेद शामिल हैं।
  • इसके अतिरिक्त, दक्षिण-पूर्व, इंडोनेशिया, तिब्बत और जापान सहित संपूर्ण एशिया में भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का उत्तरोत्तर प्रसार हुआ था।
  • आधुनिक समय में स्वास्थ्य को प्रायः नकारात्मक अर्थ में समझा जाता है अर्थात् इसका अर्थ रोगों की अनुपस्थिति को माना जाता है।
  • हालांकि, यह परिभाषा सीमित और संकीर्ण है। अमर्त्य सेन के अनुसार, “स्वास्थ्य एक सामाजिक वस्तु है। एक व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाना चाहिए, यदि वह समाज में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम है”।
  • हमारे वैदिक ग्रंथों में भी स्वास्थ्य को समग्रता में देखा गया था। इसे धन/संपदा का व्यापक रूप और सुख का मार्ग माना जाता था।
    “आरोग्यं परमं भार स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्”

इसका आशय है कि निरोगी होना परम भाग्य है एवं स्वास्थ्य से ही अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं। इस प्रकार, स्वास्थ्य को पृथक रूप में नहीं देखा जा सकता है, बल्कि मानव जीवन के व्यापक परिप्रेक्ष्य के रूप में, मानव जीवन के एक हिस्से के रूप में, तथा मानव जीवन के लिए लाभदायक साधन के रूप में देखने की आवश्यकता है।

  • स्वस्थ रहना एक प्रक्रिया है। इसकी शुरुआत प्रात:काल से ही हो जाती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि, हम किस तरह से सांस लेते हैं, हम क्या और किस प्रकार का भोजन करते हैं। तथा हमारे सोने का तरीका क्या है।
  • नए भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य के प्रति इस समझ को उचित रूप से समाहित कर लिया गया है। वर्तमान में बीमा के बजाय स्वास्थ्य बीमा पर अधिक ध्यान देने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है।

भारतीय समाज में स्वास्थ्य से संबंधित विरोधाभास एवं अंतर्विरोध

(Paradoxes & Contradictions Related to Health in Indian Society

  • प्रत्येक वर्ष 21 जून को ‘योग दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जो कि स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के लिए भारत के सबसे बड़े योगदान में से एक, योग को अभिस्वीकृति प्रदान करता है। योग अवसाद, मधुमेह जैसे जीवनशैली संबंधी रोगों के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से लाभकारी है।
  • हालांकि, इसके साथ ही एक तथ्य यह भी है कि- इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) द्वारा भारत को डायबिटीज कैपिटल (यहाँ टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या सर्वाधिक है) के रूप में घोषित किया गया है। यह विरोधाभास हमारी स्वास्थ्य प्रणाली की एक व्यापक समस्या अर्थात इसकी निराशाजनक स्थिति को प्रतिबिंबित करता है।
  • यह एक विडम्बना है कि सुश्रुत, चरक, वाग्भट्ट, राम चन्द्र शर्मा (जयपुर फुट के डिजाइनर और
    निर्माता) और आधुनिक समय में विश्व की जेनेरिक फार्मेसी की भूमि, भारत को लेंसेट की हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी इंडेक्स (HAQ) में 195 देशों की सूची में 145वां स्थान प्राप्त हुआ

स्वास्थ्य क्यों -स्वास्थ्य के विभिन्न आयाम/महत्व

(Why Health-importance / Dimensions to Health)

स्वास्थ्य एक सामाजिक कल्याण के रूप में (Health as a Social good)

  • सामाजिक कल्याण का आशय ऐसे किसी भी कल्याण से है जो विभिन्न संभव तरीकों से अधिकतम लोगों को लाभान्वित करता है।
  • सामाजिक कल्याण के रूप में स्वास्थ्य किसी समाज को अधिक समतावादी, सहिष्णु, टिकाऊ, संवेदनशील और नैतिक-आधारित समाज के रूप में विकसित होने में सक्षम बनाता है।
  • यह शिक्षा, कौशल जैसे अन्य सामाजिक कल्याण के बेहतर समावेशन तथा प्राकृतिक संसाधनों के साथ बेहतर संबंधों को स्थापित करने में भी सहायता करता है।

स्वास्थ्य राजनीतिक कल्याण के रूप में (Health as a Political god)

  • राजनीतिक कल्याण का आशय ऐसे किसी भी कल्याण से है जो राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को सक्षम बनाता है।
  • राजनीतिक कल्याण के रूप में स्वास्थ्य किसी समाज के राजनीतिक संवाद को और अधिक लोकतांत्रिक, उत्तरदायी और विकेन्द्रीकृत बनने में सक्षम करता है।
  • इसके अतिरिक्त, महत्वपूर्ण मुद्दों पर विशेष रूप से स्वच्छ ऊर्जा, सतत विकास आदि पर सर्वसम्मति विकसित करना अत्यधिक सरल हो जाता है। ।

स्वास्थ्य एक आर्थिक कल्याण के रूप में (Health as a Economic good)

  • आर्थिक कल्याण का आशय आर्थिक विकास, समृद्धि इत्यादि को सक्षम करने वाले कल्याण से
  • आर्थिक कल्याण के रूप में स्वास्थ्य, कौशलों के बेहतर उपयोग, कार्यबल की बेहतर
    उत्पादकता, उद्योगों में श्रमिकों की बेहतर भागीदारी, प्रौद्योगिकियों के संबंध में बेहतर निर्णय लेने आदि में सहायता प्रदान करता है।
  • इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य पर कम व्यय परिवार, सरकार और व्यापक रूप से समाज के भार को कम करता है।
  • अमेरिका के सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार, बाल्यावस्था में टीकाकरण पर प्रत्येक 1 डॉलर के निवेश से 10 डॉलर का प्रतिफल (रिटर्न) प्राप्त होता है।

स्वास्थ्य एक पारिस्थितिक कल्याण के रूप में (Health as an Ecological good)

  • पारिस्थितिकीय कल्याण के रूप में स्वास्थ्य, सतत विकास, सतत उपभोग और पर्यावरण अनुकूल नीति निर्माण को सक्षम बना सकता है।
  • हाल ही में तमिलनाडु में स्टारलाइट कंपनी के विरुद्ध आसपास के लोगों द्वारा किए गए विरोध-प्रदर्शन का कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव ही था। प्रदूषण में वृद्धि और स्वास्थ्य पर बढ़ते प्रतिकूल प्रभाव के कारण दिल्ली में भी इसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन किये जाते रहे हैं।

स्वास्थ्य एक नैतिक कल्याण के रूप में (Health as a Ethical good)

  • वर्तमान में स्वास्थ्य का अधिकार, एक मूलभूत मानव अधिकार के रूप में तेजी से स्वीकार किया जा रहा है।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध आदि ने स्वास्थ्य को एक मूलभूत मानव अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की है। सतत विकास लक्ष्य # 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण) स्वास्थ्य को मूलभूत मानव अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान के भाग ||| के अंतर्गत मौलिक अधिकारों के एक भाग के रूप में स्वास्थ्य के अधिकार को घोषित करने हेतु भारत में सर्वसम्मति विकसित हो रही है।
  • अतः, इस अधिकार की पूर्ति का दायित्व समाज और सामाजिक संस्थानों पर है।
बाल मृत्यु के कारण (Causes of Child Mortality)

WHO के 2012 के एक अनुमान के अनुसार, भारत में 0-5 वर्ष के आयु वर्ग में बाल मृत्यु के कारण निम्नलिखित हैं: नवजात शिशुओं से सम्बंधित कारण (53%); निमोनिया (15%); अतिसार (12%); खसरा (3%); चोट (3%) एवं अन्य (14%)

शिशु मृत्यु के कारण (Causes of Infant Mortality)

शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारण प्रसवकालीन परिस्थितियां (46%); श्वसन सम्बन्धी संक्रमण (22%); अतिसार (10%); अन्य संक्रामक और परजीवी बीमारियां (8%) तथा जन्मजात विसंगतियां (3.1%) आदि हैं।

नवजात मृत्यु के कारण (Causes of Neo-Natal Mortality)

नवजात मृत्यु के प्रमुख कारणों में संक्रमण (33%) यथा निमोनिया, सेप्टिसिमीया और अम्बिलिकल कॉर्ड संक्रमण; समयपूर्व अर्थात गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूर्व नवजात शिशु का जन्म होना (35%); एस्फेक्सिया (20%) अर्थात जन्म के तुरंत बाद सांस लेने में असमर्थता के कारण ऑक्सीजन की कमी होना आदि हैं।

भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौतियां

(Challenges in Health in India)

कमजोर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रक (Weak primary health care sector)

  • भारत में सार्वजनिक सेवाएं असमान रूप से वितरित हैं। उदाहरण के लिए सरकारी
    अस्पताल में बेड की उपलब्धता जहाँ गोवा में 614 व्यक्तियों पर एक बेड की है, वहीं बिहार में 8789 व्यक्तियों पर एक बेड उपलब्ध है।
  • मेडिकल टूरिज्म का एक केंद्र और स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों का निर्यातक होने के बावजूद भारत में जनसंख्या के अनुपात में डाक्टरों की संख्या निराशाजनक है (प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 से भी कम डॉक्टर उपलब्ध हैं)।

समस्त विश्व की वैश्विक फार्मेसी होने के बावजूद, भारत में 70% से अधिक स्वास्थ्य देखभाल व्यय आउट ऑफ़ पॉकेट व्यय के रूप में होता है। 

  • स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले व्यय के कारण भारत में लगभग 5 करोड़ लोग गरीबी में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होते हैं।
  • हाल ही में गोरखपुर में दो दिनों के अन्दर 42 बच्चों की मौत हो गई। इसी प्रकार एक अन्य मामले में गुडगाँव के फोर्टिस अस्पताल द्वारा डेंगू के एक रोगी के लिए (जहाँ रोगी की मृत्यु हो गयी थी) 16 लाख रुपये का बिल चार्ज किया गया था।
  • ये मामले गुणवत्ता, मात्रा, फुट-प्रिंट, पहुंच और वहनीयता जैसे मुद्दों की विकृत प्रणाली को प्रतिबिंबित करते हैं।

अपर्याप्त वित्तीयन (Inadequate Financing)

  • भारत में स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाला सरकारी व्यय निराशाजनक रूप से सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.28% है, जो कि कुल स्वास्थ्य संबंधी व्यय के 30% से भी कम है। भारत में इस क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक पर प्रति व्यक्ति व्यय केवल 3 रुपये प्रति दिन है।
  • इसके अतिरिक्त, यद्यपि यह तथ्य सर्वविदित है कि निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर किया गया व्यय अधिक अनुकूल है और गैर-संक्रमणीय बीमारियां भारत के स्वास्थ्य संबंधी भार का 60% हैं, तथापि वित्तीयन ढांचे का झुकाव उपचारात्मक एवं संक्रमणीय बीमारियों के पक्ष में

कमजोर नियामक ढांचा और निजी क्षेत्र (Weak Regulatory Framework and Private Sector)

  • भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी नियामक ढांचा अभी भी व्यवस्थित नहीं है। नोडल एजेंसी अर्थात भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (MCI) को भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और पक्षपात में लिप्त पाया गया है।
  • इसके अतिरिक्त, फोर्टिस द्वारा अत्यधिक बिल चार्ज करने जैसे मामले नियामक ढांचे की – निराशाजनक स्थिति को प्रतिबिंबित करते हैं।

अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल कार्मिक और अवसंरचना (Inadequate Healthcare Personnel and Infrastructure)

  • भारत में जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है, जो WHO द्वारा अनुशंसित 1:1000 से काफी कम है। यह समस्या हृदय रोग विशेषज्ञों, मनोचिकित्सकों आदि जैसे विशेषज्ञ डॉक्टरों के सम्बन्ध में और अधिक गंभीर है।
  • इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के संबंध में स्पष्ट रूप से ग्रामीण-शहरी विभाजन, क्षेत्रीय विभाजन, लिंग-विभाजन इत्यादि भी उपस्थित हैं।
  • उदाहरण के लिए: • 73% ‘पब्लिक हॉस्पिटल बेड्स’ शहरी क्षेत्रों में विद्यमान हैं, जबकि भारत की 69%
    जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में निवास करती है।

स्वास्थ्य देखभाल में असमानता (Inequity in Healthcare)

  • स्वास्थ्य के संदर्भ में अमीरों और गरीबों के बीच विभाजन पहुंच, वितरण और सेवाओं के मामले में व्यापक है।

विखंडित स्वास्थ्य सूचना प्रणाली (Fragmented health information systems)

  • आंकड़ा संग्रहण प्रणालियों में कई कमजोरियां विद्यमान हैं जैसे कि अपूर्ण आंकड़ा संग्रहण और
    इसमें निजी क्षेत्र को समाविष्ट न करना। निजी क्षेत्र के गैर-समावेशन से भारत में प्रमुख
    स्वास्थ्य प्रदाता बाहर रह जाते हैं।

कमजोर शासन और जवाबदेही (Weak Governance and accountability)

चिकित्सीय शिक्षा (Medical Education)

  • भारत में शिक्षा प्राप्त स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी पेशेवर विश्व प्रसिद्ध हैं; किन्तु इसके बाद भी भारत में चिकित्सा शिक्षा निराशाजनक रही है।
  • अधिकांश समस्याओं में भाई-भतीजावाद, कैपिटेशन फीस, कमजोर नियामक संरचना इत्यादि शामिल हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय परीक्षाएँ यथा NEET, अलग-अलग राज्यों की आवश्यकता के अनुसार विभिन्नता लाने में असमर्थ रही हैं।

सामाजिक कारण (Social Reasons)

  • स्वास्थ्य देखभाल को पृथक रूप से नहीं देखा जा सकता है, बल्कि इसका अध्ययन सामाजिक संदर्भ में किया जाना चाहिए। भारत में स्वास्थ्य देखभाल की दयनीय स्थिति भी व्यापक निर्धनता, लाभकारी रोजगार की कमी, अज्ञानता, निरक्षरता, महिलाओं की निम्न स्थिति, खुले में शौच की समस्या और निम्नस्तरीय स्वच्छता सुविधाओं के कारण है।
  • टी.बी, कुष्ठ रोग, HIV/एड्स आदि के मामले में बीमारियों के आधार पर भेदभाव भी भारतीय
    समाज की एक बड़ी समस्या है।
  • उदाहरण के लिए, दस्त संबंधी बीमारियां खुले में शौच की समस्या से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं तथा इसकी वजह से भारत में प्रत्येक वर्ष 11 महीने से कम आयु के लगभग 1 लाख बच्चे मृत्यु के शिकार हो जाते हैं।

स्वदेशी प्रणालियों स्थिति (Status of Indigenous systems)

  • योग, आयुर्वेद आदि जैसी स्वदेशी प्रणालियों पर जोर बढ़ रहा है, परन्तु कार्यान्वयन हेतु उनकी समर्थन प्रणाली कमजोर है।
  • इन प्रणालियों में उचित विनियामक ढांचे, प्रमाणीकरण बेंचमार्किंग और अनुसंधान का अभाव

उभरते स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दे (Emerging Health Issues)

  • रहन-सहन का आधुनिक तरीका, हिंसा एवं व्यक्तिवाद में वृद्धि, प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं, शहरी जीवनशैली, परीक्षा का दबाव, कार्य का दबाव, कॉर्पोरेट संस्कृति के कारण स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी व्यवधान और गैर-संक्रामक बीमारियों को बढ़ावा दे रही है।
  • भारत में, मधुमेह, एंजायटी डिसऑर्डर, अवसाद आदि जैसी जीवन शैली से सम्बंधित बीमारियां विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में प्रमुख चुनौतियों के रूप में उभर रही हैं।
  • हालांकि, महामारी के प्रसार के बावजूद, भारत मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर अपने स्वास्थ्य देखभाल बजट का केवल 0.06 प्रतिशत व्यय करता है।
  • समग्र स्वास्थ्य क्षेत्र के रूप में नैतिकता, विशेष रूप से डॉक्टर -रोगियों के सम्बन्धों में विकृत होते सिद्धांत, जैसे रोगियों के इलाज, मानव अंगों की तस्करी, बीमारियों या बच्चों के लिंग आदि के संदर्भ में गोपनीयता का पालन न करना आदि जैसे मुद्दे भी विद्यमान हैं।
  • इसके अतिरिक्त, भारत की वृद्ध आबादी 100 मिलियन तक पहुंच गई है और आगे इसमें और अधिक वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है। हालांकि, भारतीय स्वास्थ्य देखभाल वृद्धावस्था (जेरियाट्रिक) संबंधी स्वास्थ्य देखभाल (जिसमें हृदय संबंधी एवं मनोवैज्ञानिक रोग आदि शामिल हैं) के लिए पूर्णतः तैयार नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण के कारण दवा के प्रति प्रतिरोध विकसित होने और महामारियों में वृद्धि जैसी चुनौतियाँ उभर रही हैं। उदाहरण के लिए ज़िका वायरस, निपाह वायरस, MERS वायरस इत्यादि का हालिया मामला।
  • अंत में, यूथेनेसिया जैसे मुद्दे चिकित्सकीय नैतिकता के लिए नई चुनौतियों उत्पन्न कर रहे हैं।

स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां

(India’s Achievements in Health Sector)

विश्व की जेनेरिक फार्मेसी के रूप में (As a Generic Pharmacy of the World)

  • वैश्विक दवा उद्योग में भारत की भागीदारी लगग 10% (मात्रात्मक रूप में) तथा जेनेरिक दवा निर्यात के लिए 20% (मात्रात्मक रूप में) है।
  • भारतीय दवा क्षेत्र के लिए देश में कई अनुकूल परिस्थितियां विद्यमान हैं जैसे- भूमि, श्रम, आवश्यक सामग्री और उपकरणों की कम लागत; अनुकूल घरेलू कानून इत्यादि।

चिकित्सा पर्यटन (Medical Tourism) 

  • अपेक्षाकृत सस्ती स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल कार्मिकों, स्वदेशी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों जैसे योग, प्राकृतिक चिकित्सा आदि के कारण चिकित्सा पर्यटन भारत के लिए विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत रहा है।
  • 2015 तक, चिकित्सा पर्यटन का मूल्य 3 बिलियन अमरीकी डॉलर का था और 2020 तक इसके 9 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
  • भारत से गये स्वास्थ्य देखभाल कर्मी विभिन्न देशों में अपनी सेवाएँ देते हैं।

लागत प्रभावी उपचार (Cost effective solutions)

  • भारत चिकित्सा संबंधी मुद्दों के लिए लागत प्रभावी उपचार का एक प्रमुख केंद्र रहा है।
  • ‘जयपुर फुट’ को 1968 में राम चंद्र शर्मा द्वारा भारत में डिजाइन और विकसित किया गया
    था।
  •  भारत टीकों के अनुसंधान एवं विकास के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा है।।
    विश्व के 60% से अधिक टीकों का निर्माण भारत द्वारा किया जा रहा है।
  • हाल ही में, भारत में विकसित रोटावैक वैक्सीन नामक एक टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन
    द्वारा ‘प्री-क्वालिफाइड’ घोषित किया गया है। यह पहली बार है जब भारत में पूर्ण रूप से
    विकसित किसी टीके को यह मान्यता प्रदान की गयी है।

प्रमुख स्वास्थ्य संकेतकों के संदर्भ में, भारत की स्थिति में काफी सुधार हुआ है; जैसे MMR 212 (2007-09) से घटकर 167 (2011-13) हो गया है (जिसे 100 तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है); 2013 में 5 वर्ष से कम आयु के प्रति 1000 जीवित जन्में शिशुओं में से मृत शिशुओं की दर 49/1000 तक कम हुई है, इत्यादि।

 

भारत में स्वास्थ्य देखभाल में सुधार हेतु अडीए गए अन्य कदम

(Other Steps Taken to improve Health Care in India)

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions)

  • उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने विभिन्न निर्णयों में स्वास्थ्य के अधिकार को भारतीय संविधान
    के अनुच्छेद 21 के तहत अंतर्निहित वोषित किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त, भाग-4 (निदेशक सिद्धांत) के विभिन्न अनुच्छेदों यथा 39 (e), 41, 42, 47
    और 48 के द्वारा भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को सुदृढ करने का दायित्व राज्य को
    सौंपा गया है।

स्वास्थ्य देखभाल संबंधी विधान, योजनाएं और नीतियां (Legislations, Schemes and Policies for healthcare)

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017: इसका उद्देश्य- परिवर्तनशील सामाजिक-आर्थिक, महामारी
    विज्ञान और तकनीकी परिदृश्यों से उत्पन्न होने वाली वर्तमान और उभरती चुनौतियों का समाधान कर सभी को “सुनिश्चित तरीके” से स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है।
  • इसका लक्ष्य सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यय को वर्तमान 1.2% के स्तर से 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाना है, कुल आवंटन का दो तिहाई से अधिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय किया जाएगा।
  • इस नीति के तहत, 2018 तक कुष्ठ रोग को समाप्त करने और 2020 तक वैश्विक HIV लक्ष्य- ’90: 90: 90′ की प्राप्ति के लिए प्रावधान किए गए हैं।

मिशन इंद्रधनुष को तीव्रता से लागू करना (Intensified Mission Indradhanush)

  •  इसका उद्देश्य दो वर्ष से कम उम्र के प्रत्येक बच्चों और उन सभी गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से टीकाकरण कार्यक्रम तक पहुँच उपलब्ध कराना है, जो नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत छूट गए थे।

आयुष्मान भारत

  • इसका लक्ष्य, केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त सहयोग के द्वारा, 10 करोड़ परिवारों को बिना किसी लागत के 5 लाख का वार्षिक बीमा कवर प्रदान करना है।
  • भारत सरकार ने 2025 तक क्षय रोग (ट्यूबरक्लोसिस) के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • इसके अतिरिक्त स्वदेशी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में भी वृद्धि हुई है। सरकार द्वारा इसके लिए राष्ट्रीय आयुष मिशन प्रारंभ किया गया है और योग दिवस को आधिकारिक तौर पर वैश्विक वार्षिक आयोजन के रूप में घोषित किया गया है।
  • सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के सभी पहलुओं के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाते हुए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 पारित किया गया है।

सिविल सोसायटी संगठनों के प्रयास (Efforts of Civil Society Organisations)

  • स्माइल इंडिया फाउंडेशन- इसका उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं तक पहुँच सुनिश्चित करना और स्वास्थ्य देखभाल जागरूकता को प्रोत्साहित करना है।
  • रूरल हेल्थकेयर फाउंडेशन- इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कम लागत वाले प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल उपलब्धता अंतराल को समाप्त करना है।
  • सेवा निलयम- यह ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से तमिलनाडु सरकार के साथ साझेदारी में कार्य कर रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन (International Organisations)

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत्त कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों में WHO, UNDP, FAO इत्यादि शामिल हैं।
  • इसके अतिरिक्त, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउन्डेशन का उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल में वृद्धि करना और चरम गरीबी में कमी लाना है।
  • डॉक्टर विदाउट बॉर्डर्स- यह युद्धग्रस्त-क्षेत्रों (conflict zones) में और स्थानिक बीमारियों से प्रभावित देशों में चिकित्सीय सेवाएं प्रदान करता है।
भारत में प्रचलित सर्वोत्तम प्रथाएं (Best Practices in India)

केरल और तमिलनाडु का आदर्श बीमा मॉडल

  • वैश्विक स्तर पर स्वीकृत इस हेल्थकेयर मॉडल के तहत कम और वहनीय लागत पर बेहतर स्वास्थ्य देखभाल प्रदान की जाती है।
  • प्रीमियम और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का भार राज्य द्वारा वहन किया जाता है, जबकि निजी भागीदारी अधिकांशतः तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक ही सीमित होती है।
  • इसके अतिरिक्त, केरल में आश्रम मिशन का उद्देश्य सरकारी अस्पतालों के अवसंरचना में सुधार कर इसे जन-अनुकूल बनाना है।

मुहल्ला क्लीनिक मॉडल

  • मुहल्ला क्लीनिक नई दिल्ली में संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जो दवाइयों, निदान एवं परामर्श सहित आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं निशुल्क प्रदान करते हैं।
  • ये क्लीनिक जनसामान्य के लिए प्रथम संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करते हैं। साथ ही ये समय पर सेवाएं प्रदान करते हैं, और राज्य में माध्यमिक एवं तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए रेफरल के भार को कम करते हैं।

ओडिशा ई-हेल्थकेयर

  • इसकी शुरूआत 2009 में हुई थी। ओडिशा टेलीमेडिसिन द्वारा 127 टेलीमेडिसिन केंद्रों को स्थापित और 900 टेलीमेडिसिन टेकनीशियंस को प्रशिक्षित किया गया है।
  • इसके द्वारा देश में अनेक सुपर स्पेश्यलिटी अस्पतालों के साथ सहयोग हेतु समझौते किए गए  हैं जिससे राज्य में लगभग पांच लाख रोगी लाभान्वित हुए हैं।

आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता

  • मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA) निवारक स्वास्थ्य देखभाल हेतु एक अत्यधिक उपयोगी मॉडल के रूप में उभरा है।
  • इसकी शुरुआत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के एक भाग के रूप हुई थी। इसने स्वास्थ्य देखभाल लागत में कमी, और IMR एवं MMR जैसे बेहतर स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार को बढ़ावा दिया है।

आगे की राह – क्या भारत की विखंडित स्वास्थ्य देखभौल प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सकता है?

(Way Fotoard – Can India’s Broken Healthcare Sy e Fixed ?)

जहाँ एक ओर पारंपरिक सुधार यथा व्यय में वृद्धि, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों का सशक्तिकरण, स्वास्थ्य विनियमन को प्रभावी बनाना आदि अनिवार्य हैं; वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण सुधार भी हैं जो स्थिति को परिवर्तित करने में समर्थ हैं किन्तु उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे प्रमुख सुधार निम्नलिखित हैं

निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर बल देना (Shift to Preventive healthcare)

  • भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को उपचारात्मक स्वास्थ्य देखभाल द्वारा निर्देशित किया जाता है। हालाँकि वर्तमान समय में निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है जो अधिक समावेशी, सस्ती और बेहतर जीवन का विकल्प प्रदान करती है। स्वास्थ्य सम्बन्धी अवधारणा में परिवर्तन (Change in conception of Health)
  • स्वास्थ्य को बीमारी की अनुपस्थिति के रूप में नहीं बल्कि कल्याण की स्थिति के रूप में परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य के अस्पताल केंद्रित मॉडल को परिवर्तित किया जाना चाहिए।
  • इस प्रकार, मूल्य प्रणाली में खेल, उचित परिवेश, अच्छा भोजन, अच्छी नींद आदि के महत्व को समाविष्ट करने हेतु सुधार किया जाना चाहिए।

स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में महिलाएं (Women as agency of health)

  • महिला एजेंसी के माध्यम से सुधार स्वास्थ्य देखभाल में सुधार किए जाने का एक प्रभावी
    उपाय है। अमर्त्य सेन ने अपनी ‘कैपिसिटी एप्रोच’ में महिला सशक्तिकरण द्वारा प्रजनन दर,
    IMR और MMR में हुए महत्वपूर्ण सुधार-पद्धति को चिन्हित किया।

प्रौद्योगिकी का प्रयोग (Use of technology)

  •  हेल्थकेयर सेक्टर में सूचना प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण गेम चेंजर सिद्ध हो सकती है। बिग डेटा,
    आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी नई तकनीकें स्वास्थ्य देखभाल वितरण की पहुंच को सुदृढ़ और प्रोत्साहित करने में सक्षम हो सकती हैं। ओडिशा, छत्तीसगढ़ आदि जैसे राज्य अब हेल्थकेयर डिलीवरी को सुदृढ़ करने हेतु टेलीमेडिसिन का उपयोग कर रहे हैं।
  • भारत को अनुसंधान और नवाचार, विशेष रूप से जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे स्वास्थ्य देखभाल को अधिक वहनीय, सुलभ और सुगम्य बनाने में सक्षम बनाया जा सकता है।

SHGs, PRI का उपयोग और ANMs, ASHAs को सशक्त बनाना (Use of SHGs, PRI and Strengthening of ANMs, ASHAs)

  • स्वास्थ्य सेवाओं को वितरित करने के लिए SHGs, PRIs जैसे विकेन्द्रीकृत संस्थानों को
    विकसित करने की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त ASHA, पारंपरिक कौशल और आधुनिक स्वच्छता के साथ दाई, कुशल ANM और ICDS कार्यकर्ताओं को ग्राम स्तर पर एक मल्टी-स्किल्ड टीम के रूप में कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

स्वदेशी प्रणाली का पुनरुद्धार (Rejuvenating our indigenous systems)

  • योग और आयुष पर बल देने के बावजूद, नीतिगत पहलों के लिए सहायक और विनियामकीय तंत्र कमजोर है।
  • इन प्रणालियों को वर्तमान आवश्यकतों के अनुरूप बनाने के लिए इनमे अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है।
  • उदाहरण के लिए, हाल के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि कैंसर और अवसाद के उपचार हेतु हल्दी का उपयोग लाभदायक हो सकता है।

अन्य सफल मॉडल/उदाहरणों से सीख

(Learning from other successful models/examples)

  • बांग्लादेश, थाईलैंड, रवांडा जैसे देश ने प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण के सफल स्वास्थ्य देखभाल मॉडल विकसित किए हैं।
  • भारत में भी केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों ने कुछ सफल हेल्थकेयर मॉडल विकसित किए हैं।
  • इन मॉडलों को भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के अनुसार संशोधित
    एवं क्रियान्वित किया जा सकता है।

ब्रिज कोर्स (Bridge Courses)

  • हालांकि एलोपैथी दवाओं के लिए आयुष डॉक्टरों द्वारा ब्रिज कोर्स को प्रारंभ करने का प्रयास
    किया गया है।
  • आयुष के लिए भी एलोपैथी डॉक्टरों हेतु ब्रिज कोर्स प्रारंभ किए जाने की आवश्यकता है।

नैतिकता (Ethics)

  • स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों में सेवाभाव, ईमानदारी, गोपनीयता, स्वायत्तता, सुस्पष्ट सहमति और न्याय जैसे नैतिक मूल्यों को भी अंतर्निविष्ट करने की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, रोगियों को भी स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की स्थिति के संबंध में अधिक संवेदनशील होना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियां- हेल्थकेयर के वे मॉडल जिनसे भारत सीख ले सकता है। (International Practices – Models of Healthcare-From which India can learn)

बेवरिज मॉडल- ग्रेट ब्रिटेन, स्पेन, अधिकांश स्कैंडिनेवियन देश और न्यूजीलैंड आदि में प्रचलित।

  •  इसका नाम ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा को स्वरूप प्रदान करने वाले एक समाज सुधारक
    विलियम बेवरिज के नाम पर रखा गया था।
  • इसमें कर के आरोपण के माध्यम से सरकार द्वारा स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का वित्तीयन किया
    जाता है एवं उन्हें उपलब्ध करवाया जाता है। इस प्रकार यह स्वास्थ्य सेवा को भी पुलिस
    सेवाओं या सार्वजनिक पुस्तकालय के समान राज्य द्वारा प्रदान किये जाने का समर्थन करता है।
  • हालाँकि इस प्रणाली की प्रति व्यक्ति लागत कम है लेकिन इसमें दक्षता और प्रभावशीलता से
    समझौता किया जाता है।

बिस्मार्क मॉडल- जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, जापान, स्विट्ज़रलैंड में प्रचलित।

  • यह बीमा प्रणाली का उपयोग करता है जहां बीमाकर्ताओं को “रुग्णता कोष (sickness
    funds)” कहा जाता है। इस कोष को सामान्यतः पेरोल कटौती के माध्यम से नियोक्ता और !!
    कर्मचारियों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया जाता है।
  • यह योजना सभी व्यक्तियों को कवर करती है और कोई लाभ प्रदान नहीं करती।
  • कठोर विनियमन के कारण, सरकार के पास महत्वपूर्ण लागत-नियंत्रण उपकरण है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा मॉडल- कनाडा, ताइवान और दक्षिण कोरिया में प्रचलित प्रणाली।

  • इस प्रणाली में बेवरिज और बिस्मार्क दोनों मॉडल की विशेषताएँ सम्मिलित हैं।
  •  इसमें निजी क्षेत्र के प्रदाताओं का उपयोग किया जाता है, लेकिन भुगतान एक सरकार संचालित
    बीमा कार्यक्रम के माध्यम से प्राप्त होता है। इस बीमा कार्यक्रम में प्रत्येक नागरिक भुगतान करता है।
  • इस प्रणाली की मार्केटिंग की कोई आवश्यकता नहीं होती है, दावों से इनकार करने हेतु कोई वित्तीय उद्देश्य नहीं है और कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है। ये सार्वभौमिक बीमा कार्यक्रम वहनीय
    और अधिक सरल होते हैं।

आउट-ऑफ-पॉकेट मॉडल – अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों, भारत, चीन और दक्षिण अमेरिका में।

  • यह अधिकांशतः उन देशों में देखा जाता है जो किसी भी प्रकार की जन चिकित्सा देखभाल
    प्रदान करने हेतु अत्यधिक निर्धन और असंगठित हैं।

निष्कर्ष

  • वर्तमान में भारतीय स्वास्थ्य देखभाल एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर है।
  • अमर्त्य सेन के अनुसार, भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली कैलिफोर्निया के एक द्वीप (उपलब्धियों के संदर्भ में) और उप-सहारा अफ्रीका (चुनौतियों के संदर्भ में) के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • हालाँकि, भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता है। तथापि यह स्वास्थ्य देखभाल की एक पूर्णतः पृथक अवधारणा को भी सम्मिलित करता है, जिसमें इसे जीवन की एक प्रक्रिया या एक भाग के रूप में देखा जाए।
  • हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी इसी तरह के दृष्टिकोण को मान्यता प्रदान की गई है।
  • वर्तमान विश्व में, जहां अधिकाधिक लोग धन अर्जन के पीछे लगे हैं और धन ही उनकी अंतिम इच्छा बन कर रह गयी है, ऐसे में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के एक कथन को उद्धृत करना महत्वपूर्ण है, जिसके अनुसार ‘केवल स्वास्थ्य ही वास्तविक संपत्ति है।’ अतः हमारे द्वारा इस पर विचार कर अपने जीवन सम्बन्धी निर्णय लिए जाने चाहिए।

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