दुर्लभ संसाधन एवं उसके आवंटन : विकास की गति और गुणवत्ता का निर्धारण करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है।

प्रश्न: भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए, दुर्लभ संसाधनों का क्षेत्रकों को आवंटन वस्तुतः विकास की गति और गुणवत्ता का निर्धारण करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • दुर्लभ संसाधन एवं उसके आवंटन को परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • संक्षेप में उल्लेख कीजिए कि किस प्रकार क्षेत्रकों को किया जाने वाला आवंटन विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
  • उन उपायों का उल्लेख कीजिए जिनके माध्यम से दुर्लभ संसाधनों के संदर्भ में इसे प्राप्त किया जा सकता है।

उत्तर

संसाधन आवंटन, उपलब्ध सीमित संसाधनों को प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताओं हेतु विभाजित एवं वितरित करने की प्रक्रिया है। भारत जैसे एक विकासशील देश में, जहाँ सरकार के प्रयोग हेतु विद्यमान संसाधन सीमित हैं, विभिन्न प्राथमिकताओं की पूर्ति हेतु उनका उचित आवंटन करना एक महत्वपूर्ण चुनौती बन जाता है। उदाहरण के लिए, कर में छूट देना सरकार के राजस्व प्रवाह में कमी करता है, किंतु यह रोजगार सृजन हेतु महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी प्रकार, सशस्त्र बलों को देश की सुरक्षा के लिए सक्षम बनाने हेतु प्रयुक्त संसाधन भी संवेदनशील वर्गों की सामाजिक सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयुक्त संसाधनों के समान ही महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय विकास के लक्ष्यों की सतत प्राप्ति हेतु लक्ष्यों को गंभीरता से निर्धारित करना, उपलब्ध वर्तमान संसाधनों का आकलन करना और भविष्य में इनके प्रवाह को बढ़ाने के लिए कदम उठाना आवश्यक हो जाता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ व्ययों के साथ समझौता नहीं किया जा सकता और उनकी आवश्यकताओं को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए। इनमें अधिकांशत: सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन, सरकार द्वारा निर्धनों को प्रदान की जाने वाली सब्सिडी जैसे राजस्व व्यय इत्यादि सम्मिलित होते हैं। हालांकि, इन्हें बाद में तर्कसंगत बनाया जा सकता है। जहाँ तक पूंजीगत व्ययों का संबंध है, ये वे क्षेत्र हैं जहां सरकारों की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं – जैसे, क्या धन को पूंजीगत सब्सिडी देने पर व्यय किया जाए अथवा सेवाओं पर कर में छूट देने में, राजमार्गों और बंदरगाहों के निर्माण पर व्यय किया जाए अथवा शिक्षा और स्वास्थ्य अवसंरचना के निर्माण पर अथवा उन चयनित औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए जिनमें रोजगार सृजन एवं निर्यातों में वृद्धि करने की संभावना निहित है?

हालांकि स्वयं के लिए निर्धारित लक्ष्यों और विश्व अर्थव्यवस्था की बदलती प्रवृतियों को ध्यान में रखकर भारत के संदर्भ में संसाधनों के प्रभावी आवंटन की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है। यह निम्न अथवा सीमांत रूप से कुछ अधिक उत्पादक क्षेत्रों से उच्च उत्पादक अथवा उत्पादकता संवृद्धि की उच्च संभावना वाले क्षेत्रों में संसाधनों के आवंटन की स्थिति में ही संभव है। हालांकि, कई मामलों में, संसाधन इस प्रकार से स्थानांतरित नहीं होते हैं। इसके स्थान पर वे अनौपचारिक, कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से सीमांत रूप से कम अनौपचारिक/ अधिक उत्पादक क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होते हैं। ये “विफल संरचनात्मक रूपांतरण (“thwarted structural transformation”) वाले मामले हैं, जो अब तक भारत के आर्थिक विकास के लक्षण रहे हैं।

इसका अर्थ है कि आर्थिक संवृद्धि में योगदान करने वाले क्षेत्रक, अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं का आलोचनात्मक आकलन किए बिना संरचनात्मक रूप से परिवर्तित हो चुके हैं। यह स्थानांतरण अनौपचारिक और निम्न उत्पादकता वाले क्षेत्रों (जैसे कृषि) से उन क्षेत्रों की ओर हुआ है, जो केवल सीमांत रूप से कुछ अधिक उत्पादक (होटल, रेस्तरां, परिवहन जैसी सेवाएं) हैं। इसकी संभाव्यता के पर्याप्त रूप में उच्च होने के बावजूद भी यह निष्क्रिय औद्योगिक उत्पादन का एक कारण है। इससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी और निम्न साम्यावस्था की प्रवृत्ति बनी रहती है।

आर्थिक सर्वेक्षण निवेश मूल्यों के प्रतिफल के रूप में उच्च लाभ प्रदान करने वाले क्षेत्रों और उद्योगों की पहचान करता है। उदाहरण के लिए, भारत में कृषि, आकार में वृहद् किन्तु कम होते रोजगार वाला क्षेत्र बन गया है। संपूर्ण आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि में निवेश करना आवश्यक है। हालांकि, इस तथ्य को भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि यह स्वाभाविक रूप से एक कम उत्पादक गतिविधि है और इसलिए इसकी उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ श्रमिकों (जो इसे छोड़कर जा रहे हैं) को लाभकारी रोजगार प्रदान करने हेतु निवेश किया जाना चाहिए। कृषि में निवेश के माध्यम से प्राप्त की गई संवृद्धि केवल सीमित है तथा खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा व वस्त्र उद्योग जैसे क्षेत्रों (जिनकी उत्पादकता उच्च है तथा जिनमें रोजगार और निर्यात संभाव्यता विद्यमान है) में समानांतर रूप से अतिरिक्त संसाधनों का निवेश किया जाना चाहिए।

हमारा लक्ष्य तीव्र, समावेशी एवं सतत वृद्धि करने का है, जिसे बारहवीं पंचवर्षीय योजना में परिभाषित किया गया है। जहाँ विश्व चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ रहा है तथा इसकी संवृद्धि नवाचारों द्वारा संचालित है, हमारे लिए आवश्यक हो जाता है कि इस दिशा में संसाधनों का आवंटन किया जाए। साथ ही, समावेशीकरण के लिए यह आवश्यक है कि वे क्षेत्र जिन्हें हम आगे बढ़कर प्रोत्साहन देते हैं, रोजगार सघन होने के साथ-साथ उच्च उत्पादकता युक्त हों। यह उद्देश्य इन क्षेत्रों (विशेषकर विनिर्माण) में निवेश के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण ने विनिर्माण में संवृद्धि को प्रोत्साहन देने व रोजगार अवसरों के सृजन हेतु 10 अग्रणी क्षेत्रों की पहचान की है। इन क्षेत्रों में पूंजीगत वस्तुएं, ऑटो, रक्षा, फार्मा एवं नवीकरणीय ऊर्जा सम्मिलित हैं। अन्य क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एवं विनिर्माण, चमड़ा, वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, रत्न एवं आभूषण, निर्माण, जहाजरानी और रेलवे सम्मिलित हैं।

उदाहरण के लिए, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि कार्य छोड़ने वाले श्रमिक को लाभप्रद रूप से समायोजित कर सकता है। यह क्षेत्र कच्चे माल का मूल्य संवर्धन तथा आगत की प्रति इकाई पर अधिक मूल्य प्राप्त करने के कारण उच्च उत्पादकता प्राप्त कर सकता है। इसके साथ इसमें अधिक निर्यात की संभावनाएं भी विद्यमान हैं। अत: कम उत्पादक क्षेत्रों की तुलना में इन क्षेत्रों के व्यवसायिक परिवेश में सुधार करने हेतु निवेश करना एक बेहतर विकल्प होगा। प्राप्त संवृद्धि की गुणवत्ता और गति विशेष रूप से इस तथ्य पर निर्भर करती है कि हम किस प्रकार अपने संसाधनों का आवंटन करते हैं। निम्न उत्पादकता वाले क्षेत्रों में तदर्थ आवंटन (Adhoc allocation) से भी संवृद्धि प्राप्त होती है। हालांकि यह असतत (non-sustainable) है और शीघ्रता से समाप्त हो जाती है। वांछित संरचनात्मक परिवर्तनों के अनुसरण द्वारा संवृद्धि की बेहतर गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है।

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