निबंध: जलवायु परिवर्तन (Climate change)

प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा दिए गए उद्धरण (Quotes by Famous Personalities)

  •  “प्रसन्नता की प्रथम शर्त यह है कि मनुष्य और प्रकृति के मध्य जुड़ाव नहीं तोड़ा जाएगा।” ~ लियो टॉल्स्टॉय
  • “ईमानदार प्रबंधन के बिना पृथ्वी अपना उत्पादन निरंतर जारी नहीं रखेगी। यदि हम भूमि को इस प्रकार से नुकसान पहुंचाते हैं कि यह भविष्य की पीढ़ियों के उपयोग योग्य न रहे, तो हम यह नहीं कह सकते कि हमें इस भूमि से प्यार है।” ~ पोप जॉन पॉल द्वितीय
  • यदि हम पर्यावरण को नष्ट करते हैं तो हम समाज को नहीं बचा पाएंगे।” ~ मार्गरेट मीड
  • “एक राष्ट्र जो अपनी मृदा को नष्ट कर देता है, वह स्वयं को नष्ट कर देता है। वन हमारी भूमि के फेफड़े हैं, वायु को शुद्ध करते हैं और हमें नई ऊर्जा प्रदान करते हैं।” ~ फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट
  • “हम अपने पूर्वजों से पृथ्वी का वंशानुगत अधिकार नहीं प्राप्त करते हैं, हम इसे अपने बच्चों से उधार लेते हैं।”
  • “एक वृक्ष लगाने का सबसे अच्छा समय 20 वर्ष पूर्व था। अगला सबसे अच्छा समय आज है। ” चीनी नीति वचन।

जलवायु परिवर्तन के साक्ष्य (Evidences of Climate change)

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change: IPCC) के अनुसार “बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान उत्तरी गोलार्द्ध में औसत तापमान पिछले 500 वर्षों की तुलना में काफी अधिक था”।
  • IPCC द्वारा यह बताया गया है कि “विगत 6,50,000 वर्षों में CO2 की युमंडलीय सांद्रता प्राकृतिक सीमा की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी है।”
  • क्रायोस्फीयर लगातार सिकुड़ रहा है: पिछले दशक में अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने की दर तीन गुना हो गई है। पिछली शताब्दी में वैश्विक समुद्र स्तर में लगभः 8 इंच की वृद्धि हुई है।
  • महासागर अम्लीकरण – महासागरों की ऊपरी परत द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा प्रति वर्ष लगभग 2 बिलियन टन बढ़ रही है।
  • स्टेट ऑफ़ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट 2017 के अनुसार, वायुमंडलीय मीथेन एक नए उच्च स्तर तक पहुंच गया है और अब यह पूर्व-औद्योगिक स्तर का 257% है।
  • वैश्विक तापन लगभग सभी स्थलीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों को प्रभावित कर रहा है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाया कि समुद्र जल स्तर में वृद्धि से छोटे प्रवाल द्वीप के जलमग्न होने के कारण बैंबल के मेलोमिस (Bramble Cay Melomys- चूहे की तरह का एक ऑस्ट्रेलियाई कुंतक) विलुप्त हो गया (इसे 2007 में आखिरी बार देखा गया था)। जलवायु परिवर्तन के कारण पूर्णतः विलुप्त होने के कगार पर जाने वाला यह पहला स्तनधारी है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Impact on Climate Change)

पर्यावरण (Environment)

  • मौसम संबंधी चरम घटनाओं में वृद्धि (Rise in extren weather events)– वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ मौसम और जलवायु में परिवर्तन, वर्षा में परिवर्तन के परिणामस्वरूप, बाढ़, सूखा, या तीव्र वर्षा के साथ-साथ वर्षा की बारम्बारता और भीषण हीट वेव्स में वृद्धि हुई है। वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन भी अधिक स्पष्ट होगा।
  • समुद्र जल स्तर में त्वरित वृद्धि (Accelerated Sea Level Rise)- 1880 के पश्चात वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 8 इंच की वृद्धि हुई है। ऊष्मन के कारण बर्फ के पिघलने एवं समुद्री जल के विस्तार से अतिरिक्त जल में वृद्धि के परिणामस्वरूप वर्ष 2100 तक समुद्र के जलस्तर में 1 से 4 फीट तक की वृद्धि होने का अनुमान है।
  • महासागरीय अम्लीकरण (Ocean Acidification) – पृथ्वी पर महासागरों और हिमनदों में भी वृहद स्तर पर परिवर्तन देखे गए हैं – महासागर के तापमान में वृद्धि के साथ अम्लीयता में भी वृद्धि हुई है, बर्फ की चट्टानें पिघल रही हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है।
  • भू दृश्य में परिवर्तन (Changing Landscapes)- सदी के मध्य से पहले ग्रीष्म ऋतु में आर्कटिक महासागर के अनिवार्य रूप से बर्फ मुक्त होने का अनुमान है।
  • पारिस्थितिक तंत्र के समक्ष संकट (Ecosystems at Risk)- तापमान में वृद्धि के कारण दुनिया भर में मौसम और वनस्पति के प्रतिरूप में बदलाव हो रहा है, जिससे जन्तुओं की प्रजातियां अपने अस्तित्व के लिए नए, ठंडे क्षेत्रों में प्रवास कर रही हैं। पौधे एवं जंतुओं के क्षेत्र परिवर्तित हुए हैं और वृक्षों में शीघ्र पुष्पन हो रहा है।
  • प्रजातियों के अस्तित्व के समक्ष संकट (Threat to species survival)- जलवायु में तीव्र बदलाव से कई प्रजातियों की प्रवास करने या उनकी समायोजित करने की क्षमता में वृद्धि होने की संभावना है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि ऊष्मन की प्रवृत्ति वर्तमान दर पर बनी रहेगी तो 2050 तक पृथ्वी की प्रजातियों का एक चौथाई भाग विलुप्त होने के कगार पर होगा।

मानव स्वास्थ्य (Human Health)

  • बीमारियां (IIInesses)- उदाहरण के लिए वर्ष 2018 में, अत्यधिक गर्म हवाओं (लू) के कारण भारत में 1,500 से अधिक मौतें हुईं।
  • संक्रामक बीमारियों का प्रसार (Spread of infectious diseases): मुख्य रूप से गर्म तापमान के कारण रोगकारी कीट, जंतुओं और सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व बना हुआ है जिनकी कभी ठंडे मौसम के कारण मृत्यु हो गयी थी।
  • नए क्षेत्रों में बीमारियों का प्रसार (Spread of diseases to new regions): बीमारियाँ एवं कीट जो एक समय केवल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक सीमित थे, जैसे- मच्छर, जिनके कारण मलेरिया होता है, इन्हें नए क्षेत्रों में अनुकूल परिस्थितियां मिल सकती हैं जो कभी अत्यधिक ठंडे होने के कारण इनकी वृद्धि को रोकते थे।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि केवल वर्ष 2000 में ही वैश्विक ऊष्मन के कारण 1,50,000 से अधिक मौतें हुईं, जिनका भविष्य में और बढ़ने का अनुमान है।

 

आर्थिक क्षति (Economic Losses)

  • यदि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने हेतु कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो जलवायु परिवर्तन के कारण वार्षिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5 से 20 प्रतिशत तक व्यय हो सकता है। तुलनात्मक रूप से, जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिए GDP के 1 प्रतिशत भाग की आवश्यकता होगी।
  • विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया है कि अगले 15 वर्षों में 45 मिलियन भारतीयों को अत्यधिक निर्धन बनाकर जलवायु परिवर्तन आर्थिक प्रगति को प्रभावी ढंग से निष्फल कर सकता है। जलवायु परिवर्तन महत्वपूर्ण रूप से तटीय अधिवासों में परिवर्तन कर सकता है और बंदरगाहों एवं तटीय अवसंरचना के पुनर्निर्माण के लिए कई मिलियन रूपए व्यय करने पड़ सकते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर, अत्यधिक तीव्र चक्रवातों (हरिकेन) और मूसलाधार वर्षा के कारण संपत्ति और अवसंरचना में कई बिलियन डॉलर की क्षति हो सकती है।
  • समुद्र का उच्च तापमान, कोरल रीफ के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है, जो वस्तु एवं सेवाओं के रूप में अनुमानतः 375 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष उत्पादन करता है।

कृषि उत्पादकता/खाद्य सुरक्षा (Agriculture Productivity/Food Security)

  • कृषि उत्पादकता जलवायु-प्रेरित प्रभावों के दो व्यापक वर्गों के प्रति संवेदनशील होती है। इसके प्रथम प्रत्यक्ष प्रभाव को तापमान, वर्षा और कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है; और दूसरे अप्रत्यक्ष प्रभाव को मृदा की नमी में परिवर्तन तथा कीटों और रोगों के माध्यम से संक्रमण की तीव्रता और वितरण के रूप में देखा जाता है।
  • पोषण सम्बन्धी सुरक्षा: वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर गेहूँ, सोयाबीन और चावल सहित अधिकांश पौधों की प्रजातियों में प्रोटीन और आवश्यक खनिजों की सांद्रता में कमी करता है।
  • मत्स्य पालन पर प्रभावः तापमान और मौसम में परिवर्तन प्रजनन और प्रवासन के समय को । प्रभावित कर सकते हैं। कुछ समुद्री रोगों का प्रकोप भी परिवर्तित जलवायु से संबंधित होता है।
  • पशुधन पर प्रभाव: हीट वेव्स (जो कि जलवायु परिवर्तन के कारण और अधिक बढ़ सकती हैं) रोगों के प्रति सुभेद्यता बढ़ाकर, प्रजनन क्षमता घटाकर और दुग्ध उत्पादन में कमी के माध्यम से पशुधन के लिए संकट उत्पन्न कर सकती है।

भारत पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव impact of Climate Change on India)

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmente! Panel on Climate Change: IPCC) द्वारा प्रस्तुत पांचवीं आकलन रिपोर्ट के अवलोकन द्वारा ज्ञात होता है कि विशेषतः भारत में जलवायु परिवर्तन के निम्नलिखित प्रभाव रहे हैं।

मौसम पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव (Effects of Climate Change on Weather)

  • अधिकतम तापमान में 1-4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होने की संभावना है, सर्वाधिक वृद्धि तटीय क्षेत्रों में दर्ज की जाएगी। मॉनसून विच्छेद दिवसों की संख्या में वृद्धि हुई है जबकि मानसून गर्त (डिप्रेशन) की संख्या में कमी आई है।
  • हिमालयी क्षेत्र में वर्षा में सर्वाधिक वृद्धि हुई है, जबकि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में न्यूनतम वृद्धि हुई है।
  • मध्य भारतीय क्षेत्र एवं कई अन्य क्षेत्रों में निम्न वर्षा की कीमत पर कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा की परिघटनाओं में वृद्धि हुई है।
  • भारत के पूर्वी तट पर स्थित जिलों में निवास करने वाले लोगों की कठोर मौसमी परिघटनाओं के प्रभावों के प्रति विशिष्ट रूप से सुभेद्य होने की संभावना है, जिसका कारण वहाँ का अपर्याप्त अवसंरचनात्मक एवं जनसांख्यिकीय विकास है।
  • उदाहरण के लिए, भारत में महानदी नदी बेसिन में सितंबर माह में बाढ़ आने की संभावना बढ़ेगी जबकि अप्रैल में जल के अभाव की संभावना रहेगी।
  • दिल्ली विश्व के पांच सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहरों में से एक है, साथ ही यह बाढ़ के उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में भी स्थित है।

कृषि, वन एवं व्यापार (Agriculture, Forests and Trade)

  • वर्ष 2030 तक भारत में देशव्यापी कृषि हानि के 7 बिलियन डॉलर से अधिक तक पहुंचने का अनुमान है। यह देश की 10 प्रतिशत जनसंख्या की आय को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
  • ऐसा अनुमान है कि अत्यधिक गर्मी के कारण सिन्धु-गंगा मैदान के सर्वाधिक उपज वाले क्षेत्रों में होने वाली गेहूं की पैदावार में 51 फीसदी तक की कमी हो सकती है।
  • अक्टूबर में उत्तरी भारत में, अप्रैल एवं अगस्त में दक्षिण भारत में और मार्च से जून तक पूर्वी भारत में वर्तमान तापमान के संकटपूर्ण स्तर पर पहुँचने के कारण, चावल की वृद्धि तीव्र होगी, परन्तु उसके विकास के लिए आवश्यक समयावधि में कमी होगी।
  • ऐसा अनुमानित है कि 2100 तक भारत के वन्य क्षेत्रों में से लगभग एक-तिहाई क्षेत्र की प्रकृति में परिवर्तन हो जाएगा, उदाहरण के लिए वर्षा की अधिकता के कारण पर्णपाती वन सदाबहार वनों में परिवर्तित हो रहे हैं।
2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत को कठोर मौसमी परिघटनाओं के कारण वार्षिक तौर पर 9-10 अरब डॉलर (62,000 करोड़ रुपये) की हानि होती है। यह भी देखा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को औसतन 15% से 18% तक की आय हानि होती है।

स्वास्थ्य (Health)

  • भारत में उच्च तापमान मृत्यु दर के साथ सम्बद्ध है और हीट वेव्स (heat waves) विशेषतः घर के बाहर कार्य करने वाले श्रमिकों को प्रभावित करती है। वायु प्रदूषण का बढ़ते तापमान के साथ संयोजन भी लोगों के स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
  • चरम मौसमी परिघटनाओं के दौरान तथा आपदा-प्रवण क्षेत्रों में मानसिक विकार और पोस्टट्रॉमैटिक स्ट्रेस सिंड्रोम (post -traumatic stress syndrome) से संबंधित पामले एक सामान्य बात है।
  • बाढ़ से होने वाली मृत्युयों के अतिरिक्त शहरी बाढ़ के जल से फैले प्रदूषण से जल-जनित रोगों के जोखिम में वृद्धि होती है।
  • अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में वर्षा तथा मलेरिया जैसी वेक्टर-जनित बीमारियों के प्रसार के मध्य सहसंबंध है।
  • बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुमान के अनुसार विगत 30 वर्षों में 59,300 किसानों या कृषि अमेिकों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है।

कृषि और जलवायु परिवर्तन (Agriculture and Climate Change)

जलवायु परिवर्तन कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। विश्व के कुछ क्षेत्र जैसे साइबेरिया या उत्तरी कनाडा को तापमान में न्यून वृद्धि से लाभ प्राप्त हो सकता है क्योंकि इससे फसल की अवधि को बढ़ाने में सहायता मिलेगी।

यद्यपि जलवायु परिवर्तन ने भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। भारत के संदर्भ में, औसत तापमान में प्रतिकूल परिवर्तन, वर्षा की अधिकता या कमी, चरम मौसमी परिघटनाएं, समुद्र जल स्तर में वृद्धि, और नियमित एवं गंभीर तटीय तूफान तथा सुनामी आदि प्रमुख चिंताजनक क्षेत्र हैं। जलवायु स्मार्ट कृषि (Climate Smart Agriculture) के विचार पर आधारित स्थानीय रूप से उपयुक्त व्यापक दृष्टिकोण का निर्माण तथा कार्यान्वयन अब समय की मांग बन चुकी है।

जलवायु स्मार्ट कृषि (Climate Smart Agriculture): संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization of the United Nations: FAO) के अनुसार, जलवायु अनुकूलन कृषि, कृषि का एक ऐसा प्रकार है जो कि सतत रूप से:

  • उत्पादकता में वृद्धि करता है,
  • लचीलेपन (अनुकूलन) को बढ़ावा देता है,
  • जहां तक संभव हो, ग्रीन हाउस गैस में कटौती/समाप्त (शमन) करता है, और
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं विकास लक्ष्यों की प्राप्ति को बढ़ावा देता है।

जलवायु स्मार्ट कृषि के निम्नलिखित कुछ उपायों को भारत में अपनाया जा सकता है:

  • पंचायत के स्तर पर, क्लाइमेट रिस्क मैनेजमेंट सेंटर स्थापित करना तथा सामुदायिक जलवायु
    जोखिम प्रबंधकों के कैडर को प्रशिक्षण देना।
  • जलवायु स्मार्ट बाजरे (millets) को संरक्षित करना तथा इसे पुनः आहार में शामिल करना क्योंकि बाजरा और कम उपयोग की गयी कई अन्य फसलें (underutilized crops) सूखा एवं ताप प्रतिरोधी होती हैं और साथ ही अधिक पौष्टिक भी होती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन हेतु कृषि प्रणालियों को भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् (Indian Council of Agricultural Research: ICAR), कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा डिजाइन किया जाना चाहिए तथा स्थानीय पुरुषों एवं महिलाओं को जलवायु जोखिम प्रबंधकों के रूप में प्रशिक्षित कर उनके माध्यम से इसका प्रसार करना चाहिए।
  • मीथेन (जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है) का प्रयोग बायोगैस संयंत्रों (उदाहरण – गोबरधन योजना) को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। उर्वरक के उपयोग के परिणामस्वरूप होने वाले नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन को नीम लेपित यूरिया के प्रयोग के माध्यम से कम किया जा सकता  है।
  • परिवर्तन की आवश्यकता वाले कृषि के कई क्षेत्रों में प्रत्याशित अनुसंधान की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए, फसल अवधि के घटने की संभावना को देखते हुए, गेंहूँ एवं जावल जैसी फसलों के लिए किसानों को प्रति फसल उत्पादकता के स्थान पर प्रतिदिन उत्पादकता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • निरंतर बाढ़ एवं ओलावृष्टि के लिए तैयार रहना- केरल में कुट्टाना के एक किसान द्वारा समुद्र स्तर से नीचे चावल की कृषि (लवणता प्रबंधन और प्रतिरोधक किस्में करने की विधि में निपुणता प्राप्त करने की तरह ही हेलोफाइट्स (नमक प्रतिरोधी पौधे) और समुद्री जलीय कृषि (marine aquaculture) दोनों को शामिल करने वाले बायोइन कृषि के दायरे का अन्वेषण किया जाना चाहिए।
एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ने हेलोफाइट्स को संरक्षित करने और जलवायु स्मार्ट तटीय कृषि विधियों को डिजाइन करने हेतु प्रजनकों को उपलब्ध कराने के लिए हेलोफाइट्स के एक जेनेटिक गार्डन को तमिलनाडु के वेदारणयम में स्थापित किया है।

जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए प्रयास (Efforts to Counter Climate Change)

अब समय की मांग है कि ऐसे सतत समाधानों पर विचार किया जाए जो केवल अस्थायी न रहें बल्कि भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखे। यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधन असीमित नहीं हैं और इसलिए इनकी खपत को नियंत्रित एवं नियोजित किया जाना चाहिए ताकि सतत विकास को सुनिश्चित किया जा सके। विद्युत उत्पादन के लिए पवन ऊर्जा, जल विद्युत, सौर ऊर्जा, भू-तापीय और बायोमास जैसे प्रकृति अनुकूल विकल्पों की खोज की जानी चाहिए और इन्हें तंत्र (system) में पर्याप्त रूप से कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

व्यक्तिगत स्तर पर (Individual level) – व्यक्तिगत स्तर पर, कई प्रकार की गतिविधियों से व्यक्तिगत कार्बन फुटप्रिंट को पर्याप्त कम किया जा सकता है।

  • पादप-आधारित भोजन का सेवन करना, हवाई यात्रा करने से बचना, कार मुक्त जीवन व्यतीत करना या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना तथा छोटे परिवार का होना इत्यादि कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
  • नियमित गाड़ियों को इलेक्ट्रिक एवं हाइब्रिड मॉडल की गाड़ियों से परिवर्तित करना, अपशिष्ट का पुनर्चक्रण और लाइट बल्ब का उन्नयन जैसे सरल उपाय भी कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में प्रभावी हो सकते हैं।
  • उदाहरण के लिए, कार के बिना जीवन व्यतीत करने से प्रति वर्ष 2.4 टन CO2 समतुल्य की बचत होती है, जबकि पादप-आधारित आहार का सेवन करने से प्रतिवर्ष 0.8 टन CO2 समतुल्य की बचत होती है।

समुदाय / क्षेत्रीय स्तर (Community/ Regional Level)

समुदाय स्तर पर अनेक पहले प्रारम्भ की गई हैं, निम्नलिखित कुछ मामलों के अध्ययन को क्षेत्रीय स्तर पर सामुदायिक कार्यवाहियों की शक्तियों के सुदृढीकरण हेतु दृष्टान्तों के रूप में देखा जा सकता है।

  • कानपुर शहर अपनी एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना के माध्यम से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में एक मॉडल शहर के रूप में उभरा है। कानपुर में अनेक प्रमुख उद्योग हैं जैसे कि वस्त्र, चर्म, उर्वरक, शस्त्र निर्माण आदि, परन्तु ये सभी प्रदूषण सक्षम उद्योग हैं। हालांकि कानपुर नगर निगम ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी हेतु उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है, जिसने शहर में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था को बदल दिया है।
  • गोरखपुर में जलवायु अनुकूल निर्माण तकनीकी अपनाई गई है। इसके अंतर्गत ईमारतों के निर्माण हेतु स्थानीय क्षेत्रों से ईंटों को मंगवाया गया तथा स्वदेशी ज्ञान का प्रयोग किया गया। इससे ईमारत की लागत में कटौती करने, लम्बी दूरी से ईंटों के परिवहन से संबंधित कार्बन फुटप्रिंट को कम करने तथा जलवायु प्रत्यास्थ आवासन को सक्षम करने में सहायता प्राप्त हुई
  • सेनेगल में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की वित्तीय सहायता द्वारा परिवारों की (विशेष रूप से महिला समूहों की) जीवन निर्वाह स्थितियों में सुधार करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रत्यास्थता में वृद्धि करने के उद्देश्य से, 203 गाँवों के समुदायों द्वारा 26 कम्युनिटी नेचुरल रिज़र्वस (RNC) के साथ-साथ नौ क्रेडिट्स एंड सेविंग म्यूच्यूअल्स की स्थापना की जा रही है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार यदि वर्तमान प्रदूषण दर जारी रही तो वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक की संख्या अधिक हो जाएगी, क्योंकि वैश्विक स्तर पर केवल 14% प्लास्टिक को ही पुनर्चक्रित किया जाता है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में प्लास्टिक र प्रतिबन्ध लागू कर दिया है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी 15 जुलाई 2018 से (2015 के बाद से तीसरी बार) राज्य में प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध पुनस्र्थापित किया है, जो पूर्ववर्ती प्रतिबंधों के खराब क्रियान्वयन को प्रतिबिंबित करता है।
  • केरल के पलक्कड़ में एदाथेरुवु गाँव ने लगभग 160 घरों से अपशिष्ट के संग्रहण, पृथक्करण तथा वैज्ञानिक निपटान पर लक्षित एक अद्वितीय नागरिक पहल प्रारम्भ की है। यह पहल पांच वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई थी। गाँव में एक अपशिष्ट संग्रहण केंद्र है जो गाँव के परिवारों के प्रतिनिधियों के पर्यवेक्षण में कार्य करता है।

वैश्विक स्तर (Global level)

जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक तापन से निपटने हेतु प्रयासों में तीव्रता लाने के लिए वैश्विक स्तर पर विभिन्न पहले प्रारम्भ की गई हैं। कुछ हालिया पहलें निम्नलिखित हैं:

भारत का इन्टेन्डेड नेशनली डिटर्मिन्ड कॉन्ट्रिब्यूशन्स (INDC)

  • 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपनी GDP की उत्सर्जन गहनता (emissions intensity) को
    33 से 35% तक कम करना।
  • प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण तथा निम्न लागत अंतर्राष्ट्रीय वित्त की सहायता से वर्ष 2030 तक गैरजीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
  • वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन एवं वृक्ष आच्छादन के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 के समतुल्य का कार्बन सिंक सृजित करना।
  • पेरिस जलवायु समझौताः इसका उद्देश्य वैश्विक औसत तापमान में होने वाली वृद्धि को पूर्वऔद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस के अन्दर सीमित रखना तथा इसे और आगे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए प्रयास करना है। विकसित देशों से वर्ष 2020 तक संयुक्त रूप से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा तत्पश्चात् वर्ष 2025 तक प्रत्येक वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान के लक्ष्य की प्राप्ति की ओर एक सम्पूर्ण रोडमैप के साथ वित्तीय सहायता के उनके स्तर को बढ़ाने हेतु आग्रह किया गया है। अन्य पक्षकार भी विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक आधार पर अंशदान कर सकते हैं। रैचट प्रणाली (Ratchet mechanism) देशों से वर्ष 2020 में पुनर्वार्ता हेतु मंच पर आने तथा वर्ष 2025 से 2030 के लिए अपनी योजनाओं की व्याख्या करने की मांग करती है। यह विश्व के लिए संभावित रूप से एक ऐसे मार्ग के अनुसरण का अवसर सृजित करती है जिससे वह स्वयं को 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे रख सके।
  • यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज: UNFCCC का CC-23 हाल ही में जर्मनी के बॉन में सम्पन्न हुआ था। इस सम्मेलन में कार्यान्वयन हेतु फिी मोमेंटम को अपनाया गया था। COP-23 में पहली बार UNFCCC के जेंडर एक्शन प्लान को अंगीकार किया गया। इसकी अन्य पहलों में पॉवरिंग पास्ट कोल अलायन्स (Powerrig Past Coal Aliance) तथा बिलो 50 इनिशिएटिव (Below 50 initiative) शामिल है।
  • सुवा एक्सपर्ट डायलॉग (Suva Expert Dialogue): इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से संबंधित हानियों और पतियों को संबोधित करने हेतु लामबंदी करना और विशेषज्ञता को सुनिश्चित करना, तथा वित्त, प्रौद्योगिकी एवं क्षमता-निर्माण सहित समर्थन को बढ़ावा देना है।

भारत की हरित कार्यवाही- जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रयास

(India’s Green Actions-Efforts to Counter Climate Change)

भारत का उद्देश्य वर्ष 2022 के अंत तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त करना है।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम(Initiative taken by the Government)

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NPCC) के आठ मिशन (The Eight Missions of NAPCC)

  • राष्ट्रीय सौर मिशन
  • संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन मिशन
  • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
  • नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग (Use of Renblewae Energy)- विद्युत अधिनियम 2003, राष्ट्रीय विद्युत नीति (National Electricity Policy: NEP) 2005 तथा प्रशुल्क नीति (Tarif Policy: TP) के साथ मिलकर नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत् उत्पादन के संवर्धन को अधिदेशित करता है। विद्युत् अधिनियम और ये नीतियाँ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के संवर्धन हेतु विनियामकीय हस्तक्षेपों पर विचार करती हैं।
  • परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड योजना (PAT scheme) वर्तमान में भारत के प्रयास को परिभाषित | करने वाली प्रमुख नीति है। इसका निरीक्षण ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency: BEE) द्वारा किया जाता है तथा यह राष्ट्रीय उन्नत ऊर्जा दक्षता मिशन (National Mission on Enhanced Energy Efficiency: NMEEE) द्वारा प्रारम्भ की गई है।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment: EIA) – यह परस्पर संबद्ध सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक तथा मानव-स्वास्थ्य प्रभा को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित परियोजना या विकास के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों के मूल्यांकन की प्रक्रिया है।
  • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (National Afforestation Program)- इस कार्यक्रम को निम्नीकृत वन भूमियों के वनीकरण हेतु क्रियान्वित किया गया है।
  • नगर वन उद्यान योजना (Nagar Vana Udyan Yojana)- शहर में न्यूनतम 25 हेक्टेयर वनों का विकास किया जाएगा।
  • भारत का मरुस्थलीकरण तथा भू-निम्नीकरण मानचित्र (Desertification and Land Degradation Atlas of India)- अंतरिक्ष विभाग द्वारा निर्मित यह एटलस विभिन्न राज्यों में वर्तमान भू-उपयोग तथा भू-निम्नीकरण की तीव्रता पर विस्तृत सूचना उपलब्ध कराएगी।
  • हरित कौशल विकास कार्यक्रम (Green Skill Development Programme)- हरित कौशल सतत भविष्य हेतु पर्यावरणीय गुणवत्ता को संरक्षित या नवीकृत करने में योगदान देता है। इसके साथ ही यह उन रोजगारों को भी शामिल करता है जो पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैवविविधता का संरक्षण और ऊर्जा में कटौती करते हैं तथा अपशिष्ट और प्रदूषण को न्यून करते हैं।
  • जलवायु अनुकूल परिवहन क्षेत्र (Climate Friendly Transport Sector)- प्रमुख पहलों में से एक है जिसके अंतर्गत वाहन उत्सर्जन मानदंडों का उन्नयन किया गया है जैसे कि भारत स्टेज-|| तथा भारत स्टेज-IV कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले या शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों को प्रोत्साहन देने के दृष्टिकोण के साथ भारत में बैटरी चालित वाहनों का व्यावसायिक निर्माण शुरू हो गया है। नेशनल मिशन ऑन हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक मोटर्स।
  • कृषि, वन तथा जल स्रोतों का संरक्षण (Conservation of Agriculture, Forest and Water Resources)- सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture)। फसल सुधार तथा सूखा रोधन हेतु भी कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। भारत ने 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि-क्षेत्र में वन आच्छादन की गुणवत्ता तथा मात्रा में वृद्धि करने हेतु महत्वाकांक्षी हरित भारत मिशन प्रारंभ किया है। केंद्र सरकार द्वारा सतत वानिकी प्रबंधन हेतु सभी राज्यों को प्रोत्साहन आधारित 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त विशेष अनुदान प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है।
  • वानिकी क्षेत्र- राष्ट्रीय वन नीति (1988), सहभागी वन प्रबंधन/संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, राष्ट्रीय वानिकी कार्यवाही कार्यक्रम तथा वर्षा सिंचित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय वाटरशेड विकास परियोजना।
  • अनुकूलन क्षमता में वृद्धि- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड/NABARD) UNFCCC के तहत निर्मित अनुकूलन निधि (Adaptation Fund) हेतु भारत की राष्ट्रीय कार्यान्वयन इकाई (National Implementing Entity: NIE) है।

भारत ने वैश्विक पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी के पश्चात् चौथा स्थान प्राप्त किया है। इस समय भारत ने 46.3 गीगावाट ग्रिड इंटरेक्टिव विद्युत क्षमता; नवीकरणीय ऊर्जा में 7.5 गीगावाट ग्रिड-कनेक्टेड विद्युत उत्पादन क्षमता तथा 4.3 गावाट लघु जलविद्युत क्षमता प्राप्त कर ली है।

जलवायु के लिए वित्त (Climate finance)

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change: UNFCC) वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environmental Facility: GEF) नामक एक कार्यक्रम चलाता है, जो अल्प विकसित देशों और छोटे द्वीपीय राष्ट्रों को अनुकूलन के लिए कुछ धन उपलब्ध कराता है।
  • GEF के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन हेतु वित्त पोषण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए GEF ट्रस्ट फंड, अल्प विकसित देशों के लिए कोष (LDCF-Least Developed Countries Fund) और विशेष जलवायु परिवर्तन निधि (Special Climate Change Fund: SCCF) क्रियाशील हैं।
  • UNFCC के अंतर्गत एक अन्य तंत्र अनुकूलन कोष (Adaptation Fund) है, जो परियोजनाओं के लिए धन प्रदान करता है, यह जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए अतिरिक्त लाभ साबित हुआ है। क्योटो प्रोटोकॉल के ही भाग के रूप में स्थापित स्वच्छ विकास तंत्र (Clean Development Mechanism: CDM), UNFCC अनुकूलन कोष के लिए आय का मुख्य स्रोत है।
  • कोपेनहेगन समझौता, जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन में विकासशील देशों की सहायता हेतु विकसित देशों द्वारा 2020 तक 100 बिलियन डॉलर उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखता है। इस जलवायु परिवर्तन कोष को ग्रीन क्लाइमेट फंड (Green Climate Fund: GCF) के नाम से जाना जाता है।

ग्रीन फाइनेंस इकोसिस्टम – एक व्यापक शब्द जो स्थायी विकास परियोजनाओं और पहलों, पर्यावरणीय उत्पादों और नीतियों में उपयोग होने वाले वित्तीय निवेश को संदर्भित करता है, जो एक ज्यादा टिकाऊ अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित करेगा। कुछ प्रमुख पहलों में शामिल हैं –

  • नाबार्ड के तहत जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन निधि (National Adaptation  Fund for Climate Change: NAFCC)
  • 2015 में भारत का पहला ग्रीन बांड जारी करना।
  • GIFT सिटी में स्थापित INDIA INX ने हाल ही में भारतीय रेलवे फाइनेंस कॉर्पोरेशन (Indian Railways Finance Corporation’s: IRFC) के पहले GREEN बांड को अपने वैश्विक प्रतिभूति बाजार (global securities market: GSM) पर सूचीबद्ध किया  है।
  • BSE ने, BSE GREENEX नामक एक ग्रीन इंडेक्स प्रारंभ किया है।
  • RBI ने नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) श्रेणी के अंतर्गत शामिल किया है।
  • भारत के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन ने वित्त पोषण में 1 ट्रिलियन डॉलर और 2030 | | तक 1000GW सौर क्षमता को स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।

CAMPA फंड: इसका प्रयोग वनीकरण द्वारा निर्वनीकरण से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए, वन पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार, वन्यजीव संरक्षण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया जाएगा।

लिंग और जलवायु परिवर्तन (Gender and climate Change)

  • आम तौर पर महिलाओं को निर्धनता की स्थितियों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण उच्च जोखिम और अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ता है और विश्व में अधिकांश गरीब महिलाएं ही हैं।
  • निर्णयन प्रक्रियाओं और श्रम बाजारों में महिलाओं की असमान भागीदारी असमानताओं को बढ़ाती है और प्रायः महिलाओं को जलवायु परिवर्तन से संबंधित योजनाओं, नीति निर्माण और कार्यान्वयन में पूरी तरह से योगदान देने से रोकती हैं।
  • फिर भी, महिलाएँ संसाधनों की स्थानीय जानकारी और कुशल नेतृत्व द्वारा जलवायु परिवर्तन की प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं; उदाहरण के लिए धारणीय संसाधन प्रबंधन और/या घरेलू और सामुदायिक स्तर पर धारणीय प्रथाओं को अपनाने के संदर्भ में।
  • UNFCC के पक्षकारों ने लिंग एवं जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को संबोधित करने के लिए कन्वेंशन के तहत एक समर्पित एजेंडा स्थापित कर तथा पेरिस समझौते में एक महत्वपूर्ण बिंदु सम्मिलित करके, UNFCC प्रक्रियाओं और लिंग-उत्तरदायी राष्ट्रीय जलवायु नीतियों के विकास और कार्यान्वयन में महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से शामिल करने के महत्व को मान्यता दी है।।
  • जेंडर एक्शंस प्लांस (Gender Action Plans: GAP) सरकारों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन रणनीतियों और लिंग-उत्तरदायी कार्यक्रमों और अन्य क्षेत्रकों में सामंजस्य बना हुआ है। GGO (Global Gender Office) ने प्रक्रियाओं के माध्यम से, क्लाइमेट चेंज जेंडर एक्शंस प्लांस (Climate Change Gender Action Plans: ccGAPs) निर्मित करने के लिए अनेक सरकारों का समर्थन किया  है।
लीमा वर्क प्रोग्राम ऑन जेंडर (COP-2014): इसका उद्देश्य वार्ता के सभी क्षेत्रों में लिंग उत्तरदायी जलवायु नीतियों एवं अधिदेशों के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाना है।

जलवायु शरणाथी (Climate Refugees)

अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (International Organization for Migration) के अनुसार, पर्यावरणीय प्रवासी (Environmental migrants) व्यक्ति या व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं, जो मुख्य रूप से पर्यावरण में आए अचानक या क्रमिक परिवर्तन के कारण या तो अपने देश के अन्दर या दूसरे देशों में स्थानांतरित होने को मजबूर हैं। यह पर्यावरणीय परिवर्तन उनके जीवन या रहन-सहन की स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं तथा वे अस्थायी या स्थायी रूप से अपने घरों को छोड़ने के लिए बाध्य होते हैं।

UN ऑफिस फॉर डिज़ास्टर रिस्क रिडक्शन (UN Office for Disaster Risk Reduction: UNISDR) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को निवासियों के विस्थापन के लिए विश्व का सर्वाधिक आपदा-प्रवण देश माना गया है।

पारंपरिक भूमि से अलगाव अल्पसंख्यक समूहों और मूल निवासियों की पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत के अस्तित्व को खतरे में डाल देता है। विस्थापित प्रायः आतंकवादी संगठनों द्वार! भर्ती के लिए अत्यधिक सुभेद्य होते हैं।

राष्ट्रों को सामान्य लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व (common but differentiated responsibility: CBDR) के सिद्धांत के साथ ही प्रदूषक द्वारा भुगतान के सिद्धांत’ (polluter pays principle) और जलवायु न्याय दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए, ताकि जलवायु परिवर्तन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार व्यक्ति/इकाई जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने का प्राथमिक उत्तरदायित्व स्वीकार करे।

नानसेन पहल (Nansen Initiative-2012) यह आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण सीमाओं के आर-पार विस्थापित लोगों की आवश्यकताओं को संबोधित करने वाले सुरक्षा एजेंडे पर सर्वसम्मति बनाने के लिए राष्ट्रों की अगुआई वाली परामर्श प्रक्रिया है।

जलवायु परिवर्तन एवें तकनीकी (Climate Change and Technology)

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को तकनीकी कैसे हल कर सकती है से संबंधित केस स्टडीज (Case Studies on How Technology can solve Climate Change related Issues)

  • शेल (Shell) ने प्रमाणित किया है कि फुटबॉल मैदान में खेलने वाले खिलाड़ी भी ऊर्जा उत्पादन का स्रोत हो सकते हैं, इसने एक ऐसी तकनीकी विकसित की है जो ब्राजील के फेवेला में फुटस्टेप्स को ऊर्जा में बदल दे।
  • इमारतों से होने वाला ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन भी महत्वपूर्ण है। हमें घर या कार्यालय में, स्कूल में या अस्पताल में प्रकाश, विद्युत, हीटिंग, कूलिंग इत्यादि की आवश्यकता होती है। इन स्रोतों से होने वाला संयुक्त उत्सर्जन वैश्विक उत्सर्जन में लगभग 20% का योगदान देता है।
  • ग्रीन बिल्डिंग टेक्नोलॉजी: यह एक इमारत के जीवन चक्र में पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार और संसाधन-कुशल प्रक्रियाओं और अनुप्रयोग, दोनों को संदर्भित करता है। इसके अंतर्गत निर्माण की योजना और डिज़ाइन, संचालन, रख-रखाव, नवीकरण और विघटन आदि आते हैं।
  • मीथेन उत्सर्जन में कमी करने वाले जैविक या रासायनिक फ़ीड (खुराक) या कम उत्सर्जन वाली पशुधन प्रजातियाँ, ऐसे कुछ संभावित उदाहरण हैं जो कृषि में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
  • वैश्विक ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन में परिवहन 23% का योगदान करता है। कुछ वैज्ञानिकों ने नये तत्वों की खोज की है, जो बैटरी आधारित शक्ति की जगह नये विकल्प के तौर पर प्रयोग हो सकते हैं, साथ ही ये मौजूदा बैटरी की तुलना में 1,000-10,000 गुना अधिक शक्तिशाली साबित हुए हैं। माना जाता है कि नई तकनीकी से इलेक्ट्रिक कारों द्वारा भी लंबे समय तक रिचार्जिंग के लिए रुके बिना, पेट्रोल कारों के जैसे ही समान दूरी तय करने की संभावना है।
  • वैश्विक उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई विश्व के 7 अरब लोगों के भरण-पोषण से सम्बन्धित है || और इसका कुछ हिस्सा मांस की खपत से सबंधित है। विकल्पों के तौर पर प्रयोगशाला में बनने वाले मांस का उत्पादन शुरू करने की आवश्यकता है, जो दिखने में वास्तविक मांस के समान होने  के साथ ही स्वाद में भी उसके समान लगता है। बिल गेट्स द्वारा समर्थित कंपनी Beyond Meat ने विश्व का पहला मीट बर्गर बनाया है, जो पूरी तरह से पादप आधारित है। यह मुख्यतः भटर में पाए जाने वाले वेजिटेबल प्रोटीन से बना है।
  • UNEPs की क्लाइमवार्न परियोजना (Climewan project) से केन्या में किसान अब एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) के माध्यम से अपनी फसलों की बेहतर देखभाल कर सकते हैं। यह चेतावनी प्रणाली संभावित बाढ़ या अन्य जोखिमों के संबंध में समुदायों को अलर्ट करती है।
  • साइडवॉक लैब्स (Sidewalk Labs) वर्तमान की शहरी समस्याओं को हल करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर रही है। वर्तमान में चल रही इनकी परियोजनाओं में से एक इस बात का निरीक्षण करती है कि एक शहर में यातायात किस प्रकार गतिशील है और भीड़-भाड़ वाले प्रमुख स्थलों (हॉटस्पॉटस) की समस्या को कैसे सुलझाया जा सकता है। यह हमारे शहरों में वायु प्रदूषण को पर्याप्त मात्रा में कम कर सकता है।

 निष्कर्ष(Conclusion)

  •  गांधीजी ने कहा था, “पृथ्वी पर हर किसी की जरूरतों के लिए तो पर्याप्त है, पर हर किसी के लालच के लिए नहीं।’ भविष्य को सुरक्षित करने और पृथ्वी की विरासत को हमारी आगामी पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए, सम्पूर्ण विश्व को एक साथ लाकर ही हम सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संसाधनों के सृजन की आशा कर सकते हैं।
  • औद्योगिक विकास, बेहतर कृषि प्रबंधन और कृषि वानिकी प्रथाओं पर एकीकृत दृष्टिकोण वर्तमान समय की आवश्यकता है।
  • कुछ पहलों के माध्यम से भारत ऊर्जा उद्योग में वैश्विक उपस्थिति दर्ज कराने को प्रयासरत है, ऐसे प्रयासों से R&D में निवेश बढ़ेगा और विभिन्न हितधारकों के मध्य ज्ञान के साझाकरण को राष्ट्रीय परिदृश्य पर एकीकृत किया जा सकेगा।
  • प्लास्टिक बैग के उपयोग को इको-फ्रेंडली प्लास्टिक से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल भंडारण और वर्षा जल संचयन के माध्यम से सूखा निरोधी उपायों को लागू किया जा सकता है। जब तक हम स्वदेशी हरित प्रौद्योगिकी विकसित नहीं करते हैं, तब तक सतत विकास प्राप्त करना संभव नहीं होगा।
  • अंततः, इसे पुनः दोहराने की जरूरत है कि, पारिस्थितिक रूप से संतुलित एक सभ्यता का विकास, वर्तमान में भारत सहित सभी देशों की रणनीतियों का हिस्सा होना चाहिए।
  • मानव जाति को अन्य प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्रों की देखरेख करना सीखना होगा; अर्थात्, प्रकृति के साथ उसके महत्त्व के अनुरूप उचित व्यवहार किया जाना चाहिए। इस समय यह समझना अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि मानव और अधिक समय तक पर्यावरण और अन्य प्रजातियों के साथ वस्तुओं के जैसा व्यवहार नहीं कर सकता है, बल्कि मानव को अपना स्वयं का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए उनकी देखभाल करनी पड़ेगी।

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