भावनात्मक बुद्धि / Emotional Intelligence

मनोभाव अथवा भावना (Emotion)

मनोभाव अथवा भावना चेतना का वह पक्ष जिसमें व्यक्ति हर्ष, विषाद, डर, घृणा आदि महसूस करता है। परन्तु मनोभाव चेतना के भावनात्मक पक्ष को ही मुख्य रूप से प्रदर्शित करता है जिसमें व्यक्ति सुख-दुख आदि महसूस करता है। वैसे चेतना के अन्य पक्ष भी है जिसमें संज्ञानात्मकता तथा संकल्प-शक्ति जैसे तत्व भी शामिल होते हैं।

भावना में चेतना के भावात्मक पक्ष को इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है कि चेतना की इस अवस्था में व्यक्ति के मन में मुख्य रूप से कुछ सुखद या दुखद अनुभव ही व्याप्त रहते हैं। इसी आधार पर भावना को चेतना की अन्य अनुभूतियों से अलग किया जा सकता है।

बुद्धि (Intelligence)

बुद्धि किसी व्यक्ति की अभिप्रायपूर्ण ढंग से कार्य करने, विवेकपूर्ण ढंग से सोचने और अपने वातावरण के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से निपटने की योग्यता का योगफल अथवा सार्वभौम योग्यता है। अर्थात् नयी परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता ही बुद्धि है। बुद्धि को इस रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है कि यह (बुद्धि) सीखने की योग्यता है।

भावनात्मक बुद्धि अथवा समझ

(Emotional Intelligence)

मेयर और सालोवे के अनुसार भावनात्मक बुद्धि भावनात्मक तथा बौद्धिक विकास को उन्नत करने की क्षमता है। इस क्षमता के अन्तर्गत मेयर और सालोव मनोभावों को महसूस करने की, उनका मूल्यांकन करने की और भावनाओं को उत्पन्न करने की क्षमता भी शामिल करते हैं। इन अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इन क्षमताओं अर्थात् भावनात्मक बुद्धि के द्वारा ही व्यक्ति मनोभावों तथा भावनात्मक ज्ञान को समझ पाता है साथ ही अपनी भावना को भी नियमित व निर्देशित पाता है।

डेनियल गोलमेन (1955) के अनसार “संवेगात्मक बद्धि से तात्पर्य व्यक्ति का अपने तथा दसरों के मनोभावों को समझना उन पर नियंत्रण रखना और अपन उदरकी प्राप्ति हेतु उनका सर्वोत्तम उपयोग करना है।”

साधारण शब्दों में कहा जाए तो भावनात्मक बुद्धि कुछ खास मानवीय गुणों की ओर इंगित है जैसे किसी की मन:स्थिति को समझना, दूसरों के प्रति सहानुभूति प्रकट करना तथा अपनी भावना पर नियंत्रण रख जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने की कोशिश करना आदि।

भावनात्मक बुद्धि की पृष्ठभूमि

भावनात्मक बुद्धि का उल्लेख सर्वप्रथम अरस्तु द्वारा 350 ई.पू. में ही कर दिया गया था लेकिन तब यह शब्द प्रचलित नहीं हो पाया था। ‘इमोशनल इंटेलिजेंस’ शब्द सर्वप्रथम येले विश्वविद्यालय के टो सहकर्मियों पीटर सालोवे और जॉन मेयर द्वारा 1990 में प्रतिपादित किया गया परन्त इस पद को व्याख्यायित करने का श्रेय प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमेन (1995) को जाता है। डेनियल गोलमेन ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक “इमोशनल इंटेलिजेंस: व्हाई इट कैन मैटर मोर दैन आई. क्यू.” (Emotional Intelligence : Why it can nnatter more than I.Q.) में इमोशनल इंटेलिजेंस को विस्तार रूप से समझाया है।

भावनात्मक बुद्धि का औचित्य

(Why Emotional Intelligence)

भावनात्मक बुद्धि अथवा समझ की सार्थकता इस बात में है कि इसके माध्यम से मानवीय संबंध स्वस्थ और बेहतर बनाए जा सकते हैं। साथ ही इसकी महत्ता इस बात में भी है कि इसके सहारे जीवन से जुड़ी चुनौतियों से जूझने तथा इन चुनौतियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर समस्याओं के समाधान में मदद मिलती है। संक्षेप में, भावनात्मक बुद्धि हमें एक बेहतर जीवन जीने की क्षमता प्रदान करती है।

भावनात्मक बुद्धि – दिल व दिमाग का सम्मिश्रण

(Emotional Intelligence The Heart & The Head Combined)

भावनात्मक बुद्धि के बारे में यह समझना अनिवार्य है कि यह बुद्धि का प्रतिपक्ष नहीं है, अर्थात् बुद्धि तथा भावनात्मक बुद्धि – ये दो अवधारणायें एक-दूसरे के प्रतिकूल नहीं हैं। भावनात्मक बुद्धि अथवा समझ का यह अभिप्राय भी कदापि नहीं है कि इसके द्वारा दिल पर दिमाग की जीत हासिल की जाती है, अर्थात् इसके अन्तर्गत भावनाओं पर बुद्धि की विजय होती है। वस्तुतः भावनात्मक बुद्धि तो दिल व दिमाग का एक अनुपम संयोग है। अगर भावना, बुद्धि तथा चेतना के विभिन्न पक्षों यथा अनुरक्ति/मनोभाव, संज्ञान/चिन्तन तथा संकल्प शक्ति/प्रेरणा की परिभाषाओं पर गौर किया जाए जो यह स्पष्ट हा जाता है कि भावनात्मक बुद्धि में अनुरक्ति का संज्ञानात्मक क्षमता से तथा भावना का बुद्धि के साथ अनुपम संयोग होता है और ये सब सम्मिलित रूप से भावनात्मक बद्धि के रूप में जाने जाते है।

अत: हम यह कह सकते हैं कि भावनात्मक बद्धि हमारी वह क्षमता है जिसके द्वारा हम अपना। का समाधान करते हैं तथा एक बेहतर एवं गुणात्मक रूप से उत्तम और प्रभावशाली जीवन जीने की कोशिश करते हैं। भावनात्मक बुद्धि में भावना हो परन्तु बद्धि नहीं या फिर बुद्धि हो लेकिन भावन नही, तो इससे हमारी समस्याओं का आंशिक समाधान ही संभव हो पाएगा। समस्याओं के पूर्ण समाधान के लिए दिल व दिमाग दोनों की जरूरत पड़ती है और भावनात्मक बुद्धि (Emotional mergence) में ये दोनों ही तत्व शामिल होते हैं।

मेयर और सालोवे (क्षमता प्रारूप)

जैसा कि मेयर और सालोवे ने कहा है- भावनात्मक बुद्धि वह क्षमता है जिससे भावनात्मक एवं बौद्धिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है और भावनात्मक बुद्धि के द्वारा ही मनोभावों को समझने, भावनाओं को उत्पन्न करने तथा भावनात्मक ज्ञान को भी समझने में मदद मिलती है। साथ ही भावनाओं को नियंत्रित व निर्देशित करने का कार्य भी सम्पन्न होता है। मेयर तथा सालोवे की इस परिभाषा से भावनात्मक बुद्धि के चार मुख्य पक्ष स्पष्ट रूप से उभर कर आते हैं

भावनाओं को महसूस करना : भावनाओं को बेहतर तरीके से समझने के लिए सर्वप्रथम यह जरूरी है कि उन्हें अच्छी तरह और पूर्ण रूप से महसूस किया जाए। कई बार भावनाओं को महसूस करने के लिए शब्द या भाषा को सुनने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि चेहरे के हाव-भाव तथा बॉडी लैंग्वेज से भी भावनाओं को महसूस कर लिया जाता है और तब उसकी बेहतर समझ भी हो जाती है।

भावनाओं का विवेचन करना : भावनाओं के विवेचन का अर्थ है भावनाओं को समझकर चिंतन । तथा संज्ञान के द्वारा भावनाओं के अनुरूप अनुक्रिया करना। भावनाओं को महसूस कर हम यह समझ पाते हैं कि हमें कब और कैसे अपनी प्रतिक्रिया देनी है। आमतौर पर भावनात्मक रूप से हम उन्हीं वस्तुओं, विचारों या व्यक्तियों के प्रति अपनी अनुक्रिया देते हैं जो हमारा ध्यान अधिक तेजी से अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

भावनाओं को समझना : भावनाओं में कई बातें छुपी हो सकती हैं। अतः जब भावनाओं को महसूस किया जाता है तो यह समझना भी जरूरी हो जाता है कि उनका अभिप्राय क्या है? अगर कोई व्यक्ति क्रोध प्रकट कर रहा है तो निरीक्षक के लिए यह समझना जरूरी है कि इस क्रोध की वजह क्या है और इसका क्या मकसद हो सकता है? उदाहरण के लिए, अगर हमारा बॉस (कार्य स्थल पर) हमसे क्रोधित है, इसका मतलब यह हो सकता है कि वह हमारे काम से खुश नहीं है या फिर वह अपने घर से ही क्रोधित होकर आया है। मन्तव्य यह है कि भावना को समझना अति आवश्यक है। 

भावनाओं को सुव्यवस्थित करना (प्रबंधन) : भावनात्मक बुद्धि का एक अहम पक्ष है भावनाओं का नियंत्रण एवं प्रबंधन। भावना प्रबंधन के अन्तर्गत भावनाओं को नियंत्रित व निर्देशित करना तथा दूसरों की भावनाओं के प्रति उचित तरीके से अनुक्रिया करना आदि बातें शामिल की जाती हैं।

डेनियल गोलमेन के अनुसार संवेगात्मक बुद्धि के तत्व

डेनियल गोलमेन का कहना है कि संवेगात्मक बुद्धि का तात्पर्य उस कौशल से है जिससे हम अपने आंतरिक जीवन का प्रबंध या संचालन करते हैं और लोगों के साथ तालमेल बिठाकर चलते हैं। इस अवधारणा में पांच तरह के तत्व आते हैं जो निम्नांकित हैं:

अपने संवेगों की सही जानकारी रखना (Being Self Aware) : अपने संवेगों की सही जानकारी रखना संवेगात्मक (भावनात्मक) बुद्धि का आधार है। अगर हम अपने मनोभावों आदि को सही ढंग से जानते समझते हैं तभी इन्हें काबू में रख पाएंगे। इससे हमें अपनी प्रतिक्रियाओं एवं व्यवहार को संयत बनाने में मदद मिलेगी। जो व्यक्ति अपने मनोभाठ की पहचान नहीं कर पाते उनका भावनात्मक संबंध दूसरों की दया पर निर्भर करता है।

अपने संवेगों (भावनाओं) का आत्म-प्रबंधन करना (Managing Emotions) : भावनात्मक बुद्धि का दूसरा तत्व अपने संवेगों का आत्म-प्रबंधन करना हैं। संवेगों का आत्म से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा अपने मनोभावों का संचालन किया जाना है। अर्थात् संवेगों को आवश्यकतानुसार कम या अधिक किया जाता है, और इच्छित दिशा में मोड़ा जा सकता है। अपने संवेगों को नियंत्रित करने में समर्थ व्यक्ति ही जीवन की चुनौतियों का सामना भली प्रकार कर सकते हैं। अपने संवेगों के इस प्रबंधन में उच्छृखल आवेगों को नियंत्रित करना, जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना करना, विलंबित संतुष्टि तथा उपलब्धियां मिलने पर अहं को दूर रखना आदि शामिल है।

आशावादी तरीके से स्वयं को प्रेरित करना (Having Self Motivation) : भावनात्मक बुद्धि का तीसरा तत्व आशावादी तरीके से स्वयं को प्रेरित करना है। हमारे लिए प्रेरणा ग्रहण करने के विभिन्न स्रोत हो सकते हैं। प्रेरणा हमें अच्छा साहित्य पढ़ने से मिल सकती है और लोगों से भी। परन्तु बाहर से मिली किसी प्रेरणा का तब तक कोई महत्व नहीं है जब तक हम स्वयं प्रेरित न हों, इसे खुद के जीवन में उतारने अथवा अपनाने की प्रेरणा हमें अपने अंदर से आएगी। किसी भी कार्य में पूरा प्रयास स्वतः स्फूर्त रहकर ही संभव है। इसके लिए अपनी भावनाओं तथा योग्यताओं पर विश्वास होना जरूरी है।

दूसरों के संवेगों को पहचानना (Recognizing the Emotions of Others) : भावनात्मक बुद्धि का चौथा तत्व दूसरों के संवेगों को पहचानना है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की अलग शख्सियत होती है। हमें इस वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। जिस प्रकार हमारी यह चाहत होती है कि लोग हमें व हमारे विचारों को समझे, हमारे विचारों का सम्मान करें, उसी तरह दूसरे लोगों की भी ऐसी ही अपेक्षा होती है। अगर हम वक्त पड़ने पर औरों के काम आते हैं तभी हम अपने लिए भी ऐसी उम्मीद कर सकते हैं। इस प्रकार इस तत्व की खासियत है कि लोग दूसरों के संवेगों के सामाजिक संकेतों को पढ़ सकते हैं और तदनुसार सहानुभूतिपूर्वक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।

दूसरों के संवेगों का संचालन करना (Handling Relationship) : भावनात्मक बुद्धि का पांचवां और अनिवार्य तत्व दूसरों के संवेगों का संचालन करना है। अर्थात् अन्तर्वैयक्तिक संबंध को प्रभावकारी बनाना एक कला है जिसके लिए दूसरों के संवेगों का प्रबंधन करना होता है। इस प्रकार, इस तत्व से संपन्न व्यक्ति नेतृत्व करते हैं तथा समाज में लोकप्रिय होते हैं।

भावनात्मक बुद्धि व समझ रखने वाले प्रशासक के गुण

(Attributes of an Emotionally Intelligent Administrator)

भावनात्मक बुद्धि व समझ रखने वाले प्रशासक में यह सामर्थ्य होता है कि वह-

  • विवादों का रचनात्मक ढंग से समाधान कर सके।
  • दूसरों के संवेगों और उनकी अभिव्यक्तियों (क्रोध आदि) को व्यक्तिगत स्तर पर न ले तथा अपने व्यवहार को नियंत्रित कर सके।
  • किसी भी प्रकार की अनिश्चितता अथवा परिवर्तन के साथ अपना समझ बिठा सके।
  • निर्णयों को प्रभावित करने वाले नैतिक मूल्यों व विश्वासों को समझ सके अर्थात् उनकी पहचान कर सके।
  • दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न संवेगों और परिस्थितियों को समझे और उनसे समानुभूति प्रकट कर सके।
  • अन्य को भी अपने साथ लेकर चल सके।
  • सभी परिस्थितियों में असामाजिक तत्वों अथवा नासमझ व्यक्तियों के साथ युक्तियुक्त व्यवहार कर सके।

वर्तमान में सिविल सेवा में भावनात्मक बुद्धि व समझ की प्रासंगिकता

(Relevance of Emotional Intelligence in the Current Environment of Civil Services)

वर्तमान संदर्भ में सिविल सेवा में जुड़े कार्य कई प्रकार की समस्याओं, चुनौतियों तथा विरोधाभासों से ग्रसित हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं

  • तेजी से बदल रही सामाजिक मूल्य व संरचना।
  • बढ़ती हुई जनसंख्या तथा बेरोजगारी के साथ-साथ क्षेत्रीय, आर्थिक संचार सुविधाओं के क्षेत्र में अमीर तथा गरीब के बीच बढ़ रहा अंतराल।
  • आवास, पेयजल तथा इसी प्रकार की मौलिक आवश्यकताओं के साथ-साथ आधारभूत संरचनाओं की कमी।
  • जनसाधारण में बढ़ रही जागरूकता तथा निर्धनों व वंचितों की बढ़ी तादाद।
  • सूचना प्रौद्योगिकी का व्यापक स्तर पर उपयोग जिससे सरकार को मदद तो मिल रही है। साथ ही इस बात का बढ़ता हुआ दबाव कि सरकार अपना कार्य-निष्पादन इस प्रकार करे कि जनसाधारण में सरकार के प्रति यह विश्वास जगे कि सरकार वास्तव में सक्षम और सर्वोपरि है।
  • 73वीं तथा 74वीं संविधान संशोधन के फलस्वरूप शक्ति का विकेन्द्रीकरण हुआ है जिससे राजनीतिज्ञों का एक नया वर्ग उत्पन्न हुआ है जिन्हें सिविल सेवकों के मुकाबले वरीयता प्राप्त है। इस वजह से सिविल सेवकों को अपने कार्यों में पूर्ण स्वायत्तता नहीं मिल पाती।
  • प्रशासन की अवधारणा में व्यापक बदलाव लाने की मांग जोरों से उठने लगी है। जनसाधारण सुशासन की मांग करने लगे हैं तथा सिविल सेवक क्या और किस प्रकार निर्णय लें और किस प्रकार से सुशासन सुनिश्चित करें, ऐसे कई विचार प्रबल रूप से उठ खड़े हुए हैं। एक तरफ सरकार से यह उम्मीद की जा रही है कि एक साथ कई तरह की भूमिका अपनाए वहीं यह मांग भी उठने लगी है कि कुछ क्षेत्रों में सरकार की भूमिका नगण्य है। अत: इन क्षेत्रों में सरकार का हस्तक्षेप अवांछित है।
  • इस बात पर आम सहमति है कि सरकार को अपने कार्य निष्पादन की क्षमता सिद्ध करनी होगी, उसे जवाबदेयता तथा पारदर्शिता बरतने की जरूरत है, साथ ही सरकार का यह भी कर्तव्य है। कि प्रशासन में जनता तथा सिविल सोसाइटी की भागीदारी सुनिश्चित करे जिससे सुशासन की स्थापना संभव हो सके। इन सब बातों पर बनी सहमति सिविल सेवकों के लिए अपने आप में एक चुनौती है।
  • वर्तमान में जनसाधारण से जुड़े मामलों का बड़ी तेजी से राजनीतिकरण हो रहा है जिससे सिविल सेवक स्वयं को दुविधा की स्थिति में पाते हैं।
  • राजनीति तथा प्रशासन के प्रति जनसाधारण में नकारात्मक सोच घर कर गयी है और इन दोनों ही संस्थाओं को निन्दा, घृणा व अविश्वास की दृष्टि से देखा जाने लगा है।
  • जनसाधारण से जुड़ी सरकारी नीतियों, योजनाओं तथा इनके कार्यान्वयन में स्वयं सरकार के अंदर सहमति नहीं बन पाती है और यह अन्दरूनी संघर्ष अब ज्यादा तीव्र तो हो ही चुका है साथ ही सार्वजनिक भी।
  • लोगों में संघर्ष व आन्दोलन की प्रवृत्ति बड़ी तीव्र हो गई है। सिविल सेवकों तथा स्वयं सरकार के लिए जनसाधारण को संतुष्ट करना अब आसान नहीं रह गया है। एक छोटी सी घटना पर भी आम नागरिक उत्तेजित हो जाते हैं तथा विध्वंसकारी कार्यों में संलग्न हो जाते हैं। ऐसे ही लोगों की संख्या ज्यादा हो गयी है जिससे शासन संचालन बेहद कठिन हो गया है।
  • स्वयं प्रशासन के समक्ष भी कई तरह की समस्याएं है, यथा राजनीतिक दबाव, खुले तौर पर भ्रष्टाचार, अनुपयुक्त कार्य-प्रणाली, शक्ति का अति केन्द्रीकरण, पारम्परिक नियम और कानून तथा ऐसी ही अन्य प्रवृत्तियां प्रशासन के समक्ष एक बहुत बड़ी बाधा बन चुकी है।

इन समस्याओं से जूझ रहे सिविल सेवकों का कार्य अब पहले से कहीं अधिक जटिल हो गया है। प्रशासन के कार्य करने के तरीके भी पुराने हो गए हैं जो नई-नई समस्याओं के समाधान में कारगर साबित नहीं रह गए हैं। स्वयं सिविल सेवकों से अब बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि अपनी क्षमता का अधिकतम भाग वे स्वयं को बचाने में ही लगा देते हैं ताकि उनकी नौकरी पर कोई आंच न आए। इन्हीं परिस्थितियों में भावनात्मक बुद्धि व समझ वाले सिविल सेवक ही इन परिस्थितियों से जूझ सकते हैं, समस्याओं का युक्तियुक्त समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं तथा बदल रही सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक सोच के साथ सामंजस्य बिठा सकते हैं।

सिविल सेवा में भावनात्मक बुद्धि से किस प्रकार मदद मिल सकती है?

(How can Emotional Intelligence Help Civil Services?)

भावनात्मक बुद्धि व समझ से कार्य स्थल पर तीन प्रकार की मदद मिल सकती है-

  • कार्य स्थल पर सौहार्द्रपूर्ण माहौल बनाए रखने में।
  • प्रत्येक कर्मचारी के आचरण व कार्य-निष्पादन क्षमता में सुधार लाने में।
  • संगठन की कार्य निष्पादन क्षमता में सुधार लाने में।

भावनात्मक बुद्धि व समझ द्वारा बहुत से निजी व लोक उपक्रमों में सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। उदाहरणस्वरूप, अमेरिका में एयर फोर्स, जल सेना (नेवी), जॉनसन एण्ड जॉनसन, मोटोरोला तथा ऐसे ही कुछ संगठनों में भावनात्मक बुद्धि के उपयोग से काफी मदद मिली है। भारत में भी एच.पी.सी.एल. द्वारा कार्य संस्कृति में तो सुधार हुआ ही है साथ ही एक बेहतर नेतृत्व के निर्माण में भी मदद मिली है। इस संगठन द्वारा शुरू में कुछ बड़े अधिकारियों को इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया गया तथा उन्हें इस बात का भी अवसर दिया गया कि वे संगठन के स्तर पर भावनात्मक समझ का बखूबी इस्तेमाल करें।

वस्तुत: भावनात्मक समझ के बारे में जानकारी तथा इसके प्रति जागरूकता से निम्नलिखित प्रकार की मदद मिलती है

  • प्रशासन के अंदर अन्तर्वैयक्तिक संचार कौशल के विकास में अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं।
  • कार्य की प्रकृति में बदलाव, किसी प्रकार के बाहरी दबाव तथा मानसिक तनाव तथा विवादों से जूझने तथा समस्याओं के यथोचित समाधान करने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है।
  • प्रत्येक कर्मचारी की मनोवृत्ति और उनके कार्य निष्पादन की क्षमता के भविष्य में होने वाले परिणामों के बारे में पूर्वाकलन करने में (अनुमान) मदद मिलती है।
  • कार्य के प्रति ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा, प्रतिबद्धता तथा विश्वसनीयता में वृद्धि होती है।
  • किसी भी मामले को समेकित रूप से देखने व समझने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
  • कार्य के लिए अभिप्रेरित करती है तथा आशावादी दृष्टिकोण बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रख स्वस्थ तरीके से कार्य करने की मनोवृत्ति का विकास होता है।
  • लक्ष्य के प्रति सावधान होने, पहल करने, कार्य में संलग्न रहने जैसी प्रेरणा मिलती है।
  • संचार कौशल की क्षमता का विकास होता है।
  • समूह भावना (टीम वर्क) के साथ कार्य करने की प्रवृत्ति का विकास होता है। एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना का विकास होता है जिससे अन्तर्वैयक्तिक संबंध मजबूत बनते हैं।
  • नेतृत्व क्षमता का विकास होता है और इस बात की समझ बढ़ती है कि कहां और कैसे नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।
  • विचार-विमर्श के माध्यम से स्थिति पर नियंत्रण रख पाने की क्षमता का विकास होता है।
  • सांस्कृतिक बहुलवाद के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति पनपती है।
  • सूचना व समय के बेहतर प्रबंधन द्वारा एक साथ कई कार्य सम्पन्न करने में मदद मिलती है।
  • एकाग्रचित होकर काम करने की क्षमता का विकास होता है। कार्य स्थल पर चलने वाली गुट की राजनीति को जानते हुए भी उससे प्रभावित हुए बगैर कार्य करने की संस्कृति का विकास होता है।
  • स्वभाव और व्यवहार के स्तर पर आक्रामकता में कमी आती है।
  • परिवर्तन का वाहक बनने की क्षमता विकसित होती है।

भावनात्मक बुद्धि उपलब्धि, (ई.क्यू.)

(Emotional Intelligence Quotient)

भावनात्मक बुद्धि उपलब्धि को संक्षेप में ई.क्यू. (E.Q.) भी कहा जाता है। भावनात्मक/संवेगात्मक उपलब्धि द्वारा किसी परिस्थिति विशेष में व्यक्ति की प्रतिक्रिया की क्षमता का मापन होता है। यानि किसी परिस्थिति में कोई व्यक्ति कैसे प्रतिक्रिया करेगा, यह उसके ई.क्यू. पर निर्भर करेगा। ई.क्यू. मनुष्य तथा हर पशु दोनों में होता है, जबकि मनुष्य उसका उपयोग पशुओं की अपेक्षा कुशल ढंग से करता है। ई.क्यू. द्वारा व्यक्ति की भावनात्मक योग्यताओं का मान होता है। अतः किसके पास कितनी ई.क्यू. है इसकी जांच परीक्षणों द्वारा संभव है। अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि उच्च ई.क्यू. भविष्य की सफलताओं का बेहतर व विश्वसनीय सूचक है, इसके माध्यम से जीवन के तनावों, संघर्षों और कुंठाओं में सफलतापूर्वक रक्षा संभव है।

बुद्धि उपलब्धि (Intelligence Quotient) अर्थात् आई.क्यू. भावनात्मक बुद्धि अथवा भावनात्मक बुद्धि उपलब्धि (ई.क्यू.) से भिन्न है। आई.क्यू. किसी व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता का मापक है। यह तर्क पर आधारित होता है, कौन कितना बुद्धिमान है यह उसकी आई.क्य. पर निर्भर करता है। उच्च आई.क्यू. का होना इस बात की गारंटी नहीं देता कि व्यक्ति को जीवन संतुष्टि मिलेगी, सामाजिक सम्मान प्राप्त होगा अथवा अमूक उपलब्धि हासिल होगी।

कार्य स्थल पर ई.आई (भावनात्मक बुद्धि) तथा ई.क्यू. (भावनात्मक उपलब्धि) को उपयोगिता

(EI and EQ in the Work Place) 

यहां कार्यस्थल (Work Place) का तात्पर्य है कार्य कर रहे लोग तथा उनके बीच का संबंध। किसी संगठन के लिए वह कर्मचारी बेहतर माना जाता है जिसकी ई.क्यू (भावनात्मक उपलब्धि) उसकी आई.क्यू. (बुद्धि उपलब्धि) से ज्यादा हो। गोलमेन (मनोवैज्ञानिक) ने भी दावा किया है ई.आई. (भावनात्मक बुद्धि) वाला व्यक्ति ज्यादा सफल होता है और खासकर अपने कार्यस्थल पर तो वह निश्चित रूप से अन्य से बेहतर साबित होता है। आधुनिक शोधों के अनुसार, आई.क्यू. व्यक्ति के जीवन में सफलता का 20 प्रतिशत भाग निर्धारित करता है। परन्तु ई.क्यू. व्यक्ति के जीवन में सफलता का 80 प्रतिशत भाग निर्धारित करता है।

 भावनात्मक उपलब्धि (ई.क्यू.) तथा कार्य स्थल पर इसके इस्तेमाल को निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है-

नियोजन अथवा भर्ती की प्रक्रिया (Recruitment) : ई.क्यू. ( भावनात्मक उपलब्धि) का नियोजन की प्रक्रिया में अमूल्य योगदान रहता है अर्थात् कर्मचारियों को भर्ती करने से पहले उनके ई. क्यू. की माप से बेहद सक्षम व्यक्ति के चुनाव में मदद मिलती है।

कार्यनिष्पादन संबंधी क्षमता के संबंध में पूर्वकथन (अनुमान) (Predicting Performance): आज कर्मचारियों के आई.क्यू. के परीक्षण के समय ही उनके ई.क्यू. की माप भी ले ली जाती है। इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है उनकी निष्पादन क्षमता कैसी है। इस क्षमता को देखते हुए ही उन्हें उपयुक्त स्थान पर रखा जाता है जहां उनकी ज्यादा जरूरत महसूस की जाती है। इससे संगठन के कार्य निपटाने में काफी सहूलियत होती है। ।

वार्ता (Negotiation) : ई.क्यू. के द्वारा किसी भी क्षेत्र में वार्ता या बातचीत के माध्यम से काम को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। भावनात्मक बुद्धि व समझ वाला व्यक्ति बातचीत के माध्यम से हर प्रकार के व्यक्ति के साथ, चाहे वो व्यापारिक भागीदार हो, सहकर्मी हो या फिर ग्राहक, वार्ता द्वारा हल निकालने में सक्षम रहता है।

कार्य निष्पादन प्रबंधन (Performance Management) : प्रतिपुष्टि (Feedback) के द्वारा ई.क्यू. के माप में मदद मिलती है। कर्मचारियों के बारे में प्रतिपुष्टि ज्ञात होने पर कर्मचारीगण स्वयं अपने कार्य क्षमता में सुधार लाने की कोशिश करते हैं ताकि जीवन में आगे बढ सके। साथ ही उन्हें व्यवहार कुशल बनने में मदद मिलती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें भी यह पता चल जाता है कि उनके बारे में दिए गए प्रतिपुष्टि (Feedback) के आधार पर सहकर्मी या अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। इससे उनमें स्वयं में सुधार लाने की प्रेरणा मिलती है।

समकक्ष व्यक्तियों के साथ संबंध (Peer Relationship) : आजकल हर क्षेत्र में नेटवर्किंग की बड़ी अहम भूमिका देखने को मिलती है। नेटवर्किंग का अभिप्राय है भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों से व्यक्तिगत संबंध बनाना। ये लोग आमतौर पर समकक्ष जैसे ही होते हैं भले ही अलग-अलग व्यवसायों से जुड़े हो। यहा इ.क्यू. की भूमिका यह होती है कि एक बेहतर ई.क्यू. (बद्धि उपलब्धि) वाला व्यति इन संबंधों के प्रति काफी सकारात्मक होता है तथा एक-दूसरे के प्रति सहयोग रखने की मनोवत्ति के साथ किसी भी कार्य के सफल निष्पादन का प्रयास करता है। वर्तमान संदर्भ में नेटवर्किंग के माध्यम से बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल निकाला जा रहा है।

भावनात्मक बुद्धि और कार्य अभिवृत्ति (मनोवृत्ति)

(Emotional Intelligence and Work Attitude)

व्यक्ति के व्यवहार से उसकी मनोवृत्ति का पता लगाया जा सकता है। कुछ खास तरह के व्यवहार और उससे मिलने वाले परिणामों का अगर मूल्यांकन किया जाए तो इससे यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि अमूक व्यक्ति की अपने काम के प्रति कैसी मनोवृत्ति है। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि अमूक व्यक्ति एक अच्छा नेतृत्व प्रदान कर सकता है अथवा एक बेहतर प्रबंधक हो सकता है। मूल रूप से कहा जाए तो उसकी कार्य निष्पादन क्षमता के साथ-साथ उसकी मनोवृत्ति के बारे में पूर्वाकलन किया जा सकता है। इस संदर्भ में भी भावनात्मक बुद्धि व समझ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसका सीधा संबंध कार्य के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति से होता है। साथ ही उसके कार्य-व्यवहार से भी उसके ई.क्यू. का पता लग जाता है। व्यक्ति की भावनात्मक बुद्धि व समझ निम्न प्रकार के कार्य मनोवृत्तियों व व्यवहारों से जुड़ी होती है

कार्य से संतुष्टि (Job Satisfaction) : एक व्यक्ति जो भावनात्मक बुद्धि व समझ से परिपूर्ण है, वह अपने कार्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है और इससे उसे अपने काम में संतुष्टि भी मिलती है।

संगठन के प्रति प्रतिबद्धता (Organizational Commitment) : भावनात्मक बुद्धि व समझ वाले व्यक्ति आशावादी प्रवृति के होते हैं। यह वह गुण है जिसके कारण ऐसे व्यक्ति अपने काम के प्रति ईमानदार होते हैं न कि दूसरों की कमियां ढूंढने में व्यस्त रहते हैं। इससे संगठन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता एवं कर्तव्यनिष्ठा में वृद्धि होती है जिसमें संगठन का भी हित छिपा रहता है।

व्यक्तिगत बनाम व्यावसायिक प्रतिबद्धता (Work-Family Conflict) : भावनात्मक बुद्धि युक्त व्यक्ति निजी तथा व्यावसायिक जिन्दगी के फर्क को अच्छी तरह समझता है। उसमें इस तरह का सामर्थ्य होता है कि वह दोनों के बीच संतुलन बनाकर चले। अर्थात् व्यावसायिक मामलों में वह किसी प्रकार का पारिवारिक हस्तक्षेप नहीं होने देता। साथ ही अपने रोजमर्रा के काम को भी वह अपनी निजी जिन्दगी पर हावी नहीं होने देता है। ऐसा वह इसलिए कर पाता है क्योंकि उसमें अपनी भावनाओं तथा संवेगों को नियंत्रण में रखने की क्षमता होती है। अत: वह एक बेहतर निर्णय ले पाता है।

कार्य निष्पादन क्षमता (Job Performance) : कार्य निष्पादन क्षमता पर भावनात्मक बुद्धि व समझ का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। एक व्यक्ति जो भावनात्मक रूप से नियंत्रित है और सोच विचार कर निर्णय लेता है, अपने काम में ज्यादातर सफल ही होता है। इसके अपवाद् कम ही देखने को मिलते हैं। कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि भावनात्मक रूप से मजबूत व भावना की समझ रखने वाला व्यक्ति एक बेहतर निर्णय ले सकता है और कुशल नेतृत्व भी प्रदान कर सकता है।

भावनात्मक बुद्धि और प्रभावशाली नेतृत्व (Emotional Intelligence and Effective Leadership) : अब यह निरन्तर महसूस किया जा रहा है कि किसी संगठन अथवा संस्था के सफल संचालन के लिए प्रबंधन एवं नेतृत्व संबंधी पारंपरिक कौशल ही काफी नहीं है। सच तो यह है कि इस संदर्भ में भावनात्मक बुद्धि व समझ की महत्वपूर्ण भूमिका की पहचान की गयी है, क्योंकि किसी भी संगठन का नेतृत्व करने हेतु या फिर उसके प्रबंधन के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल की अपनी एक सीमा होती है। नेतृत्व एवं प्रबंधन से जुड़े लोगों के समक्ष अब कई ऐसी नई परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जो उनके व्यक्तित्व से एक खास क्षमता की मांग करती है। यह खास क्षमता अथवा सामर्थ्य कुछ और नहीं बल्कि भावनात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence) ही है।

आजकल किसी संगठन के संचालन के लिए भावनात्मक बुद्धि व समझ वाले व्यक्ति की खास तलाश हो रही है। कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि प्रभावशाली नेतृत्व के लिए यह आवश्यक है कि उसमें भावनात्मक स्थिरता तथा अभियोजन (adjustment) की क्षमता हो। अपने भावनाओं पर नियंत्रण रखने वाला तथा विचारों एवं व्यवहारों में लचीलापन रखने वाला व्यक्ति ही किसी संस्था अथवा संगठन को बेहतर व सफल नेतृत्व दे सकता है। इस तरह भावनात्मक बुद्धि युक्त व्यक्ति किसी संस्था की सफलता में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि अगर व्यक्ति को अपने संवेगों/भावनाओं का ज्ञान है तथा वह इस पर नियंत्रण रखने में भी सफल है तो वह निश्चित रूप से यह समझेगा कि किस वक्त और क्या निर्णय लेना है। यह बात किसी व्यक्ति विशेष, कार्य-समूह या फिर समूची संस्था पर भी लागू होता है।

नौकरशाही में भावनात्मक बुद्धि का भविष्य (The Future of E.I. in Bureaucracy) : नौकरशाही से जुड़ी प्रक्रियाएं व गतिविधियां अमानवीकरण और अवैयक्तित्व की ऐतिहासिक अवधारणा से अत्यधिक दूर जा चुकी है। भावनात्मक दक्षता के लिए यह तथ्य अत्यंत आवश्यक है कि कार्य निष्पादन के प्रदर्शन और ग्राहकों की सेवा के माध्यम से लोक प्रशासन के क्षेत्र में एक नई शुरुआत की जाए। आत्म जागरूकता, अन्तर्वैयक्तिक संबंध-प्रबंधन और सामाजिक चेतना के सिद्धान्तों के आध पर पर, भावनात्मक बद्धि सार्वजनिक एजेंसियों के आंतरिक संगठन के लिए (उदाहरण : नेतृत्व सहकर्मियों का सहयोग और नागरिकों के साथ बाह्य विनिमय के लिए) महत्वपूर्ण बन गया है।

कुछ खामियों के बावजूद (उदाहरण, मूल्यांकन और लागत में कठिनाइयां) भावनात्मक बुद्धि कौशल नौकरशाही से जुड़ी प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण बना रहेगा, जबकि सामाजिक कौशल में गिरावट की भी उम्मीद की जा रही है और यह इसलिए क्योंकि यह संचार सुविधाओं पर काफी निर्भर हो गया है।

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